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"text": "७ त्रित आप्त्यः। अग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nपि॒प्री॒हि दे॒वाँ उ॑श॒तो य॑विष्ठ वि॒द्वाँ ऋ॒तूँॠ॑तुपते यजे॒ह ।\n\n ये दैव्या॑ ऋ॒त्विज॒स्तेभि॑रग्ने॒ त्वं होतॄ॑णाम॒स्याय॑जिष्ठः ॥१॥\n\nवेषि॑ हो॒त्रमु॒त पो॒त्रं जना॑नां मन्धा॒तासि॑ द्रविणो॒दा ऋ॒तावा॑ ।\n\nस्वाहा॑ व॒यं कृ॒णवा॑मा ह॒वींषि॑ दे॒वो दे॒वान्य॑जत्व॒ग्निरर्ह॑न् ॥२॥\n\nआ दे॒वाना॒मपि॒ पन्था॑मगन्म॒ यच्छ॒क्नवा॑म॒ तदनु॒ प्रवो॑ळ्हुम् ।\n\nअ॒ग्निर्वि॒द्वान्त्स य॑जा॒त्सेदु॒ होता॒ सो अ॑ध्व॒रान्त्स ऋ॒तून्क॑ल्पयाति ॥३॥\n\nयद्वो॑ व॒यं प्र॑मि॒नाम॑ व्र॒तानि॑ वि॒दुषां॑ देवा॒ अवि॑दुष्टरासः ।\n\nअ॒ग्निष्टद्विश्व॒मा पृ॑णाति वि॒द्वान्येभि॑र्दे॒वाँ ऋ॒तुभि॑: क॒ल्पया॑ति ॥४॥\n\nयत्पा॑क॒त्रा मन॑सा दी॒नद॑क्षा॒ न य॒ज्ञस्य॑ मन्व॒ते मर्त्या॑सः ।\n\nअ॒ग्निष्टद्धोता॑ क्रतु॒विद्वि॑जा॒नन्यजि॑ष्ठो दे॒वाँ ऋ॑तु॒शो य॑जाति ॥५॥\n\nविश्वे॑षां॒ ह्य॑ध्व॒राणा॒मनी॑कं चि॒त्रं के॒तुं जनि॑ता त्वा ज॒जान॑ ।\n\n स आ य॑जस्व नृ॒वती॒रनु॒ क्षा: स्पा॒र्हा इष॑: क्षु॒मती॑र्वि॒श्वज॑न्याः ॥६॥\n\nयं त्वा॒ द्यावा॑पृथि॒वी यं त्वाप॒स्त्वष्टा॒ यं त्वा॑ सु॒जनि॑मा ज॒जान॑ ।\n\nपन्था॒मनु॑ प्रवि॒द्वान्पि॑तृ॒याणं॑ द्यु॒मद॑ग्ने समिधा॒नो वि भा॑हि ॥७॥"
},
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"veda": "rigveda",
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"text": "७ त्रित आप्त्यः। अग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nइ॒नो रा॑जन्नर॒तिः समि॑द्धो॒ रौद्रो॒ दक्षा॑य सुषु॒माँ अ॑दर्शि ।\n\n चि॒किद्वि भा॑ति भा॒सा बृ॑ह॒ताऽसि॑क्नीमेति॒ रुश॑तीम॒पाज॑न् ॥१॥\n\nकृ॒ष्णां यदेनी॑म॒भि वर्प॑सा॒ भूज्ज॒नय॒न्योषां॑ बृह॒तः पि॒तुर्जाम् ।\n\nऊ॒र्ध्वं भा॒नुं सूर्य॑स्य स्तभा॒यन्दि॒वो वसु॑भिरर॒तिर्वि भा॑ति ॥२॥\n\nभ॒द्रो भ॒द्रया॒ सच॑मान॒ आगा॒त्स्वसा॑रं जा॒रो अ॒भ्ये॑ति प॒श्चात् ।\n\n सु॒प्र॒के॒तैर्द्युभि॑र॒ग्निर्वि॒तिष्ठ॒न्रुश॑द्भि॒र्वर्णै॑र॒भि रा॒मम॑स्थात् ॥३॥\n\nअ॒स्य यामा॑सो बृह॒तो न व॒ग्नूनिन्धा॑ना अ॒ग्नेः सख्यु॑: शि॒वस्य॑ ।\n\n ईड्य॑स्य॒ वृष्णो॑ बृह॒तः स्वासो॒ भामा॑सो॒ याम॑न्न॒क्तव॑श्चिकित्रे ॥४॥\n\nस्व॒ना न यस्य॒ भामा॑स॒: पव॑न्ते॒ रोच॑मानस्य बृह॒तः सु॒दिव॑: ।\n\n ज्येष्ठे॑भि॒र्यस्तेजि॑ष्ठैः क्रीळु॒मद्भि॒र्वर्षि॑ष्ठेभिर्भा॒नुभि॒र्नक्ष॑ति॒ द्याम् ॥५॥\n\nअ॒स्य शुष्मा॑सो ददृशा॒नप॑वे॒र्जेह॑मानस्य स्वनयन्नि॒युद्भि॑: ।\n\nप्र॒त्नेभि॒र्यो रुश॑द्भिर्दे॒वत॑मो॒ वि रेभ॑द्भिरर॒तिर्भाति॒ विभ्वा॑ ॥६॥\n\nस आ व॑क्षि॒ महि॑ न॒ आ च॑ सत्सि दि॒वस्पृ॑थि॒व्योर॑र॒तिर्यु॑व॒त्योः ।\n\nअ॒ग्निः सु॒तुक॑: सु॒तुके॑भि॒रश्वै॒ रभ॑स्वद्भी॒ रभ॑स्वाँ॒ एह ग॑म्याः ॥७॥"
},
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"mandala": 10,
"sukta": 4,
"text": "७ त्रित आप्त्यः। अग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nप्र ते॑ यक्षि॒ प्र त॑ इयर्मि॒ मन्म॒ भुवो॒ यथा॒ वन्द्यो॑ नो॒ हवे॑षु ।\n\nधन्व॑न्निव प्र॒पा अ॑सि॒ त्वम॑ग्न इय॒क्षवे॑ पू॒रवे॑ प्रत्न राजन् ॥१॥\n\nयं त्वा॒ जना॑सो अ॒भि सं॒चर॑न्ति॒ गाव॑ उ॒ष्णमि॑व व्र॒जं य॑विष्ठ ।\n\nदू॒तो दे॒वाना॑मसि॒ मर्त्या॑नाम॒न्तर्म॒हाँश्च॑रसि रोच॒नेन॑ ॥२॥\n\nशिशुं॒ न त्वा॒ जेन्यं॑ व॒र्धय॑न्ती मा॒ता बि॑भर्ति सचन॒स्यमा॑ना ।\n\nधनो॒रधि॑ प्र॒वता॑ यासि॒ हर्य॒ञ्जिगी॑षसे प॒शुरि॒वाव॑सृष्टः ॥३॥\n\nमू॒रा अ॑मूर॒ न व॒यं चि॑कित्वो महि॒त्वम॑ग्ने॒ त्वम॒ङ्ग वि॑त्से ।\n\nशये॑ व॒व्रिश्चर॑ति जि॒ह्वया॒दन्रे॑रि॒ह्यते॑ युव॒तिं वि॒श्पति॒: सन् ॥४॥\n\nकूचि॑ज्जायते॒ सन॑यासु॒ नव्यो॒ वने॑ तस्थौ पलि॒तो धू॒मके॑तुः ।\n\n अ॒स्ना॒तापो॑ वृष॒भो न प्र वे॑ति॒ सचे॑तसो॒ यं प्र॒णय॑न्त॒ मर्ता॑: ॥५॥\n\nत॒नू॒त्यजे॑व॒ तस्क॑रा वन॒र्गू र॑श॒नाभि॑र्द॒शभि॑र॒भ्य॑धीताम् ।\n\nइ॒यं ते॑ अग्ने॒ नव्य॑सी मनी॒षा यु॒क्ष्वा रथं॒ न शु॒चय॑द्भि॒रङ्गै॑: ॥६॥\n\nब्रह्म॑ च ते जातवेदो॒ नम॑श्चे॒यं च॒ गीः सद॒मिद्वर्ध॑नी भूत् ।\n\nरक्षा॑ णो अग्ने॒ तन॑यानि तो॒का रक्षो॒त न॑स्त॒न्वो॒३ अप्र॑युच्छन् ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 5,
"text": "७ त्रित आप्त्यः। अग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nएक॑: समु॒द्रो ध॒रुणो॑ रयी॒णाम॒स्मद्धृ॒दो भूरि॑जन्मा॒ वि च॑ष्टे ।\n\nसिष॒क्त्यूध॑र्नि॒ण्योरु॒पस्थ॒ उत्स॑स्य॒ मध्ये॒ निहि॑तं प॒दं वेः ॥१॥\n\nस॒मा॒नं नी॒ळं वृष॑णो॒ वसा॑ना॒: सं ज॑ग्मिरे महि॒षा अर्व॑तीभिः ।\n\nऋ॒तस्य॑ प॒दं क॒वयो॒ नि पा॑न्ति॒ गुहा॒ नामा॑नि दधिरे॒ परा॑णि ॥२॥\n\nऋ॒ता॒यिनी॑ मा॒यिनी॒ सं द॑धाते मि॒त्वा शिशुं॑ जज्ञतुर्व॒र्धय॑न्ती ।\n\nविश्व॑स्य॒ नाभिं॒ चर॑तो ध्रु॒वस्य॑ क॒वेश्चि॒त्तन्तुं॒ मन॑सा वि॒यन्त॑: ॥३॥\n\nऋ॒तस्य॒ हि व॑र्त॒नय॒: सुजा॑त॒मिषो॒ वाजा॑य प्र॒दिव॒: सच॑न्ते ।\n\nअ॒धी॒वा॒सं रोद॑सी वावसा॒ने घृ॒तैरन्नै॑र्वावृधाते॒ मधू॑नाम् ॥४॥\n\nस॒प्त स्वसॄ॒ररु॑षीर्वावशा॒नो वि॒द्वान्मध्व॒ उज्ज॑भारा दृ॒शे कम् ।\n\nअ॒न्तर्ये॑मे अ॒न्तरि॑क्षे पुरा॒जा इ॒च्छन्व॒व्रिम॑विदत्पूष॒णस्य॑ ॥५॥\n\nस॒प्त म॒र्यादा॑: क॒वय॑स्ततक्षु॒स्तासा॒मेका॒मिद॒भ्यं॑हु॒रो गा॑त् ।\n\nआ॒योर्ह॑ स्क॒म्भ उ॑प॒मस्य॑ नी॒ळे प॒थां वि॑स॒र्गे ध॒रुणे॑षु तस्थौ ॥६॥\n\nअस॑च्च॒ सच्च॑ पर॒मे व्यो॑म॒न्दक्ष॑स्य॒ जन्म॒न्नदि॑तेरु॒पस्थे॑ ।\n\nअ॒ग्निर्ह॑ नः प्रथम॒जा ऋ॒तस्य॒ पूर्व॒ आयु॑नि वृष॒भश्च॑ धे॒नुः ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 6,
"text": "७ त्रित आप्त्यः। अग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nअ॒यं स यस्य॒ शर्म॒न्नवो॑भिर॒ग्नेरेध॑ते जरि॒ताभिष्टौ॑ ।\n\nज्येष्ठे॑भि॒र्यो भा॒नुभि॑ॠषू॒णां प॒र्येति॒ परि॑वीतो वि॒भावा॑ ॥१\n\nयो भा॒नुभि॑र्वि॒भावा॑ वि॒भात्य॒ग्निर्दे॒वेभि॑ॠ॒तावाज॑स्रः ।\n\nआ यो वि॒वाय॑ स॒ख्या सखि॒भ्योऽप॑रिह्वृतो॒ अत्यो॒ न सप्ति॑: ॥२॥\n\nईशे॒ यो विश्व॑स्या दे॒ववी॑ते॒रीशे॑ वि॒श्वायु॑रु॒षसो॒ व्यु॑ष्टौ । आ यस्मि॑न्म॒ना ह॒वींष्य॒ग्नावरि॑ष्टरथः स्क॒भ्नाति॑ शू॒षैः ॥३॥\n\nशू॒षेभि॑र्वृ॒धो जु॑षा॒णो अ॒र्कैर्दे॒वाँ अच्छा॑ रघु॒पत्वा॑ जिगाति ।\n\nम॒न्द्रो होता॒ स जु॒ह्वा॒३ यजि॑ष्ठ॒: सम्मि॑श्लो अ॒ग्निरा जि॑घर्ति दे॒वान् ॥४॥\n\nतमु॒स्रामिन्द्रं॒ न रेज॑मानम॒ग्निं गी॒र्भिर्नमो॑भि॒रा कृ॑णुध्वम् ।\n\nआ यं विप्रा॑सो म॒तिभि॑र्गृ॒णन्ति॑ जा॒तवे॑दसं जु॒ह्वं॑ स॒हाना॑म् ॥५॥\n\nसं यस्मि॒न्विश्वा॒ वसू॑नि ज॒ग्मुर्वाजे॒ नाश्वा॒: सप्ती॑वन्त॒ एवै॑: ।\n\nअ॒स्मे ऊ॒तीरिन्द्र॑वाततमा अर्वाची॒ना अ॑ग्न॒ आ कृ॑णुष्व ॥६॥\n\nअधा॒ ह्य॑ग्ने म॒ह्ना नि॒षद्या॑ स॒द्यो ज॑ज्ञा॒नो हव्यो॑ ब॒भूथ॑ ।\n\nतं ते॑ दे॒वासो॒ अनु॒ केत॑माय॒न्नधा॑वर्धन्त प्रथ॒मास॒ ऊमा॑: ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 7,
"text": "७ त्रित आप्त्यः। अग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nस्व॒स्ति नो॑ दि॒वो अ॑ग्ने पृथि॒व्या वि॒श्वायु॑र्धेहि य॒जथा॑य देव ।\n\nसचे॑महि॒ तव॑ दस्म प्रके॒तैरु॑रु॒ष्या ण॑ उ॒रुभि॑र्देव॒ शंसै॑: ॥१॥\n\nइ॒मा अ॑ग्ने म॒तय॒स्तुभ्यं॑ जा॒ता गोभि॒रश्वै॑र॒भि गृ॑णन्ति॒ राध॑: ।\n\nय॒दा ते॒ मर्तो॒ अनु॒ भोग॒मान॒ड्वसो॒ दधा॑नो म॒तिभि॑: सुजात ॥२॥\n\nअ॒ग्निं म॑न्ये पि॒तर॑म॒ग्निमा॒पिम॒ग्निं भ्रात॑रं॒ सद॒मित्सखा॑यम् ।\n\nअ॒ग्नेरनी॑कं बृह॒तः स॑पर्यं दि॒वि शु॒क्रं य॑ज॒तं सूर्य॑स्य ॥३॥\n\nसि॒ध्रा अ॑ग्ने॒ धियो॑ अ॒स्मे सनु॑त्री॒र्यं त्राय॑से॒ दम॒ आ नित्य॑होता ।\n\nऋ॒तावा॒ स रो॒हिद॑श्वः पुरु॒क्षुर्द्युभि॑रस्मा॒ अह॑भिर्वा॒मम॑स्तु ॥४॥\n\nद्युभि॑र्हि॒तं मि॒त्रमि॑व प्र॒योगं॑ प्र॒त्नमृ॒त्विज॑मध्व॒रस्य॑ जा॒रम् ।\n\nबा॒हुभ्या॑म॒ग्निमा॒यवो॑ऽजनन्त वि॒क्षु होता॑रं॒ न्य॑सादयन्त ॥५॥\n\nस्व॒यं य॑जस्व दि॒वि दे॑व दे॒वान्किं ते॒ पाक॑: कृणव॒दप्र॑चेताः ।\n\nयथाय॑ज ऋ॒तुभि॑र्देव दे॒वाने॒वा य॑जस्व त॒न्वं॑ सुजात ॥६॥\n\nभवा॑ नो अग्नेऽवि॒तोत गो॒पा भवा॑ वय॒स्कृदु॒त नो॑ वयो॒धाः ।\n\nरास्वा॑ च नः सुमहो ह॒व्यदा॑तिं॒ त्रास्वो॒त न॑स्त॒न्वो॒३ अप्र॑युच्छन् ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 8,
"text": "९ त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः। अग्निः,७-९ इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nप्र के॒तुना॑ बृह॒ता या॑त्य॒ग्निरा रोद॑सी वृष॒भो रो॑रवीति ।\n\nदि॒वश्चि॒दन्ताँ॑ उप॒माँ उदा॑नळ॒पामु॒पस्थे॑ महि॒षो व॑वर्ध ॥१॥\n\nमु॒मोद॒ गर्भो॑ वृष॒भः क॒कुद्मा॑नस्रे॒मा व॒त्सः शिमी॑वाँ अरावीत् ।\n\nस दे॒वता॒त्युद्य॑तानि कृ॒ण्वन्त्स्वेषु॒ क्षये॑षु प्रथ॒मो जि॑गाति ॥२॥\n\nआ यो मू॒र्धानं॑ पि॒त्रोरर॑ब्ध॒ न्य॑ध्व॒रे द॑धिरे॒ सूरो॒ अर्ण॑: ।\n\nअस्य॒ पत्म॒न्नरु॑षी॒रश्व॑बुध्ना ऋ॒तस्य॒ योनौ॑ त॒न्वो॑ जुषन्त ॥३॥\n\nउ॒षउ॑षो॒ हि व॑सो॒ अग्र॒मेषि॒ त्वं य॒मयो॑रभवो वि॒भावा॑ ।\n\nऋ॒ताय॑ स॒प्त द॑धिषे प॒दानि॑ ज॒नय॑न्मि॒त्रं त॒न्वे॒३ स्वायै॑ ॥४॥\n\nभुव॒श्चक्षु॑र्म॒ह ऋ॒तस्य॑ गो॒पा भुवो॒ वरु॑णो॒ यदृ॒ताय॒ वेषि॑ ।\n\nभुवो॑ अ॒पां नपा॑ज्जातवेदो॒ भुवो॑ दू॒तो यस्य॑ ह॒व्यं जुजो॑षः ॥५॥\n\nभुवो॑ य॒ज्ञस्य॒ रज॑सश्च ने॒ता यत्रा॑ नि॒युद्भि॒: सच॑से शि॒वाभि॑: ।\n\nदि॒वि मू॒र्धानं॑ दधिषे स्व॒र्षां जि॒ह्वाम॑ग्ने चकृषे हव्य॒वाह॑म् ॥६॥\n\nअ॒स्य त्रि॒तः क्रतु॑ना व॒व्रे अ॒न्तरि॒च्छन्धी॒तिं पि॒तुरेवै॒: पर॑स्य ।\n\nस॒च॒स्यमा॑नः पि॒त्रोरु॒पस्थे॑ जा॒मि ब्रु॑वा॒ण आयु॑धानि वेति ॥७॥\n\nस पित्र्या॒ण्यायु॑धानि वि॒द्वानिन्द्रे॑षित आ॒प्त्यो अ॒भ्य॑युध्यत् ।\n\nत्रि॒शी॒र्षाणं॑ स॒प्तर॑श्मिं जघ॒न्वान्त्वा॒ष्ट्रस्य॑ चि॒न्निः स॑सृजे त्रि॒तो गाः ॥८॥\n\nभूरीदिन्द्र॑ उ॒दिन॑क्षन्त॒मोजोऽवा॑भिन॒त्सत्प॑ति॒र्मन्य॑मानम् ।\n\nत्वा॒ष्ट्रस्य॑ चिद्वि॒श्वरू॑पस्य॒ गोना॑माचक्रा॒णस्त्रीणि॑ शी॒र्षा परा॑ वर्क् ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 9,
"text": "९ त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः,सिन्धुद्वीप आम्बरीषो वा। आपः। गायत्री,५ वर्धमाना गायत्री, ७ प्रतिष्ठा गायत्री, ८ -९ अनुष्टुप्।\n\nआपो॒ हि ष्ठा म॑यो॒भुव॒स्ता न॑ ऊ॒र्जे द॑धातन । म॒हे रणा॑य॒ चक्ष॑से ॥१॥\n\nयो व॑: शि॒वत॑मो॒ रस॒स्तस्य॑ भाजयते॒ह न॑: । उ॒श॒तीरि॑व मा॒तर॑: ॥२॥\n\nतस्मा॒ अरं॑ गमाम वो॒ यस्य॒ क्षया॑य॒ जिन्व॑थ । आपो॑ ज॒नय॑था च नः ॥३॥\n\nशं नो॑ दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ आपो॑ भवन्तु पी॒तये॑ । शं योर॒भि स्र॑वन्तु नः ॥४॥\n\nईशा॑ना॒ वार्या॑णां॒ क्षय॑न्तीश्चर्षणी॒नाम् । अ॒पो या॑चामि भेष॒जम् ॥५॥\n\nअ॒प्सु मे॒ सोमो॑ अब्रवीद॒न्तर्विश्वा॑नि भेष॒जा । अ॒ग्निं च॑ वि॒श्वश॑म्भुवम् ॥६॥\n\nआप॑: पृणी॒त भे॑ष॒जं वरू॑थं त॒न्वे॒३ मम॑ । ज्योक्च॒ सूर्यं॑ दृ॒शे ॥७॥\n\nइ॒दमा॑प॒: प्र व॑हत॒ यत्किं च॑ दुरि॒तं मयि॑ । यद्वा॒हम॑भिदु॒द्रोह॒ यद्वा॑ शे॒प उ॒तानृ॑तम् ॥८॥\n\nआपो॑ अ॒द्यान्व॑चारिषं॒ रसे॑न॒ सम॑गस्महि । पय॑स्वानग्न॒ आ ग॑हि॒ तं मा॒ सं सृ॑ज॒ वर्च॑सा ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 10,
"text": "१४ नवमीवर्ज्यानामयुजां षष्ठ्याश्च वैवस्वती यमी ऋषिका। यमः। षष्ठीवर्ज्यानां युजां नवम्याश्च वैवस्वतो यमः ऋषिः। यमी। त्रिष्टुप्, १३विराट्स्थाना।\n\nओ चि॒त्सखा॑यं स॒ख्या व॑वृत्यां ति॒रः पु॒रू चि॑दर्ण॒वं ज॑ग॒न्वान् ।\n\nपि॒तुर्नपा॑त॒मा द॑धीत वे॒धा अधि॒ क्षमि॑ प्रत॒रं दीध्या॑नः ॥१॥\n\nन ते॒ सखा॑ स॒ख्यं व॑ष्ट्ये॒तत्सल॑क्ष्मा॒ यद्विषु॑रूपा॒ भवा॑ति ।\n\nम॒हस्पु॒त्रासो॒ असु॑रस्य वी॒रा दि॒वो ध॒र्तार॑ उर्वि॒या परि॑ ख्यन् ॥२॥\n\nउ॒शन्ति॑ घा॒ ते अ॒मृता॑स ए॒तदेक॑स्य चित्त्य॒जसं॒ मर्त्य॑स्य ।\n\n नि ते॒ मनो॒ मन॑सि धाय्य॒स्मे जन्यु॒: पति॑स्त॒न्व१मा वि॑विश्याः ॥३॥\n\nन यत्पु॒रा च॑कृ॒मा कद्ध॑ नू॒नमृ॒ता वद॑न्तो॒ अनृ॑तं रपेम ।\n\n ग॒न्ध॒र्वो अ॒प्स्वप्या॑ च॒ योषा॒ सा नो॒ नाभि॑: पर॒मं जा॒मि तन्नौ॑ ॥४॥\n\nगर्भे॒ नु नौ॑ जनि॒ता दम्प॑ती कर्दे॒वस्त्वष्टा॑ सवि॒ता वि॒श्वरू॑पः ।\n\n नकि॑रस्य॒ प्र मि॑नन्ति व्र॒तानि॒ वेद॑ नाव॒स्य पृ॑थि॒वी उ॒त द्यौः ॥५॥\n\nको अ॒स्य वे॑द प्रथ॒मस्याह्न॒: क ईं॑ ददर्श॒ क इ॒ह प्र वो॑चत् ।\n\nबृ॒हन्मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ धाम॒ कदु॑ ब्रव आहनो॒ वीच्या॒ नॄन् ॥६॥\n\nय॒मस्य॑ मा य॒म्यं१ काम॒ आग॑न्त्समा॒ने योनौ॑ सह॒शेय्या॑य ।\n\nजा॒येव॒ पत्ये॑ त॒न्वं॑ रिरिच्यां॒ वि चि॑द्वृहेव॒ रथ्ये॑व च॒क्रा ॥७॥\n\nन ति॑ष्ठन्ति॒ न नि मि॑षन्त्ये॒ते दे॒वानां॒ स्पश॑ इ॒ह ये चर॑न्ति ।\n\nअ॒न्येन॒ मदा॑हनो याहि॒ तूयं॒ तेन॒ वि वृ॑ह॒ रथ्ये॑व च॒क्रा ॥८॥\n\nरात्री॑भिरस्मा॒ अह॑भिर्दशस्ये॒त्सूर्य॑स्य॒ चक्षु॒र्मुहु॒रुन्मि॑मीयात् ।\n\nदि॒वा पृ॑थि॒व्या मि॑थु॒ना सब॑न्धू य॒मीर्य॒मस्य॑ बिभृया॒दजा॑मि ॥९॥\n\nआ घा॒ ता ग॑च्छा॒नुत्त॑रा यु॒गानि॒ यत्र॑ जा॒मय॑: कृ॒णव॒न्नजा॑मि ।\n\nउप॑ बर्बृहि वृष॒भाय॑ बा॒हुम॒न्यमि॑च्छस्व सुभगे॒ पतिं॒ मत् ॥१०॥\n\nकिं भ्राता॑स॒द्यद॑ना॒थं भवा॑ति॒ किमु॒ स्वसा॒ यन्निॠ॑तिर्नि॒गच्छा॑त् ।\n\nकाम॑मूता ब॒ह्वे॒३तद्र॑पामि त॒न्वा॑ मे त॒न्वं१ सं पि॑पृग्धि ॥११॥\n\nन वा उ॑ ते त॒न्वा॑ त॒न्वं१ सं प॑पृच्यां पा॒पमा॑हु॒र्यः स्वसा॑रं नि॒गच्छा॑त् ।\n\nअ॒न्येन॒ मत्प्र॒मुद॑: कल्पयस्व॒ न ते॒ भ्राता॑ सुभगे वष्ट्ये॒तत् ॥१२॥\n\nब॒तो ब॑तासि यम॒ नैव ते॒ मनो॒ हृद॑यं चाविदाम ।\n\nअ॒न्या किल॒ त्वां क॒क्ष्ये॑व यु॒क्तं परि॑ ष्वजाते॒ लिबु॑जेव वृ॒क्षम् ॥१३॥\n\nअ॒न्यमू॒ षु त्वं य॑म्य॒न्य उ॒ त्वां परि॑ ष्वजाते॒ लिबु॑जेव वृ॒क्षम् ।\n\nतस्य॑ वा॒ त्वं मन॑ इ॒च्छा स वा॒ तवाऽधा॑ कृणुष्व सं॒विदं॒ सुभ॑द्राम् ॥१४॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 11,
"text": "९ आङ्गिर्हविर्धानः। अग्निः। जगती, ७-९ त्रिष्टुप्।\n\nवृषा॒ वृष्णे॑ दुदुहे॒ दोह॑सा दि॒वः पयां॑सि य॒ह्वो अदि॑ते॒रदा॑भ्यः ।\n\nविश्वं॒ स वे॑द॒ वरु॑णो॒ यथा॑ धि॒या स य॒ज्ञियो॑ यजतु य॒ज्ञियाँ॑ ऋ॒तून् ॥१॥\n\nरप॑द्गन्ध॒र्वीरप्या॑ च॒ योष॑णा न॒दस्य॑ ना॒दे परि॑ पातु मे॒ मन॑: ।\n\nइ॒ष्टस्य॒ मध्ये॒ अदि॑ति॒र्नि धा॑तु नो॒ भ्राता॑ नो ज्ये॒ष्ठः प्र॑थ॒मो वि वो॑चति ॥२॥\n\nसो चि॒न्नु भ॒द्रा क्षु॒मती॒ यश॑स्वत्यु॒षा उ॑वास॒ मन॑वे॒ स्व॑र्वती ।\n\nयदी॑मु॒शन्त॑मुश॒तामनु॒ क्रतु॑म॒ग्निं होता॑रं वि॒दथा॑य॒ जीज॑नन् ॥३॥\n\nअध॒ त्यं द्र॒प्सं वि॒भ्वं॑ विचक्ष॒णं विराभ॑रदिषि॒तः श्ये॒नो अ॑ध्व॒रे ।\n\nयदी॒ विशो॑ वृ॒णते॑ द॒स्ममार्या॑ अ॒ग्निं होता॑र॒मध॒ धीर॑जायत ॥४॥\n\nसदा॑सि र॒ण्वो यव॑सेव॒ पुष्य॑ते॒ होत्रा॑भिरग्ने॒ मनु॑षः स्वध्व॒रः ।\n\nविप्र॑स्य वा॒ यच्छ॑शमा॒न उ॒क्थ्यं१ वाजं॑ सस॒वाँ उ॑प॒यासि॒ भूरि॑भिः ॥५॥\n\nउदी॑रय पि॒तरा॑ जा॒र आ भग॒मिय॑क्षति हर्य॒तो हृ॒त्त इ॑ष्यति ।\n\nविव॑क्ति॒ वह्नि॑: स्वप॒स्यते॑ म॒खस्त॑वि॒ष्यते॒ असु॑रो॒ वेप॑ते म॒ती ॥६॥\n\nयस्ते॑ अग्ने सुम॒तिं मर्तो॒ अक्ष॒त्सह॑सः सूनो॒ अति॒ स प्र शृ॑ण्वे ।\n\nइषं॒ दधा॑नो॒ वह॑मानो॒ अश्वै॒रा स द्यु॒माँ अम॑वान्भूषति॒ द्यून् ॥७॥\n\nयद॑ग्न ए॒षा समि॑ति॒र्भवा॑ति दे॒वी दे॒वेषु॑ यज॒ता य॑जत्र ।\n\nरत्ना॑ च॒ यद्वि॒भजा॑सि स्वधावो भा॒गं नो॒ अत्र॒ वसु॑मन्तं वीतात् ॥८॥\n\nश्रु॒धी नो॑ अग्ने॒ सद॑ने स॒धस्थे॑ यु॒क्ष्वा रथ॑म॒मृत॑स्य द्रवि॒त्नुम् ।\n\nआ नो॑ वह॒ रोद॑सी दे॒वपु॑त्रे॒ माकि॑र्दे॒वाना॒मप॑ भूरि॒ह स्या॑: ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 12,
"text": "९ आङ्गिर्हविर्धानः। अग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nद्यावा॑ ह॒ क्षामा॑ प्रथ॒मे ऋ॒तेना॑ऽभिश्रा॒वे भ॑वतः सत्य॒वाचा॑ ।\n\nदे॒वो यन्मर्ता॑न्य॒जथा॑य कृ॒ण्वन्त्सीद॒द्धोता॑ प्र॒त्यङ्स्वमसुं॒ यन् ॥१॥\n\nदे॒वो दे॒वान्प॑रि॒भूॠ॒तेन॒ वहा॑ नो ह॒व्यं प्र॑थ॒मश्चि॑कि॒त्वान् ।\n\n धू॒मके॑तुः स॒मिधा॒ भाऋ॑जीको म॒न्द्रो होता॒ नित्यो॑ वा॒चा यजी॑यान् ॥२॥\n\nस्वावृ॑ग्दे॒वस्या॒मृतं॒ यदी॒ गोरतो॑ जा॒तासो॑ धारयन्त उ॒र्वी ।\n\nविश्वे॑ दे॒वा अनु॒ तत्ते॒ यजु॑र्गुर्दु॒हे यदेनी॑ दि॒व्यं घृ॒तं वाः ॥३॥\n\nअर्चा॑मि वां॒ वर्धा॒यापो॑ घृतस्नू॒ द्यावा॑भूमी शृणु॒तं रो॑दसी मे ।\n\nअहा॒ यद्द्यावोऽसु॑नीति॒मय॒न्मध्वा॑ नो॒ अत्र॑ पि॒तरा॑ शिशीताम् ॥४॥\n\nकिं स्वि॑न्नो॒ राजा॑ जगृहे॒ कद॒स्याऽति॑ व्र॒तं च॑कृमा॒ को वि वे॑द ।\n\nमि॒त्रश्चि॒द्धि ष्मा॑ जुहुरा॒णो दे॒वाञ्छ्लोको॒ न या॒तामपि॒ वाजो॒ अस्ति॑ ॥५॥\n\nदु॒र्मन्त्वत्रा॒मृत॑स्य॒ नाम॒ सल॑क्ष्मा॒ यद्विषु॑रूपा॒ भवा॑ति ।\n\n य॒मस्य॒ यो म॒नव॑ते सु॒मन्त्वग्ने॒ तमृ॑ष्व पा॒ह्यप्र॑युच्छन् ॥६॥\n\nयस्मि॑न्दे॒वा वि॒दथे॑ मा॒दय॑न्ते वि॒वस्व॑त॒: सद॑ने धा॒रय॑न्ते ।\n\nसूर्ये॒ ज्योति॒रद॑धुर्मा॒स्य१क्तून्परि॑ द्योत॒निं च॑रतो॒ अज॑स्रा ॥७॥\n\nयस्मि॑न्दे॒वा मन्म॑नि सं॒चर॑न्त्यपी॒च्ये॒३ न व॒यम॑स्य विद्म ।\n\n मि॒त्रो नो॒ अत्रादि॑ति॒रना॑गान्त्सवि॒ता दे॒वो वरु॑णाय वोचत् ॥८॥\n\nश्रु॒धी नो॑ अग्ने॒ सद॑ने स॒धस्थे॑ यु॒क्ष्वा रथ॑म॒मृत॑स्य द्रवि॒त्नुम् ।\n\nआ नो॑ वह॒ रोद॑सी दे॒वपु॑त्रे॒ माकि॑र्दे॒वाना॒मप॑ भूरि॒ह स्या॑: ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 13,
"text": "५ आङ्गिर्हविर्धानः। विवस्वानादित्यो वा। हविर्धाने। त्रिष्टुप्, ५ जगती।\n\nयु॒जे वां॒ ब्रह्म॑ पू॒र्व्यं नमो॑भि॒र्वि श्लोक॑ एतु प॒थ्ये॑व सू॒रेः ।\n\nशृ॒ण्वन्तु॒ विश्वे॑ अ॒मृत॑स्य पु॒त्रा आ ये धामा॑नि दि॒व्यानि॑ त॒स्थुः ॥१॥\n\nय॒मे इ॑व॒ यत॑माने॒ यदैतं॒ प्र वां॑ भर॒न्मानु॑षा देव॒यन्त॑: ।\n\nआ सी॑दतं॒ स्वमु॑ लो॒कं विदा॑ने स्वास॒स्थे भ॑वत॒मिन्द॑वे नः ॥२॥\n\nपञ्च॑ प॒दानि॑ रु॒पो अन्व॑रोहं॒ चतु॑ष्पदी॒मन्वे॑मि व्र॒तेन॑ ।\n\nअ॒क्षरे॑ण॒ प्रति॑ मिम ए॒तामृ॒तस्य॒ नाभा॒वधि॒ सं पु॑नामि ॥३॥\n\nदे॒वेभ्य॒: कम॑वृणीत मृ॒त्युं प्र॒जायै॒ कम॒मृतं॒ नावृ॑णीत ।\n\nबृह॒स्पतिं॑ य॒ज्ञम॑कृण्वत॒ ऋषिं॑ प्रि॒यां य॒मस्त॒न्वं१ प्रारि॑रेचीत् ॥४॥\n\nस॒प्त क्ष॑रन्ति॒ शिश॑वे म॒रुत्व॑ते पि॒त्रे पु॒त्रासो॒ अप्य॑वीवतन्नृ॒तम् ।\n\n उ॒भे इद॑स्यो॒भय॑स्य राजत उ॒भे य॑तेते उ॒भय॑स्य पुष्यतः ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 14,
"text": "१६ वैवस्वतो यमः। यमः,६ अङ्गिरःपित्रथर्वभृगुसोमाः,७-९ लिङ्गोक्तदेवताः पितरो वा,१०-१२ श्वानौ। त्रिष्टुप्,१३,१४,१६, अनुष्टुप्,१५बृहती।\n\nप॒रे॒यि॒वांसं॑ प्र॒वतो॑ म॒हीरनु॑ ब॒हुभ्य॒: पन्था॑मनुपस्पशा॒नम् ।\n\nवै॒व॒स्व॒तं सं॒गम॑नं॒ जना॑नां य॒मं राजा॑नं ह॒विषा॑ दुवस्य ॥१॥\n\nय॒मो नो॑ गा॒तुं प्र॑थ॒मो वि॑वेद॒ नैषा गव्यू॑ति॒रप॑भर्त॒वा उ॑ ।\n\nयत्रा॑ न॒: पूर्वे॑ पि॒तर॑: परे॒युरे॒ना ज॑ज्ञा॒नाः प॒थ्या॒३ अनु॒ स्वाः ॥२॥\n\nमात॑ली क॒व्यैर्य॒मो अङ्गि॑रोभि॒र्बृह॒स्पति॒ॠक्व॑भिर्वावृधा॒नः ।\n\nयाँश्च॑ दे॒वा वा॑वृ॒धुर्ये च॑ दे॒वान्त्स्वाहा॒न्ये स्व॒धया॒न्ये म॑दन्ति ॥३॥\n\nइ॒मं य॑म प्रस्त॒रमा हि सीदाऽङ्गि॑रोभिः पि॒तृभि॑: संविदा॒नः ।\n\nआ त्वा॒ मन्त्रा॑: कविश॒स्ता व॑हन्त्वे॒ना रा॑जन्ह॒विषा॑ मादयस्व ॥४॥\n\nअङ्गि॑रोभि॒रा ग॑हि य॒ज्ञिये॑भि॒र्यम॑ वैरू॒पैरि॒ह मा॑दयस्व ।\n\nविव॑स्वन्तं हुवे॒ यः पि॒ता ते॒ऽस्मिन्य॒ज्ञे ब॒र्हिष्या नि॒षद्य॑ ॥५॥\n\nअङ्गि॑रसो नः पि॒तरो॒ नव॑ग्वा॒ अथ॑र्वाणो॒ भृग॑वः सो॒म्यास॑: ।\n\nतेषां॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिया॑ना॒मपि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म ॥६॥\n\nप्रेहि॒ प्रेहि॑ प॒थिभि॑: पू॒र्व्येभि॒र्यत्रा॑ न॒: पूर्वे॑ पि॒तर॑: परे॒युः ।\n\nउ॒भा राजा॑ना स्व॒धया॒ मद॑न्ता य॒मं प॑श्यासि॒ वरु॑णं च दे॒वम् ॥७॥\n\nसं ग॑च्छस्व पि॒तृभि॒: सं य॒मेने॑ष्टापू॒र्तेन॑ पर॒मे व्यो॑मन् ।\n\nहि॒त्वाया॑व॒द्यं पुन॒रस्त॒मेहि॒ सं ग॑च्छस्व त॒न्वा॑ सु॒वर्चा॑: ॥८॥\n\nअपे॑त॒ वी॑त॒ वि च॑ सर्प॒तातो॒ऽस्मा ए॒तं पि॒तरो॑ लो॒कम॑क्रन् ।\n\nअहो॑भिर॒द्भिर॒क्तुभि॒र्व्य॑क्तं य॒मो द॑दात्यव॒सान॑मस्मै ॥९॥\n\nअति॑ द्रव सारमे॒यौ श्वानौ॑ चतुर॒क्षौ श॒बलौ॑ सा॒धुना॑ प॒था ।\n\nअथा॑ पि॒तॄन्त्सु॑वि॒दत्राँ॒ उपे॑हि य॒मेन॒ ये स॑ध॒मादं॒ मद॑न्ति ॥१०॥\n\nयौ ते॒ श्वानौ॑ यम रक्षि॒तारौ॑ चतुर॒क्षौ प॑थि॒रक्षी॑ नृ॒चक्ष॑सौ ।\n\nताभ्या॑मेनं॒ परि॑ देहि राजन्त्स्व॒स्ति चा॑स्मा अनमी॒वं च॑ धेहि ॥११॥\n\nउ॒रू॒ण॒साव॑सु॒तृपा॑ उदुम्ब॒लौ य॒मस्य॑ दू॒तौ च॑रतो॒ जनाँ॒ अनु॑ ।\n\nताव॒स्मभ्यं॑ दृ॒शये॒ सूर्या॑य॒ पुन॑र्दाता॒मसु॑म॒द्येह भ॒द्रम् ॥१२॥\n\nय॒माय॒ सोमं॑ सुनुत य॒माय॑ जुहुता ह॒विः । य॒मं ह॑ य॒ज्ञो ग॑च्छत्य॒ग्निदू॑तो॒ अरं॑कृतः ॥१३॥\n\nय॒माय॑ घृ॒तव॑द्ध॒विर्जु॒होत॒ प्र च॑ तिष्ठत । स नो॑ दे॒वेष्वा य॑मद्दी॒र्घमायु॒: प्र जी॒वसे॑ ॥१४॥\n\nय॒माय॒ मधु॑मत्तमं॒ राज्ञे॑ ह॒व्यं जु॑होतन । इ॒दं नम॒ ऋषि॑भ्यः पूर्व॒जेभ्य॒: पूर्वे॑भ्यः पथि॒कृद्भ्य॑: ॥१५॥\n\nत्रिक॑द्रुकेभिः पतति॒ षळु॒र्वीरेक॒मिद्बृ॒हत् । त्रि॒ष्टुब्गा॑य॒त्री छन्दां॑सि॒ सर्वा॒ ता य॒म आहि॑ता ॥१६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 15,
"text": "१४ शङ्खो यामायनः।पितरः। त्रिष्टुप् ,११ जगती।\n\nउदी॑रता॒मव॑र॒ उत्परा॑स॒ उन्म॑ध्य॒माः पि॒तर॑: सो॒म्यास॑: ।\n\nअसुं॒ य ई॒युर॑वृ॒का ऋ॑त॒ज्ञास्ते नो॑ऽवन्तु पि॒तरो॒ हवे॑षु ॥१॥\n\nइ॒दं पि॒तृभ्यो॒ नमो॑ अस्त्व॒द्य ये पूर्वा॑सो॒ य उप॑रास ई॒युः ।\n\nये पार्थि॑वे॒ रज॒स्या निष॑त्ता॒ ये वा॑ नू॒नं सु॑वृ॒जना॑सु वि॒क्षु ॥२॥\n\nआहं पि॒तॄन्त्सु॑वि॒दत्राँ॑ अवित्सि॒ नपा॑तं च वि॒क्रम॑णं च॒ विष्णो॑: ।\n\nब॒र्हि॒षदो॒ ये स्व॒धया॑ सु॒तस्य॒ भज॑न्त पि॒त्वस्त इ॒हाग॑मिष्ठाः ॥३॥\n\nबर्हि॑षदः पितर ऊ॒त्य१र्वागि॒मा वो॑ ह॒व्या च॑कृमा जु॒षध्व॑म् ।\n\nत आ ग॒ताव॑सा॒ शंत॑मे॒नाऽथा॑ न॒: शं योर॑र॒पो द॑धात ॥४॥\n\nउप॑हूताः पि॒तर॑: सो॒म्यासो॑ बर्हि॒ष्ये॑षु नि॒धिषु॑ प्रि॒येषु॑ ।\n\nत आ ग॑मन्तु॒ त इ॒ह श्रु॑व॒न्त्वधि॑ ब्रुवन्तु॒ ते॑ऽवन्त्व॒स्मान् ॥५॥\n\nआच्या॒ जानु॑ दक्षिण॒तो नि॒षद्ये॒मं य॒ज्ञम॒भि गृ॑णीत॒ विश्वे॑ ।\n\nमा हिं॑सिष्ट पितर॒: केन॑ चिन्नो॒ यद्व॒ आग॑: पुरु॒षता॒ करा॑म ॥६॥\n\nआसी॑नासो अरु॒णीना॑मु॒पस्थे॑ र॒यिं ध॑त्त दा॒शुषे॒ मर्त्या॑य ।\n\n पु॒त्रेभ्य॑: पितर॒स्तस्य॒ वस्व॒: प्र य॑च्छत॒ त इ॒होर्जं॑ दधात ॥७॥\n\nये न॒: पूर्वे॑ पि॒तर॑: सो॒म्यासो॑ऽनूहि॒रे सो॑मपी॒थं वसि॑ष्ठाः ।\n\nतेभि॑र्य॒मः सं॑ररा॒णो ह॒वींष्यु॒शन्नु॒शद्भि॑: प्रतिका॒मम॑त्तु ॥८॥\n\nये ता॑तृ॒षुर्दे॑व॒त्रा जेह॑माना होत्रा॒विद॒: स्तोम॑तष्टासो अ॒र्कैः ।\n\nआग्ने॑ याहि सुवि॒दत्रे॑भिर॒र्वाङ्स॒त्यैः क॒व्यैः पि॒तृभि॑र्घर्म॒सद्भि॑: ॥९॥\n\nये स॒त्यासो॑ हवि॒रदो॑ हवि॒ष्पा इन्द्रे॑ण दे॒वैः स॒रथं॒ दधा॑नाः ।\n\nआग्ने॑ याहि स॒हस्रं॑ देवव॒न्दैः परै॒: पूर्वै॑: पि॒तृभि॑र्घर्म॒सद्भि॑: ॥१०॥\n\nअग्नि॑ष्वात्ताः पितर॒ एह ग॑च्छत॒ सद॑:सदः सदत सुप्रणीतयः ।\n\nअ॒त्ता ह॒वींषि॒ प्रय॑तानि ब॒र्हिष्यथा॑ र॒यिं सर्व॑वीरं दधातन ॥११॥\n\nत्वम॑ग्न ईळि॒तो जा॑तवे॒दोऽवा॑ड्ढ॒व्यानि॑ सुर॒भीणि॑ कृ॒त्वी ।\n\nप्रादा॑: पि॒तृभ्य॑: स्व॒धया॒ ते अ॑क्षन्न॒द्धि त्वं दे॑व॒ प्रय॑ता ह॒वींषि॑ ॥१२॥\n\nये चे॒ह पि॒तरो॒ ये च॒ नेह याँश्च॑ वि॒द्म याँ उ॑ च॒ न प्र॑वि॒द्म ।\n\nत्वं वे॑त्थ॒ यति॒ ते जा॑तवेदः स्व॒धाभि॑र्य॒ज्ञं सुकृ॑तं जुषस्व ॥१३॥\n\nये अ॑ग्निद॒ग्धा ये अन॑ग्निदग्धा॒ मध्ये॑ दि॒वः स्व॒धया॑ मा॒दय॑न्ते ।\n\nतेभि॑: स्व॒राळसु॑नीतिमे॒तां य॑थाव॒शं त॒न्वं॑ कल्पयस्व ॥१४॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 16,
"text": "१४ दमनो यामायनः। अग्निः। त्रिष्टुप्,११-१४ अनुष्टुप्।\n\nमैन॑मग्ने॒ वि द॑हो॒ माभि शो॑चो॒ मास्य॒ त्वचं॑ चिक्षिपो॒ मा शरी॑रम् ।\n\nय॒दा शृ॒तं कृ॒णवो॑ जातवे॒दोऽथे॑मेनं॒ प्र हि॑णुतात्पि॒तृभ्य॑: ॥१॥\n\nशृ॒तं य॒दा कर॑सि जातवे॒दोऽथे॑मेनं॒ परि॑ दत्तात्पि॒तृभ्य॑: ।\n\nय॒दा गच्छा॒त्यसु॑नीतिमे॒तामथा॑ दे॒वानां॑ वश॒नीर्भ॑वाति ॥२॥\n\nसूर्यं॒ चक्षु॑र्गच्छतु॒ वात॑मा॒त्मा द्यां च॑ गच्छ पृथि॒वीं च॒ धर्म॑णा ।\n\n अ॒पो वा॑ गच्छ॒ यदि॒ तत्र॑ ते हि॒तमोष॑धीषु॒ प्रति॑ तिष्ठा॒ शरी॑रैः ॥३॥\n\nअ॒जो भा॒गस्तप॑सा॒ तं त॑पस्व॒ तं ते॑ शो॒चिस्त॑पतु॒ तं ते॑ अ॒र्चिः ।\n\nयास्ते॑ शि॒वास्त॒न्वो॑ जातवेद॒स्ताभि॑र्वहैनं सु॒कृता॑मु लो॒कम् ॥४॥\n\nअव॑ सृज॒ पुन॑रग्ने पि॒तृभ्यो॒ यस्त॒ आहु॑त॒श्चर॑ति स्व॒धाभि॑: ।\n\nआयु॒र्वसा॑न॒ उप॑ वेतु॒ शेष॒: सं ग॑च्छतां त॒न्वा॑ जातवेदः ॥५॥\n\nयत्ते॑ कृ॒ष्णः श॑कु॒न आ॑तु॒तोद॑ पिपी॒लः स॒र्प उ॒त वा॒ श्वाप॑दः ।\n\nअ॒ग्निष्टद्वि॒श्वाद॑ग॒दं कृ॑णोतु॒ सोम॑श्च॒ यो ब्रा॑ह्म॒णाँ आ॑वि॒वेश॑ ॥६॥\n\nअ॒ग्नेर्वर्म॒ परि॒ गोभि॑र्व्ययस्व॒ सं प्रोर्णु॑ष्व॒ पीव॑सा॒ मेद॑सा च ।\n\n नेत्त्वा॑ धृ॒ष्णुर्हर॑सा॒ जर्हृ॑षाणो द॒धृग्वि॑ध॒क्ष्यन्प॑र्य॒ङ्खया॑ते ॥७॥\n\nइ॒मम॑ग्ने चम॒सं मा वि जि॑ह्वरः प्रि॒यो दे॒वाना॑मु॒त सो॒म्याना॑म् ।\n\nए॒ष यश्च॑म॒सो दे॑व॒पान॒स्तस्मि॑न्दे॒वा अ॒मृता॑ मादयन्ते ॥८॥\n\nक्र॒व्याद॑म॒ग्निं प्र हि॑णोमि दू॒रं य॒मरा॑ज्ञो गच्छतु रिप्रवा॒हः ।\n\nइ॒हैवायमित॑रो जा॒तवे॑दा दे॒वेभ्यो॑ ह॒व्यं व॑हतु प्रजा॒नन् ॥९॥\n\nयो अ॒ग्निः क्र॒व्यात्प्र॑वि॒वेश॑ वो गृ॒हमि॒मं पश्य॒न्नित॑रं जा॒तवे॑दसम् ।\n\nतं ह॑रामि पितृय॒ज्ञाय॑ दे॒वं स घ॒र्ममि॑न्वात्पर॒मे स॒धस्थे॑ ॥१०॥\n\nयो अ॒ग्निः क्र॑व्य॒वाह॑नः पि॒तॄन्यक्ष॑दृता॒वृध॑: । प्रेदु॑ ह॒व्यानि॑ वोचति दे॒वेभ्य॑श्च पि॒तृभ्य॒ आ ॥११॥\n\nउ॒शन्त॑स्त्वा॒ नि धी॑मह्यु॒शन्त॒: समि॑धीमहि । उ॒शन्नु॑श॒त आ व॑ह पि॒तॄन्ह॒विषे॒ अत्त॑वे ॥१२॥\n\nयं त्वम॑ग्ने स॒मद॑ह॒स्तमु॒ निर्वा॑पया॒ पुन॑: । कि॒याम्ब्वत्र॑ रोहतु पाकदू॒र्वा व्य॑ल्कशा ॥१३॥\n\nशीति॑के॒ शीति॑कावति॒ ह्लादि॑के॒ ह्लादि॑कावति । म॒ण्डू॒क्या॒३ सु सं ग॑म इ॒मं स्व१ग्निं ह॑र्षय ॥१४॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 17,
"text": "१४ देवश्रवा यामायनः। १-२ सरण्यूः,३-६ पूषा, ७-९ सरस्वती,१०-१४ आपः, ११-१३ सोमो वा। त्रिष्टुप् ,१३-१४ अनुष्टुप्, १३ पुरस्ताद्बृहती वा।\n\nत्वष्टा॑ दुहि॒त्रे व॑ह॒तुं कृ॑णो॒तीती॒दं विश्वं॒ भुव॑नं॒ समे॑ति ।\n\nय॒मस्य॑ मा॒ता प॑र्यु॒ह्यमा॑ना म॒हो जा॒या विव॑स्वतो ननाश ॥१॥\n\nअपा॑गूहन्न॒मृतां॒ मर्त्ये॑भ्यः कृ॒त्वी सव॑र्णामददु॒र्विव॑स्वते ।\n\nउ॒ताश्विना॑वभर॒द्यत्तदासी॒दज॑हादु॒ द्वा मि॑थु॒ना स॑र॒ण्यूः ॥२॥\n\nपू॒षा त्वे॒तश्च्या॑वयतु॒ प्र वि॒द्वानन॑ष्टपशु॒र्भुव॑नस्य गो॒पाः ।\n\nस त्वै॒तेभ्य॒: परि॑ ददत्पि॒तृभ्यो॒ऽग्निर्दे॒वेभ्य॑: सुविद॒त्रिये॑भ्यः ॥३॥\n\nआयु॑र्वि॒श्वायु॒: परि॑ पासति त्वा पू॒षा त्वा॑ पातु॒ प्रप॑थे पु॒रस्ता॑त् ।\n\nयत्रास॑ते सु॒कृतो॒ यत्र॒ ते य॒युस्तत्र॑ त्वा दे॒वः स॑वि॒ता द॑धातु ॥४॥\n\nपू॒षेमा आशा॒ अनु॑ वेद॒ सर्वा॒: सो अ॒स्माँ अभ॑यतमेन नेषत् ।\n\nस्व॒स्ति॒दा आघृ॑णि॒: सर्व॑वी॒रोऽप्र॑युच्छन्पु॒र ए॑तु प्रजा॒नन् ॥५॥\n\nप्रप॑थे प॒थाम॑जनिष्ट पू॒षा प्रप॑थे दि॒वः प्रप॑थे पृथि॒व्याः ।\n\nउ॒भे अ॒भि प्रि॒यत॑मे स॒धस्थे॒ आ च॒ परा॑ च चरति प्रजा॒नन् ॥६॥\n\nसर॑स्वतीं देव॒यन्तो॑ हवन्ते॒ सर॑स्वतीमध्व॒रे ता॒यमा॑ने ।\n\nसर॑स्वतीं सु॒कृतो॑ अह्वयन्त॒ सर॑स्वती दा॒शुषे॒ वार्यं॑ दात् ॥७॥\n\nसर॑स्वति॒ या स॒रथं॑ य॒याथ॑ स्व॒धाभि॑र्देवि पि॒तृभि॒र्मद॑न्ती ।\n\nआ॒सद्या॒स्मिन्ब॒र्हिषि॑ मादयस्वाऽनमी॒वा इष॒ आ धे॑ह्य॒स्मे ॥८॥\n\nसर॑स्वतीं॒ यां पि॒तरो॒ हव॑न्ते दक्षि॒णा य॒ज्ञम॑भि॒नक्ष॑माणाः ।\n\nस॒ह॒स्रा॒र्घमि॒ळो अत्र॑ भा॒गं रा॒यस्पोषं॒ यज॑मानेषु धेहि ॥९॥\n\nआपो॑ अ॒स्मान्मा॒तर॑: शुन्धयन्तु घृ॒तेन॑ नो घृत॒प्व॑: पुनन्तु ।\n\nविश्वं॒ हि रि॒प्रं प्र॒वह॑न्ति दे॒वीरुदिदा॑भ्य॒: शुचि॒रा पू॒त ए॑मि ॥१०॥\n\nद्र॒प्सश्च॑स्कन्द प्रथ॒माँ अनु॒ द्यूनि॒मं च॒ योनि॒मनु॒ यश्च॒ पूर्व॑: ।\n\nस॒मा॒नं योनि॒मनु॑ सं॒चर॑न्तं द्र॒प्सं जु॑हो॒म्यनु॑ स॒प्त होत्रा॑: ॥११॥\n\nयस्ते॑ द्र॒प्सः स्कन्द॑ति॒ यस्ते॑ अं॒शुर्बा॒हुच्यु॑तो धि॒षणा॑या उ॒पस्था॑त् ।\n\nअ॒ध्व॒र्योर्वा॒ परि॑ वा॒ यः प॒वित्रा॒त्तं ते॑ जुहोमि॒ मन॑सा॒ वष॑ट्कृतम् ॥१२॥\n\nयस्ते॑ द्र॒प्सः स्क॒न्नो यस्ते॑ अं॒शुर॒वश्च॒ यः प॒रः स्रु॒चा । अ॒यं दे॒वो बृह॒स्पति॒: सं तं सि॑ञ्चतु॒ राध॑से ॥१३॥\n\nपय॑स्वती॒रोष॑धय॒: पय॑स्वन्माम॒कं वच॑: । अ॒पां पय॑स्व॒दित्पय॒स्तेन॑ मा स॒ह शु॑न्धत ॥१४"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 18,
"text": "१४ संकुसुको यामायनः। १-४ मृत्युः,५ धाता, ६ त्वष्टा,७-१४ पितृमेधः,१४ प्रजापतिर्वा। त्रिष्टुप् , ११ प्रस्तारपंक्तिः, १३ जगती १४ अनुष्टुप्।\n\nपरं॑ मृत्यो॒ अनु॒ परे॑हि॒ पन्थां॒ यस्ते॒ स्व इत॑रो देव॒याना॑त् ।\n\nचक्षु॑ष्मते शृण्व॒ते ते॑ ब्रवीमि॒ मा न॑: प्र॒जां री॑रिषो॒ मोत वी॒रान् ॥१॥\n\nमृ॒त्योः प॒दं यो॒पय॑न्तो॒ यदैत॒ द्राघी॑य॒ आयु॑: प्रत॒रं दधा॑नाः ।\n\nआ॒प्याय॑मानाः प्र॒जया॒ धने॑न शु॒द्धाः पू॒ता भ॑वत यज्ञियासः ॥२॥\n\nइ॒मे जी॒वा वि मृ॒तैराव॑वृत्र॒न्नभू॑द्भ॒द्रा दे॒वहू॑तिर्नो अ॒द्य ।\n\nप्राञ्चो॑ अगाम नृ॒तये॒ हसा॑य॒ द्राघी॑य॒ आयु॑: प्रत॒रं दधा॑नाः ॥३॥\n\nइ॒मं जी॒वेभ्य॑: परि॒धिं द॑धामि॒ मैषां॒ नु गा॒दप॑रो॒ अर्थ॑मे॒तम् ।\n\nश॒तं जी॑वन्तु श॒रद॑: पुरू॒चीर॒न्तर्मृ॒त्युं द॑धतां॒ पर्व॑तेन ॥४॥\n\nयथाहा॑न्यनुपू॒र्वं भव॑न्ति॒ यथ॑ ऋ॒तव॑ ऋ॒तुभि॒र्यन्ति॑ सा॒धु ।\n\nयथा॒ न पूर्व॒मप॑रो॒ जहा॑त्ये॒वा धा॑त॒रायूं॑षि कल्पयैषाम् ॥५॥\n\nआ रो॑ह॒तायु॑र्ज॒रसं॑ वृणा॒ना अ॑नुपू॒र्वं यत॑माना॒ यति॒ ष्ठ ।\n\nइ॒ह त्वष्टा॑ सु॒जनि॑मा स॒जोषा॑ दी॒र्घमायु॑: करति जी॒वसे॑ वः ॥६॥\n\nइ॒मा नारी॑रविध॒वाः सु॒पत्नी॒राञ्ज॑नेन स॒र्पिषा॒ सं वि॑शन्तु ।\n\nअ॒न॒श्रवो॑ऽनमी॒वाः सु॒रत्ना॒ आ रो॑हन्तु॒ जन॑यो॒ योनि॒मग्रे॑ ॥७॥\n\nउदी॑र्ष्व नार्य॒भि जी॑वलो॒कं ग॒तासु॑मे॒तमुप॑ शेष॒ एहि॑ ।\n\nह॒स्त॒ग्रा॒भस्य॑ दिधि॒षोस्तवे॒दं पत्यु॑र्जनि॒त्वम॒भि सं ब॑भूथ ॥८॥\n\nधनु॒र्हस्ता॑दा॒ददा॑नो मृ॒तस्या॒ऽस्मे क्ष॒त्राय॒ वर्च॑से॒ बला॑य ।\n\nअत्रै॒व त्वमि॒ह व॒यं सु॒वीरा॒ विश्वा॒: स्पृधो॑ अ॒भिमा॑तीर्जयेम ॥९॥\n\nउप॑ सर्प मा॒तरं॒ भूमि॑मे॒तामु॑रु॒व्यच॑सं पृथि॒वीं सु॒शेवा॑म् ।\n\nऊर्ण॑म्रदा युव॒तिर्दक्षि॑णावत ए॒षा त्वा॑ पातु॒ निॠ॑तेरु॒पस्था॑त् ॥१०॥\n\nउच्छ्व॑ञ्चस्व पृथिवि॒ मा नि बा॑धथाः सूपाय॒नास्मै॑ भव सूपवञ्च॒ना ।\n\nमा॒ता पु॒त्रं यथा॑ सि॒चाऽभ्ये॑नं भूम ऊर्णुहि ॥११॥\n\nउ॒च्छ्वञ्च॑माना पृथि॒वी सु ति॑ष्ठतु स॒हस्रं॒ मित॒ उप॒ हि श्रय॑न्ताम् ।\n\nते गृ॒हासो॑ घृत॒श्चुतो॑ भवन्तु वि॒श्वाहा॑स्मै शर॒णाः स॒न्त्वत्र॑ ॥१२॥\n\nउत्ते॑ स्तभ्नामि पृथि॒वीं त्वत्परी॒मं लो॒गं नि॒दध॒न्मो अ॒हं रि॑षम् ।\n\nए॒तां स्थूणां॑ पि॒तरो॑ धारयन्तु॒ तेऽत्रा॑ य॒मः साद॑ना ते मिनोतु ॥१३॥\n\nप्र॒ती॒चीने॒ मामह॒नीष्वा॑: प॒र्णमि॒वा द॑धुः । प्र॒तीचीं॑ जग्रभा॒ वाच॒मश्वं॑ रश॒नया॑ यथा ॥१४॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 19,
"text": "८ मथितो यामायनः भृगुर्वारुणिर्वा, भार्गवश्च्यवनो वा। आपः गावो वा, १ उत्तरार्धर्चस्य अग्नीषोमौ। अनुष्टुप्, ६ गायत्री ।\n\nनि व॑र्तध्वं॒ मानु॑ गाता॒ऽस्मान्त्सि॑षक्त रेवतीः । अग्नी॑षोमा पुनर्वसू अ॒स्मे धा॑रयतं र॒यिम् ॥१॥\n\nपुन॑रेना॒ नि व॑र्तय॒ पुन॑रेना॒ न्या कु॑रु । इन्द्र॑ एणा॒ नि य॑च्छत्व॒ग्निरे॑ना उ॒पाज॑तु ॥२॥\n\nपुन॑रे॒ता नि व॑र्तन्ताम॒स्मिन्पु॑ष्यन्तु॒ गोप॑तौ । इ॒हैवाग्ने॒ नि धा॑रये॒ह ति॑ष्ठतु॒ या र॒यिः ॥३॥\n\nयन्नि॒यानं॒ न्यय॑नं सं॒ज्ञानं॒ यत्प॒राय॑णम् । आ॒वर्त॑नं नि॒वर्त॑नं॒ यो गो॒पा अपि॒ तं हु॑वे ॥४॥\n\nय उ॒दान॒ड्व्यय॑नं॒ य उ॒दान॑ट् प॒राय॑णम् । आ॒वर्त॑नं नि॒वर्त॑न॒मपि॑ गो॒पा नि व॑र्तताम् ॥५॥\n\nआ नि॑वर्त॒ नि व॑र्तय॒ पुन॑र्न इन्द्र॒ गा दे॑हि । जी॒वाभि॑र्भुनजामहै ॥६॥\n\nपरि॑ वो वि॒श्वतो॑ दध ऊ॒र्जा घृ॒तेन॒ पय॑सा । ये दे॒वाः के च॑ य॒ज्ञिया॒स्ते र॒य्या सं सृ॑जन्तु नः ॥७॥\n\nआ नि॑वर्तन वर्तय॒ नि नि॑वर्तन वर्तय । भूम्या॒श्चत॑स्रः प्र॒दिश॒स्ताभ्य॑ एना॒ नि व॑र्तय ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 20,
"text": "१० ऐन्द्रो विमदः प्राजापत्यो वा, वासुक्रो वसुकृद्वा। अग्निः। गायत्री, १ एकपदा विराट् (एष मन्त्र: शान्त्यर्थः) २अनुष्टुप्,९ विराट् १० त्रिष्टुप्।\n\nभ॒द्रं नो॒ अपि॑ वातय॒ मन॑: ॥१॥\n\nअ॒ग्निमी॑ळे भु॒जां यवि॑ष्ठं शा॒सा मि॒त्रं दु॒र्धरी॑तुम् । यस्य॒ धर्म॒न्त्स्व१रेनी॑: सप॒र्यन्ति॑ मा॒तुरूध॑: ॥२॥\n\nयमा॒सा कृ॒पनी॑ळं भा॒साके॑तुं व॒र्धय॑न्ति । भ्राज॑ते॒ श्रेणि॑दन् ॥३॥\n\nअ॒र्यो वि॒शां गा॒तुरे॑ति॒ प्र यदान॑ड्दि॒वो अन्ता॑न् । क॒विर॒भ्रं दीद्या॑नः ॥४॥\n\nजु॒षद्ध॒व्या मानु॑षस्यो॒र्ध्वस्त॑स्था॒वृभ्वा॑ य॒ज्ञे । मि॒न्वन्त्सद्म॑ पु॒र ए॑ति ॥५॥\n\nस हि क्षेमो॑ ह॒विर्य॒ज्ञः श्रु॒ष्टीद॑स्य गा॒तुरे॑ति । अ॒ग्निं दे॒वा वाशी॑मन्तम् ॥६॥\n\nय॒ज्ञा॒साहं॒ दुव॑ इषे॒ऽग्निं पूर्व॑स्य॒ शेव॑स्य । अद्रे॑: सू॒नुमा॒युमा॑हुः ॥७॥\n\nनरो॒ ये के चा॒स्मदा विश्वेत्ते वा॒म आ स्यु॑: । अ॒ग्निं ह॒विषा॒ वर्ध॑न्तः ॥८॥\n\nकृ॒ष्णः श्वे॒तो॑ऽरु॒षो यामो॑ अस्य ब्र॒ध्न ऋ॒ज्र उ॒त शोणो॒ यश॑स्वान् । हिर॑ण्यरूपं॒ जनि॑ता जजान ॥९॥\n\nए॒वा ते॑ अग्ने विम॒दो म॑नी॒षामूर्जो॑ नपाद॒मृते॑भिः स॒जोषा॑: ।\n\n गिर॒ आ व॑क्षत्सुम॒तीरि॑या॒न इष॒मूर्जं॑ सुक्षि॒तिं विश्व॒माभा॑: ॥१०॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 21,
"text": "८ ऐन्द्रो विमदः, प्राजापत्यो वा, वासुक्रो वसुकृद्वा। अग्निः। आस्तारपंक्तिः।\n\nआग्निं न स्ववृ॑क्तिभि॒र्होता॑रं त्वा वृणीमहे ।\n\nय॒ज्ञाय॑ स्ती॒र्णब॑र्हिषे॒ वि वो॒ मदे॑ शी॒रं पा॑व॒कशो॑चिषं॒ विव॑क्षसे ॥१॥\n\nत्वामु॒ ते स्वा॒भुव॑: शु॒म्भन्त्यश्व॑राधसः ।\n\nवेति॒ त्वामु॑प॒सेच॑नी॒ वि वो॒ मद॒ ऋजी॑तिरग्न॒ आहु॑ति॒र्विव॑क्षसे ॥२॥\n\nत्वे ध॒र्माण॑ आसते जु॒हूभि॑: सिञ्च॒तीरि॑व ।\n\nकृ॒ष्णा रू॒पाण्यर्जु॑ना॒ वि वो॒ मदे॒ विश्वा॒ अधि॒ श्रियो॑ धिषे॒ विव॑क्षसे ॥३॥\n\nयम॑ग्ने॒ मन्य॑से र॒यिं सह॑सावन्नमर्त्य ।\n\nतमा नो॒ वाज॑सातये॒ वि वो॒ मदे॑ य॒ज्ञेषु॑ चि॒त्रमा भ॑रा॒ विव॑क्षसे ॥४॥\n\nअ॒ग्निर्जा॒तो अथ॑र्वणा वि॒दद्विश्वा॑नि॒ काव्या॑ ।\n\nभुव॑द्दू॒तो वि॒वस्व॑तो॒ वि वो॒ मदे॑ प्रि॒यो य॒मस्य॒ काम्यो॒ विव॑क्षसे ॥५॥\n\nत्वां य॒ज्ञेष्वी॑ळ॒तेऽग्ने॑ प्रय॒त्य॑ध्व॒रे ।\n\nत्वं वसू॑नि॒ काम्या॒ वि वो॒ मदे॒ विश्वा॑ दधासि दा॒शुषे॒ विव॑क्षसे ॥६॥\n\nत्वां य॒ज्ञेष्वृ॒त्विजं॒ चारु॑मग्ने॒ नि षे॑दिरे ।\n\nघृ॒तप्र॑तीकं॒ मनु॑षो॒ वि वो॒ मदे॑ शु॒क्रं चेति॑ष्ठम॒क्षभि॒र्विव॑क्षसे ॥७॥\n\nअग्ने॑ शु॒क्रेण॑ शो॒चिषो॒रु प्र॑थयसे बृ॒हत् ।\n\nअ॒भि॒क्रन्द॑न्वृषायसे॒ वि वो॒ मदे॒ गर्भं॑ दधासि जा॒मिषु॒ विव॑क्षसे ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 22,
"text": "१५ ऐन्द्रो विमदः प्राजापत्यो वा, वासुक्रो वसुकृद्वा। इन्द्रः। पुरस्ताद्बृहती ५,७,९ अनुष्टुप्, १५ त्रिष्टुप् ।\n\nकुह॑ श्रु॒त इन्द्र॒: कस्मि॑न्न॒द्य जने॑ मि॒त्रो न श्रू॑यते । ऋषी॑णां वा॒ यः क्षये॒ गुहा॑ वा॒ चर्कृ॑षे गि॒रा ॥१॥\n\nइ॒ह श्रु॒त इन्द्रो॑ अ॒स्मे अ॒द्य स्तवे॑ व॒ज्र्यृची॑षमः । मि॒त्रो न यो जने॒ष्वा यश॑श्च॒क्रे असा॒म्या ॥२॥\n\nम॒हो यस्पति॒: शव॑सो॒ असा॒म्या म॒हो नृ॒म्णस्य॑ तूतु॒जिः । भ॒र्ता वज्र॑स्य धृ॒ष्णोः पि॒ता पु॒त्रमि॑व प्रि॒यम् ॥३॥\n\nयु॒जा॒नो अश्वा॒ वात॑स्य॒ धुनी॑ दे॒वो दे॒वस्य॑ वज्रिवः । स्यन्ता॑ प॒था वि॒रुक्म॑ता सृजा॒नः स्तो॒ष्यध्व॑नः ॥४॥\n\nत्वं त्या चि॒द्वात॒स्याश्वागा॑ ऋ॒ज्रा त्मना॒ वह॑ध्यै । ययो॑र्दे॒वो न मर्त्यो॑ य॒न्ता नकि॑र्वि॒दाय्य॑: ॥५॥\n\nअध॒ ग्मन्तो॒शना॑ पृच्छते वां॒ कद॑र्था न॒ आ गृ॒हम् । आ ज॑ग्मथुः परा॒काद्दि॒वश्च॒ ग्मश्च॒ मर्त्य॑म् ॥६॥\n\nआ न॑ इन्द्र पृक्षसे॒ऽस्माकं॒ ब्रह्मोद्य॑तम् । तत्त्वा॑ याचाम॒हेऽव॒: शुष्णं॒ यद्धन्नमा॑नुषम् ॥७॥\n\nअ॒क॒र्मा दस्यु॑र॒भि नो॑ अम॒न्तुर॒न्यव्र॑तो॒ अमा॑नुषः । त्वं तस्या॑मित्रह॒न्वध॑र्दा॒सस्य॑ दम्भय ॥८॥\n\nत्वं न॑ इन्द्र शूर॒ शूरै॑रु॒त त्वोता॑सो ब॒र्हणा॑ । पु॒रु॒त्रा ते॒ वि पू॒र्तयो॒ नव॑न्त क्षो॒णयो॑ यथा ॥९॥\n\nत्वं तान्वृ॑त्र॒हत्ये॑ चोदयो॒ नॄन्का॑र्पा॒णे शू॑र वज्रिवः । गुहा॒ यदी॑ कवी॒नां वि॒शां नक्ष॑त्रशवसाम् ॥१०॥\n\nम॒क्षू ता त॑ इन्द्र दा॒नाप्न॑स आक्षा॒णे शू॑र वज्रिवः । यद्ध॒ शुष्ण॑स्य द॒म्भयो॑ जा॒तं विश्वं॑ स॒याव॑भिः ॥११॥\n\nमाकु॒ध्र्य॑गिन्द्र शूर॒ वस्वी॑र॒स्मे भू॑वन्न॒भिष्ट॑यः । व॒यंव॑यं त आसां सु॒म्ने स्या॑म वज्रिवः ॥१२॥\n\nअ॒स्मे ता त॑ इन्द्र सन्तु स॒त्याऽहिं॑सन्तीरुप॒स्पृश॑: । वि॒द्याम॒ यासां॒ भुजो॑ धेनू॒नां न व॑ज्रिवः ॥१३॥\n\nअ॒ह॒स्ता यद॒पदी॒ वर्ध॑त॒ क्षाः शची॑भिर्वे॒द्याना॑म् । शुष्णं॒ परि॑ प्रदक्षि॒णिद्वि॒श्वाय॑वे॒ नि शि॑श्नथः ॥१४॥\n\nपिबा॑पि॒बेदि॑न्द्र शूर॒ सोमं॒ मा रि॑षण्यो वसवान॒ वसु॒: सन् ।\n\nउ॒त त्रा॑यस्व गृण॒तो म॒घोनो॑ म॒हश्च॑ रा॒यो रे॒वत॑स्कृधी नः ॥१५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 23,
"text": "७ ऐन्द्रो विमदः प्राजापत्यो वा, वासुक्रो वसुकृद्वा।इन्द्रः। जगतीः १,७ त्रिष्टुप् ,५ अभिसारिणी।\n\nयजा॑मह॒ इन्द्रं॒ वज्र॑दक्षिणं॒ हरी॑णां र॒थ्यं१ विव्र॑तानाम् ।\n\nप्र श्मश्रु॒ दोधु॑वदू॒र्ध्वथा॑ भू॒द्वि सेना॑भि॒र्दय॑मानो॒ वि राध॑सा ॥१॥\n\nहरी॒ न्व॑स्य॒ या वने॑ वि॒दे वस्विन्द्रो॑ म॒घैर्म॒घवा॑ वृत्र॒हा भु॑वत् ।\n\nऋ॒भुर्वाज॑ ऋभु॒क्षाः प॑त्यते॒ शवोऽव॑ क्ष्णौमि॒ दास॑स्य॒ नाम॑ चित् ॥२॥\n\nय॒दा वज्रं॒ हिर॑ण्य॒मिदथा॒ रथं॒ हरी॒ यम॑स्य॒ वह॑तो॒ वि सू॒रिभि॑: ।\n\nआ ति॑ष्ठति म॒घवा॒ सन॑श्रुत॒ इन्द्रो॒ वाज॑स्य दी॒र्घश्र॑वस॒स्पति॑: ॥३॥\n\nसो चि॒न्नु वृ॒ष्टिर्यू॒थ्या॒३ स्वा सचाँ॒ इन्द्र॒: श्मश्रू॑णि॒ हरि॑ता॒भि प्रु॑ष्णुते ।\n\nअव॑ वेति सु॒क्षयं॑ सु॒ते मधूदिद्धू॑नोति॒ वातो॒ यथा॒ वन॑म् ॥४॥\n\nयो वा॒चा विवा॑चो मृ॒ध्रवा॑चः पु॒रू स॒हस्राशि॑वा ज॒घान॑ ।\n\nतत्त॒दिद॑स्य॒ पौंस्यं॑ गृणीमसि पि॒तेव॒ यस्तवि॑षीं वावृ॒धे शव॑: ॥५॥\n\nस्तोमं॑ त इन्द्र विम॒दा अ॑जीजन॒न्नपू॑र्व्यं पुरु॒तमं॑ सु॒दान॑वे ।\n\nवि॒द्मा ह्य॑स्य॒ भोज॑नमि॒नस्य॒ यदा प॒शुं न गो॒पाः क॑रामहे ॥६॥\n\nमाकि॑र्न ए॒ना स॒ख्या वि यौ॑षु॒स्तव॑ चेन्द्र विम॒दस्य॑ च॒ ऋषे॑: ।\n\n वि॒द्मा हि ते॒ प्रम॑तिं देव जामि॒वद॒स्मे ते॑ सन्तु स॒ख्या शि॒वानि॑ ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 24,
"text": "६ ऐन्द्रो विमदः, प्राजापत्यो वा, वासुक्रो वसुकृद्वा। इन्द्रः। ४-६ अश्विनौ। आस्तारपंक्तिः, ४-६ अनुष्टुप्।\n\nइन्द्र॒ सोम॑मि॒मं पि॑ब॒ मधु॑मन्तं च॒मू सु॒तम् । अ॒स्मे र॒यिं नि धा॑रय॒ वि वो॒ मदे॑ सह॒स्रिणं॑ पुरूवसो॒ विव॑क्षसे ॥१॥\n\nत्वां य॒ज्ञेभि॑रु॒क्थैरुप॑ ह॒व्येभि॑रीमहे । शची॑पते शचीनां॒ वि वो॒ मदे॒ श्रेष्ठं॑ नो धेहि॒ वार्यं॒ विव॑क्षसे ॥२॥\n\nयस्पति॒र्वार्या॑णा॒मसि॑ र॒ध्रस्य॑ चोदि॒ता । इन्द्र॑ स्तोतॄ॒णाम॑वि॒ता वि वो॒ मदे॑ द्वि॒षो न॑: पा॒ह्यंह॑सो॒ विव॑क्षसे ॥३॥\n\nयु॒वं श॑क्रा माया॒विना॑ समी॒ची निर॑मन्थतम् । वि॒म॒देन॒ यदी॑ळि॒ता नास॑त्या नि॒रम॑न्थतम् ॥४॥\n\nविश्वे॑ दे॒वा अ॑कृपन्त समी॒च्योर्नि॒ष्पत॑न्त्योः । नास॑त्यावब्रुवन्दे॒वाः पुन॒रा व॑हता॒दिति॑ ॥५॥\n\nमधु॑मन्मे प॒राय॑णं॒ मधु॑म॒त्पुन॒राय॑नम् । ता नो॑ देवा दे॒वत॑या यु॒वं मधु॑मतस्कृतम् ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 25,
"text": "११ ऐन्द्रो विमदः प्राजापत्यो वा, वासुक्रो वसुकृद्वा। सोमः। आस्तारपंक्तिः।\n\nभ॒द्रं नो॒ अपि॑ वातय॒ मनो॒ दक्ष॑मु॒त क्रतु॑म् ।\n\nअधा॑ ते स॒ख्ये अन्ध॑सो॒ वि वो॒ मदे॒ रण॒न्गावो॒ न यव॑से॒ विव॑क्षसे ॥१॥\n\nहृ॒दि॒स्पृश॑स्त आसते॒ विश्वे॑षु सोम॒ धाम॑सु ।\n\nअधा॒ कामा॑ इ॒मे मम॒ वि वो॒ मदे॒ वि ति॑ष्ठन्ते वसू॒यवो॒ विव॑क्षसे ॥२॥\n\nउ॒त व्र॒तानि॑ सोम ते॒ प्राहं मि॑नामि पा॒क्या॑ ।\n\n अधा॑ पि॒तेव॑ सू॒नवे॒ वि वो॒ मदे॑ मृ॒ळा नो॑ अ॒भि चि॑द्व॒धाद्विव॑क्षसे ॥३॥\n\nसमु॒ प्र य॑न्ति धी॒तय॒: सर्गा॑सोऽव॒ताँ इ॑व ।\n\nक्रतुं॑ नः सोम जी॒वसे॒ वि वो॒ मदे॑ धा॒रया॑ चम॒साँ इ॑व॒ विव॑क्षसे ॥४॥\n\nतव॒ त्ये सो॑म॒ शक्ति॑भि॒र्निका॑मासो॒ व्यृ॑ण्विरे ।\n\nगृत्स॑स्य॒ धीरा॑स्त॒वसो॒ वि वो॒ मदे॑ व्र॒जं गोम॑न्तम॒श्विनं॒ विव॑क्षसे ॥५॥\n\nप॒शुं न॑: सोम रक्षसि पुरु॒त्रा विष्ठि॑तं॒ जग॑त् ।\n\nस॒माकृ॑णोषि जी॒वसे॒ वि वो॒ मदे॒ विश्वा॑ स॒म्पश्य॒न्भुव॑ना॒ विव॑क्षसे ॥६॥\n\nत्वं न॑: सोम वि॒श्वतो॑ गो॒पा अदा॑भ्यो भव । सेध॑ राज॒न्नप॒ स्रिधो॒ वि वो॒ मदे॒ मा नो॑ दु॒:शंस॑ ईशता॒ विव॑क्षसे ॥७॥\n\nत्वं न॑: सोम सु॒क्रतु॑र्वयो॒धेया॑य जागृहि । क्षे॒त्र॒वित्त॑रो॒ मनु॑षो॒ वि वो॒ मदे॑ द्रु॒हो न॑: पा॒ह्यंह॑सो॒ विव॑क्षसे ॥८॥\n\nत्वं नो॑ वृत्रहन्त॒मेन्द्र॑स्येन्दो शि॒वः सखा॑ । यत्सीं॒ हव॑न्ते समि॒थे वि वो॒ मदे॒ युध्य॑मानास्तो॒कसा॑तौ॒ विव॑क्षसे ॥९॥\n\nअ॒यं घ॒ स तु॒रो मद॒ इन्द्र॑स्य वर्धत प्रि॒यः । अ॒यं क॒क्षीव॑तो म॒हो वि वो॒ मदे॑ म॒तिं विप्र॑स्य वर्धय॒द्विव॑क्षसे ॥१०॥\n\nअ॒यं विप्रा॑य दा॒शुषे॒ वाजाँ॑ इयर्ति॒ गोम॑तः । अ॒यं स॒प्तभ्य॒ आ वरं॒ वि वो॒ मदे॒ प्रान्धं श्रो॒णं च॑ तारिष॒द्विव॑क्षसे ॥११"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 26,
"text": "९ ऐन्द्रो विमदः, प्राजापत्यो वा, वासुक्रो वसुकृद्वा।पूषा। अनुष्टुप् ,१,४ उष्णिक्।\n\nप्र ह्यच्छा॑ मनी॒षा स्पा॒र्हा यन्ति॑ नि॒युत॑: । प्र द॒स्रा नि॒युद्र॑थः पू॒षा अ॑विष्टु॒ माहि॑नः ॥१॥\n\nयस्य॒ त्यन्म॑हि॒त्वं वा॒ताप्य॑म॒यं जन॑: । विप्र॒ आ वं॑सद्धी॒तिभि॒श्चिके॑त सुष्टुती॒नाम् ॥२॥\n\nस वे॑द सुष्टुती॒नामिन्दु॒र्न पू॒षा वृषा॑ । अ॒भि प्सुर॑: प्रुषायति व्र॒जं न॒ आ प्रु॑षायति ॥३॥\n\nमं॒सी॒महि॑ त्वा व॒यम॒स्माकं॑ देव पूषन् । म॒ती॒नां च॒ साध॑नं॒ विप्रा॑णां चाध॒वम् ॥४॥\n\nप्रत्य॑र्धिर्य॒ज्ञाना॑मश्वह॒यो रथा॑नाम् । ऋषि॒: स यो मनु॑र्हितो॒ विप्र॑स्य यावयत्स॒खः ॥५॥\n\nआ॒धीष॑माणाया॒: पति॑: शु॒चाया॑श्च शु॒चस्य॑ च । वा॒सो॒वा॒योऽवी॑ना॒मा वासां॑सि॒ मर्मृ॑जत् ॥६॥\n\nइ॒नो वाजा॑नां॒ पति॑रि॒नः पु॑ष्टी॒नां सखा॑ । प्र श्मश्रु॑ हर्य॒तो दू॑धो॒द्वि वृथा॒ यो अदा॑भ्यः ॥७॥\n\nआ ते॒ रथ॑स्य पूषन्न॒जा धुरं॑ ववृत्युः । विश्व॑स्या॒र्थिन॒: सखा॑ सनो॒जा अन॑पच्युतः ॥८॥\n\nअ॒स्माक॑मू॒र्जा रथं॑ पू॒षा अ॑विष्टु॒ माहि॑नः । भुव॒द्वाजा॑नां वृ॒ध इ॒मं न॑: शृणव॒द्धव॑म् ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 27,
"text": "२४ ऐन्द्रो वसुक्र:। इन्द्रः।त्रिष्टुप्।\n\nअस॒त्सु मे॑ जरित॒: साभि॑वे॒गो यत्सु॑न्व॒ते यज॑मानाय॒ शिक्ष॑म् ।\n\nअना॑शीर्दाम॒हम॑स्मि प्रह॒न्ता स॑त्य॒ध्वृतं॑ वृजिना॒यन्त॑मा॒भुम् ॥१॥\n\nयदीद॒हं यु॒धये॑ सं॒नया॒न्यदे॑वयून्त॒न्वा॒३ शूशु॑जानान् ।\n\nअ॒मा ते॒ तुम्रं॑ वृष॒भं प॑चानि ती॒व्रं सु॒तं प॑ञ्चद॒शं नि षि॑ञ्चम् ॥२॥\n\nनाहं तं वे॑द॒ य इति॒ ब्रवी॒त्यदे॑वयून्त्स॒मर॑णे जघ॒न्वान् ।\n\nय॒दावाख्य॑त्स॒मर॑ण॒मृघा॑व॒दादिद्ध॑ मे वृष॒भा प्र ब्रु॑वन्ति ॥३॥\n\nयदज्ञा॑तेषु वृ॒जने॒ष्वासं॒ विश्वे॑ स॒तो म॒घवा॑नो म आसन् ।\n\nजि॒नामि॒ वेत्क्षेम॒ आ सन्त॑मा॒भुं प्र तं क्षि॑णां॒ पर्व॑ते पाद॒गृह्य॑ ॥४॥\n\nन वा उ॒ मां वृ॒जने॑ वारयन्ते॒ न पर्व॑तासो॒ यद॒हं म॑न॒स्ये ।\n\nमम॑ स्व॒नात्कृ॑धु॒कर्णो॑ भयात ए॒वेदनु॒ द्यून्कि॒रण॒: समे॑जात् ॥५॥\n\nदर्श॒न्न्वत्र॑ शृत॒पाँ अ॑नि॒न्द्रान्बा॑हु॒क्षद॒: शर॑वे॒ पत्य॑मानान् ।\n\nघृषुं॑ वा॒ ये नि॑नि॒दुः सखा॑य॒मध्यू॒ न्वे॑षु प॒वयो॑ ववृत्युः ॥६॥\n\nअभू॒र्वौक्षी॒र्व्यु१ आयु॑रान॒ड्दर्ष॒न्नु पूर्वो॒ अप॑रो॒ नु द॑र्षत् ।\n\nद्वे प॒वस्ते॒ परि॒ तं न भू॑तो॒ यो अ॒स्य पा॒रे रज॑सो वि॒वेष॑ ॥७॥\n\nगावो॒ यवं॒ प्रयु॑ता अ॒र्यो अ॑क्ष॒न्ता अ॑पश्यं स॒हगो॑पा॒श्चर॑न्तीः ।\n\nहवा॒ इद॒र्यो अ॒भित॒: समा॑य॒न्किय॑दासु॒ स्वप॑तिश्छन्दयाते ॥८॥\n\nसं यद्वयं॑ यव॒सादो॒ जना॑नाम॒हं य॒वाद॑ उ॒र्वज्रे॑ अ॒न्तः ।\n\nअत्रा॑ यु॒क्तो॑ऽवसा॒तार॑मिच्छा॒दथो॒ अयु॑क्तं युनजद्वव॒न्वान् ॥९॥\n\nअत्रेदु॑ मे मंससे स॒त्यमु॒क्तं द्वि॒पाच्च॒ यच्चतु॑ष्पात्संसृ॒जानि॑ ।\n\nस्त्री॒भिर्यो अत्र॒ वृष॑णं पृत॒न्यादयु॑द्धो अस्य॒ वि भ॑जानि॒ वेद॑: ॥१०॥\n\nयस्या॑न॒क्षा दु॑हि॒ता जात्वास॒ कस्तां वि॒द्वाँ अ॒भि म॑न्याते अ॒न्धाम् ।\n\nक॒त॒रो मे॒निं प्रति॒ तं मु॑चाते॒ य ईं॒ वहा॑ते॒ य ईं॑ वा वरे॒यात् ॥११॥\n\nकिय॑ती॒ योषा॑ मर्य॒तो व॑धू॒योः परि॑प्रीता॒ पन्य॑सा॒ वार्ये॑ण ।\n\nभ॒द्रा व॒धूर्भ॑वति॒ यत्सु॒पेशा॑: स्व॒यं सा मि॒त्रं व॑नुते॒ जने॑ चित् ॥१२॥\n\nप॒त्तो ज॑गार प्र॒त्यञ्च॑मत्ति शी॒र्ष्णा शिर॒: प्रति॑ दधौ॒ वरू॑थम् ।\n\nआसी॑न ऊ॒र्ध्वामु॒पसि॑ क्षिणाति॒ न्य॑ङ्ङुत्ता॒नामन्वे॑ति॒ भूमि॑म् ॥१३॥\n\nबृ॒हन्न॑च्छा॒यो अ॑पला॒शो अर्वा॑ त॒स्थौ मा॒ता विषि॑तो अत्ति॒ गर्भ॑: ।\n\nअ॒न्यस्या॑ व॒त्सं रि॑ह॒ती मि॑माय॒ कया॑ भु॒वा नि द॑धे धे॒नुरूध॑: ॥१४॥\n\nस॒प्त वी॒रासो॑ अध॒रादुदा॑यन्न॒ष्टोत्त॒रात्ता॒त्सम॑जग्मिर॒न्ते ।\n\nनव॑ प॒श्चाता॑त्स्थिवि॒मन्त॑ आय॒न्दश॒ प्राक्सानु॒ वि ति॑र॒न्त्यश्न॑: ॥१५॥\n\nद॒शा॒नामेकं॑ कपि॒लं स॑मा॒नं तं हि॑न्वन्ति॒ क्रत॑वे॒ पार्या॑य ।\n\nगर्भं॑ मा॒ता सुधि॑तं व॒क्षणा॒स्ववे॑नन्तं तु॒षय॑न्ती बिभर्ति ॥१६॥\n\nपीवा॑नं मे॒षम॑पचन्त वी॒रा न्यु॑प्ता अ॒क्षा अनु॑ दी॒व आ॑सन् ।\n\nद्वा धनुं॑ बृह॒तीम॒प्स्व१न्तः प॒वित्र॑वन्ता चरतः पु॒नन्ता॑ ॥१७॥\n\nवि क्रो॑श॒नासो॒ विष्व॑ञ्च आय॒न्पचा॑ति॒ नेमो॑ न॒हि पक्ष॑द॒र्धः ।\n\nअ॒यं मे॑ दे॒वः स॑वि॒ता तदा॑ह॒ द्र्व॑न्न॒ इद्व॑नवत्स॒र्पिर॑न्नः ॥१८॥\n\nअप॑श्यं॒ ग्रामं॒ वह॑मानमा॒राद॑च॒क्रया॑ स्व॒धया॒ वर्त॑मानम् ।\n\nसिष॑क्त्य॒र्यः प्र यु॒गा जना॑नां स॒द्यः शि॒श्ना प्र॑मिना॒नो नवी॑यान् ॥१९॥\n\nए॒तौ मे॒ गावौ॑ प्रम॒रस्य॑ यु॒क्तौ मो षु प्र से॑धी॒र्मुहु॒रिन्म॑मन्धि ।\n\nआप॑श्चिदस्य॒ वि न॑श॒न्त्यर्थं॒ सूर॑श्च म॒र्क उप॑रो बभू॒वान् ॥२०॥\n\nअ॒यं यो वज्र॑: पुरु॒धा विवृ॑त्तो॒ऽवः सूर्य॑स्य बृह॒तः पुरी॑षात् ।\n\nश्रव॒ इदे॒ना प॒रो अ॒न्यद॑स्ति॒ तद॑व्य॒थी ज॑रि॒माण॑स्तरन्ति ॥२१॥\n\nवृ॒क्षेवृ॑क्षे॒ निय॑ता मीमय॒द्गौस्ततो॒ वय॒: प्र प॑तान्पूरु॒षाद॑: ।\n\nअथे॒दं विश्वं॒ भुव॑नं भयात॒ इन्द्रा॑य सु॒न्वदृष॑ये च॒ शिक्ष॑त् ॥२२॥\n\nदे॒वानां॒ माने॑ प्रथ॒मा अ॑तिष्ठन्कृ॒न्तत्रा॑देषा॒मुप॑रा॒ उदा॑यन् ।\n\nत्रय॑स्तपन्ति पृथि॒वीम॑नू॒पा द्वा बृबू॑कं वहत॒: पुरी॑षम् ॥२३॥\n\nसा ते॑ जी॒वातु॑रु॒त तस्य॑ विद्धि॒ मा स्मै॑ता॒दृगप॑ गूहः सम॒र्ये ।\n\nआ॒विः स्व॑: कृणु॒ते गूह॑ते बु॒सं स पा॒दुर॑स्य नि॒र्णिजो॒ न मु॑च्यते ॥२४॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 28,
"text": "(१२) १ इन्द्रस्नुषा वसुक्रपत्नी ऋषिका, २,६,८,१०,१२ इन्द्र ऋषिः, ३,४,५,७,९,११ ऐन्द्रो वसुक्र: ऋषिः। २,६,८,१०,१२ ऐन्द्रो वसुक्रो देवता, १,३,४,५,७,९,११ इन्द्रो देवता। त्रिष्टुप्।\n\nविश्वो॒ ह्य१न्यो अ॒रिरा॑ज॒गाम॒ ममेदह॒ श्वशु॑रो॒ ना ज॑गाम ।\n\nज॒क्षी॒याद्धा॒ना उ॒त सोमं॑ पपीया॒त्स्वा॑शित॒: पुन॒रस्तं॑ जगायात् ॥१॥\n\nस रोरु॑वद्वृष॒भस्ति॒ग्मशृ॑ङ्गो॒ वर्ष्म॑न्तस्थौ॒ वरि॑म॒न्ना पृ॑थि॒व्याः ।\n\nविश्वे॑ष्वेनं वृ॒जने॑षु पामि॒ यो मे॑ कु॒क्षी सु॒तसो॑मः पृ॒णाति॑ ॥२॥\n\nअद्रि॑णा ते म॒न्दिन॑ इन्द्र॒ तूया॑न्त्सु॒न्वन्ति॒ सोमा॒न्पिब॑सि॒ त्वमे॑षाम् ।\n\nपच॑न्ति ते वृष॒भाँ अत्सि॒ तेषां॑ पृ॒क्षेण॒ यन्म॑घवन्हू॒यमा॑नः ॥३॥\n\nइ॒दं सु मे॑ जरित॒रा चि॑किद्धि प्रती॒पं शापं॑ न॒द्यो॑ वहन्ति ।\n\nलो॒पा॒शः सिं॒हं प्र॒त्यञ्च॑मत्साः क्रो॒ष्टा व॑रा॒हं निर॑तक्त॒ कक्षा॑त् ॥४॥\n\nक॒था त॑ ए॒तद॒हमा चि॑केतं॒ गृत्स॑स्य॒ पाक॑स्त॒वसो॑ मनी॒षाम् ।\n\nत्वं नो॑ वि॒द्वाँ ऋ॑तु॒था वि वो॑चो॒ यमर्धं॑ ते मघवन्क्षे॒म्या धूः ॥५॥\n\nए॒वा हि मां त॒वसं॑ व॒र्धय॑न्ति दि॒वश्चि॑न्मे बृह॒त उत्त॑रा॒ धूः ।\n\nपु॒रू स॒हस्रा॒ नि शि॑शामि सा॒कम॑श॒त्रुं हि मा॒ जनि॑ता ज॒जान॑ ॥६॥\n\nए॒वा हि मां त॒वसं॑ ज॒ज्ञुरु॒ग्रं कर्म॑न्कर्म॒न्वृष॑णमिन्द्र दे॒वाः ।\n\nवधीं॑ वृ॒त्रं वज्रे॑ण मन्दसा॒नोऽप॑ व्र॒जं म॑हि॒ना दा॒शुषे॑ वम् ॥७॥\n\nदे॒वास॑ आयन्पर॒शूँर॑बिभ्र॒न्वना॑ वृ॒श्चन्तो॑ अ॒भि वि॒ड्भिरा॑यन् ।\n\nनि सु॒द्र्वं१ दध॑तो व॒क्षणा॑सु॒ यत्रा॒ कृपी॑ट॒मनु॒ तद्द॑हन्ति ॥८॥\n\nश॒शः क्षु॒रं प्र॒त्यञ्चं॑ जगा॒राऽद्रिं॑ लो॒गेन॒ व्य॑भेदमा॒रात् ।\n\nबृ॒हन्तं॑ चिदृह॒ते र॑न्धयानि॒ वय॑द्व॒त्सो वृ॑ष॒भं शूशु॑वानः ॥९॥\n\nसु॒प॒र्ण इ॒त्था न॒खमा सि॑षा॒याव॑रुद्धः परि॒पदं॒ न सिं॒हः ।\n\nनि॒रु॒द्धश्चि॑न्महि॒षस्त॒र्ष्यावा॑न्गो॒धा तस्मा॑ अ॒यथं॑ कर्षदे॒तत् ॥१०॥\n\nतेभ्यो॑ गो॒धा अ॒यथं॑ कर्षदे॒तद्ये ब्र॒ह्मण॑: प्रति॒पीय॒न्त्यन्नै॑: ।\n\nसि॒म उ॒क्ष्णो॑ऽवसृ॒ष्टाँ अ॑दन्ति स्व॒यं बला॑नि त॒न्व॑: शृणा॒नाः ॥११॥\n\nए॒ते शमी॑भिः सु॒शमी॑ अभूव॒न्ये हि॑न्वि॒रे त॒न्व१: सोम॑ उ॒क्थैः ।\n\nनृ॒वद्वद॒न्नुप॑ नो माहि॒ वाजा॑न्दि॒वि श्रवो॑ दधिषे॒ नाम॑ वी॒रः ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 29,
"text": "८ ऐन्द्रो वसुक्र:। इन्द्रः।त्रिष्टुप्।\n\nवने॒ न वा॒ यो न्य॑धायि चा॒कञ्छुचि॑र्वां॒ स्तोमो॑ भुरणावजीगः ।\n\nयस्येदिन्द्र॑: पुरु॒दिने॑षु॒ होता॑ नृ॒णां नर्यो॒ नृत॑मः क्ष॒पावा॑न् ॥१॥\n\nप्र ते॑ अ॒स्या उ॒षस॒: प्राप॑रस्या नृ॒तौ स्या॑म॒ नृत॑मस्य नृ॒णाम् ।\n\nअनु॑ त्रि॒शोक॑: श॒तमाव॑ह॒न्नॄन्कुत्से॑न॒ रथो॒ यो अस॑त्सस॒वान् ॥२॥\n\nकस्ते॒ मद॑ इन्द्र॒ रन्त्यो॑ भू॒द्दुरो॒ गिरो॑ अ॒भ्यु१ग्रो वि धा॑व ।\n\nकद्वाहो॑ अ॒र्वागुप॑ मा मनी॒षा आ त्वा॑ शक्यामुप॒मं राधो॒ अन्नै॑: ॥३॥\n\nकदु॑ द्यु॒म्नमि॑न्द्र॒ त्वाव॑तो॒ नॄन्कया॑ धि॒या क॑रस॒य कन्न॒ आग॑न् ।\n\nमि॒त्रो न स॒त्य उ॑रुगाय भृ॒त्या अन्ने॑ समस्य॒ यदस॑न्मनी॒षाः ॥४॥\n\nप्रेर॑य॒ सूरो॒ अर्थं॒ न पा॒रं ये अ॑स्य॒ कामं॑ जनि॒धा इ॑व॒ ग्मन् ।\n\nगिर॑श्च॒ ये ते॑ तुविजात पू॒र्वीर्नर॑ इन्द्र प्रति॒शिक्ष॒न्त्यन्नै॑: ॥५॥\n\nमात्रे॒ नु ते॒ सुमि॑ते इन्द्र पू॒र्वी द्यौर्म॒ज्मना॑ पृथि॒वी काव्ये॑न ।\n\nवरा॑य ते घृ॒तव॑न्तः सु॒तास॒: स्वाद्म॑न्भवन्तु पी॒तये॒ मधू॑नि ॥६॥\n\nआ मध्वो॑ अस्मा असिच॒न्नम॑त्र॒मिन्द्रा॑य पू॒र्णं स हि स॒त्यरा॑धाः ।\n\nस वा॑वृधे॒ वरि॑म॒न्ना पृ॑थि॒व्या अ॒भि क्रत्वा॒ नर्य॒: पौंस्यै॑श्च ॥७॥\n\nव्या॑न॒ळिन्द्र॒: पृत॑ना॒: स्वोजा॒ आस्मै॑ यतन्ते स॒ख्याय॑ पू॒र्वीः ।\n\nआ स्मा॒ रथं॒ न पृत॑नासु तिष्ठ॒ यं भ॒द्रया॑ सुम॒त्या चो॒दया॑से ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 30,
"text": "१५ कवष ऐलूषः।आपः, अपां न पात् वा। त्रिष्टुप्।\n\nप्र दे॑व॒त्रा ब्रह्म॑णे गा॒तुरे॑त्व॒पो अच्छा॒ मन॑सो॒ न प्रयु॑क्ति ।\n\nम॒हीं मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य धा॒सिं पृ॑थु॒ज्रय॑से रीरधा सुवृ॒क्तिम् ॥१॥\n\nअध्व॑र्यवो ह॒विष्म॑न्तो॒ हि भू॒ताऽच्छा॒प इ॑तोश॒तीरु॑शन्तः ।\n\nअव॒ याश्चष्टे॑ अरु॒णः सु॑प॒र्णस्तमास्य॑ध्वमू॒र्मिम॒द्या सु॑हस्ताः ॥२॥\n\nअध्व॑र्यवो॒ऽप इ॑ता समु॒द्रम॒पां नपा॑तं ह॒विषा॑ यजध्वम् ।\n\nस वो॑ दददू॒र्मिम॒द्या सुपू॑तं॒ तस्मै॒ सोमं॒ मधु॑मन्तं सुनोत ॥३॥\n\nयो अ॑नि॒ध्मो दीद॑यद॒प्स्व१न्तर्यं विप्रा॑स॒ ईळ॑ते अध्व॒रेषु॑ ।\n\nअपां॑ नपा॒न्मधु॑मतीर॒पो दा॒ याभि॒रिन्द्रो॑ वावृ॒धे वी॒र्या॑य ॥४॥\n\nयाभि॒: सोमो॒ मोद॑ते॒ हर्ष॑ते च कल्या॒णीभि॑र्युव॒तिभि॒र्न मर्य॑: ।\n\nता अ॑ध्वर्यो अ॒पो अच्छा॒ परे॑हि॒ यदा॑सि॒ञ्चा ओष॑धीभिः पुनीतात् ॥५॥\n\nए॒वेद्यूने॑ युव॒तयो॑ नमन्त॒ यदी॑मु॒शन्नु॑श॒तीरेत्यच्छ॑ ।\n\nसं जा॑नते॒ मन॑सा॒ सं चि॑कित्रेऽध्व॒र्यवो॑ धि॒षणाप॑श्च दे॒वीः ॥६॥\n\nयो वो॑ वृ॒ताभ्यो॒ अकृ॑णोदु लो॒कं यो वो॑ म॒ह्या अ॒भिश॑स्ते॒रमु॑ञ्चत् ।\n\nतस्मा॒ इन्द्रा॑य॒ मधु॑मन्तमू॒र्मिं दे॑व॒माद॑नं॒ प्र हि॑णोतनापः ॥७॥\n\nप्रास्मै॑ हिनोत॒ मधु॑मन्तमू॒र्मिं गर्भो॒ यो व॑: सिन्धवो॒ मध्व॒ उत्स॑: ।\n\nघृ॒तपृ॑ष्ठ॒मीड्य॑मध्व॒रेष्वाऽऽपो॑ रेवतीः शृणु॒ता हवं॑ मे ॥८॥\n\nतं सि॑न्धवो मत्स॒रमि॑न्द्र॒पान॑मू॒र्मिं प्र हे॑त॒ य उ॒भे इय॑र्ति ।\n\nम॒द॒च्युत॑मौशा॒नं न॑भो॒जां परि॑ त्रि॒तन्तुं॑ वि॒चर॑न्त॒मुत्स॑म् ॥९॥\n\nआ॒वर्वृ॑तती॒रध॒ नु द्वि॒धारा॑ गोषु॒युधो॒ न नि॑य॒वं चर॑न्तीः ।\n\nऋषे॒ जनि॑त्री॒र्भुव॑नस्य॒ पत्नी॑र॒पो व॑न्दस्व स॒वृध॒: सयो॑नीः ॥१०॥\n\nहि॒नोता॑ नो अध्व॒रं दे॑वय॒ज्या हि॒नोत॒ ब्रह्म॑ स॒नये॒ धना॑नाम् ।\n\nऋ॒तस्य॒ योगे॒ वि ष्य॑ध्व॒मूध॑: श्रुष्टी॒वरी॑र्भूतना॒स्मभ्य॑मापः ॥११॥\n\nआपो॑ रेवती॒: क्षय॑था॒ हि वस्व॒: क्रतुं॑ च भ॒द्रं बि॑भृ॒थामृतं॑ च ।\n\nरा॒यश्च॒ स्थ स्व॑प॒त्यस्य॒ पत्नी॒: सर॑स्वती॒ तद्गृ॑ण॒ते वयो॑ धात् ॥१२॥\n\nप्रति॒ यदापो॒ अदृ॑श्रमाय॒तीर्घृ॒तं पयां॑सि॒ बिभ्र॑ती॒र्मधू॑नि ।\n\nअ॒ध्व॒र्युभि॒र्मन॑सा संविदा॒ना इन्द्रा॑य॒ सोमं॒ सुषु॑तं॒ भर॑न्तीः ॥१३॥\n\nएमा अ॑ग्मन्रे॒वती॑र्जी॒वध॑न्या॒ अध्व॑र्यवः सा॒दय॑ता सखायः ।\n\nनि ब॒र्हिषि॑ धत्तन सोम्यासो॒ऽपां नप्त्रा॑ संविदा॒नास॑ एनाः ॥१४॥\n\nआग्म॒न्नाप॑ उश॒तीर्ब॒र्हिरेदं न्य॑ध्व॒रे अ॑सदन्देव॒यन्ती॑: ।\n\nअध्व॑र्यवः सुनु॒तेन्द्रा॑य॒ सोम॒मभू॑दु वः सु॒शका॑ देवय॒ज्या ॥१५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 31,
"text": "११ कवष ऐलूषः।विश्वे देवाः। त्रिष्टुप्।\n\nआ नो॑ दे॒वाना॒मुप॑ वेतु॒ शंसो॒ विश्वे॑भिस्तु॒रैरव॑से॒ यज॑त्रः ।\n\nतेभि॑र्व॒यं सु॑ष॒खायो॑ भवेम॒ तर॑न्तो॒ विश्वा॑ दुरि॒ता स्या॑म ॥१॥\n\nपरि॑ चि॒न्मर्तो॒ द्रवि॑णं ममन्यादृ॒तस्य॑ प॒था नम॒सा वि॑वासेत् ।\n\nउ॒त स्वेन॒ क्रतु॑ना॒ सं व॑देत॒ श्रेयां॑सं॒ दक्षं॒ मन॑सा जगृभ्यात् ॥२॥\n\nअधा॑यि धी॒तिरस॑सृग्र॒मंशा॑स्ती॒र्थे न द॒स्ममुप॑ य॒न्त्यूमा॑: ।\n\nअ॒भ्या॑नश्म सुवि॒तस्य॑ शू॒षं नवे॑दसो अ॒मृता॑नामभूम ॥३॥\n\nनित्य॑श्चाकन्या॒त्स्वप॑ति॒र्दमू॑ना॒ यस्मा॑ उ दे॒वः स॑वि॒ता ज॒जान॑ ।\n\nभगो॑ वा॒ गोभि॑रर्य॒मेम॑नज्या॒त्सो अ॑स्मै॒ चारु॑श्छदयदु॒त स्या॑त् ॥४॥\n\nइ॒यं सा भू॑या उ॒षसा॑मिव॒ क्षा यद्ध॑ क्षु॒मन्त॒: शव॑सा स॒माय॑न् ।\n\nअ॒स्य स्तु॒तिं ज॑रि॒तुर्भिक्ष॑माणा॒ आ न॑: श॒ग्मास॒ उप॑ यन्तु॒ वाजा॑: ॥५॥\n\nअ॒स्येदे॒षा सु॑म॒तिः प॑प्रथा॒नाऽभ॑वत्पू॒र्व्या भूम॑ना॒ गौः ।\n\nअ॒स्य सनी॑ळा॒ असु॑रस्य॒ योनौ॑ समा॒न आ भर॑णे॒ बिभ्र॑माणाः ॥६॥\n\nकिं स्वि॒द्वनं॒ क उ॒ स वृ॒क्ष आ॑स॒ यतो॒ द्यावा॑पृथि॒वी नि॑ष्टत॒क्षुः ।\n\nसं॒त॒स्था॒ने अ॒जरे॑ इ॒तऊ॑ती॒ अहा॑नि पू॒र्वीरु॒षसो॑ जरन्त ॥७॥\n\nनैताव॑दे॒ना प॒रो अ॒न्यद॑स्त्यु॒क्षा स द्यावा॑पृथि॒वी बि॑भर्ति ।\n\nत्वचं॑ प॒वित्रं॑ कृणुत स्व॒धावा॒न्यदीं॒ सूर्यं॒ न ह॒रितो॒ वह॑न्ति ॥८॥\n\nस्ते॒गो न क्षामत्ये॑ति पृ॒थ्वीं मिहं॒ न वातो॒ वि ह॑ वाति॒ भूम॑ ।\n\nमि॒त्रो यत्र॒ वरु॑णो अ॒ज्यमा॑नो॒ऽग्निर्वने॒ न व्यसृ॑ष्ट॒ शोक॑म् ॥९॥\n\nस्त॒रीर्यत्सूत॑ स॒द्यो अ॒ज्यमा॑ना॒ व्यथि॑रव्य॒थीः कृ॑णुत॒ स्वगो॑पा ।\n\nपु॒त्रो यत्पूर्व॑: पि॒त्रोर्जनि॑ष्ट श॒म्यां गौर्ज॑गार॒ यद्ध॑ पृ॒च्छान् ॥१०॥\n\nउ॒त कण्वं॑ नृ॒षद॑: पु॒त्रमा॑हुरु॒त श्या॒वो धन॒माद॑त्त वा॒जी ।\n\n प्र कृ॒ष्णाय॒ रुश॑दपिन्व॒तोध॑ॠ॒तमत्र॒ नकि॑रस्मा अपीपेत् ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 32,
"text": "९ कवष ऐलूषः। इन्द्रः। जगती, ६-९ त्रिष्टुप् ।\n\nप्र सु ग्मन्ता॑ धियसा॒नस्य॑ स॒क्षणि॑ व॒रेभि॑र्व॒राँ अ॒भि षु प्र॒सीद॑तः ।\n\nअ॒स्माक॒मिन्द्र॑ उ॒भयं॑ जुजोषति॒ यत्सो॒म्यस्यान्ध॑सो॒ बुबो॑धति ॥१॥\n\nवी॑न्द्र यासि दि॒व्यानि॑ रोच॒ना वि पार्थि॑वानि॒ रज॑सा पुरुष्टुत ।\n\nये त्वा॒ वह॑न्ति॒ मुहु॑रध्व॒राँ उप॒ ते सु व॑न्वन्तु वग्व॒नाँ अ॑रा॒धस॑: ॥२॥\n\nतदिन्मे॑ छन्त्स॒द्वपु॑षो॒ वपु॑ष्टरं पु॒त्रो यज्जानं॑ पि॒त्रोर॒धीय॑ति ।\n\nजा॒या पतिं॑ वहति व॒ग्नुना॑ सु॒मत्पुं॒स इद्भ॒द्रो व॑ह॒तुः परि॑ष्कृतः ॥३॥\n\nतदित्स॒धस्थ॑म॒भि चारु॑ दीधय॒ गावो॒ यच्छास॑न्वह॒तुं न धे॒नव॑: ।\n\nमा॒ता यन्मन्तु॑र्यू॒थस्य॑ पू॒र्व्याऽभि वा॒णस्य॑ स॒प्तधा॑तु॒रिज्जन॑: ॥४॥\n\nप्र वोऽच्छा॑ रिरिचे देव॒युष्प॒दमेको॑ रु॒द्रेभि॑र्याति तु॒र्वणि॑: ।\n\nज॒रा वा॒ येष्व॒मृते॑षु दा॒वने॒ परि॑ व॒ ऊमे॑भ्यः सिञ्चता॒ मधु॑ ॥५॥\n\nनि॒धी॒यमा॑न॒मप॑गूळ्हम॒प्सु प्र मे॑ दे॒वानां॑ व्रत॒पा उ॑वाच ।\n\nइन्द्रो॑ वि॒द्वाँ अनु॒ हि त्वा॑ च॒चक्ष॒ तेना॒हम॑ग्ने॒ अनु॑शिष्ट॒ आगा॑म् ॥६॥\n\nअक्षे॑त्रवित्क्षेत्र॒विदं॒ ह्यप्रा॒ट् स प्रैति॑ क्षेत्र॒विदानु॑शिष्टः ।\n\nए॒तद्वै भ॒द्रम॑नु॒शास॑नस्यो॒त स्रु॒तिं वि॑न्दत्यञ्ज॒सीना॑म् ॥७॥\n\nअ॒द्येदु॒ प्राणी॒दम॑मन्नि॒माहाऽपी॑वृतो अधयन्मा॒तुरूध॑: ।\n\nएमे॑नमाप जरि॒मा युवा॑न॒महे॑ळ॒न्वसु॑: सु॒मना॑ बभूव ॥८॥\n\nए॒तानि॑ भ॒द्रा क॑लश क्रियाम॒ कुरु॑श्रवण॒ दद॑तो म॒घानि॑ ।\n\nदा॒न इद्वो॑ मघवान॒: सो अ॑स्त्व॒यं च॒ सोमो॑ हृ॒दि यं बिभ॑र्मि ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 33,
"text": "९कवष ऐलूषः। १ विश्वेदेवाः, २-३ इन्द्रः, ४-५ कुरुश्रवणस्त्रासदस्यवः, ६-९ उपमश्रवा मैत्रातिथिः। १ त्रिष्टुप् , प्रगाथः = ( २ बृहती, ३ सतोबृहती ),४-९ गायत्री ।\n\nप्र मा॑ युयुज्रे प्र॒युजो॒ जना॑नां॒ वहा॑मि स्म पू॒षण॒मन्त॑रेण ।\n\nविश्वे॑ दे॒वासो॒ अध॒ माम॑रक्षन्दु॒:शासु॒रागा॒दिति॒ घोष॑ आसीत् ॥१॥\n\nसं मा॑ तपन्त्य॒भित॑: स॒पत्नी॑रिव॒ पर्श॑वः । नि बा॑धते॒ अम॑तिर्न॒ग्नता॒ जसु॒र्वेर्न वे॑वीयते म॒तिः ॥२॥\n\nमूषो॒ न शि॒श्ना व्य॑दन्ति मा॒ध्य॑ स्तो॒तारं॑ ते शतक्रतो । स॒कृत्सु नो॑ मघवन्निन्द्र मृळ॒याऽधा॑ पि॒तेव॑ नो भव ॥३॥\n\nकु॒रु॒श्रव॑णमावृणि॒ राजा॑नं॒ त्रास॑दस्यवम् । मंहि॑ष्ठं वा॒घता॒मृषि॑: ॥४॥\n\nयस्य॑ मा ह॒रितो॒ रथे॑ ति॒स्रो वह॑न्ति साधु॒या । स्तवै॑ स॒हस्र॑दक्षिणे ॥५॥\n\nयस्य॒ प्रस्वा॑दसो॒ गिर॑ उप॒मश्र॑वसः पि॒तुः । क्षेत्रं॒ न र॒ण्वमू॒चुषे॑ ॥६॥\n\nअधि॑ पुत्रोपमश्रवो॒ नपा॑न्मित्रातिथेरिहि । पि॒तुष्टे॑ अस्मि वन्दि॒ता ॥७॥\n\nयदीशी॑या॒मृता॑नामु॒त वा॒ मर्त्या॑नाम् । जीवे॒दिन्म॒घवा॒ मम॑ ॥८॥\n\nन दे॒वाना॒मति॑ व्र॒तं श॒तात्मा॑ च॒न जी॑वति । तथा॑ यु॒जा वि वा॑वृते ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 34,
"text": "१४ कवष ऐलूषः, अक्षो मौजवान् वा। १,७,९,१२ अक्षाः, १३ ऋषिः, २-६,८, १०,११,१४ अक्ष-कितव-निन्दा। त्रिष्टुप् , ७ जगती ।\n\nप्रा॒वे॒पा मा॑ बृह॒तो मा॑दयन्ति प्रवाते॒जा इरि॑णे॒ वर्वृ॑तानाः ।\n\nसोम॑स्येव मौजव॒तस्य॑ भ॒क्षो वि॒भीद॑को॒ जागृ॑वि॒र्मह्य॑मच्छान् ॥१॥\n\nन मा॑ मिमेथ॒ न जि॑हीळ ए॒षा शि॒वा सखि॑भ्य उ॒त मह्य॑मासीत् ।\n\nअ॒क्षस्या॒हमे॑कप॒रस्य॑ हे॒तोरनु॑व्रता॒मप॑ जा॒याम॑रोधम् ॥२॥\n\nद्वेष्टि॑ श्व॒श्रूरप॑ जा॒या रु॑णद्धि॒ न ना॑थि॒तो वि॑न्दते मर्डि॒तार॑म् ।\n\nअश्व॑स्येव॒ जर॑तो॒ वस्न्य॑स्य॒ नाहं वि॑न्दामि कित॒वस्य॒ भोग॑म् ॥३॥\n\nअ॒न्ये जा॒यां परि॑ मृशन्त्यस्य॒ यस्यागृ॑ध॒द्वेद॑ने वा॒ज्य१क्षः ।\n\nपि॒ता मा॒ता भ्रात॑र एनमाहु॒र्न जा॑नीमो॒ नय॑ता ब॒द्धमे॒तम् ॥४॥\n\nयदा॒दीध्ये॒ न द॑विषाण्येभिः परा॒यद्भ्योऽव॑ हीये॒ सखि॑भ्यः ।\n\nन्यु॑प्ताश्च ब॒भ्रवो॒ वाच॒मक्र॑तँ॒ एमीदे॑षां निष्कृ॒तं जा॒रिणी॑व ॥५॥\n\nस॒भामे॑ति कित॒वः पृ॒च्छमा॑नो जे॒ष्यामीति॑ त॒न्वा॒३ शूशु॑जानः ।\n\nअ॒क्षासो॑ अस्य॒ वि ति॑रन्ति॒ कामं॑ प्रति॒दीव्ने॒ दध॑त॒ आ कृ॒तानि॑ ॥६॥\n\nअ॒क्षास॒ इद॑ङ्कु॒शिनो॑ नितो॒दिनो॑ नि॒कृत्वा॑न॒स्तप॑नास्तापयि॒ष्णव॑: ।\n\nकु॒मा॒रदे॑ष्णा॒ जय॑तः पुन॒र्हणो॒ मध्वा॒ सम्पृ॑क्ताः कित॒वस्य॑ ब॒र्हणा॑ ॥७॥\n\nत्रि॒प॒ञ्चा॒शः क्री॑ळति॒ व्रात॑ एषां दे॒व इ॑व सवि॒ता स॒त्यध॑र्मा ।\n\nउ॒ग्रस्य॑ चिन्म॒न्यवे॒ ना न॑मन्ते॒ राजा॑ चिदेभ्यो॒ नम॒ इत्कृ॑णोति ॥८॥\n\nनी॒चा व॑र्तन्त उ॒परि॑ स्फुरन्त्यह॒स्तासो॒ हस्त॑वन्तं सहन्ते ।\n\nदि॒व्या अङ्गा॑रा॒ इरि॑णे॒ न्यु॑प्ताः शी॒ताः सन्तो॒ हृद॑यं॒ निर्द॑हन्ति ॥९॥\n\nजा॒या त॑प्यते कित॒वस्य॑ ही॒ना मा॒ता पु॒त्रस्य॒ चर॑त॒: क्व॑ स्वित् ।\n\nऋ॒णा॒वा बिभ्य॒द्धन॑मि॒च्छमा॑नो॒ऽन्येषा॒मस्त॒मुप॒ नक्त॑मेति ॥१०॥\n\nस्त्रियं॑ दृ॒ष्ट्वाय॑ कित॒वं त॑तापा॒ऽन्येषां॑ जा॒यां सुकृ॑तं च॒ योनि॑म् ।\n\nपू॒र्वा॒ह्णे अश्वा॑न्युयु॒जे हि ब॒भ्रून्त्सो अ॒ग्नेरन्ते॑ वृष॒लः प॑पाद ॥११॥\n\nयो व॑: सेना॒नीर्म॑ह॒तो ग॒णस्य॒ राजा॒ व्रात॑स्य प्रथ॒मो ब॒भूव॑ ।\n\nतस्मै॑ कृणोमि॒ न धना॑ रुणध्मि॒ दशा॒हं प्राची॒स्तदृ॒तं व॑दामि ॥१२॥\n\nअ॒क्षैर्मा दी॑व्यः कृ॒षिमित्कृ॑षस्व वि॒त्ते र॑मस्व ब॒हु मन्य॑मानः ।\n\nतत्र॒ गाव॑: कितव॒ तत्र॑ जा॒या तन्मे॒ वि च॑ष्टे सवि॒तायम॒र्यः ॥१३॥\n\nमि॒त्रं कृ॑णुध्वं॒ खलु॑ मृ॒ळता॑ नो॒ मा नो॑ घो॒रेण॑ चरता॒भि धृ॒ष्णु ।\n\nनि वो॒ नु म॒न्युर्वि॑शता॒मरा॑तिर॒न्यो ब॑भ्रू॒णां प्रसि॑तौ॒ न्व॑स्तु ॥१४॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 35,
"text": "१४ लुशो धानाकः। विश्वेदेवाः । जगती,१३-१४ त्रिष्टुप्।\n\nअबु॑ध्रमु॒ त्य इन्द्र॑वन्तो अ॒ग्नयो॒ ज्योति॒र्भर॑न्त उ॒षसो॒ व्यु॑ष्टिषु ।\n\nम॒ही द्यावा॑पृथि॒वी चे॑तता॒मपो॒ऽद्या दे॒वाना॒मव॒ आ वृ॑णीमहे ॥१॥\n\nदि॒वस्पृ॑थि॒व्योरव॒ आ वृ॑णीमहे मा॒तॄन्त्सिन्धू॒न्पर्व॑ताञ्छर्य॒णाव॑तः ।\n\nअ॒ना॒गा॒स्त्वं सूर्य॑मु॒षास॑मीमहे भ॒द्रं सोम॑: सुवा॒नो अ॒द्या कृ॑णोतु नः ॥२॥\n\nद्यावा॑ नो अ॒द्य पृ॑थि॒वी अना॑गसो म॒ही त्रा॑येतां सुवि॒ताय॑ मा॒तरा॑ ।\n\nउ॒षा उ॒च्छन्त्यप॑ बाधताम॒घं स्व॒स्त्य१ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥३॥\n\nइ॒यं न॑ उ॒स्रा प्र॑थ॒मा सु॑दे॒व्यं॑ रे॒वत्स॒निभ्यो॑ रे॒वती॒ व्यु॑च्छतु ।\n\nआ॒रे म॒न्युं दु॑र्वि॒दत्र॑स्य धीमहि स्व॒स्त्य१ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥४॥\n\nप्र याः सिस्र॑ते॒ सूर्य॑स्य र॒श्मिभि॒र्ज्योति॒र्भर॑न्तीरु॒षसो॒ व्यु॑ष्टिषु ।\n\nभ॒द्रा नो॑ अ॒द्य श्रव॑से॒ व्यु॑च्छत स्व॒स्त्य१ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥५॥\n\nअ॒न॒मी॒वा उ॒षस॒ आ च॑रन्तु न॒ उद॒ग्नयो॑ जिहतां॒ ज्योति॑षा बृ॒हत् ।\n\nआयु॑क्षाताम॒श्विना॒ तूतु॑जिं॒ रथं॑ स्व॒स्त्य१ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥६॥\n\nश्रेष्ठं॑ नो अ॒द्य स॑वित॒र्वरे॑ण्यं भा॒गमा सु॑व॒ स हि र॑त्न॒धा असि॑ ।\n\nरा॒यो जनि॑त्रीं धि॒षणा॒मुप॑ ब्रुवे स्व॒स्त्य१ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥७॥\n\nपिप॑र्तु मा॒ तदृ॒तस्य॑ प्र॒वाच॑नं दे॒वानां॒ यन्म॑नु॒ष्या॒३ अम॑न्महि ।\n\nविश्वा॒ इदु॒स्राः स्पळुदे॑ति॒ सूर्य॑: स्व॒स्त्य१ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥८॥\n\nअ॒द्वे॒षो अ॒द्य ब॒र्हिष॒: स्तरी॑मणि॒ ग्राव्णां॒ योगे॒ मन्म॑न॒: साध॑ ईमहे ।\n\nआ॒दि॒त्यानां॒ शर्म॑णि॒ स्था भु॑रण्यसि स्व॒स्त्य१ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥९॥\n\nआ नो॑ ब॒र्हिः स॑ध॒मादे॑ बृ॒हद्दि॒वि दे॒वाँ ई॑ळे सा॒दया॑ स॒प्त होतॄ॑न् ।\n\nइन्द्रं॑ मि॒त्रं वरु॑णं सा॒तये॒ भगं॑ स्व॒स्त्य१ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥१०॥\n\nत आ॑दित्या॒ आ ग॑ता स॒र्वता॑तये वृ॒धे नो॑ य॒ज्ञम॑वता सजोषसः ।\n\nबृह॒स्पतिं॑ पू॒षण॑म॒श्विना॒ भगं॑ स्व॒स्त्य१ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥११॥\n\nतन्नो॑ देवा यच्छत सुप्रवाच॒नं छ॒र्दिरा॑दित्याः सु॒भरं॑ नृ॒पाय्य॑म् ।\n\nपश्वे॑ तो॒काय॒ तन॑याय जी॒वसे॑ स्व॒स्त्य१ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥१२॥\n\nविश्वे॑ अ॒द्य म॒रुतो॒ विश्व॑ ऊ॒ती विश्वे॑ भवन्त्व॒ग्नय॒: समि॑द्धाः ।\n\nविश्वे॑ नो दे॒वा अव॒सा ग॑मन्तु॒ विश्व॑मस्तु॒ द्रवि॑णं॒ वाजो॑ अ॒स्मे ॥१३॥\n\nयं दे॑वा॒सोऽव॑थ॒ वाज॑सातौ॒ यं त्राय॑ध्वे॒ यं पि॑पृ॒थात्यंह॑: ।\n\nयो वो॑ गोपी॒थे न भ॒यस्य॒ वेद॒ ते स्या॑म दे॒ववी॑तये तुरासः ॥१४॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 36,
"text": "१४ लुशो धानाकः। विश्वेदेवाः । जगती,१३-१४ त्रिष्टुप्।\n\nउ॒षासा॒नक्ता॑ बृह॒ती सु॒पेश॑सा॒ द्यावा॒क्षामा॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा ।\n\nइन्द्रं॑ हुवे म॒रुत॒: पर्व॑ताँ अ॒प आ॑दि॒त्यान्द्यावा॑पृथि॒वी अ॒पः स्व॑: ॥१॥\n\nद्यौश्च॑ नः पृथि॒वी च॒ प्रचे॑तस ऋ॒ताव॑री रक्षता॒मंह॑सो रि॒षः ।\n\nमा दु॑र्वि॒दत्रा॒ निॠ॑तिर्न ईशत॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥२॥\n\nविश्व॑स्मान्नो॒ अदि॑तिः पा॒त्वंह॑सो मा॒ता मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य रे॒वत॑: ।\n\nस्व॑र्व॒ज्ज्योति॑रवृ॒कं न॑शीमहि॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥३॥\n\nग्रावा॒ वद॒न्नप॒ रक्षां॑सि सेधतु दु॒ष्ष्वप्न्यं॒ निॠ॑तिं॒ विश्व॑म॒त्रिण॑म् ।\n\nआ॒दि॒त्यं शर्म॑ म॒रुता॑मशीमहि॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥४॥\n\nएन्द्रो॑ ब॒र्हिः सीद॑तु॒ पिन्व॑ता॒मिळा॒ बृह॒स्पति॒: साम॑भिॠ॒क्वो अ॑र्चतु ।\n\nसु॒प्र॒के॒तं जी॒वसे॒ मन्म॑ धीमहि॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥५॥\n\nदि॒वि॒स्पृशं॑ य॒ज्ञम॒स्माक॑मश्विना जी॒राध्व॑रं कृणुतं सु॒म्नमि॒ष्टये॑ ।\n\nप्रा॒चीन॑रश्मि॒माहु॑तं घृ॒तेन॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥६॥\n\nउप॑ ह्वये सु॒हवं॒ मारु॑तं ग॒णं पा॑व॒कमृ॒ष्वं स॒ख्याय॑ श॒म्भुव॑म् ।\n\nरा॒यस्पोषं॑ सौश्रव॒साय॑ धीमहि॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥७॥\n\nअ॒पां पेरुं॑ जी॒वध॑न्यं भरामहे देवा॒व्यं॑ सु॒हव॑मध्वर॒श्रिय॑म् ।\n\nसु॒र॒श्मिं सोम॑मिन्द्रि॒यं य॑मीमहि॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥८॥\n\nस॒नेम॒ तत्सु॑स॒निता॑ स॒नित्व॑भिर्व॒यं जी॒वा जी॒वपु॑त्रा॒ अना॑गसः ।\n\nब्र॒ह्म॒द्विषो॒ विष्व॒गेनो॑ भरेरत॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥९॥\n\nये स्था मनो॑र्य॒ज्ञिया॒स्ते शृ॑णोतन॒ यद्वो॑ देवा॒ ईम॑हे॒ तद्द॑दातन ।\n\nजैत्रं॒ क्रतुं॑ रयि॒मद्वी॒रव॒द्यश॒स्तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥१०॥\n\nम॒हद॒द्य म॑ह॒तामा वृ॑णीम॒हेऽवो॑ दे॒वानां॑ बृह॒ताम॑न॒र्वणा॑म् ।\n\nयथा॒ वसु॑ वी॒रजा॑तं॒ नशा॑महै॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥११॥\n\nम॒हो अ॒ग्नेः स॑मिधा॒नस्य॒ शर्म॒ण्यना॑गा मि॒त्रे वरु॑णे स्व॒स्तये॑ ।\n\nश्रेष्ठे॑ स्याम सवि॒तुः सवी॑मनि॒ तद्दे॒वाना॒मवो॑ अ॒द्या वृ॑णीमहे ॥१२॥\n\nये स॑वि॒तुः स॒त्यस॑वस्य॒ विश्वे॑ मि॒त्रस्य॑ व्र॒ते वरु॑णस्य दे॒वाः ।\n\nते सौभ॑गं वी॒रव॒द्गोम॒दप्नो॒ दधा॑तन॒ द्रवि॑णं चि॒त्रम॒स्मे ॥१३॥\n\nस॒वि॒ता प॒श्चाता॑त्सवि॒ता पु॒रस्ता॑त्सवि॒तोत्त॒रात्ता॑त्सवि॒ताध॒रात्ता॑त् ।\n\nस॒वि॒ता न॑: सुवतु स॒र्वता॑तिं सवि॒ता नो॑ रासतां दी॒र्घमायु॑: ॥१४॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 37,
"text": "१२ सौर्योऽभितपाः। सूर्यः। जगती, १० त्रिष्टुप्।\n\nनमो॑ मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ चक्ष॑से म॒हो दे॒वाय॒ तदृ॒तं स॑पर्यत ।\n\nदू॒रे॒दृशे॑ दे॒वजा॑ताय के॒तवे॑ दि॒वस्पु॒त्राय॒ सूर्या॑य शंसत ॥१॥\n\nसा मा॑ स॒त्योक्ति॒: परि॑ पातु वि॒श्वतो॒ द्यावा॑ च॒ यत्र॑ त॒तन॒न्नहा॑नि च ।\n\nविश्व॑म॒न्यन्नि वि॑शते॒ यदेज॑ति वि॒श्वाहापो॑ वि॒श्वाहोदे॑ति॒ सूर्य॑: ॥२॥\n\nन ते॒ अदे॑वः प्र॒दिवो॒ नि वा॑सते॒ यदे॑त॒शेभि॑: पत॒रै र॑थ॒र्यसि॑ ।\n\nप्रा॒चीन॑म॒न्यदनु॑ वर्तते॒ रज॒ उद॒न्येन॒ ज्योति॑षा यासि सूर्य ॥३॥\n\nयेन॑ सूर्य॒ ज्योति॑षा॒ बाध॑से॒ तमो॒ जग॑च्च॒ विश्व॑मुदि॒यर्षि॑ भा॒नुना॑ ।\n\nतेना॒स्मद्विश्वा॒मनि॑रा॒मना॑हुति॒मपामी॑वा॒मप॑ दु॒ष्ष्वप्न्यं॑ सुव ॥४॥\n\nविश्व॑स्य॒ हि प्रेषि॑तो॒ रक्ष॑सि व्र॒तमहे॑ळयन्नु॒च्चर॑सि स्व॒धा अनु॑ ।\n\nयद॒द्य त्वा॑ सूर्योप॒ब्रवा॑महै॒ तं नो॑ दे॒वा अनु॑ मंसीरत॒ क्रतु॑म् ॥५॥\n\nतं नो॒ द्यावा॑पृथि॒वी तन्न॒ आप॒ इन्द्र॑: शृण्वन्तु म॒रुतो॒ हवं॒ वच॑: ।\n\nमा शूने॑ भूम॒ सूर्य॑स्य सं॒दृशि॑ भ॒द्रं जीव॑न्तो जर॒णाम॑शीमहि ॥६॥\n\nवि॒श्वाहा॑ त्वा सु॒मन॑सः सु॒चक्ष॑सः प्र॒जाव॑न्तो अनमी॒वा अना॑गसः ।\n\nउ॒द्यन्तं॑ त्वा मित्रमहो दि॒वेदि॑वे॒ ज्योग्जी॒वाः प्रति॑ पश्येम सूर्य ॥७॥\n\nमहि॒ ज्योति॒र्बिभ्र॑तं त्वा विचक्षण॒ भास्व॑न्तं॒ चक्षु॑षेचक्षुषे॒ मय॑: ।\n\nआ॒रोह॑न्तं बृह॒तः पाज॑स॒स्परि॑ व॒यं जी॒वाः प्रति॑ पश्येम सूर्य ॥८॥\n\nयस्य॑ ते॒ विश्वा॒ भुव॑नानि के॒तुना॒ प्र चेर॑ते॒ नि च॑ वि॒शन्ते॑ अ॒क्तुभि॑: ।\n\nअ॒ना॒गा॒स्त्वेन॑ हरिकेश सू॒र्याऽह्ना॑ह्ना नो॒ वस्य॑सावस्य॒सोदि॑हि ॥९॥\n\nशं नो॑ भव॒ चक्ष॑सा॒ शं नो॒ अह्ना॒ शं भा॒नुना॒ शं हि॒मा शं घृ॒णेन॑ ।\n\nयथा॒ शमध्व॒ञ्छमस॑द्दुरो॒णे तत्सू॑र्य॒ द्रवि॑णं धेहि चि॒त्रम् ॥१०॥\n\nअ॒स्माकं॑ देवा उ॒भया॑य॒ जन्म॑ने॒ शर्म॑ यच्छत द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे ।\n\nअ॒दत्पिब॑दू॒र्जय॑मान॒माशि॑तं॒ तद॒स्मे शं योर॑र॒पो द॑धातन ॥११॥\n\nयद्वो॑ देवाश्चकृ॒म जि॒ह्वया॑ गु॒रु मन॑सो वा॒ प्रयु॑ती देव॒हेळ॑नम् ।\n\nअरा॑वा॒ यो नो॑ अ॒भि दु॑च्छुना॒यते॒ तस्मि॒न्तदेनो॑ वसवो॒ नि धे॑तन ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 38,
"text": "५ मुष्कवानिन्द्रः। इन्द्रः। जगती।\n\nअ॒स्मिन्न॑ इन्द्र पृत्सु॒तौ यश॑स्वति॒ शिमी॑वति॒ क्रन्द॑सि॒ प्राव॑ सा॒तये॑ ।\n\nयत्र॒ गोषा॑ता धृषि॒तेषु॑ खा॒दिषु॒ विष्व॒क्पत॑न्ति दि॒द्यवो॑ नृ॒षाह्ये॑ ॥१॥\n\nस न॑: क्षु॒मन्तं॒ सद॑ने॒ व्यू॑र्णुहि॒ गोअ॑र्णसं र॒यिमि॑न्द्र श्र॒वाय्य॑म् ।\n\nस्याम॑ ते॒ जय॑तः शक्र मे॒दिनो॒ यथा॑ व॒यमु॒श्मसि॒ तद्व॑सो कृधि ॥२॥\n\nयो नो॒ दास॒ आर्यो॑ वा पुरुष्टु॒ताऽदे॑व इन्द्र यु॒धये॒ चिके॑तति ।\n\nअ॒स्माभि॑ष्टे सु॒षहा॑: सन्तु॒ शत्र॑व॒स्त्वया॑ व॒यं तान्व॑नुयाम संग॒मे ॥३॥\n\nयो द॒भ्रेभि॒र्हव्यो॒ यश्च॒ भूरि॑भि॒र्यो अ॒भीके॑ वरिवो॒विन्नृ॒षाह्ये॑ ।\n\nतं वि॑खा॒दे सस्नि॑म॒द्य श्रु॒तं नर॑म॒र्वाञ्च॒मिन्द्र॒मव॑से करामहे ॥४॥\n\nस्व॒वृजं॒ हि त्वाम॒हमि॑न्द्र शु॒श्रवा॑नानु॒दं वृ॑षभ रध्र॒चोद॑नम् ।\n\n प्र मु॑ञ्चस्व॒ परि॒ कुत्सा॑दि॒हा ग॑हि॒ किमु॒ त्वावा॑न्मु॒ष्कयो॑र्ब॒द्ध आ॑सते ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 39,
"text": "१४ काक्षीवती घोषा। अश्विनौ। जगती, १४ त्रिष्टुप्।\n\nयो वां॒ परि॑ज्मा सु॒वृद॑श्विना॒ रथो॑ दो॒षामु॒षासो॒ हव्यो॑ ह॒विष्म॑ता ।\n\nश॒श्व॒त्त॒मास॒स्तमु॑ वामि॒दं व॒यं पि॒तुर्न नाम॑ सु॒हवं॑ हवामहे ॥१॥\n\nचो॒दय॑तं सू॒नृता॒: पिन्व॑तं॒ धिय॒ उत्पुरं॑धीरीरयतं॒ तदु॑श्मसि ।\n\nय॒शसं॑ भा॒गं कृ॑णुतं नो अश्विना॒ सोमं॒ न चारुं॑ म॒घव॑त्सु नस्कृतम् ॥२॥\n\nअ॒मा॒जुर॑श्चिद्भवथो यु॒वं भगो॑ऽना॒शोश्चि॑दवि॒तारा॑प॒मस्य॑ चित् ।\n\nअ॒न्धस्य॑ चिन्नासत्या कृ॒शस्य॑ चिद्यु॒वामिदा॑हुर्भि॒षजा॑ रु॒तस्य॑ चित् ॥३॥\n\nयु॒वं च्यवा॑नं स॒नयं॒ यथा॒ रथं॒ पुन॒र्युवा॑नं च॒रथा॑य तक्षथुः ।\n\nनिष्टौ॒ग्र्यमू॑हथुर॒द्भ्यस्परि॒ विश्वेत्ता वां॒ सव॑नेषु प्र॒वाच्या॑ ॥४॥\n\nपु॒रा॒णा वां॑ वी॒र्या॒३ प्र ब्र॑वा॒ जनेऽथो॑ हासथुर्भि॒षजा॑ मयो॒भुवा॑ ।\n\nता वां॒ नु नव्या॒वव॑से करामहे॒ऽयं ना॑सत्या॒ श्रद॒रिर्यथा॒ दध॑त् ॥५॥\n\nइ॒यं वा॑मह्वे शृणु॒तं मे॑ अश्विना पु॒त्राये॑व पि॒तरा॒ मह्यं॑ शिक्षतम् ।\n\nअना॑पि॒रज्ञा॑ असजा॒त्याम॑तिः पु॒रा तस्या॑ अ॒भिश॑स्ते॒रव॑ स्पृतम् ॥६॥\n\nयु॒वं रथे॑न विम॒दाय॑ शु॒न्ध्युवं॒ न्यू॑हथुः पुरुमि॒त्रस्य॒ योष॑णाम् ।\n\nयु॒वं हवं॑ वध्रिम॒त्या अ॑गच्छतं यु॒वं सुषु॑तिं चक्रथु॒: पुरं॑धये ॥७॥\n\nयु॒वं विप्र॑स्य जर॒णामु॑पे॒युष॒: पुन॑: क॒लेर॑कृणुतं॒ युव॒द्वय॑: ।\n\nयु॒वं वन्द॑नमृश्य॒दादुदू॑पथुर्यु॒वं स॒द्यो वि॒श्पला॒मेत॑वे कृथः ॥८॥\n\nयु॒वं ह॑ रे॒भं वृ॑षणा॒ गुहा॑ हि॒तमुदै॑रयतं ममृ॒वांस॑मश्विना ।\n\nयु॒वमृ॒बीस॑मु॒त त॒प्तमत्र॑य॒ ओम॑न्वन्तं चक्रथुः स॒प्तव॑ध्रये ॥९॥\n\nयु॒वं श्वे॒तं पे॒दवे॑ऽश्वि॒नाश्वं॑ न॒वभि॒र्वाजै॑र्नव॒ती च॑ वा॒जिन॑म् ।\n\nच॒र्कृत्यं॑ ददथुर्द्राव॒यत्स॑खं॒ भगं॒ न नृभ्यो॒ हव्यं॑ मयो॒भुव॑म् ॥१०॥\n\nन तं रा॑जानावदिते॒ कुत॑श्च॒न नांहो॑ अश्नोति दुरि॒तं नकि॑र्भ॒यम् ।\n\nयम॑श्विना सुहवा रुद्रवर्तनी पुरोर॒थं कृ॑णु॒थः पत्न्या॑ स॒ह ॥११॥\n\nआ तेन॑ यातं॒ मन॑सो॒ जवी॑यसा॒ रथं॒ यं वा॑मृ॒भव॑श्च॒क्रुर॑श्विना ।\n\nयस्य॒ योगे॑ दुहि॒ता जाय॑ते दि॒व उ॒भे अह॑नी सु॒दिने॑ वि॒वस्व॑तः ॥१२॥\n\nता व॒र्तिर्या॑तं ज॒युषा॒ वि पर्व॑त॒मपि॑न्वतं श॒यवे॑ धे॒नुम॑श्विना ।\n\nवृक॑स्य चि॒द्वर्ति॑काम॒न्तरा॒स्या॑द्यु॒वं शची॑भिर्ग्रसि॒ताम॑मुञ्चतम् ॥१३॥\n\nए॒तं वां॒ स्तोम॑मश्विनावक॒र्मात॑क्षाम॒ भृग॑वो॒ न रथ॑म् ।\n\nन्य॑मृक्षाम॒ योष॑णां॒ न मर्ये॒ नित्यं॒ न सू॒नुं तन॑यं॒ दधा॑नाः ॥१४॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 40,
"text": "१४ काक्षीवती घोषा। अश्विनौ। जगती।\n\nरथं॒ यान्तं॒ कुह॒ को ह॑ वां नरा॒ प्रति॑ द्यु॒मन्तं॑ सुवि॒ताय॑ भूषति ।\n\nप्रा॒त॒र्यावा॑णं वि॒भ्वं॑ वि॒शेवि॑शे॒ वस्तो॑र्वस्तो॒र्वह॑मानं धि॒या शमि॑ ॥१॥\n\nकुह॑ स्विद्दो॒षा कुह॒ वस्तो॑र॒श्विना॒ कुहा॑भिपि॒त्वं क॑रत॒: कुहो॑षतुः ।\n\nको वां॑ शयु॒त्रा वि॒धवे॑व दे॒वरं॒ मर्यं॒ न योषा॑ कृणुते स॒धस्थ॒ आ ॥२॥\n\nप्रा॒तर्ज॑रेथे जर॒णेव॒ काप॑या॒ वस्तो॑र्वस्तोर्यज॒ता ग॑च्छथो गृ॒हम् ।\n\nकस्य॑ ध्व॒स्रा भ॑वथ॒: कस्य॑ वा नरा राजपु॒त्रेव॒ सव॒नाव॑ गच्छथः ॥३॥\n\nयु॒वां मृ॒गेव॑ वार॒णा मृ॑ग॒ण्यवो॑ दो॒षा वस्तो॑र्ह॒विषा॒ नि ह्व॑यामहे ।\n\n यु॒वं होत्रा॑मृतु॒था जुह्व॑ते न॒रेषं॒ जना॑य वहथः शुभस्पती ॥४॥\n\nयु॒वां ह॒ घोषा॒ पर्य॑श्विना य॒ती राज्ञ॑ ऊचे दुहि॒ता पृ॒च्छे वां॑ नरा ।\n\nभू॒तं मे॒ अह्न॑ उ॒त भू॑तम॒क्तवेऽश्वा॑वते र॒थिने॑ शक्त॒मर्व॑ते ॥५॥\n\nयु॒वं क॒वी ष्ठ॒: पर्य॑श्विना॒ रथं॒ विशो॒ न कुत्सो॑ जरि॒तुर्न॑शायथः ।\n\nयु॒वोर्ह॒ मक्षा॒ पर्य॑श्विना॒ मध्वा॒सा भ॑रत निष्कृ॒तं न योष॑णा ॥६॥\n\nयु॒वं ह॑ भु॒ज्युं यु॒वम॑श्विना॒ वशं॑ यु॒वं शि॒ञ्जार॑मु॒शना॒मुपा॑रथुः ।\n\nयु॒वो ररा॑वा॒ परि॑ स॒ख्यमा॑सते यु॒वोर॒हमव॑सा सु॒म्नमा च॑के ॥७॥\n\nयु॒वं ह॑ कृ॒शं यु॒वम॑श्विना श॒युं यु॒वं वि॒धन्तं॑ वि॒धवा॑मुरुष्यथः ।\n\nयु॒वं स॒निभ्य॑: स्त॒नय॑न्तमश्वि॒नाऽप॑ व्र॒जमू॑र्णुथः स॒प्तास्य॑म् ॥८॥\n\nजनि॑ष्ट॒ योषा॑ प॒तय॑त्कनीन॒को वि चारु॑हन्वी॒रुधो॑ दं॒सना॒ अनु॑ ।\n\nआस्मै॑ रीयन्ते निव॒नेव॒ सिन्ध॑वो॒ऽस्मा अह्ने॑ भवति॒ तत्प॑तित्व॒नम् ॥९॥\n\nजी॒वं रु॑दन्ति॒ वि म॑यन्ते अध्व॒रे दी॒र्घामनु॒ प्रसि॑तिं दीधियु॒र्नर॑: ।\n\nवा॒मं पि॒तृभ्यो॒ य इ॒दं स॑मेरि॒रे मय॒: पति॑भ्यो॒ जन॑यः परि॒ष्वजे॑ ॥१०॥\n\nन तस्य॑ विद्म॒ तदु॒ षु प्र वो॑चत॒ युवा॑ ह॒ यद्यु॑व॒त्याः क्षेति॒ योनि॑षु ।\n\nप्रि॒योस्रि॑यस्य वृष॒भस्य॑ रे॒तिनो॑ गृ॒हं ग॑मेमाश्विना॒ तदु॑श्मसि ॥११॥\n\nआ वा॑मगन्त्सुम॒तिर्वा॑जिनीवसू॒ न्य॑श्विना हृ॒त्सु कामा॑ अयंसत ।\n\nअभू॑तं गो॒पा मि॑थु॒ना शु॑भस्पती प्रि॒या अ॑र्य॒म्णो दुर्याँ॑ अशीमहि ॥१२॥\n\nता म॑न्दसा॒ना मनु॑षो दुरो॒ण आ ध॒त्तं र॒यिं स॒हवी॑रं वच॒स्यवे॑ ।\n\nकृ॒तं ती॒र्थं सु॑प्रपा॒णं शु॑भस्पती स्था॒णुं प॑थे॒ष्ठामप॑ दुर्म॒तिं ह॑तम् ॥१३॥\n\nक्व॑ स्विद॒द्य क॑त॒मास्व॒श्विना॑ वि॒क्षु द॒स्रा मा॑दयेते शु॒भस्पती॑ ।\n\nक ईं॒ नि ये॑मे कत॒मस्य॑ जग्मतु॒र्विप्र॑स्य वा॒ यज॑मानस्य वा गृ॒हम् ॥१४॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 41,
"text": "३ सुहस्त्यो घौषेयः। अश्विनौ। जगती।\n\nस॒मा॒नमु॒ त्यं पु॑रुहू॒तमु॒क्थ्यं१ रथं॑ त्रिच॒क्रं सव॑ना॒ गनि॑ग्मतम् ।\n\nपरि॑ज्मानं विद॒थ्यं॑ सुवृ॒क्तिभि॑र्व॒यं व्यु॑ष्टा उ॒षसो॑ हवामहे ॥१॥\n\nप्रा॒त॒र्युजं॑ नास॒त्याधि॑ तिष्ठथः प्रात॒र्यावा॑णं मधु॒वाह॑नं॒ रथ॑म् ।\n\nविशो॒ येन॒ गच्छ॑थो॒ यज्व॑रीर्नरा की॒रेश्चि॑द्य॒ज्ञं होतृ॑मन्तमश्विना ॥२॥\n\nअ॒ध्व॒र्युं वा॒ मधु॑पाणिं सु॒हस्त्य॑म॒ग्निधं॑ वा धृ॒तद॑क्षं॒ दमू॑नसम् ।\n\nविप्र॑स्य वा॒ यत्सव॑नानि॒ गच्छ॒थोऽत॒ आ या॑तं मधु॒पेय॑मश्विना ॥३॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 42,
"text": "११ कृष्ण आङ्गिरसः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nअस्ते॑व॒ सु प्र॑त॒रं लाय॒मस्य॒न्भूष॑न्निव॒ प्र भ॑रा॒ स्तोम॑मस्मै ।\n\nवा॒चा वि॑प्रास्तरत॒ वाच॑म॒र्यो नि रा॑मय जरित॒: सोम॒ इन्द्र॑म् ॥१॥\n\nदोहे॑न॒ गामुप॑ शिक्षा॒ सखा॑यं॒ प्र बो॑धय जरितर्जा॒रमिन्द्र॑म् ।\n\nकोशं॒ न पू॒र्णं वसु॑ना॒ न्यृ॑ष्ट॒मा च्या॑वय मघ॒देया॑य॒ शूर॑म् ॥२॥\n\nकिम॒ङ्ग त्वा॑ मघवन्भो॒जमा॑हुः शिशी॒हि मा॑ शिश॒यं त्वा॑ शृणोमि ।\n\nअप्न॑स्वती॒ मम॒ धीर॑स्तु शक्र वसु॒विदं॒ भग॑मि॒न्द्रा भ॑रा नः ॥३॥\n\nत्वां जना॑ ममस॒त्येष्वि॑न्द्र संतस्था॒ना वि ह्व॑यन्ते समी॒के ।\n\nअत्रा॒ युजं॑ कृणुते॒ यो ह॒विष्मा॒न्नासु॑न्वता स॒ख्यं व॑ष्टि॒ शूर॑: ॥४॥\n\nधनं॒ न स्य॒न्द्रं ब॑हु॒लं यो अ॑स्मै ती॒व्रान्त्सोमाँ॑ आसु॒नोति॒ प्रय॑स्वान् ।\n\nतस्मै॒ शत्रू॑न्त्सु॒तुका॑न्प्रा॒तरह्नो॒ नि स्वष्ट्रा॑न्यु॒वति॒ हन्ति॑ वृ॒त्रम् ॥५॥\n\nयस्मि॑न्व॒यं द॑धि॒मा शंस॒मिन्द्रे॒ यः शि॒श्राय॑ म॒घवा॒ काम॑म॒स्मे ।\n\nआ॒राच्चि॒त्सन्भ॑यतामस्य॒ शत्रु॒र्न्य॑स्मै द्यु॒म्ना जन्या॑ नमन्ताम् ॥६॥\n\nआ॒राच्छत्रु॒मप॑ बाधस्व दू॒रमु॒ग्रो यः शम्ब॑: पुरुहूत॒ तेन॑ ।\n\nअ॒स्मे धे॑हि॒ यव॑म॒द्गोम॑दिन्द्र कृ॒धी धियं॑ जरि॒त्रे वाज॑रत्नाम् ॥७॥\n\nप्र यम॒न्तर्वृ॑षस॒वासो॒ अग्म॑न्ती॒व्राः सोमा॑ बहु॒लान्ता॑स॒ इन्द्र॑म् ।\n\nनाह॑ दा॒मानं॑ म॒घवा॒ नि यं॑स॒न्नि सु॑न्व॒ते व॑हति॒ भूरि॑ वा॒मम् ॥८॥\n\nउ॒त प्र॒हाम॑ति॒दीव्या॑ जयाति कृ॒तं यच्छ्व॒घ्नी वि॑चि॒नोति॑ का॒ले ।\n\nयो दे॒वका॑मो॒ न धना॑ रुणद्धि॒ समित्तं रा॒या सृ॑जति स्व॒धावा॑न् ॥९॥\n\nगोभि॑ष्टरे॒माम॑तिं दु॒रेवां॒ यवे॑न॒ क्षुधं॑ पुरुहूत॒ विश्वा॑म् ।\n\nव॒यं राज॑भिः प्रथ॒मा धना॑न्य॒स्माके॑न वृ॒जने॑ना जयेम ॥१०॥\n\nबृह॒स्पति॑र्न॒: परि॑ पातु प॒श्चादु॒तोत्त॑रस्मा॒दध॑रादघा॒योः ।\n\nइन्द्र॑: पु॒रस्ता॑दु॒त म॑ध्य॒तो न॒: सखा॒ सखि॑भ्यो॒ वरि॑वः कृणोतु ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 43,
"text": "११ कृष्ण आङ्गिरसः। इन्द्रः। जगती,१०-११ त्रिष्टुप्।\n\nअच्छा॑ म॒ इन्द्रं॑ म॒तय॑: स्व॒र्विद॑: स॒ध्रीची॒र्विश्वा॑ उश॒तीर॑नूषत ।\n\nपरि॑ ष्वजन्ते॒ जन॑यो॒ यथा॒ पतिं॒ मर्यं॒ न शु॒न्ध्युं म॒घवा॑नमू॒तये॑ ॥१॥\n\nन घा॑ त्व॒द्रिगप॑ वेति मे॒ मन॒स्त्वे इत्कामं॑ पुरुहूत शिश्रय ।\n\nराजे॑व दस्म॒ नि ष॒दोऽधि॑ ब॒र्हिष्य॒स्मिन्त्सु सोमे॑ऽव॒पान॑मस्तु ते ॥२॥\n\nवि॒षू॒वृदिन्द्रो॒ अम॑तेरु॒त क्षु॒धः स इद्रा॒यो म॒घवा॒ वस्व॑ ईशते ।\n\nतस्येदि॒मे प्र॑व॒णे स॒प्त सिन्ध॑वो॒ वयो॑ वर्धन्ति वृष॒भस्य॑ शु॒ष्मिण॑: ॥३॥\n\nवयो॒ न वृ॒क्षं सु॑पला॒शमास॑द॒न्त्सोमा॑स॒ इन्द्रं॑ म॒न्दिन॑श्चमू॒षद॑: ।\n\nप्रैषा॒मनी॑कं॒ शव॑सा॒ दवि॑द्युतद्वि॒दत्स्व१र्मन॑वे॒ ज्योति॒रार्य॑म् ॥४॥\n\nकृ॒तं न श्व॒घ्नी वि चि॑नोति॒ देव॑ने सं॒वर्गं॒ यन्म॒घवा॒ सूर्यं॒ जय॑त् ।\n\n न तत्ते॑ अ॒न्यो अनु॑ वी॒र्यं॑ शक॒न्न पु॑रा॒णो म॑घव॒न्नोत नूत॑नः ॥५॥\n\nविशं॑विशं म॒घवा॒ पर्य॑शायत॒ जना॑नां॒ धेना॑ अव॒चाक॑श॒द्वृषा॑ ।\n\nयस्याह॑ श॒क्रः सव॑नेषु॒ रण्य॑ति॒ स ती॒व्रैः सोमै॑: सहते पृतन्य॒तः ॥६॥\n\nआपो॒ न सिन्धु॑म॒भि यत्स॒मक्ष॑र॒न्त्सोमा॑स॒ इन्द्रं॑ कु॒ल्या इ॑व ह्र॒दम् ।\n\nवर्ध॑न्ति॒ विप्रा॒ महो॑ अस्य॒ साद॑ने॒ यवं॒ न वृ॒ष्टिर्दि॒व्येन॒ दानु॑ना ॥७॥\n\nवृषा॒ न क्रु॒द्धः प॑तय॒द्रज॒:स्वा यो अ॒र्यप॑त्नी॒रकृ॑णोदि॒मा अ॒पः ।\n\nस सु॑न्व॒ते म॒घवा॑ जी॒रदा॑न॒वेऽवि॑न्द॒ज्ज्योति॒र्मन॑वे ह॒विष्म॑ते ॥८॥\n\nउज्जा॑यतां पर॒शुर्ज्योति॑षा स॒ह भू॒या ऋ॒तस्य॑ सु॒दुघा॑ पुराण॒वत् ।\n\nवि रो॑चतामरु॒षो भा॒नुना॒ शुचि॒: स्व१र्ण शु॒क्रं शु॑शुचीत॒ सत्प॑तिः ॥९॥\n\nगोभि॑ष्टरे॒माम॑तिं दु॒रेवां॒ यवे॑न॒ क्षुधं॑ पुरुहूत॒ विश्वा॑म् ।\n\nव॒यं राज॑भिः प्रथ॒मा धना॑न्य॒स्माके॑न वृ॒जने॑ना जयेम ॥१०॥\n\nबृह॒स्पति॑र्न॒: परि॑ पातु प॒श्चादु॒तोत्त॑रस्मा॒दध॑रादघा॒योः ।\n\nइन्द्र॑: पु॒रस्ता॑दु॒त म॑ध्य॒तो न॒: सखा॒ सखि॑भ्यो॒ वरि॑वः कृणोतु ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 44,
"text": "११ कृष्ण आङ्गिरसः। इन्द्रः। जगती,१-३,१०-११ त्रिष्टुप्।\n\nआ या॒त्विन्द्र॒: स्वप॑ति॒र्मदा॑य॒ यो धर्म॑णा तूतुजा॒नस्तुवि॑ष्मान् ।\n\nप्र॒त्व॒क्षा॒णो अति॒ विश्वा॒ सहां॑स्यपा॒रेण॑ मह॒ता वृष्ण्ये॑न ॥१॥\n\nसु॒ष्ठामा॒ रथ॑: सु॒यमा॒ हरी॑ ते मि॒म्यक्ष॒ वज्रो॑ नृपते॒ गभ॑स्तौ ।\n\nशीभं॑ राजन्त्सु॒पथा या॑ह्य॒र्वाङ्वर्धा॑म ते प॒पुषो॒ वृष्ण्या॑नि ॥२॥\n\nएन्द्र॒वाहो॑ नृ॒पतिं॒ वज्र॑बाहुमु॒ग्रमु॒ग्रास॑स्तवि॒षास॑ एनम् ।\n\nप्रत्व॑क्षसं वृष॒भं स॒त्यशु॑ष्म॒मेम॑स्म॒त्रा स॑ध॒मादो॑ वहन्तु ॥३॥\n\nए॒वा पतिं॑ द्रोण॒साचं॒ सचे॑तसमू॒र्जः स्क॒म्भं ध॒रुण॒ आ वृ॑षायसे ।\n\nओज॑: कृष्व॒ सं गृ॑भाय॒ त्वे अप्यसो॒ यथा॑ केनि॒पाना॑मि॒नो वृ॒धे ॥४॥\n\nगम॑न्न॒स्मे वसू॒न्या हि शंसि॑षं स्वा॒शिषं॒ भर॒मा या॑हि सो॒मिन॑: ।\n\nत्वमी॑शिषे॒ सास्मिन्ना स॑त्सि ब॒र्हिष्य॑नाधृ॒ष्या तव॒ पात्रा॑णि॒ धर्म॑णा ॥५॥\n\nपृथ॒क्प्राय॑न्प्रथ॒मा दे॒वहू॑त॒योऽकृ॑ण्वत श्रव॒स्या॑नि दु॒ष्टरा॑ ।\n\nन ये शे॒कुर्य॒ज्ञियां॒ नाव॑मा॒रुह॑मी॒र्मैव ते न्य॑विशन्त॒ केप॑यः ॥६॥\n\nए॒वैवापा॒गप॑रे सन्तु दू॒ढ्योऽश्वा॒ येषां॑ दु॒र्युज॑ आयुयु॒ज्रे ।\n\nइ॒त्था ये प्रागुप॑रे॒ सन्ति॑ दा॒वने॑ पु॒रूणि॒ यत्र॑ व॒युना॑नि॒ भोज॑ना ॥७॥\n\nगि॒रीँरज्रा॒न्रेज॑मानाँ अधारय॒द्द्यौः क्र॑न्दद॒न्तरि॑क्षाणि कोपयत् ।\n\nस॒मी॒ची॒ने धि॒षणे॒ वि ष्क॑भायति॒ वृष्ण॑: पी॒त्वा मद॑ उ॒क्थानि॑ शंसति ॥८॥\n\nइ॒मं बि॑भर्मि॒ सुकृ॑तं ते अङ्कु॒शं येना॑रु॒जासि॑ मघवञ्छफा॒रुज॑: ।\n\nअ॒स्मिन्त्सु ते॒ सव॑ने अस्त्वो॒क्यं॑ सु॒त इ॒ष्टौ म॑घवन्बो॒ध्याभ॑गः ॥९॥\n\nगोभि॑ष्टरे॒माम॑तिं दु॒रेवां॒ यवे॑न॒ क्षुधं॑ पुरुहूत॒ विश्वा॑म् ।\n\nव॒यं राज॑भिः प्रथ॒मा धना॑न्य॒स्माके॑न वृ॒जने॑ना जयेम ॥१०॥\n\nबृह॒स्पति॑र्न॒: परि॑ पातु प॒श्चादु॒तोत्त॑रस्मा॒दध॑रादघा॒योः ।\n\nइन्द्र॑: पु॒रस्ता॑दु॒त म॑ध्य॒तो न॒: सखा॒ सखि॑भ्यो॒ वरि॑वः कृणोतु ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 45,
"text": "१२ वत्सप्रिर्भालन्दनः। अग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nदि॒वस्परि॑ प्रथ॒मं ज॑ज्ञे अ॒ग्निर॒स्मद्द्वि॒तीयं॒ परि॑ जा॒तवे॑दाः ।\n\nतृ॒तीय॑म॒प्सु नृ॒मणा॒ अज॑स्र॒मिन्धा॑न एनं जरते स्वा॒धीः ॥१॥\n\nवि॒द्मा ते॑ अग्ने त्रे॒धा त्र॒याणि॑ वि॒द्मा ते॒ धाम॒ विभृ॑ता पुरु॒त्रा ।\n\nवि॒द्मा ते॒ नाम॑ पर॒मं गुहा॒ यद्वि॒द्मा तमुत्सं॒ यत॑ आज॒गन्थ॑ ॥२॥\n\nस॒मु॒द्रे त्वा॑ नृ॒मणा॑ अ॒प्स्व१न्तर्नृ॒चक्षा॑ ईधे दि॒वो अ॑ग्न॒ ऊध॑न् ।\n\nतृ॒तीये॑ त्वा॒ रज॑सि तस्थि॒वांस॑म॒पामु॒पस्थे॑ महि॒षा अ॑वर्धन् ॥३॥\n\nअक्र॑न्दद॒ग्निः स्त॒नय॑न्निव॒ द्यौः क्षामा॒ रेरि॑हद्वी॒रुध॑: सम॒ञ्जन् ।\n\nस॒द्यो ज॑ज्ञा॒नो वि हीमि॒द्धो अख्य॒दा रोद॑सी भा॒नुना॑ भात्य॒न्तः ॥४॥\n\nश्री॒णामु॑दा॒रो ध॒रुणो॑ रयी॒णां म॑नी॒षाणां॒ प्रार्प॑ण॒: सोम॑गोपाः ।\n\nवसु॑: सू॒नुः सह॑सो अ॒प्सु राजा॒ वि भा॒त्यग्र॑ उ॒षसा॑मिधा॒नः ॥५॥\n\nविश्व॑स्य के॒तुर्भुव॑नस्य॒ गर्भ॒ आ रोद॑सी अपृणा॒ज्जाय॑मानः ।\n\nवी॒ळुं चि॒दद्रि॑मभिनत्परा॒यञ्जना॒ यद॒ग्निमय॑जन्त॒ पञ्च॑ ॥६॥\n\nउ॒शिक्पा॑व॒को अ॑र॒तिः सु॑मे॒धा मर्ते॑ष्व॒ग्निर॒मृतो॒ नि धा॑यि ।\n\nइय॑र्ति धू॒मम॑रु॒षं भरि॑भ्र॒दुच्छु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॒ द्यामिन॑क्षन् ॥७॥\n\nदृ॒शा॒नो रु॒क्म उ॑र्वि॒या व्य॑द्यौद्दु॒र्मर्ष॒मायु॑: श्रि॒ये रु॑चा॒नः ।\n\nअ॒ग्निर॒मृतो॑ अभव॒द्वयो॑भि॒र्यदे॑नं॒ द्यौर्ज॒नय॑त्सु॒रेता॑: ॥८॥\n\nयस्ते॑ अ॒द्य कृ॒णव॑द्भद्रशोचेऽपू॒पं दे॑व घृ॒तव॑न्तमग्ने ।\n\nप्र तं न॑य प्रत॒रं वस्यो॒ अच्छा॒ऽभि सु॒म्नं दे॒वभ॑क्तं यविष्ठ ॥९॥\n\nआ तं भ॑ज सौश्रव॒सेष्व॑ग्न उ॒क्थउ॑क्थ॒ आ भ॑ज श॒स्यमा॑ने ।\n\nप्रि॒यः सूर्ये॑ प्रि॒यो अ॒ग्ना भ॑वा॒त्युज्जा॒तेन॑ भि॒नद॒दुज्जनि॑त्वैः ॥१०॥\n\nत्वाम॑ग्ने॒ यज॑माना॒ अनु॒ द्यून्विश्वा॒ वसु॑ दधिरे॒ वार्या॑णि ।\n\nत्वया॑ स॒ह द्रवि॑णमि॒च्छमा॑ना व्र॒जं गोम॑न्तमु॒शिजो॒ वि व॑व्रुः ॥११॥\n\nअस्ता॑व्य॒ग्निर्न॒रां सु॒शेवो॑ वैश्वान॒र ऋषि॑भि॒: सोम॑गोपाः ।\n\nअ॒द्वे॒षे द्यावा॑पृथि॒वी हु॑वेम॒ देवा॑ ध॒त्त र॒यिम॒स्मे सु॒वीर॑म् ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 46,
"text": "१० वत्सप्रिर्भालन्दनः। अग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nप्र होता॑ जा॒तो म॒हान्न॑भो॒विन्नृ॒षद्वा॑ सीदद॒पामु॒पस्थे॑ ।\n\nदधि॒र्यो धायि॒ स ते॒ वयां॑सि य॒न्ता वसू॑नि विध॒ते त॑नू॒पाः ॥१॥\n\nइ॒मं वि॒धन्तो॑ अ॒पां स॒धस्थे॑ प॒शुं न न॒ष्टं प॒दैरनु॑ ग्मन् ।\n\nगुहा॒ चत॑न्तमु॒शिजो॒ नमो॑भिरि॒च्छन्तो॒ धीरा॒ भृग॑वोऽविन्दन् ॥२॥\n\nइ॒मं त्रि॒तो भूर्य॑विन्ददि॒च्छन्वै॑भूव॒सो मू॒र्धन्यघ्न्या॑याः ।\n\nस शेवृ॑धो जा॒त आ ह॒र्म्येषु॒ नाभि॒र्युवा॑ भवति रोच॒नस्य॑ ॥३॥\n\nम॒न्द्रं होता॑रमु॒शिजो॒ नमो॑भि॒: प्राञ्चं॑ य॒ज्ञं ने॒तार॑मध्व॒राणा॑म् ।\n\nवि॒शाम॑कृण्वन्नर॒तिं पा॑व॒कं ह॑व्य॒वाहं॒ दध॑तो॒ मानु॑षेषु ॥४॥\n\nप्र भू॒र्जय॑न्तं म॒हां वि॑पो॒धां मू॒रा अमू॑रं पु॒रां द॒र्माण॑म् ।\n\nनय॑न्तो॒ गर्भं॑ व॒नां धियं॑ धु॒र्हिरि॑श्मश्रुं॒ नार्वा॑णं॒ धन॑र्चम् ॥५॥\n\nनि प॒स्त्या॑सु त्रि॒तः स्त॑भू॒यन्परि॑वीतो॒ योनौ॑ सीदद॒न्तः ।\n\nअत॑: सं॒गृभ्या॑ वि॒शां दमू॑ना॒ विध॑र्मणाय॒न्त्रैरी॑यते॒ नॄन् ॥६॥\n\nअ॒स्याजरा॑सो द॒माम॒रित्रा॑ अ॒र्चद्धू॑मासो अ॒ग्नय॑: पाव॒काः ।\n\nश्वि॒ती॒चय॑: श्वा॒त्रासो॑ भुर॒ण्यवो॑ वन॒र्षदो॑ वा॒यवो॒ न सोमा॑: ॥७॥\n\nप्र जि॒ह्वया॑ भरते॒ वेपो॑ अ॒ग्निः प्र व॒युना॑नि॒ चेत॑सा पृथि॒व्याः ।\n\nतमा॒यव॑: शु॒चय॑न्तं पाव॒कं म॒न्द्रं होता॑रं दधिरे॒ यजि॑ष्ठम् ॥८॥\n\nद्यावा॒ यम॒ग्निं पृ॑थि॒वी जनि॑ष्टा॒माप॒स्त्वष्टा॒ भृग॑वो॒ यं सहो॑भिः ।\n\nई॒ळेन्यं॑ प्रथ॒मं मा॑त॒रिश्वा॑ दे॒वास्त॑तक्षु॒र्मन॑वे॒ यज॑त्रम् ॥९॥\n\nयं त्वा॑ दे॒वा द॑धि॒रे ह॑व्य॒वाहं॑ पुरु॒स्पृहो॒ मानु॑षासो॒ यज॑त्रम् ।\n\nस याम॑न्नग्ने स्तुव॒ते वयो॑ धा॒: प्र दे॑व॒यन्य॒शस॒: सं हि पू॒र्वीः ॥१०॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 47,
"text": "८ सप्तगुरांगिरसः। वैकुण्ठ इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nज॒गृ॒भ्मा ते॒ दक्षि॑णमिन्द्र॒ हस्तं॑ वसू॒यवो॑ वसुपते॒ वसू॑नाम् ।\n\nवि॒द्मा हि त्वा॒ गोप॑तिं शूर॒ गोना॑म॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥१॥\n\nस्वा॒यु॒धं स्वव॑सं सुनी॒थं चतु॑:समुद्रं ध॒रुणं॑ रयी॒णाम् ।\n\nच॒र्कृत्यं॒ शंस्यं॒ भूरि॑वारम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥२॥\n\nसु॒ब्रह्मा॑णं दे॒वव॑न्तं बृ॒हन्त॑मु॒रुं ग॑भी॒रं पृ॒थुबु॑ध्नमिन्द्र ।\n\nश्रु॒तऋ॑षिमु॒ग्रम॑भिमाति॒षाह॑म॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥३॥\n\nस॒नद्वा॑जं॒ विप्र॑वीरं॒ तरु॑त्रं धन॒स्पृतं॑ शूशु॒वांसं॑ सु॒दक्ष॑म् ।\n\nद॒स्यु॒हनं॑ पू॒र्भिद॑मिन्द्र स॒त्यम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥४॥\n\nअश्वा॑वन्तं र॒थिनं॑ वी॒रव॑न्तं सह॒स्रिणं॑ श॒तिनं॒ वाज॑मिन्द्र ।\n\nभ॒द्रव्रा॑तं॒ विप्र॑वीरं स्व॒र्षाम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥५॥\n\nप्र स॒प्तगु॑मृ॒तधी॑तिं सुमे॒धां बृह॒स्पतिं॑ म॒तिरच्छा॑ जिगाति ।\n\nय आ॑ङ्गिर॒सो नम॑सोप॒सद्यो॒ऽस्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥६॥\n\nवनी॑वानो॒ मम॑ दू॒तास॒ इन्द्रं॒ स्तोमा॑श्चरन्ति सुम॒तीरि॑या॒नाः ।\n\nहृ॒दि॒स्पृशो॒ मन॑सा व॒च्यमा॑ना अ॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥७॥\n\nयत्त्वा॒ यामि॑ द॒द्धि तन्न॑ इन्द्र बृ॒हन्तं॒ क्षय॒मस॑मं॒ जना॑नाम् ।\n\nअ॒भि तद्द्यावा॑पृथि॒वी गृ॑णीताम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 48,
"text": "वैकुण्ठ इन्द्रः। इन्द्रः। जगतीः, ७, १०-११ त्रिष्टुप्।\n\nअ॒हं भु॑वं॒ वसु॑नः पू॒र्व्यस्पति॑र॒हं धना॑नि॒ सं ज॑यामि॒ शश्व॑तः ।\n\nमां ह॑वन्ते पि॒तरं॒ न ज॒न्तवो॒ऽहं दा॒शुषे॒ वि भ॑जामि॒ भोज॑नम् ॥१॥\n\nअ॒हमिन्द्रो॒ रोधो॒ वक्षो॒ अथ॑र्वणस्त्रि॒ताय॒ गा अ॑जनय॒महे॒रधि॑ ।\n\nअ॒हं दस्यु॑भ्य॒: परि॑ नृ॒म्णमा द॑दे गो॒त्रा शिक्ष॑न्दधी॒चे मा॑त॒रिश्व॑ने ॥२॥\n\nमह्यं॒ त्वष्टा॒ वज्र॑मतक्षदाय॒सं मयि॑ दे॒वासो॑ऽवृज॒न्नपि॒ क्रतु॑म् ।\n\nममानी॑कं॒ सूर्य॑स्येव दु॒ष्टरं॒ मामार्य॑न्ति कृ॒तेन॒ कर्त्वे॑न च ॥३॥\n\nअ॒हमे॒तं ग॒व्यय॒मश्व्यं॑ प॒शुं पु॑री॒षिणं॒ साय॑केना हिर॒ण्यय॑म् ।\n\nपु॒रू स॒हस्रा॒ नि शि॑शामि दा॒शुषे॒ यन्मा॒ सोमा॑स उ॒क्थिनो॒ अम॑न्दिषुः ॥४॥\n\nअ॒हमिन्द्रो॒ न परा॑ जिग्य॒ इद्धनं॒ न मृ॒त्यवेऽव॑ तस्थे॒ कदा॑ च॒न ।\n\n सोम॒मिन्मा॑ सु॒न्वन्तो॑ याचता॒ वसु॒ न मे॑ पूरवः स॒ख्ये रि॑षाथन ॥५॥\n\nअ॒हमे॒ताञ्छाश्व॑सतो॒ द्वाद्वेन्द्रं॒ ये वज्रं॑ यु॒धयेऽकृ॑ण्वत ।\n\nआ॒ह्वय॑मानाँ॒ अव॒ हन्म॑नाहनं दृ॒ळ्हा वद॒न्नन॑मस्युर्नम॒स्विन॑: ॥६॥\n\nअ॒भी॒३दमेक॒मेको॑ अस्मि नि॒ष्षाळ॒भी द्वा किमु॒ त्रय॑: करन्ति ।\n\nखले॒ न प॒र्षान्प्रति॑ हन्मि॒ भूरि॒ किं मा॑ निन्दन्ति॒ शत्र॑वोऽनि॒न्द्राः ॥७॥\n\nअ॒हं गु॒ङ्गुभ्यो॑ अतिथि॒ग्वमिष्क॑र॒मिषं॒ न वृ॑त्र॒तुरं॑ वि॒क्षु धा॑रयम् ।\n\nयत्प॑र्णय॒घ्न उ॒त वा॑ करञ्ज॒हे प्राहं म॒हे वृ॑त्र॒हत्ये॒ अशु॑श्रवि ॥८॥\n\nप्र मे॒ नमी॑ सा॒प्य इ॒षे भु॒जे भू॒द्गवा॒मेषे॑ स॒ख्या कृ॑णुत द्वि॒ता ।\n\nदि॒द्युं यद॑स्य समि॒थेषु॑ मं॒हय॒मादिदे॑नं॒ शंस्य॑मु॒क्थ्यं॑ करम् ॥९॥\n\nप्र नेम॑स्मिन्ददृशे॒ सोमो॑ अ॒न्तर्गो॒पा नेम॑मा॒विर॒स्था कृ॑णोति ।\n\nस ति॒ग्मशृ॑ङ्गं वृष॒भं युयु॑त्सन्द्रु॒हस्त॑स्थौ बहु॒ले ब॒द्धो अ॒न्तः ॥१०॥\n\nआ॒दि॒त्यानां॒ वसू॑नां रु॒द्रिया॑णां दे॒वो दे॒वानां॒ न मि॑नामि॒ धाम॑ ।\n\nते मा॑ भ॒द्राय॒ शव॑से ततक्षु॒रप॑राजित॒मस्तृ॑त॒मषा॑ळ्हम् ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 49,
"text": "११ वैकुण्ठ इन्द्रः। इन्द्रः। जगतीः, २-११ त्रिष्टुप्।\n\nअ॒हं दां॑ गृण॒ते पूर्व्यं॒ वस्व॒हं ब्रह्म॑ कृणवं॒ मह्यं॒ वर्ध॑नम् ।\n\nअ॒हं भु॑वं॒ यज॑मानस्य चोदि॒ताय॑ज्वनः साक्षि॒ विश्व॑स्मि॒न्भरे॑ ॥१॥\n\nमां धु॒रिन्द्रं॒ नाम॑ दे॒वता॑ दि॒वश्च॒ ग्मश्चा॒पां च॑ ज॒न्तव॑: ।\n\nअ॒हं हरी॒ वृष॑णा॒ विव्र॑ता र॒घू अ॒हं वज्रं॒ शव॑से धृ॒ष्ण्वा द॑दे ॥२॥\n\nअ॒हमत्कं॑ क॒वये॑ शिश्नथं॒ हथै॑र॒हं कुत्स॑मावमा॒भिरू॒तिभि॑: ।\n\nअ॒हं शुष्ण॑स्य॒ श्नथि॑ता॒ वध॑र्यमं॒ न यो र॒र आर्यं॒ नाम॒ दस्य॑वे ॥३॥\n\nअ॒हं पि॒तेव॑ वेत॒सूँर॒भिष्ट॑ये॒ तुग्रं॒ कुत्सा॑य॒ स्मदि॑भं च रन्धयम् ।\n\nअ॒हं भु॑वं॒ यज॑मानस्य रा॒जनि॒ प्र यद्भरे॒ तुज॑ये॒ न प्रि॒याधृषे॑ ॥४॥\n\nअ॒हं र॑न्धयं॒ मृग॑यं श्रु॒तर्व॑णे॒ यन्माजि॑हीत व॒युना॑ च॒नानु॒षक् ।\n\nअ॒हं वे॒शं न॒म्रमा॒यवे॑ऽकरम॒हं सव्या॑य॒ पड्गृ॑भिमरन्धयम् ॥५॥\n\nअ॒हं स यो नव॑वास्त्वं बृ॒हद्र॑थं॒ सं वृ॒त्रेव॒ दासं॑ वृत्र॒हारु॑जम् ।\n\nयद्व॒र्धय॑न्तं प्र॒थय॑न्तमानु॒षग्दू॒रे पा॒रे रज॑सो रोच॒नाक॑रम् ॥६॥\n\nअ॒हं सूर्य॑स्य॒ परि॑ याम्या॒शुभि॒: प्रैत॒शेभि॒र्वह॑मान॒ ओज॑सा ।\n\nयन्मा॑ सा॒वो मनु॑ष॒ आह॑ नि॒र्णिज॒ ऋध॑क्कृषे॒ दासं॒ कृत्व्यं॒ हथै॑: ॥७॥\n\nअ॒हं स॑प्त॒हा नहु॑षो॒ नहु॑ष्टर॒: प्राश्रा॑वयं॒ शव॑सा तु॒र्वशं॒ यदु॑म् ।\n\nअ॒हं न्य१न्यं सह॑सा॒ सह॑स्करं॒ नव॒ व्राध॑तो नव॒तिं च॑ वक्षयम् ॥८॥\n\nअ॒हं स॒प्त स्र॒वतो॑ धारयं॒ वृषा॑ द्रवि॒त्न्व॑: पृथि॒व्यां सी॒रा अधि॑ ।\n\nअ॒हमर्णां॑सि॒ वि ति॑रामि सु॒क्रतु॑र्यु॒धा वि॑दं॒ मन॑वे गा॒तुमि॒ष्टये॑ ॥९॥\n\nअ॒हं तदा॑सु धारयं॒ यदा॑सु॒ न दे॒वश्च॒न त्वष्टाधा॑रय॒द्रुश॑त् ।\n\nस्पा॒र्हं गवा॒मूध॑स्सु व॒क्षणा॒स्वा मधो॒र्मधु॒ श्वात्र्यं॒ सोम॑मा॒शिर॑म् ॥१०॥\n\nए॒वा दे॒वाँ इन्द्रो॑ विव्ये॒ नॄन्प्र च्यौ॒त्नेन॑ म॒घवा॑ स॒त्यरा॑धाः ।\n\nविश्वेत्ता ते॑ हरिवः शचीवो॒ऽभि तु॒रास॑: स्वयशो गृणन्ति ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 50,
"text": "७ वैकुण्ठ इन्द्रः। इन्द्रः। जगतीः, ३,४ अभिसारिणी, ५ त्रिष्टुप्।\n\nप्र वो॑ म॒हे मन्द॑माना॒यान्ध॒सोऽर्चा॑ वि॒श्वान॑राय विश्वा॒भुवे॑ ।\n\nइन्द्र॑स्य॒ यस्य॒ सुम॑खं॒ सहो॒ महि॒ श्रवो॑ नृ॒म्णं च॒ रोद॑सी सप॒र्यत॑: ॥१॥\n\nसो चि॒न्नु सख्या॒ नर्य॑ इ॒नः स्तु॒तश्च॒र्कृत्य॒ इन्द्रो॒ माव॑ते॒ नरे॑ ।\n\nविश्वा॑सु धू॒र्षु वा॑ज॒कृत्ये॑षु सत्पते वृ॒त्रे वा॒प्स्व१भि शू॑र मन्दसे ॥२॥\n\nके ते नर॑ इन्द्र॒ ये त॑ इ॒षे ये ते॑ सु॒म्नं स॑ध॒न्य१मिय॑क्षान् ।\n\n के ते॒ वाजा॑यासु॒र्या॑य हिन्विरे॒ के अ॒प्सु स्वासू॒र्वरा॑सु॒ पौंस्ये॑ ॥३॥\n\nभुव॒स्त्वमि॑न्द्र॒ ब्रह्म॑णा म॒हान्भुवो॒ विश्वे॑षु॒ सव॑नेषु य॒ज्ञिय॑: ।\n\nभुवो॒ नॄँश्च्यौ॒त्नो विश्व॑स्मि॒न्भरे॒ ज्येष्ठ॑श्च॒ मन्त्रो॑ विश्वचर्षणे ॥४॥\n\nअवा॒ नु कं॒ ज्याया॑न्य॒ज्ञव॑नसो म॒हीं त॒ ओमा॑त्रां कृ॒ष्टयो॑ विदुः ।\n\nअसो॒ नु क॑म॒जरो॒ वर्धा॑श्च॒ विश्वेदे॒ता सव॑ना तूतु॒मा कृ॑षे ॥५॥\n\nए॒ता विश्वा॒ सव॑ना तूतु॒मा कृ॑षे स्व॒यं सू॑नो सहसो॒ यानि॑ दधि॒षे ।\n\nवरा॑य ते॒ पात्रं॒ धर्म॑णे॒ तना॑ य॒ज्ञो मन्त्रो॒ ब्रह्मोद्य॑तं॒ वच॑: ॥६॥\n\nये ते॑ विप्र ब्रह्म॒कृत॑: सु॒ते सचा॒ वसू॑नां च॒ वसु॑नश्च दा॒वने॑ ।\n\nप्र ते सु॒म्नस्य॒ मन॑सा प॒था भु॑व॒न्मदे॑ सु॒तस्य॑ सो॒म्यस्यान्ध॑सः ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 51,
"text": "(९) १,३,५,७,९देवाः, २,४,६,८, सौचीकोऽग्निः। २,,४,६,८ देवाः १,३,५,७,९, अग्निः।त्रिष्टुप्।\n\nम॒हत्तदुल्बं॒ स्थवि॑रं॒ तदा॑सी॒द्येनावि॑ष्टितः प्रवि॒वेशि॑था॒पः ।\n\nविश्वा॑ अपश्यद्बहु॒धा ते॑ अग्ने॒ जात॑वेदस्त॒न्वो॑ दे॒व एक॑: ॥१॥\n\nको मा॑ ददर्श कत॒मः स दे॒वो यो मे॑ त॒न्वो॑ बहु॒धा प॒र्यप॑श्यत् ।\n\nक्वाह॑ मित्रावरुणा क्षियन्त्य॒ग्नेर्विश्वा॑: स॒मिधो॑ देव॒यानी॑: ॥२॥\n\nऐच्छा॑म त्वा बहु॒धा जा॑तवेद॒: प्रवि॑ष्टमग्ने अ॒प्स्वोष॑धीषु ।\n\nतं त्वा॑ य॒मो अ॑चिकेच्चित्रभानो दशान्तरु॒ष्याद॑ति॒रोच॑मानम् ॥३॥\n\nहो॒त्राद॒हं व॑रुण॒ बिभ्य॑दायं॒ नेदे॒व मा॑ यु॒नज॒न्नत्र॑ दे॒वाः ।\n\nतस्य॑ मे त॒न्वो॑ बहु॒धा निवि॑ष्टा ए॒तमर्थं॒ न चि॑केता॒हम॒ग्निः ॥४॥\n\nएहि॒ मनु॑र्देव॒युर्य॒ज्ञका॑मोऽरं॒कृत्या॒ तम॑सि क्षेष्यग्ने ।\n\nसु॒गान्प॒थः कृ॑णुहि देव॒याना॒न्वह॑ ह॒व्यानि॑ सुमन॒स्यमा॑नः ॥५॥\n\nअ॒ग्नेः पूर्वे॒ भ्रात॑रो॒ अर्थ॑मे॒तं र॒थीवाध्वा॑न॒मन्वाव॑रीवुः ।\n\nतस्मा॑द्भि॒या व॑रुण दू॒रमा॑यं गौ॒रो न क्षे॒प्नोर॑विजे॒ ज्याया॑: ॥६॥\n\nकु॒र्मस्त॒ आयु॑र॒जरं॒ यद॑ग्ने॒ यथा॑ यु॒क्तो जा॑तवेदो॒ न रिष्या॑: ।\n\nअथा॑ वहासि सुमन॒स्यमा॑नो भा॒गं दे॒वेभ्यो॑ ह॒विष॑: सुजात ॥७॥\n\nप्र॒या॒जान्मे॑ अनुया॒जाँश्च॒ केव॑ला॒नूर्ज॑स्वन्तं ह॒विषो॑ दत्त भा॒गम् ।\n\nघृ॒तं चा॒पां पुरु॑षं॒ चौष॑धीनाम॒ग्नेश्च॑ दी॒र्घमायु॑रस्तु देवाः ॥८॥\n\nतव॑ प्रया॒जा अ॑नुया॒जाश्च॒ केव॑ल॒ ऊर्ज॑स्वन्तो ह॒विष॑: सन्तु भा॒गाः ।\n\n तवा॑ग्ने य॒ज्ञो॒३ऽयम॑स्तु॒ सर्व॒स्तुभ्यं॑ नमन्तां प्र॒दिश॒श्चत॑स्रः ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 52,
"text": "६ सौचीकोऽग्निः। विश्वेदेवाः। त्रिष्टुप्।\n\nविश्वे॑ देवाः शा॒स्तन॑ मा॒ यथे॒ह होता॑ वृ॒तो म॒नवै॒ यन्नि॒षद्य॑ ।\n\nप्र मे॑ ब्रूत भाग॒धेयं॒ यथा॑ वो॒ येन॑ प॒था ह॒व्यमा वो॒ वहा॑नि ॥१॥\n\nअ॒हं होता॒ न्य॑सीदं॒ यजी॑या॒न्विश्वे॑ दे॒वा म॒रुतो॑ मा जुनन्ति ।\n\nअह॑रहरश्वि॒नाध्व॑र्यवं वां ब्र॒ह्मा स॒मिद्भ॑वति॒ साहु॑तिर्वाम् ॥२॥\n\nअ॒यं यो होता॒ किरु॒ स य॒मस्य॒ कमप्यू॑हे॒ यत्स॑म॒ञ्जन्ति॑ दे॒वाः ।\n\nअह॑रहर्जायते मा॒सिमा॒स्यथा॑ दे॒वा द॑धिरे हव्य॒वाह॑म् ॥३॥\n\nमां दे॒वा द॑धिरे हव्य॒वाह॒मप॑म्लुक्तं ब॒हु कृ॒च्छ्रा चर॑न्तम् ।\n\nअ॒ग्निर्वि॒द्वान्य॒ज्ञं न॑: कल्पयाति॒ पञ्च॑यामं त्रि॒वृतं॑ स॒प्तत॑न्तुम् ॥४॥\n\nआ वो॑ यक्ष्यमृत॒त्वं सु॒वीरं॒ यथा॑ वो देवा॒ वरि॑व॒: करा॑णि ।\n\nआ बा॒ह्वोर्वज्र॒मिन्द्र॑स्य धेया॒मथे॒मा विश्वा॒: पृत॑ना जयाति ॥५॥\n\nत्रीणि॑ श॒ता त्री स॒हस्रा॑ण्य॒ग्निं त्रिं॒शच्च॑ दे॒वा नव॑ चासपर्यन् ।\n\nऔक्ष॑न्घृ॒तैरस्तृ॑णन्ब॒र्हिर॑स्मा॒ आदिद्धोता॑रं॒ न्य॑सादयन्त ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 53,
"text": "११ देवाः,४-५ सौचीकोऽग्निः। अग्निः,४-५ देवाः। १-५ ,८त्रिष्टुप् , ६-७,९-११ जगती।\n\nयमैच्छा॑म॒ मन॑सा॒ सो॒३ऽयमागा॑द्य॒ज्ञस्य॑ वि॒द्वान्परु॑षश्चिकि॒त्वान् ।\n\nस नो॑ यक्षद्दे॒वता॑ता॒ यजी॑या॒न्नि हि षत्स॒दन्त॑र॒: पूर्वो॑ अ॒स्मत् ॥१॥\n\nअरा॑धि॒ होता॑ नि॒षदा॒ यजी॑यान॒भि प्रयां॑सि॒ सुधि॑तानि॒ हि ख्यत् ।\n\nयजा॑महै य॒ज्ञिया॒न्हन्त॑ दे॒वाँ ईळा॑महा॒ ईड्याँ॒ आज्ये॑न ॥२॥\n\nसा॒ध्वीम॑कर्दे॒ववी॑तिं नो अ॒द्य य॒ज्ञस्य॑ जि॒ह्वाम॑विदाम॒ गुह्या॑म् ।\n\nस आयु॒रागा॑त्सुर॒भिर्वसा॑नो भ॒द्राम॑कर्दे॒वहू॑तिं नो अ॒द्य ॥३॥\n\nतद॒द्य वा॒चः प्र॑थ॒मं म॑सीय॒ येनासु॑राँ अ॒भि दे॒वा असा॑म ।\n\nऊर्जा॑द उ॒त य॑ज्ञियास॒: पञ्च॑ जना॒ मम॑ हो॒त्रं जु॑षध्वम् ॥४॥\n\nपञ्च॒ जना॒ मम॑ हो॒त्रं जु॑षन्तां॒ गोजा॑ता उ॒त ये य॒ज्ञिया॑सः ।\n\nपृ॒थि॒वी न॒: पार्थि॑वात्पा॒त्वंह॑सो॒ऽन्तरि॑क्षं दि॒व्यात्पा॑त्व॒स्मान् ॥५॥\n\nतन्तुं॑ त॒न्वन्रज॑सो भा॒नुमन्वि॑हि॒ ज्योति॑ष्मतः प॒थो र॑क्ष धि॒या कृ॒तान् ।\n\nअ॒नु॒ल्ब॒णं व॑यत॒ जोगु॑वा॒मपो॒ मनु॑र्भव ज॒नया॒ दैव्यं॒ जन॑म् ॥६॥\n\nअ॒क्षा॒नहो॑ नह्यतनो॒त सो॑म्या॒ इष्कृ॑णुध्वं रश॒ना ओत पिं॑शत ।\n\nअ॒ष्टाव॑न्धुरं वहता॒भितो॒ रथं॒ येन॑ दे॒वासो॒ अन॑यन्न॒भि प्रि॒यम् ॥७॥\n\nअश्म॑न्वती रीयते॒ सं र॑भध्व॒मुत्ति॑ष्ठत॒ प्र त॑रता सखायः ।\n\nअत्रा॑ जहाम॒ ये अस॒न्नशे॑वाः शि॒वान्व॒यमुत्त॑रेमा॒भि वाजा॑न् ॥८॥\n\nत्वष्टा॑ मा॒या वे॑द॒पसा॑म॒पस्त॑मो॒ बिभ्र॒त्पात्रा॑ देव॒पाना॑नि॒ शंत॑मा ।\n\nशिशी॑ते नू॒नं प॑र॒शुं स्वा॑य॒सं येन॑ वृ॒श्चादेत॑शो॒ ब्रह्म॑ण॒स्पति॑: ॥९॥\n\nस॒तो नू॒नं क॑वय॒: सं शि॑शीत॒ वाशी॑भि॒र्याभि॑र॒मृता॑य॒ तक्ष॑थ ।\n\nवि॒द्वांस॑: प॒दा गुह्या॑नि कर्तन॒ येन॑ दे॒वासो॑ अमृत॒त्वमा॑न॒शुः ॥१०\n\nगर्भे॒ योषा॒मद॑धुर्व॒त्समा॒सन्य॑पी॒च्ये॑न॒ मन॑सो॒त जि॒ह्वया॑ ।\n\nस वि॒श्वाहा॑ सु॒मना॑ यो॒ग्या अ॒भि सि॑षा॒सनि॑र्वनते का॒र इज्जिति॑म् ॥११"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 54,
"text": "६ बृहदुक्थो वामदेव्यः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nतां सु ते॑ की॒र्तिं म॑घवन्महि॒त्वा यत्त्वा॑ भी॒ते रोद॑सी॒ अह्व॑येताम् ।\n\nप्रावो॑ दे॒वाँ आति॑रो॒ दास॒मोज॑: प्र॒जायै॑ त्वस्यै॒ यदशि॑क्ष इन्द्र ॥१॥\n\nयदच॑रस्त॒न्वा॑ वावृधा॒नो बला॑नीन्द्र प्रब्रुवा॒णो जने॑षु ।\n\nमा॒येत्सा ते॒ यानि॑ यु॒द्धान्या॒हुर्नाद्य शत्रुं॑ न॒नु पु॒रा वि॑वित्से ॥२॥\n\nक उ॒ नु ते॑ महि॒मन॑: समस्या॒ऽस्मत्पूर्व॒ ऋष॒योऽन्त॑मापुः ।\n\nयन्मा॒तरं॑ च पि॒तरं॑ च सा॒कमज॑नयथास्त॒न्व१: स्वाया॑: ॥३॥\n\nच॒त्वारि॑ ते असु॒र्या॑णि॒ नामाऽदा॑भ्यानि महि॒षस्य॑ सन्ति ।\n\nत्वम॒ङ्ग तानि॒ विश्वा॑नि वित्से॒ येभि॒: कर्मा॑णि मघवञ्च॒कर्थ॑ ॥४॥\n\nत्वं विश्वा॑ दधिषे॒ केव॑लानि॒ यान्या॒विर्या च॒ गुहा॒ वसू॑नि ।\n\nकाम॒मिन्मे॑ मघव॒न्मा वि ता॑री॒स्त्वमा॑ज्ञा॒ता त्वमि॑न्द्रासि दा॒ता ॥५॥\n\nयो अद॑धा॒ज्ज्योति॑षि॒ ज्योति॑र॒न्तर्यो असृ॑ज॒न्मधु॑ना॒ सं मधू॑नि ।\n\nअध॑ प्रि॒यं शू॒षमिन्द्रा॑य॒ मन्म॑ ब्रह्म॒कृतो॑ बृ॒हदु॑क्थादवाचि ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 55,
"text": "८ बृहदुक्थो वामदेव्यः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nदू॒रे तन्नाम॒ गुह्यं॑ परा॒चैर्यत्त्वा॑ भी॒ते अह्व॑येतां वयो॒धै ।\n\nउद॑स्तभ्नाः पृथि॒वीं द्याम॒भीके॒ भ्रातु॑: पु॒त्रान्म॑घवन्तित्विषा॒णः ॥१॥\n\nम॒हत्तन्नाम॒ गुह्यं॑ पुरु॒स्पृग्येन॑ भू॒तं ज॒नयो॒ येन॒ भव्य॑म् ।\n\nप्र॒त्नं जा॒तं ज्योति॒र्यद॑स्य प्रि॒यं प्रि॒याः सम॑विशन्त॒ पञ्च॑ ॥२॥\n\nआ रोद॑सी अपृणा॒दोत मध्यं॒ पञ्च॑ दे॒वाँ ऋ॑तु॒शः स॒प्तस॑प्त ।\n\nचतु॑स्त्रिंशता पुरु॒धा वि च॑ष्टे॒ सरू॑पेण॒ ज्योति॑षा॒ विव्र॑तेन ॥३॥\n\nयदु॑ष॒ औच्छ॑: प्रथ॒मा वि॒भाना॒मज॑नयो॒ येन॑ पु॒ष्टस्य॑ पु॒ष्टम् ।\n\nयत्ते॑ जामि॒त्वमव॑रं॒ पर॑स्या म॒हन्म॑ह॒त्या अ॑सुर॒त्वमेक॑म् ॥४॥\n\nवि॒धुं द॑द्रा॒णं सम॑ने बहू॒नां युवा॑नं॒ सन्तं॑ पलि॒तो ज॑गार ।\n\nदे॒वस्य॑ पश्य॒ काव्यं॑ महि॒त्वाऽद्या म॒मार॒ स ह्यः समा॑न ॥५॥\n\nशाक्म॑ना शा॒को अ॑रु॒णः सु॑प॒र्ण आ यो म॒हः शूर॑: स॒नादनी॑ळः ।\n\nयच्चि॒केत॑ स॒त्यमित्तन्न मोघं॒ वसु॑ स्पा॒र्हमु॒त जेतो॒त दाता॑ ॥६॥\n\nऐभि॑र्ददे॒ वृष्ण्या॒ पौंस्या॑नि॒ येभि॒रौक्ष॑द्वृत्र॒हत्या॑य व॒ज्री ।\n\n ये कर्म॑णः क्रि॒यमा॑णस्य म॒ह्न ऋ॑तेक॒र्ममु॒दजा॑यन्त दे॒वाः ॥७॥\n\nयु॒जा कर्मा॑णि ज॒नय॑न्वि॒श्वौजा॑ अशस्ति॒हा वि॒श्वम॑नास्तुरा॒षाट् ।\n\nपी॒त्वी सोम॑स्य दि॒व आ वृ॑धा॒नः शूरो॒ निर्यु॒धाध॑म॒द्दस्यू॑न् ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 56,
"text": "७ बृहदुक्थो वामदेव्यः। विश्वेदेवाः। त्रिष्टुप्। ४-६ जगती।\n\nइ॒दं त॒ एकं॑ प॒र ऊ॑ त॒ एकं॑ तृ॒तीये॑न॒ ज्योति॑षा॒ सं वि॑शस्व ।\n\nसं॒वेश॑ने त॒न्व१श्चारु॑रेधि प्रि॒यो दे॒वानां॑ पर॒मे ज॒नित्रे॑ ॥१॥\n\nत॒नूष्टे॑ वाजिन्त॒न्वं१ नय॑न्ती वा॒मम॒स्मभ्यं॒ धातु॒ शर्म॒ तुभ्य॑म् ।\n\nअह्रु॑तो म॒हो ध॒रुणा॑य दे॒वान्दि॒वी॑व॒ ज्योति॒: स्वमा मि॑मीयाः ॥२॥\n\nवा॒ज्य॑सि॒ वाजि॑नेना सुवे॒नीः सु॑वि॒तः स्तोमं॑ सुवि॒तो दिवं॑ गाः ।\n\nसु॒वि॒तो धर्म॑ प्रथ॒मानु॑ स॒त्या सु॑वि॒तो दे॒वान्त्सु॑वि॒तोऽनु॒ पत्म॑ ॥३॥\n\nम॒हि॒म्न ए॑षां पि॒तर॑श्च॒नेशि॑रे दे॒वा दे॒वेष्व॑दधु॒रपि॒ क्रतु॑म् ।\n\nसम॑विव्यचुरु॒त यान्यत्वि॑षु॒रैषां॑ त॒नूषु॒ नि वि॑विशु॒: पुन॑: ॥४॥\n\nसहो॑भि॒र्विश्वं॒ परि॑ चक्रमू॒ रज॒: पूर्वा॒ धामा॒न्यमि॑ता॒ मिमा॑नाः ।\n\nत॒नूषु॒ विश्वा॒ भुव॑ना॒ नि ये॑मिरे॒ प्रासा॑रयन्त पुरु॒ध प्र॒जा अनु॑ ॥५॥\n\nद्विधा॑ सू॒नवोऽसु॑रं स्व॒र्विद॒मास्था॑पयन्त तृ॒तीये॑न॒ कर्म॑णा ।\n\nस्वां प्र॒जां पि॒तर॒: पित्र्यं॒ सह॒ आव॑रेष्वदधु॒स्तन्तु॒मात॑तम् ॥६॥\n\nना॒वा न क्षोद॑: प्र॒दिश॑: पृथि॒व्याः स्व॒स्तिभि॒रति॑ दु॒र्गाणि॒ विश्वा॑ ।\n\nस्वां प्र॒जां बृ॒हदु॑क्थो महि॒त्वाऽऽव॑रेष्वदधा॒दा परे॑षु ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 57,
"text": "६ बन्धु: श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुर्गौपायनाः।विश्वेदेवाः। गायत्री।\n\nमा प्र गा॑म प॒थो व॒यं मा य॒ज्ञादि॑न्द्र सो॒मिन॑: । मान्त स्थु॑र्नो॒ अरा॑तयः ॥१॥\n\nयो य॒ज्ञस्य॑ प्र॒साध॑न॒स्तन्तु॑र्दे॒वेष्वात॑तः । तमाहु॑तं नशीमहि ॥२॥\n\nमनो॒ न्वा हु॑वामहे नाराशं॒सेन॒ सोमे॑न । पि॒तॄ॒णां च॒ मन्म॑भिः ॥३॥\n\nआ त॑ एतु॒ मन॒: पुन॒: क्रत्वे॒ दक्षा॑य जी॒वसे॑ । ज्योक्च॒ सूर्यं॑ दृ॒शे ॥४॥\n\nपुन॑र्नः पितरो॒ मनो॒ ददा॑तु॒ दैव्यो॒ जन॑: । जी॒वं व्रातं॑ सचेमहि ॥५॥\n\nव॒यं सो॑म व्र॒ते तव॒ मन॑स्त॒नूषु॒ बिभ्र॑तः । प्र॒जाव॑न्तः सचेमहि ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 58,
"text": "१२ बन्धु: श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुर्गौपायनाः।मन आवर्तनम्। अनुष्टुप्।\n\nयत्ते॑ य॒मं वै॑वस्व॒तं मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥१॥\n\nयत्ते॒ दिवं॒ यत्पृ॑थि॒वीं मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥२॥\n\nयत्ते॒ भूमिं॒ चतु॑र्भृष्टिं॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥३॥\n\nयत्ते॒ चत॑स्रः प्र॒दिशो॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥४॥\n\nयत्ते॑ समु॒द्रम॑र्ण॒वं मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥५॥\n\nयत्ते॒ मरी॑चीः प्र॒वतो॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥६॥\n\nयत्ते॑ अ॒पो यदोष॑धी॒र्मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥७॥\n\nयत्ते॒ सूर्यं॒ यदु॒षसं॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥८॥\n\nयत्ते॒ पर्व॑तान्बृह॒तो मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥९॥\n\nयत्ते॒ विश्व॑मि॒दं जग॒न्मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥१०॥\n\nयत्ते॒ परा॑: परा॒वतो॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥११॥\n\nयत्ते॑ भू॒तं च॒ भव्यं॑ च॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 59,
"text": "१० बन्धु श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुर्गौपायनाः।१-३ निर्ऋतिः,४ निर्ऋतिः सोमश्च, ५-६असुनीतिः, ७ पृथिवी-द्वयन्तरिक्ष-सोम-पूष-पथ्या-स्वस्तयः,८-१० द्यावापृथिवी, १० (पूर्वार्धस्य) इन्द्र- द्यावापृथिव्यः। त्रिष्टुप् , ८ पंक्तिः,९ महापंक्तिः, १० पंक्त्युत्तरा।\n\nप्र ता॒र्यायु॑: प्रत॒रं नवी॑य॒: स्थाता॑रेव॒ क्रतु॑मता॒ रथ॑स्य ।\n\nअध॒ च्यवा॑न॒ उत्त॑वी॒त्यर्थं॑ परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥१॥\n\nसाम॒न्नु रा॒ये नि॑धि॒मन्न्वन्नं॒ करा॑महे॒ सु पु॑रु॒ध श्रवां॑सि ।\n\nता नो॒ विश्वा॑नि जरि॒ता म॑मत्तु परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥२॥\n\nअ॒भी ष्व१र्यः पौंस्यै॑र्भवेम॒ द्यौर्न भूमिं॑ गि॒रयो॒ नाज्रा॑न् ।\n\nता नो॒ विश्वा॑नि जरि॒ता चि॑केत परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥३॥\n\nमो षु ण॑: सोम मृ॒त्यवे॒ परा॑ दा॒: पश्ये॑म॒ नु सूर्य॑मु॒च्चर॑न्तम् ।\n\nद्युभि॑र्हि॒तो ज॑रि॒मा सू नो॑ अस्तु परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥४॥\n\nअसु॑नीते॒ मनो॑ अ॒स्मासु॑ धारय जी॒वात॑वे॒ सु प्र ति॑रा न॒ आयु॑: ।\n\nरा॒र॒न्धि न॒: सूर्य॑स्य सं॒दृशि॑ घृ॒तेन॒ त्वं त॒न्वं॑ वर्धयस्व ॥५॥\n\nअसु॑नीते॒ पुन॑र॒स्मासु॒ चक्षु॒: पुन॑: प्रा॒णमि॒ह नो॑ धेहि॒ भोग॑म् ।\n\nज्योक्प॑श्येम॒ सूर्य॑मु॒च्चर॑न्त॒मनु॑मते मृ॒ळया॑ नः स्व॒स्ति ॥६॥\n\nपुन॑र्नो॒ असुं॑ पृथि॒वी द॑दातु॒ पुन॒र्द्यौर्दे॒वी पुन॑र॒न्तरि॑क्षम् ।\n\nपुन॑र्न॒: सोम॑स्त॒न्वं॑ ददातु॒ पुन॑: पू॒षा प॒थ्यां॒३ या स्व॒स्तिः ॥७॥\n\nशं रोद॑सी सु॒बन्ध॑वे य॒ह्वी ऋ॒तस्य॑ मा॒तरा॑ ।\n\nभर॑ता॒मप॒ यद्रपो॒ द्यौः पृ॑थिवि क्ष॒मा रपो॒ मो षु ते॒ किं च॒नाम॑मत् ॥८॥\n\nअव॑ द्व॒के अव॑ त्रि॒का दि॒वश्च॑रन्ति भेष॒जा ।\n\nक्ष॒मा च॑रि॒ष्ण्वे॑क॒कं भर॑ता॒मप॒ यद्रपो॒ द्यौः पृ॑थिवि क्ष॒मा रपो॒ मो षु ते॒ किं च॒नाम॑मत् ॥९॥\n\nसमि॑न्द्रेरय॒ गाम॑न॒ड्वाहं॒ य आव॑हदुशी॒नरा॑ण्या॒ अन॑: ।\n\n भर॑ता॒मप॒ यद्रपो॒ द्यौः पृ॑थिवि क्ष॒मा रपो॒ मो षु ते॒ किं च॒नाम॑मत् ॥१०॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 60,
"text": "१२ बन्धु: श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुर्गौपायनाः,६ अगस्त्यस्वसा एषां माता ऋषिका। १-४,६ असमातिः, ५ इन्द्रः,७-११ जीवः,१२ हस्तः।अनुष्टुप्,१-५ गायत्री, ८-९ पंक्तिः।\n\nआ जनं॑ त्वे॒षसं॑दृशं॒ माही॑नाना॒मुप॑स्तुतम् । अग॑न्म॒ बिभ्र॑तो॒ नम॑: ॥१॥\n\nअस॑मातिं नि॒तोश॑नं त्वे॒षं नि॑य॒यिनं॒ रथ॑म् । भ॒जेर॑थस्य॒ सत्प॑तिम् ॥२॥\n\nयो जना॑न्महि॒षाँ इ॑वाऽतित॒स्थौ पवी॑रवान् । उ॒ताप॑वीरवान्यु॒धा ॥३॥\n\nयस्ये॑क्ष्वा॒कुरुप॑ व्र॒ते रे॒वान्म॑रा॒य्येध॑ते । दि॒वी॑व॒ पञ्च॑ कृ॒ष्टय॑: ॥४॥\n\nइन्द्र॑ क्ष॒त्रास॑मातिषु॒ रथ॑प्रोष्ठेषु धारय । दि॒वी॑व॒ सूर्यं॑ दृ॒शे ॥५॥\n\nअ॒गस्त्य॑स्य॒ नद्भ्य॒: सप्ती॑ युनक्षि॒ रोहि॑ता । प॒णीन्न्य॑क्रमीर॒भि विश्वा॑न्राजन्नरा॒धस॑: ॥६॥\n\nअ॒यं मा॒तायं पि॒ताऽयं जी॒वातु॒राग॑मत् । इ॒दं तव॑ प्र॒सर्प॑णं॒ सुब॑न्ध॒वेहि॒ निरि॑हि ॥७॥\n\nयथा॑ यु॒गं व॑र॒त्रया॒ नह्य॑न्ति ध॒रुणा॑य॒ कम् । ए॒वा दा॑धार ते॒ मनो॑ जी॒वात॑वे॒ न मृ॒त्यवेऽथो॑ अरि॒ष्टता॑तये ॥८॥\n\nयथे॒यं पृ॑थि॒वी म॒ही दा॒धारे॒मान्वन॒स्पती॑न् । ए॒वा दा॑धार ते॒ मनो॑ जी॒वात॑वे॒ न मृ॒त्यवेऽथो॑ अरि॒ष्टता॑तये ॥९॥\n\nय॒माद॒हं वै॑वस्व॒तात्सु॒बन्धो॒र्मन॒ आभ॑रम् । जी॒वात॑वे॒ न मृ॒त्यवेऽथो॑ अरि॒ष्टता॑तये ॥१०॥\n\nन्य१ग्वातोऽव॑ वाति॒ न्य॑क्तपति॒ सूर्य॑: । नी॒चीन॑म॒घ्न्या दु॑हे॒ न्य॑ग्भवतु ते॒ रप॑: ॥११॥\n\nअ॒यं मे॒ हस्तो॒ भग॑वान॒यं मे॒ भग॑वत्तरः । अ॒यं मे॑ वि॒श्वभे॑षजो॒ऽयं शि॒वाभि॑मर्शनः ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 61,
"text": "२७ नाभानेदिष्ठो मानवः। विश्वे देवाः। त्रिष्टुप्।\n\nइ॒दमि॒त्था रौद्रं॑ गू॒र्तव॑चा॒ ब्रह्म॒ क्रत्वा॒ शच्या॑म॒न्तरा॒जौ ।\n\nक्रा॒णा यद॑स्य पि॒तरा॑ मंहने॒ष्ठाः पर्ष॑त्प॒क्थे अह॒न्ना स॒प्त होतॄ॑न् ॥१॥\n\nस इद्दा॒नाय॒ दभ्या॑य व॒न्वञ्च्यवा॑न॒: सूदै॑रमिमीत॒ वेदि॑म् ।\n\nतूर्व॑याणो गू॒र्तव॑चस्तम॒: क्षोदो॒ न रेत॑ इ॒तऊ॑ति सिञ्चत् ॥२॥\n\nमनो॒ न येषु॒ हव॑नेषु ति॒ग्मं विप॒: शच्या॑ वनु॒थो द्रव॑न्ता ।\n\nआ यः शर्या॑भिस्तुविनृ॒म्णो अ॒स्याऽश्री॑णीता॒दिशं॒ गभ॑स्तौ ॥३॥\n\nकृ॒ष्णा यद्गोष्व॑रु॒णीषु॒ सीद॑द्दि॒वो नपा॑ताश्विना हुवे वाम् ।\n\nवी॒तं मे॑ य॒ज्ञमा ग॑तं मे॒ अन्नं॑ वव॒न्वांसा॒ नेष॒मस्मृ॑तध्रू ॥४॥\n\nप्रथि॑ष्ट॒ यस्य॑ वी॒रक॑र्ममि॒ष्णदनु॑ष्ठितं॒ नु नर्यो॒ अपौ॑हत् ।\n\nपुन॒स्तदा वृ॑हति॒ यत्क॒नाया॑ दुहि॒तुरा अनु॑भृतमन॒र्वा ॥५॥\n\nम॒ध्या यत्कर्त्व॒मभ॑वद॒भीके॒ कामं॑ कृण्वा॒ने पि॒तरि॑ युव॒त्याम् ।\n\nम॒ना॒नग्रेतो॑ जहतुर्वि॒यन्ता॒ सानौ॒ निषि॑क्तं सुकृ॒तस्य॒ योनौ॑ ॥६॥\n\nपि॒ता यत्स्वां दु॑हि॒तर॑मधि॒ष्कन्क्ष्म॒या रेत॑: संजग्मा॒नो नि षि॑ञ्चत् ।\n\nस्वा॒ध्यो॑ऽजनय॒न्ब्रह्म॑ दे॒वा वास्तो॒ष्पतिं॑ व्रत॒पां निर॑तक्षन् ॥७॥\n\nस ईं॒ वृषा॒ न फेन॑मस्यदा॒जौ स्मदा परै॒दप॑ द॒भ्रचे॑ताः ।\n\nसर॑त्प॒दा न दक्षि॑णा परा॒वृङ्न ता नु मे॑ पृश॒न्यो॑ जगृभ्रे ॥८॥\n\nम॒क्षू न वह्नि॑: प्र॒जाया॑ उप॒ब्दिर॒ग्निं न न॒ग्न उप॑ सीद॒दूध॑: ।\n\nसनि॑ते॒ध्मं सनि॑तो॒त वाजं॒ स ध॒र्ता ज॑ज्ञे॒ सह॑सा यवी॒युत् ॥९॥\n\nम॒क्षू क॒नाया॑: स॒ख्यं नव॑ग्वा ऋ॒तं वद॑न्त ऋ॒तयु॑क्तिमग्मन् ।\n\nद्वि॒बर्ह॑सो॒ य उप॑ गो॒पमागु॑रदक्षि॒णासो॒ अच्यु॑ता दुदुक्षन् ॥१०॥\n\nम॒क्षू क॒नाया॑: स॒ख्यं नवी॑यो॒ राधो॒ न रेत॑ ऋ॒तमित्तु॑रण्यन् ।\n\nशुचि॒ यत्ते॒ रेक्ण॒ आय॑जन्त सब॒र्दुघा॑या॒: पय॑ उ॒स्रिया॑याः ॥११॥\n\nप॒श्वा यत्प॒श्चा वियु॑ता बु॒धन्तेति॑ ब्रवीति व॒क्तरी॒ ररा॑णः ।\n\nवसो॑र्वसु॒त्वा का॒रवो॑ऽने॒हा विश्वं॑ विवेष्टि॒ द्रवि॑ण॒मुप॒ क्षु ॥१२॥\n\nतदिन्न्व॑स्य परि॒षद्वा॑नो अग्मन्पु॒रू सद॑न्तो नार्ष॒दं बि॑भित्सन् ।\n\nवि शुष्ण॑स्य॒ संग्र॑थितमन॒र्वा वि॒दत्पु॑रुप्रजा॒तस्य॒ गुहा॒ यत् ॥१३॥\n\nभर्गो॑ ह॒ नामो॒त यस्य॑ दे॒वाः स्व१र्ण ये त्रि॑षध॒स्थे नि॑षे॒दुः ।\n\nअ॒ग्निर्ह॒ नामो॒त जा॒तवे॑दाः श्रु॒धी नो॑ होतॠ॒तस्य॒ होता॒ध्रुक् ॥१४॥\n\nउ॒त त्या मे॒ रौद्रा॑वर्चि॒मन्ता॒ नास॑त्याविन्द्र गू॒र्तये॒ यज॑ध्यै ।\n\nम॒नु॒ष्वद्वृ॒क्तब॑र्हिषे॒ ररा॑णा म॒न्दू हि॒तप्र॑यसा वि॒क्षु यज्यू॑ ॥१५॥\n\nअ॒यं स्तु॒तो राजा॑ वन्दि वे॒धा अ॒पश्च॒ विप्र॑स्तरति॒ स्वसे॑तुः ।\n\nस क॒क्षीव॑न्तं रेजय॒त्सो अ॒ग्निं ने॒मिं न च॒क्रमर्व॑तो रघु॒द्रु ॥१६॥\n\nस द्वि॒बन्धु॑र्वैतर॒णो यष्टा॑ सब॒र्धुं धे॒नुम॒स्वं॑ दु॒हध्यै॑ ।\n\nसं यन्मि॒त्रावरु॑णा वृ॒ञ्ज उ॒क्थैर्ज्येष्ठे॑भिरर्य॒मणं॒ वरू॑थैः ॥१७॥\n\nतद्ब॑न्धुः सू॒रिर्दि॒वि ते॑ धियं॒धा नाभा॒नेदि॑ष्ठो रपति॒ प्र वेन॑न् ।\n\nसा नो॒ नाभि॑: पर॒मास्य वा॑ घा॒ऽहं तत्प॒श्चा क॑ति॒थश्चि॑दास ॥१८॥\n\nइ॒यं मे॒ नाभि॑रि॒ह मे॑ स॒धस्थ॑मि॒मे मे॑ दे॒वा अ॒यम॑स्मि॒ सर्व॑: ।\n\nद्वि॒जा अह॑ प्रथम॒जा ऋ॒तस्ये॒दं धे॒नुर॑दुह॒ज्जाय॑माना ॥१९॥\n\nअधा॑सु म॒न्द्रो अ॑र॒तिर्वि॒भावाऽव॑ स्यति द्विवर्त॒निर्व॑ने॒षाट् ।\n\nऊ॒र्ध्वा यच्छ्रेणि॒र्न शिशु॒र्दन्म॒क्षू स्थि॒रं शे॑वृ॒धं सू॑त मा॒ता ॥२०॥\n\nअधा॒ गाव॒ उप॑मातिं क॒नाया॒ अनु॑ श्वा॒न्तस्य॒ कस्य॑ चि॒त्परे॑युः ।\n\nश्रु॒धि त्वं सु॑द्रविणो न॒स्त्वं या॑ळाश्व॒घ्नस्य॑ वावृधे सू॒नृता॑भिः ॥२१॥\n\nअध॒ त्वमि॑न्द्र वि॒द्ध्य१स्मान्म॒हो रा॒ये नृ॑पते॒ वज्र॑बाहुः ।\n\n रक्षा॑ च नो म॒घोन॑: पा॒हि सू॒रीन॑ने॒हस॑स्ते हरिवो अ॒भिष्टौ॑ ॥२२॥\n\nअध॒ यद्रा॑जाना॒ गवि॑ष्टौ॒ सर॑त्सर॒ण्युः का॒रवे॑ जर॒ण्युः ।\n\nविप्र॒: प्रेष्ठ॒: स ह्ये॑षां ब॒भूव॒ परा॑ च॒ वक्ष॑दु॒त प॑र्षदेनान् ॥२३॥\n\nअधा॒ न्व॑स्य॒ जेन्य॑स्य पु॒ष्टौ वृथा॒ रेभ॑न्त ईमहे॒ तदू॒ नु ।\n\nस॒र॒ण्युर॑स्य सू॒नुरश्वो॒ विप्र॑श्चासि॒ श्रव॑सश्च सा॒तौ ॥२४॥\n\nयु॒वोर्यदि॑ स॒ख्याया॒स्मे शर्धा॑य॒ स्तोमं॑ जुजु॒षे नम॑स्वान् ।\n\nवि॒श्वत्र॒ यस्मि॒न्ना गिर॑: समी॒चीः पू॒र्वीव॑ गा॒तुर्दाश॑त्सू॒नृता॑यै ॥२५॥\n\nस गृ॑णा॒नो अ॒द्भिर्दे॒ववा॒निति॑ सु॒बन्धु॒र्नम॑सा सू॒क्तैः ।\n\nवर्ध॑दु॒क्थैर्वचो॑भि॒रा हि नू॒नं व्यध्वै॑ति॒ पय॑स उ॒स्रिया॑याः ॥२६॥\n\nत ऊ॒ षु णो॑ म॒हो य॑जत्रा भू॒त दे॑वास ऊ॒तये॑ स॒जोषा॑: ।\n\nये वाजाँ॒ अन॑यता वि॒यन्तो॒ ये स्था नि॑चे॒तारो॒ अमू॑राः ॥२७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 62,
"text": "११ नाभानेदिष्ठो मानवः। विश्वे देवाः, १-६ अंगिरसो वा, ८-११ सावर्णेदानम्। जगती, ५,८,९ अनुष्टुप् प्रगाथ: =(६ बृहती, ७ सतोबृहती ) १० गायत्री, ११ त्रिष्टुप्।\n\nये य॒ज्ञेन॒ दक्षि॑णया॒ सम॑क्ता॒ इन्द्र॑स्य स॒ख्यम॑मृत॒त्वमा॑न॒श ।\n\nतेभ्यो॑ भ॒द्रम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥१॥\n\nय उ॒दाज॑न्पि॒तरो॑ गो॒मयं॒ वस्वृ॒तेनाभि॑न्दन्परिवत्स॒रे व॒लम् ।\n\nदी॒र्घा॒यु॒त्वम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥२॥\n\nय ऋ॒तेन॒ सूर्य॒मारो॑हयन्दि॒व्यप्र॑थयन्पृथि॒वीं मा॒तरं॒ वि ।\n\nसु॒प्र॒जा॒स्त्वम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥३॥\n\nअ॒यं नाभा॑ वदति व॒ल्गु वो॑ गृ॒हे देव॑पुत्रा ऋषय॒स्तच्छृ॑णोतन ।\n\nसु॒ब्र॒ह्म॒ण्यम॑ङ्गिरसो वो अस्तु॒ प्रति॑ गृभ्णीत मान॒वं सु॑मेधसः ॥४॥\n\nविरू॑पास॒ इदृष॑य॒स्त इद्ग॑म्भी॒रवे॑पसः । ते अङ्गि॑रसः सू॒नव॒स्ते अ॒ग्नेः परि॑ जज्ञिरे ॥५॥\n\nये अ॒ग्नेः परि॑ जज्ञि॒रे विरू॑पासो दि॒वस्परि॑ । नव॑ग्वो॒ नु दश॑ग्वो॒ अङ्गि॑रस्तमो॒ सचा॑ दे॒वेषु॑ मंहते ॥६॥\n\nइन्द्रे॑ण यु॒जा निः सृ॑जन्त वा॒घतो॑ व्र॒जं गोम॑न्तम॒श्विन॑म् । स॒हस्रं॑ मे॒ दद॑तो अष्टक॒र्ण्य१: श्रवो॑ दे॒वेष्व॑क्रत ॥७॥\n\nप्र नू॒नं जा॑यताम॒यं मनु॒स्तोक्मे॑व रोहतु । यः स॒हस्रं॑ श॒ताश्वं॑ स॒द्यो दा॒नाय॒ मंह॑ते ॥८॥\n\nन तम॑श्नोति॒ कश्च॒न दि॒व इ॑व॒ सान्वा॒रभ॑म् । सा॒व॒र्ण्यस्य॒ दक्षि॑णा॒ वि सिन्धु॑रिव पप्रथे ॥९॥\n\nउ॒त दा॒सा प॑रि॒विषे॒ स्मद्दि॑ष्टी॒ गोप॑रीणसा । यदु॑स्तु॒र्वश्च॑ मामहे ॥१०॥\n\nस॒ह॒स्र॒दा ग्रा॑म॒णीर्मा रि॑ष॒न्मनु॒: सूर्ये॑णास्य॒ यत॑मानैतु॒ दक्षि॑णा ।\n\nसाव॑र्णेर्दे॒वाः प्र ति॑र॒न्त्वायु॒र्यस्मि॒न्नश्रा॑न्ता॒ अस॑नाम॒ वाज॑म् ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 63,
"text": "१७ गयः प्लातः। विश्वे देवाः, १५-१६ पथ्या स्वस्तिः। जगती, १५ त्रिष्टुब्वा; १६-१७ त्रिष्टुप्।\n\nप॒रा॒वतो॒ ये दिधि॑षन्त॒ आप्यं॒ मनु॑प्रीतासो॒ जनि॑मा वि॒वस्व॑तः ।\n\n य॒याते॒र्ये न॑हु॒ष्य॑स्य ब॒र्हिषि॑ दे॒वा आस॑ते॒ ते अधि॑ ब्रुवन्तु नः ॥१॥\n\nविश्वा॒ हि वो॑ नम॒स्या॑नि॒ वन्द्या॒ नामा॑नि देवा उ॒त य॒ज्ञिया॑नि वः ।\n\nये स्थ जा॒ता अदि॑तेर॒द्भ्यस्परि॒ ये पृ॑थि॒व्यास्ते म॑ इ॒ह श्रु॑ता॒ हव॑म् ॥२॥\n\nयेभ्यो॑ मा॒ता मधु॑म॒त्पिन्व॑ते॒ पय॑: पी॒यूषं॒ द्यौरदि॑ति॒रद्रि॑बर्हाः ।\n\nउ॒क्थशु॑ष्मान्वृषभ॒रान्त्स्वप्न॑स॒स्ताँ आ॑दि॒त्याँ अनु॑ मदा स्व॒स्तये॑ ॥३॥\n\nनृ॒चक्ष॑सो॒ अनि॑मिषन्तो अ॒र्हणा॑ बृ॒हद्दे॒वासो॑ अमृत॒त्वमा॑नशुः ।\n\nज्यो॒तीर॑था॒ अहि॑माया॒ अना॑गसो दि॒वो व॒र्ष्माणं॑ वसते स्व॒स्तये॑ ॥४॥\n\nस॒म्राजो॒ ये सु॒वृधो॑ य॒ज्ञमा॑य॒युरप॑रिह्वृता दधि॒रे दि॒वि क्षय॑म् ।\n\nताँ आ वि॑वास॒ नम॑सा सुवृ॒क्तिभि॑र्म॒हो आ॑दि॒त्याँ अदि॑तिं स्व॒स्तये॑ ॥५॥\n\nको व॒: स्तोमं॑ राधति॒ यं जुजो॑षथ॒ विश्वे॑ देवासो मनुषो॒ यति॒ ष्ठन॑ ।\n\nको वो॑ऽध्व॒रं तु॑विजाता॒ अरं॑ कर॒द्यो न॒: पर्ष॒दत्यंह॑: स्व॒स्तये॑ ॥६॥\n\nयेभ्यो॒ होत्रां॑ प्रथ॒मामा॑ये॒जे मनु॒: समि॑द्धाग्नि॒र्मन॑सा स॒प्त होतृ॑भिः ।\n\nत आ॑दित्या॒ अभ॑यं॒ शर्म॑ यच्छत सु॒गा न॑: कर्त सु॒पथा॑ स्व॒स्तये॑ ॥७॥\n\nय ईशि॑रे॒ भुव॑नस्य॒ प्रचे॑तसो॒ विश्व॑स्य स्था॒तुर्जग॑तश्च॒ मन्त॑वः ।\n\nते न॑: कृ॒तादकृ॑ता॒देन॑स॒स्पर्य॒द्या दे॑वासः पिपृता स्व॒स्तये॑ ॥८॥\n\nभरे॒ष्विन्द्रं॑ सु॒हवं॑ हवामहेंऽहो॒मुचं॑ सु॒कृतं॒ दैव्यं॒ जन॑म् ।\n\nअ॒ग्निं मि॒त्रं वरु॑णं सा॒तये॒ भगं॒ द्यावा॑पृथि॒वी म॒रुत॑: स्व॒स्तये॑ ॥९॥\n\nसु॒त्रामा॑णं पृथि॒वीं द्याम॑ने॒हसं॑ सु॒शर्मा॑ण॒मदि॑तिं सु॒प्रणी॑तिम् ।\n\nदैवीं॒ नावं॑ स्वरि॒त्रामना॑गस॒मस्र॑वन्ती॒मा रु॑हेमा स्व॒स्तये॑ ॥१०॥\n\nविश्वे॑ यजत्रा॒ अधि॑ वोचतो॒तये॒ त्राय॑ध्वं नो दु॒रेवा॑या अभि॒ह्रुत॑: ।\n\nस॒त्यया॑ वो दे॒वहू॑त्या हुवेम शृण्व॒तो दे॑वा॒ अव॑से स्व॒स्तये॑ ॥११॥\n\nअपामी॑वा॒मप॒ विश्वा॒मना॑हुति॒मपारा॑तिं दुर्वि॒दत्रा॑मघाय॒तः ।\n\nआ॒रे दे॑वा॒ द्वेषो॑ अ॒स्मद्यु॑योतनो॒रु ण॒: शर्म॑ यच्छता स्व॒स्तये॑ ॥१२॥\n\nअरि॑ष्ट॒: स मर्तो॒ विश्व॑ एधते॒ प्र प्र॒जाभि॑र्जायते॒ धर्म॑ण॒स्परि॑ ।\n\nयमा॑दित्यासो॒ नय॑था सुनी॒तिभि॒रति॒ विश्वा॑नि दुरि॒ता स्व॒स्तये॑ ॥१३॥\n\nयं दे॑वा॒सोऽव॑थ॒ वाज॑सातौ॒ यं शूर॑साता मरुतो हि॒ते धने॑ ।\n\nप्रा॒त॒र्यावा॑णं॒ रथ॑मिन्द्र सान॒सिमरि॑ष्यन्त॒मा रु॑हेमा स्व॒स्तये॑ ॥१४॥\n\nस्व॒स्ति न॑: प॒थ्या॑सु॒ धन्व॑सु स्व॒स्त्य१प्सु वृ॒जने॒ स्व॑र्वति ।\n\nस्व॒स्ति न॑: पुत्रकृ॒थेषु॒ योनि॑षु स्व॒स्ति रा॒ये म॑रुतो दधातन ॥१५॥\n\nस्व॒स्तिरिद्धि प्रप॑थे॒ श्रेष्ठा॒ रेक्ण॑स्वत्य॒भि या वा॒ममेति॑ ।\n\nसा नो॑ अ॒मा सो अर॑णे॒ नि पा॑तु स्वावे॒शा भ॑वतु दे॒वगो॑पा ॥१६॥\n\nए॒वा प्ल॒तेः सू॒नुर॑वीवृधद्वो॒ विश्व॑ आदित्या अदिते मनी॒षी ।\n\nई॒शा॒नासो॒ नरो॒ अम॑र्त्ये॒नाऽस्ता॑वि॒ जनो॑ दि॒व्यो गये॑न ॥१७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 64,
"text": "१७ गयः प्लातः। विश्वे देवाः।जगती, १२,१६,१७ त्रिष्टुप्।\n\nक॒था दे॒वानां॑ कत॒मस्य॒ याम॑नि सु॒मन्तु॒ नाम॑ शृण्व॒तां म॑नामहे ।\n\nको मृ॑ळाति कत॒मो नो॒ मय॑स्करत्कत॒म ऊ॒ती अ॒भ्या व॑वर्तति ॥१॥\n\nक्र॒तू॒यन्ति॒ क्रत॑वो हृ॒त्सु धी॒तयो॒ वेन॑न्ति वे॒नाः प॒तय॒न्त्या दिश॑: ।\n\nन म॑र्डि॒ता वि॑द्यते अ॒न्य ए॑भ्यो दे॒वेषु॑ मे॒ अधि॒ कामा॑ अयंसत ॥२॥\n\nनरा॑ वा॒ शंसं॑ पू॒षण॒मगो॑ह्यम॒ग्निं दे॒वेद्ध॑म॒भ्य॑र्चसे गि॒रा ।\n\nसूर्या॒मासा॑ च॒न्द्रम॑सा य॒मं दि॒वि त्रि॒तं वात॑मु॒षस॑म॒क्तुम॒श्विना॑ ॥३॥\n\nक॒था क॒विस्तु॑वी॒रवा॒न्कया॑ गि॒रा बृह॒स्पति॑र्वावृधते सुवृ॒क्तिभि॑: ।\n\nअ॒ज एक॑पात्सु॒हवे॑भि॒ॠक्व॑भि॒रहि॑: शृणोतु बु॒ध्न्यो॒३ हवी॑मनि ॥४॥\n\nदक्ष॑स्य वादिते॒ जन्म॑नि व्र॒ते राजा॑ना मि॒त्रावरु॒णा वि॑वाससि ।\n\nअतू॑र्तपन्थाः पुरु॒रथो॑ अर्य॒मा स॒प्तहो॑ता॒ विषु॑रूपेषु॒ जन्म॑सु ॥५॥\n\nते नो॒ अर्व॑न्तो हवन॒श्रुतो॒ हवं॒ विश्वे॑ शृण्वन्तु वा॒जिनो॑ मि॒तद्र॑वः ।\n\nस॒ह॒स्र॒सा मे॒धसा॑ताविव॒ त्मना॑ म॒हो ये धनं॑ समि॒थेषु॑ जभ्रि॒रे ॥६॥\n\nप्र वो॑ वा॒युं र॑थ॒युजं॒ पुरं॑धिं॒ स्तोमै॑: कृणुध्वं स॒ख्याय॑ पू॒षण॑म् ।\n\nते हि दे॒वस्य॑ सवि॒तुः सवी॑मनि॒ क्रतुं॒ सच॑न्ते स॒चित॒: सचे॑तसः ॥७॥\n\nत्रिः स॒प्त स॒स्रा न॒द्यो॑ म॒हीर॒पो वन॒स्पती॒न्पर्व॑ताँ अ॒ग्निमू॒तये॑ ।\n\nकृ॒शानु॒मस्तॄ॑न्ति॒ष्यं॑ स॒धस्थ॒ आ रु॒द्रं रु॒द्रेषु॑ रु॒द्रियं॑ हवामहे ॥८॥\n\nसर॑स्वती स॒रयु॒: सिन्धु॑रू॒र्मिभि॑र्म॒हो म॒हीरव॒सा य॑न्तु॒ वक्ष॑णीः ।\n\nदे॒वीरापो॑ मा॒तर॑: सूदयि॒त्न्वो॑ घृ॒तव॒त्पयो॒ मधु॑मन्नो अर्चत ॥९॥\n\nउ॒त मा॒ता बृ॑हद्दि॒वा शृ॑णोतु न॒स्त्वष्टा॑ दे॒वेभि॒र्जनि॑भिः पि॒ता वच॑: ।\n\nऋ॒भु॒क्षा वाजो॒ रथ॒स्पति॒र्भगो॑ र॒ण्वः शंस॑: शशमा॒नस्य॑ पातु नः ॥१०॥\n\nर॒ण्वः संदृ॑ष्टौ पितु॒माँ इ॑व॒ क्षयो॑ भ॒द्रा रु॒द्राणां॑ म॒रुता॒मुप॑स्तुतिः ।\n\nगोभि॑: ष्याम य॒शसो॒ जने॒ष्वा सदा॑ देवास॒ इळ॑या सचेमहि ॥११॥\n\nयां मे॒ धियं॒ मरु॑त॒ इन्द्र॒ देवा॒ अद॑दात वरुण मित्र यू॒यम् ।\n\nतां पी॑पयत॒ पय॑सेव धे॒नुं कु॒विद्गिरो॒ अधि॒ रथे॒ वहा॑थ ॥१२॥\n\nकु॒विद॒ङ्ग प्रति॒ यथा॑ चिद॒स्य न॑: सजा॒त्य॑स्य मरुतो॒ बुबो॑धथ ।\n\nनाभा॒ यत्र॑ प्रथ॒मं सं॒नसा॑महे॒ तत्र॑ जामि॒त्वमदि॑तिर्दधातु नः ॥१३॥\n\nते हि द्यावा॑पृथि॒वी मा॒तरा॑ म॒ही दे॒वी दे॒वाञ्जन्म॑ना य॒ज्ञिये॑ इ॒तः ।\n\nउ॒भे बि॑भृत उ॒भयं॒ भरी॑मभिः पु॒रू रेतां॑सि पि॒तृभि॑श्च सिञ्चतः ॥१४॥\n\nवि षा होत्रा॒ विश्व॑मश्नोति॒ वार्यं॒ बृह॒स्पति॑र॒रम॑ति॒: पनी॑यसी ।\n\nग्रावा॒ यत्र॑ मधु॒षुदु॒च्यते॑ बृ॒हदवी॑वशन्त म॒तिभि॑र्मनी॒षिण॑: ॥१५॥\n\nए॒वा क॒विस्तु॑वी॒रवाँ॑ ऋत॒ज्ञा द्र॑विण॒स्युर्द्रवि॑णसश्चका॒नः ।\n\nउ॒क्थेभि॒रत्र॑ म॒तिभि॑श्च॒ विप्रोऽपी॑पय॒द्गयो॑ दि॒व्यानि॒ जन्म॑ ॥१६॥\n\nए॒वा प्ल॒तेः सू॒नुर॑वीवृधद्वो॒ विश्व॑ आदित्या अदिते मनी॒षी ।\n\nई॒शा॒नासो॒ नरो॒ अम॑र्त्ये॒नास्ता॑वि॒ जनो॑ दि॒व्यो गये॑न ॥१७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 65,
"text": "१५ वसुकर्णो वासुक्र:। विश्वेदेवाः। जगती, १५ त्रिष्टुप्।\n\nअ॒ग्निरिन्द्रो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा वा॒युः पू॒षा सर॑स्वती स॒जोष॑सः ।\n\nआ॒दि॒त्या विष्णु॑र्म॒रुत॒: स्व॑र्बृ॒हत्सोमो॑ रु॒द्रो अदि॑ति॒र्ब्रह्म॑ण॒स्पति॑: ॥१॥\n\nइ॒न्द्रा॒ग्नी वृ॑त्र॒हत्ये॑षु॒ सत्प॑ती मि॒थो हि॑न्वा॒ना त॒न्वा॒३ समो॑कसा ।\n\nअ॒न्तरि॑क्षं॒ मह्या प॑प्रु॒रोज॑सा॒ सोमो॑ घृत॒श्रीर्म॑हि॒मान॑मी॒रय॑न् ॥२॥\n\nतेषां॒ हि म॒ह्ना म॑ह॒ताम॑न॒र्वणां॒ स्तोमाँ॒ इय॑र्म्यृत॒ज्ञा ऋ॑ता॒वृधा॑म् ।\n\nये अ॑प्स॒वम॑र्ण॒वं चि॒त्ररा॑धस॒स्ते नो॑ रासन्तां म॒हये॑ सुमि॒त्र्याः ॥३॥\n\nस्व॑र्णरम॒न्तरि॑क्षाणि रोच॒ना द्यावा॒भूमी॑ पृथि॒वीं स्क॑म्भु॒रोज॑सा ।\n\nपृ॒क्षा इ॑व म॒हय॑न्तः सुरा॒तयो॑ दे॒वाः स्त॑वन्ते॒ मनु॑षाय सू॒रय॑: ॥४॥\n\nमि॒त्राय॑ शिक्ष॒ वरु॑णाय दा॒शुषे॒ या स॒म्राजा॒ मन॑सा॒ न प्र॒युच्छ॑तः ।\n\nययो॒र्धाम॒ धर्म॑णा॒ रोच॑ते बृ॒हद्ययो॑रु॒भे रोद॑सी॒ नाध॑सी॒ वृतौ॑ ॥५॥\n\nया गौर्व॑र्त॒निं प॒र्येति॑ निष्कृ॒तं पयो॒ दुहा॑ना व्रत॒नीर॑वा॒रत॑: ।\n\nसा प्र॑ब्रुवा॒णा वरु॑णाय दा॒शुषे॑ दे॒वेभ्यो॑ दाशद्ध॒विषा॑ वि॒वस्व॑ते ॥६॥\n\nदि॒वक्ष॑सो अग्निजि॒ह्वा ऋ॑ता॒वृध॑ ऋ॒तस्य॒ योनिं॑ विमृ॒शन्त॑ आसते ।\n\nद्यां स्क॑भि॒त्व्य१प आ च॑क्रु॒रोज॑सा य॒ज्ञं ज॑नि॒त्वी त॒न्वी॒३ नि मा॑मृजुः ॥७॥\n\nप॒रि॒क्षिता॑ पि॒तरा॑ पूर्व॒जाव॑री ऋ॒तस्य॒ योना॑ क्षयत॒: समो॑कसा ।\n\nद्यावा॑पृथि॒वी वरु॑णाय॒ सव्र॑ते घृ॒तव॒त्पयो॑ महि॒षाय॑ पिन्वतः ॥८॥\n\nप॒र्जन्या॒वाता॑ वृष॒भा पु॑री॒षिणे॑न्द्रवा॒यू वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा ।\n\nदे॒वाँ आ॑दि॒त्याँ अदि॑तिं हवामहे॒ ये पार्थि॑वासो दि॒व्यासो॑ अ॒प्सु ये ॥९॥\n\nत्वष्टा॑रं वा॒युमृ॑भवो॒ य ओह॑ते॒ दैव्या॒ होता॑रा उ॒षसं॑ स्व॒स्तये॑ ।\n\nबृह॒स्पतिं॑ वृत्रखा॒दं सु॑मे॒धस॑मिन्द्रि॒यं सोमं॑ धन॒सा उ॑ ईमहे ॥१०॥\n\nब्रह्म॒ गामश्वं॑ ज॒नय॑न्त॒ ओष॑धी॒र्वन॒स्पती॑न्पृथि॒वीं पर्व॑ताँ अ॒पः ।\n\nसूर्यं॑ दि॒वि रो॒हय॑न्तः सु॒दान॑व॒ आर्या॑ व्र॒ता वि॑सृ॒जन्तो॒ अधि॒ क्षमि॑ ॥११॥\n\nभु॒ज्युमंह॑सः पिपृथो॒ निर॑श्विना॒ श्यावं॑ पु॒त्रं व॑ध्रिम॒त्या अ॑जिन्वतम् ।\n\nक॒म॒द्युवं॑ विम॒दायो॑हथुर्यु॒वं वि॑ष्णा॒प्वं१ विश्व॑का॒याव॑ सृजथः ॥१२॥\n\nपावी॑रवी तन्य॒तुरेक॑पाद॒जो दि॒वो ध॒र्ता सिन्धु॒राप॑: समु॒द्रिय॑: ।\n\nविश्वे॑ दे॒वास॑: शृणव॒न्वचां॑सि मे॒ सर॑स्वती स॒ह धी॒भिः पुरं॑ध्या ॥१३॥\n\nविश्वे॑ दे॒वाः स॒ह धी॒भिः पुरं॑ध्या॒ मनो॒र्यज॑त्रा अ॒मृता॑ ऋत॒ज्ञाः ।\n\nरा॒ति॒षाचो॑ अभि॒षाच॑: स्व॒र्विद॒: स्व१र्गिरो॒ ब्रह्म॑ सू॒क्तं जु॑षेरत ॥१४॥\n\nदे॒वान्वसि॑ष्ठो अ॒मृता॑न्ववन्दे॒ ये विश्वा॒ भुव॑ना॒भि प्र॑त॒स्थुः ।\n\nते नो॑ रासन्तामुरुगा॒यम॒द्य यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥१५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 66,
"text": "१५ वसुकर्णो वासुक्र:। विश्वेदेवाः। जगती, १५ त्रिष्टुप्।\n\nदे॒वान्हु॑वे बृ॒हच्छ्र॑वसः स्व॒स्तये॑ ज्योति॒ष्कृतो॑ अध्व॒रस्य॒ प्रचे॑तसः ।\n\nये वा॑वृ॒धुः प्र॑त॒रं वि॒श्ववे॑दस॒ इन्द्र॑ज्येष्ठासो अ॒मृता॑ ऋता॒वृध॑: ॥१॥\n\nइन्द्र॑प्रसूता॒ वरु॑णप्रशिष्टा॒ ये सूर्य॑स्य॒ ज्योति॑षो भा॒गमा॑न॒शुः ।\n\nम॒रुद्ग॑णे वृ॒जने॒ मन्म॑ धीमहि॒ माघो॑ने य॒ज्ञं ज॑नयन्त सू॒रय॑: ॥२॥\n\nइन्द्रो॒ वसु॑भि॒: परि॑ पातु नो॒ गय॑मादि॒त्यैर्नो॒ अदि॑ति॒: शर्म॑ यच्छतु ।\n\nरु॒द्रो रु॒द्रेभि॑र्दे॒वो मृ॑ळयाति न॒स्त्वष्टा॑ नो॒ ग्नाभि॑: सुवि॒ताय॑ जिन्वतु ॥३॥\n\nअदि॑ति॒र्द्यावा॑पृथि॒वी ऋ॒तं म॒हदिन्द्रा॒विष्णू॑ म॒रुत॒: स्व॑र्बृ॒हत् ।\n\nदे॒वाँ आ॑दि॒त्याँ अव॑से हवामहे॒ वसू॑न्रु॒द्रान्त्स॑वि॒तारं॑ सु॒दंस॑सम् ॥४॥\n\nसर॑स्वान्धी॒भिर्वरु॑णो धृ॒तव्र॑तः पू॒षा विष्णु॑र्महि॒मा वा॒युर॒श्विना॑ ।\n\nब्र॒ह्म॒कृतो॑ अ॒मृता॑ वि॒श्ववे॑दस॒: शर्म॑ नो यंसन्त्रि॒वरू॑थ॒मंह॑सः ॥५॥\n\nवृषा॑ य॒ज्ञो वृष॑णः सन्तु य॒ज्ञिया॒ वृष॑णो दे॒वा वृष॑णो हवि॒ष्कृत॑: ।\n\nवृष॑णा॒ द्यावा॑पृथि॒वी ऋ॒ताव॑री॒ वृषा॑ प॒र्जन्यो॒ वृष॑णो वृष॒स्तुभ॑: ॥६॥\n\nअ॒ग्नीषोमा॒ वृष॑णा॒ वाज॑सातये पुरुप्रश॒स्ता वृष॑णा॒ उप॑ ब्रुवे ।\n\nयावी॑जि॒रे वृष॑णो देवय॒ज्यया॒ ता न॒: शर्म॑ त्रि॒वरू॑थं॒ वि यं॑सतः ॥७॥\n\nधृ॒तव्र॑ताः क्ष॒त्रिया॑ यज्ञनि॒ष्कृतो॑ बृहद्दि॒वा अ॑ध्व॒राणा॑मभि॒श्रिय॑: ।\n\nअ॒ग्निहो॑तार ऋत॒सापो॑ अ॒द्रुहो॒ऽपो अ॑सृज॒न्ननु॑ वृत्र॒तूर्ये॑ ॥८॥\n\nद्यावा॑पृथि॒वी ज॑नयन्न॒भि व्र॒ताऽऽप॒ ओष॑धीर्व॒निना॑नि य॒ज्ञिया॑ ।\n\nअ॒न्तरि॑क्षं॒ स्व१रा प॑प्रुरू॒तये॒ वशं॑ दे॒वास॑स्त॒न्वी॒३ नि मा॑मृजुः ॥९॥\n\nध॒र्तारो॑ दि॒व ऋ॒भव॑: सु॒हस्ता॑ वातापर्ज॒न्या म॑हि॒षस्य॑ तन्य॒तोः ।\n\nआप॒ ओष॑धी॒: प्र ति॑रन्तु नो॒ गिरो॒ भगो॑ रा॒तिर्वा॒जिनो॑ यन्तु मे॒ हव॑म् ॥१०॥\n\nस॒मु॒द्रः सिन्धू॒ रजो॑ अ॒न्तरि॑क्षम॒ज एक॑पात्तनयि॒त्नुर॑र्ण॒वः ।\n\nअहि॑र्बु॒ध्न्य॑: शृणव॒द्वचां॑सि मे॒ विश्वे॑ दे॒वास॑ उ॒त सू॒रयो॒ मम॑ ॥११॥\n\nस्याम॑ वो॒ मन॑वो दे॒ववी॑तये॒ प्राञ्चं॑ नो य॒ज्ञं प्र ण॑यत साधु॒या ।\n\nआदि॑त्या॒ रुद्रा॒ वस॑व॒: सुदा॑नव इ॒मा ब्रह्म॑ श॒स्यमा॑नानि जिन्वत ॥१२॥\n\nदैव्या॒ होता॑रा प्रथ॒मा पु॒रोहि॑त ऋ॒तस्य॒ पन्था॒मन्वे॑मि साधु॒या ।\n\nक्षेत्र॑स्य॒ पतिं॒ प्रति॑वेशमीमहे॒ विश्वा॑न्दे॒वाँ अ॒मृताँ॒ अप्र॑युच्छतः ॥१३॥\n\nवसि॑ष्ठासः पितृ॒वद्वाच॑मक्रत दे॒वाँ ईळा॑ना ऋषि॒वत्स्व॒स्तये॑ ।\n\nप्री॒ता इ॑व ज्ञा॒तय॒: काम॒मेत्या॒ऽस्मे दे॑वा॒सोऽव॑ धूनुता॒ वसु॑ ॥१४॥\n\nदे॒वान्वसि॑ष्ठो अ॒मृता॑न्ववन्दे॒ ये विश्वा॒ भुव॑ना॒भि प्र॑त॒स्थुः ।\n\nते नो॑ रासन्तामुरुगा॒यम॒द्य यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥१५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 67,
"text": "१२ अयास्य आंगिरसः। बृहस्पति:। त्रिष्टुप्।\n\nइ॒मां धियं॑ स॒प्तशी॑र्ष्णीं पि॒ता न॑ ऋ॒तप्र॑जातां बृह॒तीम॑विन्दत् ।\n\nतु॒रीयं॑ स्विज्जनयद्वि॒श्वज॑न्यो॒ऽयास्य॑ उ॒क्थमिन्द्रा॑य॒ शंस॑न् ॥१॥\n\nऋ॒तं शंस॑न्त ऋ॒जु दीध्या॑ना दि॒वस्पु॒त्रासो॒ असु॑रस्य वी॒राः ।\n\nविप्रं॑ प॒दमङ्गि॑रसो॒ दधा॑ना य॒ज्ञस्य॒ धाम॑ प्रथ॒मं म॑नन्त ॥२॥\n\nहं॒सैरि॑व॒ सखि॑भि॒र्वाव॑दद्भिरश्म॒न्मया॑नि॒ नह॑ना॒ व्यस्य॑न् ।\n\nबृह॒स्पति॑रभि॒कनि॑क्रद॒द्गा उ॒त प्रास्तौ॒दुच्च॑ वि॒द्वाँ अ॑गायत् ॥३॥\n\nअ॒वो द्वाभ्यां॑ प॒र एक॑या॒ गा गुहा॒ तिष्ठ॑न्ती॒रनृ॑तस्य॒ सेतौ॑ ।\n\nबृह॒स्पति॒स्तम॑सि॒ ज्योति॑रि॒च्छन्नुदु॒स्रा आक॒र्वि हि ति॒स्र आव॑: ॥४॥\n\nवि॒भिद्या॒ पुरं॑ श॒यथे॒मपा॑चीं॒ निस्त्रीणि॑ सा॒कमु॑द॒धेर॑कृन्तत् ।\n\nबृह॒स्पति॑रु॒षसं॒ सूर्यं॒ गाम॒र्कं वि॑वेद स्त॒नय॑न्निव॒ द्यौः ॥५॥\n\nइन्द्रो॑ व॒लं र॑क्षि॒तारं॒ दुघा॑नां क॒रेणे॑व॒ वि च॑कर्ता॒ रवे॑ण ।\n\nस्वेदा॑ञ्जिभिरा॒शिर॑मि॒च्छमा॒नोऽरो॑दयत्प॒णिमा गा अ॑मुष्णात् ॥६॥\n\nस ईं॑ स॒त्येभि॒: सखि॑भिः शु॒चद्भि॒र्गोधा॑यसं॒ वि ध॑न॒सैर॑दर्दः ।\n\nब्रह्म॑ण॒स्पति॒र्वृष॑भिर्व॒राहै॑र्घ॒र्मस्वे॑देभि॒र्द्रवि॑णं॒ व्या॑नट् ॥७॥\n\nते स॒त्येन॒ मन॑सा॒ गोप॑तिं॒ गा इ॑या॒नास॑ इषणयन्त धी॒भिः ।\n\nबृह॒स्पति॑र्मि॒थोअ॑वद्यपेभि॒रुदु॒स्रिया॑ असृजत स्व॒युग्भि॑: ॥८॥\n\nतं व॒र्धय॑न्तो म॒तिभि॑: शि॒वाभि॑: सिं॒हमि॑व॒ नान॑दतं स॒धस्थे॑ ।\n\nबृह॒स्पतिं॒ वृष॑णं॒ शूर॑सातौ॒ भरे॑भरे॒ अनु॑ मदेम जि॒ष्णुम् ॥९॥\n\nय॒दा वाज॒मस॑नद्वि॒श्वरू॑प॒मा द्यामरु॑क्ष॒दुत्त॑राणि॒ सद्म॑ ।\n\nबृह॒स्पतिं॒ वृष॑णं व॒र्धय॑न्तो॒ नाना॒ सन्तो॒ बिभ्र॑तो॒ ज्योति॑रा॒सा ॥१०॥\n\nस॒त्यामा॒शिषं॑ कृणुता वयो॒धै की॒रिं चि॒द्ध्यव॑थ॒ स्वेभि॒रेवै॑: ।\n\nप॒श्चा मृधो॒ अप॑ भवन्तु॒ विश्वा॒स्तद्रो॑दसी शृणुतं विश्वमि॒न्वे ॥११॥\n\nइन्द्रो॑ म॒ह्ना म॑ह॒तो अ॑र्ण॒वस्य॒ वि मू॒र्धान॑मभिनदर्बु॒दस्य॑ ।\n\nअह॒न्नहि॒मरि॑णात्स॒प्त सिन्धू॑न्दे॒वैर्द्या॑वापृथिवी॒ प्राव॑तं नः ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 68,
"text": "१२ अयास्य आंगिरसः। बृहस्पति:। त्रिष्टुप्।\n\nउ॒द॒प्रुतो॒ न वयो॒ रक्ष॑माणा॒ वाव॑दतो अ॒भ्रिय॑स्येव॒ घोषा॑: ।\n\nगि॒रि॒भ्रजो॒ नोर्मयो॒ मद॑न्तो॒ बृह॒स्पति॑म॒भ्य१र्का अ॑नावन् ॥१॥\n\nसं गोभि॑राङ्गिर॒सो नक्ष॑माणो॒ भग॑ इ॒वेद॑र्य॒मणं॑ निनाय ।\n\nजने॑ मि॒त्रो न दम्प॑ती अनक्ति॒ बृह॑स्पते वा॒जया॒शूँरि॑वा॒जौ ॥२॥\n\nसा॒ध्व॒र्या अ॑ति॒थिनी॑रिषि॒रा: स्पा॒र्हाः सु॒वर्णा॑ अनव॒द्यरू॑पाः ।\n\nबृह॒स्पति॒: पर्व॑तेभ्यो वि॒तूर्या॒ निर्गा ऊ॑पे॒ यव॑मिव स्थि॒विभ्य॑: ॥३॥\n\nआ॒प्रु॒षा॒यन्मधु॑न ऋ॒तस्य॒ योनि॑मवक्षि॒पन्न॒र्क उ॒ल्कामि॑व॒ द्योः ।\n\nबृह॒स्पति॑रु॒द्धर॒न्नश्म॑नो॒ गा भूम्या॑ उ॒द्नेव॒ वि त्वचं॑ बिभेद ॥४॥\n\nअप॒ ज्योति॑षा॒ तमो॑ अ॒न्तरि॑क्षादु॒द्नः शीपा॑लमिव॒ वात॑ आजत् ।\n\nबृह॒स्पति॑रनु॒मृश्या॑ व॒लस्या॒ऽभ्रमि॑व॒ वात॒ आ च॑क्र॒ आ गाः ॥५॥\n\nय॒दा व॒लस्य॒ पीय॑तो॒ जसुं॒ भेद्बृह॒स्पति॑रग्नि॒तपो॑भिर॒र्कैः ।\n\nद॒द्भिर्न जि॒ह्वा परि॑विष्ट॒माद॑दा॒विर्नि॒धीँर॑कृणोदु॒स्रिया॑णाम् ॥६॥\n\nबृह॒स्पति॒रम॑त॒ हि त्यदा॑सां॒ नाम॑ स्व॒रीणां॒ सद॑ने॒ गुहा॒ यत् ।\n\nआ॒ण्डेव॑ भि॒त्त्वा श॑कु॒नस्य॒ गर्भ॒मुदु॒स्रिया॒: पर्व॑तस्य॒ त्मना॑जत् ॥७॥\n\nअश्नापि॑नद्धं॒ मधु॒ पर्य॑पश्य॒न्मत्स्यं॒ न दी॒न उ॒दनि॑ क्षि॒यन्त॑म् ।\n\nनिष्टज्ज॑भार चम॒सं न वृ॒क्षाद्बृह॒स्पति॑र्विर॒वेणा॑ वि॒कृत्य॑ ॥८॥\n\nसोषाम॑विन्द॒त्स स्व१: सो अ॒ग्निं सो अ॒र्केण॒ वि ब॑बाधे॒ तमां॑सि ।\n\nबृह॒स्पति॒र्गोव॑पुषो व॒लस्य॒ निर्म॒ज्जानं॒ न पर्व॑णो जभार ॥९॥\n\nहि॒मेव॑ प॒र्णा मु॑षि॒ता वना॑नि॒ बृह॒स्पति॑नाकृपयद्व॒लो गाः ।\n\nअ॒ना॒नु॒कृ॒त्यम॑पु॒नश्च॑कार॒ यात्सूर्या॒मासा॑ मि॒थ उ॒च्चरा॑तः ॥१०॥\n\nअ॒भि श्या॒वं न कृश॑नेभि॒रश्वं॒ नक्ष॑त्रेभिः पि॒तरो॒ द्याम॑पिंशन् ।\n\nरात्र्यां॒ तमो॒ अद॑धु॒र्ज्योति॒रह॒न्बृह॒स्पति॑र्भि॒नदद्रिं॑ वि॒दद्गाः ॥११॥\n\nइ॒दम॑कर्म॒ नमो॑ अभ्रि॒याय॒ यः पू॒र्वीरन्वा॒नोन॑वीति ।\n\nबृह॒स्पति॒: स हि गोभि॒: सो अश्वै॒: स वी॒रेभि॒: स नृभि॑र्नो॒ वयो॑ धात् ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 69,
"text": "१२ सुमित्रो वाध्र्यश्वः। अग्निः। त्रिष्टुप्, १-२ जगती।\n\nभ॒द्रा अ॒ग्नेर्व॑ध्र्य॒श्वस्य॑ सं॒दृशो॑ वा॒मी प्रणी॑तिः सु॒रणा॒ उपे॑तयः ।\n\nयदीं॑ सुमि॒त्रा विशो॒ अग्र॑ इ॒न्धते॑ घृ॒तेनाहु॑तो जरते॒ दवि॑द्युतत् ॥१॥\n\nघृ॒तम॒ग्नेर्व॑ध्र्य॒श्वस्य॒ वर्ध॑नं घृ॒तमन्नं॑ घृ॒तम्व॑स्य॒ मेद॑नम् ।\n\nघृ॒तेनाहु॑त उर्वि॒या वि प॑प्रथे॒ सूर्य॑ इव रोचते स॒र्पिरा॑सुतिः ॥२॥\n\nयत्ते॒ मनु॒र्यदनी॑कं सुमि॒त्रः स॑मी॒धे अ॑ग्ने॒ तदि॒दं नवी॑यः ।\n\nस रे॒वच्छो॑च॒ स गिरो॑ जुषस्व॒ स वाजं॑ दर्षि॒ स इ॒ह श्रवो॑ धाः ॥३॥\n\nयं त्वा॒ पूर्व॑मीळि॒तो व॑ध्र्य॒श्वः स॑मी॒धे अ॑ग्ने॒ स इ॒दं जु॑षस्व ।\n\nस न॑: स्ति॒पा उ॒त भ॑वा तनू॒पा दा॒त्रं र॑क्षस्व॒ यदि॒दं ते॑ अ॒स्मे ॥४॥\n\nभवा॑ द्यु॒म्नी वा॑ध्र्यश्वो॒त गो॒पा मा त्वा॑ तारीद॒भिमा॑ति॒र्जना॑नाम् ।\n\nशूर॑ इव धृ॒ष्णुश्च्यव॑नः सुमि॒त्रः प्र नु वो॑चं॒ वाध्र्य॑श्वस्य॒ नाम॑ ॥५॥\n\nसम॒ज्र्या॑ पर्व॒त्या॒३ वसू॑नि॒ दासा॑ वृ॒त्राण्यार्या॑ जिगेथ ।\n\nशूर॑ इव धृ॒ष्णुश्च्यव॑नो॒ जना॑नां॒ त्वम॑ग्ने पृतना॒यूँर॒भि ष्या॑: ॥६॥\n\nदी॒र्घत॑न्तुर्बृ॒हदु॑क्षा॒यम॒ग्निः स॒हस्र॑स्तरीः श॒तनी॑थ॒ ऋभ्वा॑ ।\n\nद्यु॒मान्द्यु॒मत्सु॒ नृभि॑र्मृ॒ज्यमा॑नः सुमि॒त्रेषु॑ दीदयो देव॒यत्सु॑ ॥७॥\n\nत्वे धे॒नुः सु॒दुघा॑ जातवेदोऽस॒श्चते॑व सम॒ना स॑ब॒र्धुक् ।\n\nत्वं नृभि॒र्दक्षि॑णावद्भिरग्ने सुमि॒त्रेभि॑रिध्यसे देव॒यद्भि॑: ॥८॥\n\nदे॒वाश्चि॑त्ते अ॒मृता॑ जातवेदो महि॒मानं॑ वाध्र्यश्व॒ प्र वो॑चन् ।\n\nयत्स॒म्पृच्छं॒ मानु॑षी॒र्विश॒ आय॒न्त्वं नृभि॑रजय॒स्त्वावृ॑धेभिः ॥९॥\n\nपि॒तेव॑ पु॒त्रम॑बिभरु॒पस्थे॒ त्वाम॑ग्ने वध्र्य॒श्वः स॑प॒र्यन् ।\n\nजु॒षा॒णो अ॑स्य स॒मिधं॑ यविष्ठो॒त पूर्वाँ॑ अवनो॒र्व्राध॑तश्चित् ॥१०॥\n\nशश्व॑द॒ग्निर्व॑ध्र्य॒श्वस्य॒ शत्रू॒न्नृभि॑र्जिगाय सु॒तसो॑मवद्भिः ।\n\nसम॑नं चिददहश्चित्रभा॒नोऽव॒ व्राध॑न्तमभिनद्वृ॒धश्चि॑त् ॥११॥\n\nअ॒यम॒ग्निर्व॑ध्र्य॒श्वस्य॑ वृत्र॒हा स॑न॒कात्प्रेद्धो॒ नम॑सोपवा॒क्य॑: ।\n\nस नो॒ अजा॑मीँरु॒त वा॒ विजा॑मीन॒भि ति॑ष्ठ॒ शर्ध॑तो वाध्र्यश्व ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 70,
"text": "११सुमित्रो वाध्र्यश्वः। आप्रीसूक्तं = (१ इध्मः समिद्धोऽग्निर्वा, २ नराशंसः, ३ इळ:, ४ बर्हिः, ५ देवीर्द्वारः, ६ उषासानक्ता, ७ दैव्यौ होतारौ प्रचेतसौ, ८ त्रिस्रो देव्यः सरस्वतीळाभारत्यः, ९ त्वष्टा, १० वनस्पतिः, ११ स्वाहाकृतयः) । त्रिष्टुप्।\n\nइ॒मां मे॑ अग्ने स॒मिधं॑ जुषस्वे॒ळस्प॒दे प्रति॑ हर्या घृ॒ताची॑म् ।\n\nवर्ष्म॑न्पृथि॒व्याः सु॑दिन॒त्वे अह्ना॑मू॒र्ध्वो भ॑व सुक्रतो देवय॒ज्या ॥१॥\n\nआ दे॒वाना॑मग्र॒यावे॒ह या॑तु॒ नरा॒शंसो॑ वि॒श्वरू॑पेभि॒रश्वै॑: ।\n\nऋ॒तस्य॑ प॒था नम॑सा मि॒येधो॑ दे॒वेभ्यो॑ दे॒वत॑मः सुषूदत् ॥२॥\n\nश॒श्व॒त्त॒ममी॑ळते दू॒त्या॑य ह॒विष्म॑न्तो मनु॒ष्या॑सो अ॒ग्निम् ।\n\nवहि॑ष्ठै॒रश्वै॑: सु॒वृता॒ रथे॒ना ऽऽदे॒वान्व॑क्षि॒ नि ष॑दे॒ह होता॑ ॥३॥\n\nवि प्र॑थतां दे॒वजु॑ष्टं तिर॒श्चा दी॒र्घं द्रा॒घ्मा सु॑र॒भि भू॑त्व॒स्मे ।\n\nअहे॑ळता॒ मन॑सा देव बर्हि॒रिन्द्र॑ज्येष्ठाँ उश॒तो य॑क्षि दे॒वान् ॥४॥\n\nदि॒वो वा॒ सानु॑ स्पृ॒शता॒ वरी॑यः पृथि॒व्या वा॒ मात्र॑या॒ वि श्र॑यध्वम् ।\n\nउ॒श॒तीर्द्वा॑रो महि॒ना म॒हद्भि॑र्दे॒वं रथं॑ रथ॒युर्धा॑रयध्वम् ॥५॥\n\nदे॒वी दि॒वो दु॑हि॒तरा॑ सुशि॒ल्पे उ॒षासा॒नक्ता॑ सदतां॒ नि योनौ॑ ।\n\nआ वां॑ दे॒वास॑ उशती उ॒शन्त॑ उ॒रौ सी॑दन्तु सुभगे उ॒पस्थे॑ ॥६॥\n\nऊ॒र्ध्वो ग्रावा॑ बृ॒हद॒ग्निः समि॑द्धः प्रि॒या धामा॒न्यदि॑तेरु॒पस्थे॑ ।\n\nपु॒रोहि॑तावृत्विजा य॒ज्ञे अ॒स्मिन्वि॒दुष्ट॑रा॒ द्रवि॑ण॒मा य॑जेथाम् ॥७॥\n\nतिस्रो॑ देवीर्ब॒र्हिरि॒दं वरी॑य॒ आ सी॑दत चकृ॒मा व॑: स्यो॒नम् ।\n\nम॒नु॒ष्वद्य॒ज्ञं सुधि॑ता ह॒वींषीळा॑ दे॒वी घृ॒तप॑दी जुषन्त ॥८॥\n\nदेव॑ त्वष्ट॒र्यद्ध॑ चारु॒त्वमान॒ड्यदङ्गि॑रसा॒मभ॑वः सचा॒भूः ।\n\nस दे॒वानां॒ पाथ॒ उप॒ प्र वि॒द्वाँ उ॒शन्य॑क्षि द्रविणोदः सु॒रत्न॑: ॥९॥\n\nवन॑स्पते रश॒नया॑ नि॒यूया॑ दे॒वानां॒ पाथ॒ उप॑ वक्षि वि॒द्वान् ।\n\nस्वदा॑ति दे॒वः कृ॒णव॑द्ध॒वींष्यव॑तां॒ द्यावा॑पृथि॒वी हवं॑ मे ॥१०॥\n\nआग्ने॑ वह॒ वरु॑णमि॒ष्टये॑ न॒ इन्द्रं॑ दि॒वो म॒रुतो॑ अ॒न्तरि॑क्षात् ।\n\nसीद॑न्तु ब॒र्हिर्विश्व॒ आ यज॑त्रा॒: स्वाहा॑ दे॒वा अ॒मृता॑ मादयन्ताम् ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 71,
"text": "११ बृहस्पतिरांगिरसः। ज्ञानम्। त्रिष्टुप् ,९ जगती।\n\nबृह॑स्पते प्रथ॒मं वा॒चो अग्रं॒ यत्प्रैर॑त नाम॒धेयं॒ दधा॑नाः ।\n\nयदे॑षां॒ श्रेष्ठं॒ यद॑रि॒प्रमासी॑त्प्रे॒णा तदे॑षां॒ निहि॑तं॒ गुहा॒विः ॥१॥\n\nसक्तु॑मिव॒ तित॑उना पु॒नन्तो॒ यत्र॒ धीरा॒ मन॑सा॒ वाच॒मक्र॑त ।\n\nअत्रा॒ सखा॑यः स॒ख्यानि॑ जानते भ॒द्रैषां॑ ल॒क्ष्मीर्निहि॒ताधि॑ वा॒चि ॥२॥\n\nय॒ज्ञेन॑ वा॒चः प॑द॒वीय॑माय॒न्तामन्व॑विन्द॒न्नृषि॑षु॒ प्रवि॑ष्टाम् ।\n\n तामा॒भृत्या॒ व्य॑दधुः पुरु॒त्रा तां स॒प्त रे॒भा अ॒भि सं न॑वन्ते ॥३॥\n\nउ॒त त्व॒: पश्य॒न्न द॑दर्श॒ वाच॑मु॒त त्व॑: शृ॒ण्वन्न शृ॑णोत्येनाम् ।\n\nउ॒तो त्व॑स्मै त॒न्वं१ वि स॑स्रे जा॒येव॒ पत्य॑ उश॒ती सु॒वासा॑: ॥४॥\n\nउ॒त त्वं॑ स॒ख्ये स्थि॒रपी॑तमाहु॒र्नैनं॑ हिन्व॒न्त्यपि॒ वाजि॑नेषु ।\n\nअधे॑न्वा चरति मा॒ययै॒ष वाचं॑ शुश्रु॒वाँ अ॑फ॒लाम॑पु॒ष्पाम् ॥५॥\n\nयस्ति॒त्याज॑ सचि॒विदं॒ सखा॑यं॒ न तस्य॑ वा॒च्यपि॑ भा॒गो अ॑स्ति ।\n\nयदीं॑ शृ॒णोत्यल॑कं शृणोति न॒हि प्र॒वेद॑ सुकृ॒तस्य॒ पन्था॑म् ॥६॥\n\nअ॒क्ष॒ण्वन्त॒: कर्ण॑वन्त॒: सखा॑यो मनोज॒वेष्वस॑मा बभूवुः ।\n\nआ॒द॒घ्नास॑ उपक॒क्षास॑ उ त्वे ह्र॒दा इ॑व॒ स्नात्वा॑ उ त्वे ददृश्रे ॥७॥\n\nहृ॒दा त॒ष्टेषु॒ मन॑सो ज॒वेषु॒ यद्ब्रा॑ह्म॒णाः सं॒यज॑न्ते॒ सखा॑यः ।\n\nअत्राह॑ त्वं॒ वि ज॑हुर्वे॒द्याभि॒रोह॑ब्रह्माणो॒ वि च॑रन्त्यु त्वे ॥८॥\n\nइ॒मे ये नार्वाङ्न प॒रश्चर॑न्ति॒ न ब्रा॑ह्म॒णासो॒ न सु॒तेक॑रासः ।\n\nत ए॒ते वाच॑मभि॒पद्य॑ पा॒पया॑ सि॒रीस्तन्त्रं॑ तन्वते॒ अप्र॑जज्ञयः ॥९॥\n\nसर्वे॑ नन्दन्ति य॒शसाग॑तेन सभासा॒हेन॒ सख्या॒ सखा॑यः ।\n\n कि॒ल्बि॒ष॒स्पृत्पि॑तु॒षणि॒र्ह्ये॑षा॒मरं॑ हि॒तो भव॑ति॒ वाजि॑नाय ॥१०॥\n\nऋ॒चां त्व॒: पोष॑मास्ते पुपु॒ष्वान्गा॑य॒त्रं त्वो॑ गायति॒ शक्व॑रीषु ।\n\nब्र॒ह्मा त्वो॒ वद॑ति जातवि॒द्यां य॒ज्ञस्य॒ मात्रां॒ वि मि॑मीत उ त्वः ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 72,
"text": "९ लौक्यो बृहस्पतिः, बृहस्पतिरांगिरसो वा, दाक्षायणी अदितिर्वा। देवाः। अनुष्टुप्।\n\nदे॒वानां॒ नु व॒यं जाना॒ प्र वो॑चाम विप॒न्यया॑ । उ॒क्थेषु॑ श॒स्यमा॑नेषु॒ यः पश्या॒दुत्त॑रे यु॒गे ॥१॥\n\nब्रह्म॑ण॒स्पति॑रे॒ता सं क॒र्मार॑ इवाधमत् । दे॒वानां॑ पू॒र्व्ये यु॒गेऽस॑त॒: सद॑जायत ॥२॥\n\nदे॒वानां॑ यु॒गे प्र॑थ॒मेऽस॑त॒: सद॑जायत । तदाशा॒ अन्व॑जायन्त॒ तदु॑त्ता॒नप॑द॒स्परि॑ ॥३॥\n\nभूर्ज॑ज्ञ उत्ता॒नप॑दो भु॒व आशा॑ अजायन्त । अदि॑ते॒र्दक्षो॑ अजायत॒ दक्षा॒द्वदि॑ति॒: परि॑ ॥४॥\n\nअदि॑ति॒र्ह्यज॑निष्ट॒ दक्ष॒ या दु॑हि॒ता तव॑ । तां दे॒वा अन्व॑जायन्त भ॒द्रा अ॒मृत॑बन्धवः ॥५॥\n\nयद्दे॑वा अ॒दः स॑लि॒ले सुसं॑रब्धा॒ अति॑ष्ठत । अत्रा॑ वो॒ नृत्य॑तामिव ती॒व्रो रे॒णुरपा॑यत ॥६॥\n\nयद्दे॑वा॒ यत॑यो यथा॒ भुव॑ना॒न्यपि॑न्वत । अत्रा॑ समु॒द्र आ गू॒ळ्हमा सूर्य॑मजभर्तन ॥७॥\n\nअ॒ष्टौ पु॒त्रासो॒ अदि॑ते॒र्ये जा॒तास्त॒न्व१स्परि॑ । दे॒वाँ उप॒ प्रैत्स॒प्तभि॒: परा॑ मार्ता॒ण्डमा॑स्यत् ॥८॥\n\nस॒प्तभि॑: पु॒त्रैरदि॑ति॒रुप॒ प्रैत्पू॒र्व्यं यु॒गम् । प्र॒जायै॑ मृ॒त्यवे॑ त्व॒त्पुन॑र्मार्ता॒ण्डमाभ॑रत् ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 73,
"text": "११ गौरिवीतिःशाक्त्यः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nजनि॑ष्ठा उ॒ग्रः सह॑से तु॒राय॑ म॒न्द्र ओजि॑ष्ठो बहु॒लाभि॑मानः ।\n\nअव॑र्ध॒न्निन्द्रं॑ म॒रुत॑श्चि॒दत्र॑ मा॒ता यद्वी॒रं द॒धन॒द्धनि॑ष्ठा ॥१॥\n\nद्रु॒हो निष॑त्ता पृश॒नी चि॒देवै॑: पु॒रू शंसे॑न वावृधु॒ष्ट इन्द्र॑म् ।\n\nअ॒भीवृ॑तेव॒ ता म॑हाप॒देन॑ ध्वा॒न्तात्प्र॑पि॒त्वादुद॑रन्त॒ गर्भा॑: ॥२॥\n\nऋ॒ष्वा ते॒ पादा॒ प्र यज्जिगा॒स्यव॑र्ध॒न्वाजा॑ उ॒त ये चि॒दत्र॑ ।\n\nत्वमि॑न्द्र सालावृ॒कान्त्स॒हस्र॑मा॒सन्द॑धिषे अ॒श्विना व॑वृत्याः ॥३॥\n\nस॒म॒ना तूर्णि॒रुप॑ यासि य॒ज्ञमा नास॑त्या स॒ख्याय॑ वक्षि ।\n\nव॒साव्या॑मिन्द्र धारयः स॒हस्रा॒ऽश्विना॑ शूर ददतुर्म॒घानि॑ ॥४॥\n\nमन्द॑मान ऋ॒तादधि॑ प्र॒जायै॒ सखि॑भि॒रिन्द्र॑ इषि॒रेभि॒रर्थ॑म् ।\n\nआभि॒र्हि मा॒या उप॒ दस्यु॒मागा॒न्मिह॒: प्र त॒म्रा अ॑वप॒त्तमां॑सि ॥५॥\n\nसना॑माना चिद्ध्वसयो॒ न्य॑स्मा॒ अवा॑ह॒न्निन्द्र॑ उ॒षसो॒ यथान॑: ।\n\nऋ॒ष्वैर॑गच्छ॒: सखि॑भि॒र्निका॑मैः सा॒कं प्र॑ति॒ष्ठा हृद्या॑ जघन्थ ॥६॥\n\nत्वं ज॑घन्थ॒ नमु॑चिं मख॒स्युं दासं॑ कृण्वा॒न ऋष॑ये॒ विमा॑यम् ।\n\nत्वं च॑कर्थ॒ मन॑वे स्यो॒नान्प॒थो दे॑व॒त्राञ्ज॑सेव॒ याना॑न् ॥७॥\n\nत्वमे॒तानि॑ पप्रिषे॒ वि नामेशा॑न इन्द्र दधिषे॒ गभ॑स्तौ ।\n\nअनु॑ त्वा दे॒वाः शव॑सा मदन्त्यु॒परि॑बुध्नान्व॒निन॑श्चकर्थ ॥८॥\n\nच॒क्रं यद॑स्या॒प्स्वा निष॑त्तमु॒तो तद॑स्मै॒ मध्विच्च॑च्छद्यात् ।\n\nपृ॒थि॒व्यामति॑षितं॒ यदूध॒: पयो॒ गोष्वद॑धा॒ ओष॑धीषु ॥९॥\n\nअश्वा॑दिया॒येति॒ यद्वद॒न्त्योज॑सो जा॒तमु॒त म॑न्य एनम् ।\n\nम॒न्योरि॑याय ह॒र्म्येषु॑ तस्थौ॒ यत॑: प्रज॒ज्ञ इन्द्रो॑ अस्य वेद ॥१०॥\n\nवय॑: सुप॒र्णा उप॑ सेदु॒रिन्द्रं॑ प्रि॒यमे॑धा॒ ऋष॑यो॒ नाध॑मानाः ।\n\nअप॑ ध्वा॒न्तमू॑र्णु॒हि पू॒र्धि चक्षु॑र्मुमु॒ग्ध्य१स्मान्नि॒धये॑व ब॒द्धान् ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 74,
"text": "६ गौरिवीतिःशाक्त्यः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nवसू॑नां वा चर्कृष॒ इय॑क्षन्धि॒या वा॑ य॒ज्ञैर्वा॒ रोद॑स्योः ।\n\nअर्व॑न्तो वा॒ ये र॑यि॒मन्त॑: सा॒तौ व॒नंअ वा॒ ये सु॒श्रुणं॑ सु॒श्रुतो॒ धुः ॥१॥\n\nहव॑ एषा॒मसु॑रो नक्षत॒ द्यां श्र॑वस्य॒ता मन॑सा निंसत॒ क्षाम् ।\n\nचक्षा॑णा॒ यत्र॑ सुवि॒ताय॑ दे॒वा द्यौर्न वारे॑भिः कृ॒णव॑न्त॒ स्वैः ॥२॥\n\nइ॒यमे॑षाम॒मृता॑नां॒ गीः स॒र्वता॑ता॒ ये कृ॒पण॑न्त॒ रत्न॑म् ।\n\nधियं॑ च य॒ज्ञं च॒ साध॑न्त॒स्ते नो॑ धान्तु वस॒व्य१मसा॑मि ॥३॥\n\nआ तत्त॑ इन्द्रा॒यव॑: पनन्ता॒ऽभि य ऊ॒र्वं गोम॑न्तं॒ तितृ॑त्सान् ।\n\nस॒कृ॒त्स्वं१ ये पु॑रुपु॒त्रां म॒हीं स॒हस्र॑धारां बृह॒तीं दुदु॑क्षन् ॥४॥\n\nशची॑व॒ इन्द्र॒मव॑से कृणुध्व॒मना॑नतं द॒मय॑न्तं पृत॒न्यून् ।\n\nऋ॒भु॒क्षणं॑ म॒घवा॑नं सुवृ॒क्तिं भर्ता॒ यो वज्रं॒ नर्यं॑ पुरु॒क्षुः ॥५॥\n\nयद्वा॒वान॑ पुरु॒तमं॑ पुरा॒षाळा वृ॑त्र॒हेन्द्रो॒ नामा॑न्यप्राः ।\n\nअचे॑ति प्रा॒सह॒स्पति॒स्तुवि॑ष्मा॒न्यदी॑मु॒श्मसि॒ कर्त॑वे॒ कर॒त्तत् ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 75,
"text": "९ सिन्धुक्षित् प्रैयमेधः। नद्यः। जगती।\n\nप्र सु व॑ आपो महि॒मान॑मुत्त॒मं का॒रुर्वो॑चाति॒ सद॑ने वि॒वस्व॑तः ।\n\nप्र स॒प्तस॑प्त त्रे॒धा हि च॑क्र॒मुः प्र सृत्व॑रीणा॒मति॒ सिन्धु॒रोज॑सा ॥१॥\n\nप्र ते॑ऽरद॒द्वरु॑णो॒ यात॑वे प॒थः सिन्धो॒ यद्वाजाँ॑ अ॒भ्यद्र॑व॒स्त्वम् ।\n\nभूम्या॒ अधि॑ प्र॒वता॑ यासि॒ सानु॑ना॒ यदे॑षा॒मग्रं॒ जग॑तामिर॒ज्यसि॑ ॥२॥\n\nदि॒वि स्व॒नो य॑तते॒ भूम्यो॒पर्य॑न॒न्तं शुष्म॒मुदि॑यर्ति भा॒नुना॑ ।\n\nअ॒भ्रादि॑व॒ प्र स्त॑नयन्ति वृ॒ष्टय॒: सिन्धु॒र्यदेति॑ वृष॒भो न रोरु॑वत् ॥३॥\n\nअ॒भि त्वा॑ सिन्धो॒ शिशु॒मिन्न मा॒तरो॑ वा॒श्रा अ॑र्षन्ति॒ पय॑सेव धे॒नव॑: ।\n\nराजे॑व॒ युध्वा॑ नयसि॒ त्वमित्सिचौ॒ यदा॑सा॒मग्रं॑ प्र॒वता॒मिन॑क्षसि ॥४॥\n\nइ॒मं मे॑ गङ्गे यमुने सरस्वति॒ शुतु॑द्रि॒ स्तोमं॑ सचता॒ परु॒ष्ण्या ।\n\nअ॒सि॒क्न्या म॑रुद्वृधे वि॒तस्त॒याऽऽर्जी॑कीये शृणु॒ह्या सु॒षोम॑या ॥५॥\n\nतृ॒ष्टाम॑या प्रथ॒मं यात॑वे स॒जूः सु॒सर्त्वा॑ र॒सया॑ श्वे॒त्या त्या ।\n\nत्वं सि॑न्धो॒ कुभ॑या गोम॒तीं क्रुमुं॑ मेह॒त्न्वा स॒रथं॒ याभि॒रीय॑से ॥६॥\n\nऋजी॒त्येनी॒ रुश॑ती महि॒त्वा परि॒ ज्रयां॑सि भरते॒ रजां॑सि ।\n\nअद॑ब्धा॒ सिन्धु॑र॒पसा॑म॒पस्त॒माऽश्वा॒ न चि॒त्रा वपु॑षीव दर्श॒ता ॥७॥\n\nस्वश्वा॒ सिन्धु॑: सु॒रथा॑ सु॒वासा॑ हिर॒ण्ययी॒ सुकृ॑ता वा॒जिनी॑वती ।\n\nऊर्णा॑वती युव॒तिः सी॒लमा॑वत्यु॒ताधि॑ वस्ते सु॒भगा॑ मधु॒वृध॑म् ॥८॥\n\nसु॒खं रथं॑ युयुजे॒ सिन्धु॑र॒श्विनं॒ तेन॒ वाजं॑ सनिषद॒स्मिन्ना॒जौ ।\n\nम॒हान्ह्य॑स्य महि॒मा प॑न॒स्यतेऽद॑ब्धस्य॒ स्वय॑शसो विर॒प्शिन॑: ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 76,
"text": "८ सर्प ऐरावतो जरत्कर्णः। ग्रावाणः। जगती।\n\nआ व॑ ऋञ्जस ऊ॒र्जां व्यु॑ष्टि॒ष्विन्द्रं॑ म॒रुतो॒ रोद॑सी अनक्तन ।\n\nउ॒भे यथा॑ नो॒ अह॑नी सचा॒भुवा॒ सद॑:सदो वरिव॒स्यात॑ उ॒द्भिदा॑ ॥१॥\n\nतदु॒ श्रेष्ठं॒ सव॑नं सुनोत॒नाऽत्यो॒ न हस्त॑यतो॒ अद्रि॑: सो॒तरि॑ ।\n\nवि॒दद्ध्य१र्यो अ॒भिभू॑ति॒ पौंस्यं॑ म॒हो रा॒ये चि॑त्तरुते॒ यदर्व॑तः ॥२॥\n\nतदिद्ध्य॑स्य॒ सव॑नं वि॒वेर॒पो यथा॑ पु॒रा मन॑वे गा॒तुमश्रे॑त् ।\n\nगोअ॑र्णसि त्वा॒ष्ट्रे अश्व॑निर्णिजि॒ प्रेम॑ध्व॒रेष्व॑ध्व॒राँ अ॑शिश्रयुः ॥३॥\n\nअप॑ हत र॒क्षसो॑ भङ्गु॒राव॑त स्कभा॒यत॒ निॠ॑तिं॒ सेध॒ताम॑तिम् ।\n\nआ नो॑ र॒यिं सर्व॑वीरं सुनोतन देवा॒व्यं॑ भरत॒ श्लोक॑मद्रयः ॥४॥\n\nदि॒वश्चि॒दा वोऽम॑वत्तरेभ्यो वि॒भ्वना॑ चिदा॒श्व॑पस्तरेभ्यः ।\n\nवा॒योश्चि॒दा सोम॑रभस्तरेभ्यो॒ऽग्नेश्चि॑दर्च पितु॒कृत्त॑रेभ्यः ॥५॥\n\nभु॒रन्तु॑ नो य॒शस॒: सोत्वन्ध॑सो॒ ग्रावा॑णो वा॒चा दि॒विता॑ दि॒वित्म॑ता ।\n\nनरो॒ यत्र॑ दुह॒ते काम्यं॒ मध्वा॑घो॒षय॑न्तो अ॒भितो॑ मिथ॒स्तुर॑: ॥६॥\n\nसु॒न्वन्ति॒ सोमं॑ रथि॒रासो॒ अद्र॑यो॒ निर॑स्य॒ रसं॑ ग॒विषो॑ दुहन्ति॒ ते ।\n\nदु॒हन्त्यूध॑रुप॒सेच॑नाय॒ कं नरो॑ ह॒व्या न म॑र्जयन्त आ॒सभि॑: ॥७॥\n\nए॒ते न॑र॒: स्वप॑सो अभूतन॒ य इन्द्रा॑य सुनु॒थ सोम॑मद्रयः ।\n\nवा॒मंवा॑मं वो दि॒व्याय॒ धाम्ने॒ वसु॑वसु व॒: पार्थि॑वाय सुन्व॒ते ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 77,
"text": "८ स्यूमरश्मिर्भार्गवः। मरुतः। त्रिष्टुप् , ५ जगती।\n\nअ॒भ्र॒प्रुषो॒ न वा॒चा प्रु॑षा॒ वसु॑ ह॒विष्म॑न्तो॒ न य॒ज्ञा वि॑जा॒नुष॑: ।\n\nसु॒मारु॑तं॒ न ब्र॒ह्माण॑म॒र्हसे॑ ग॒णम॑स्तोष्येषां॒ न शो॒भसे॑ ॥१॥\n\nश्रि॒ये मर्या॑सो अ॒ञ्जीँर॑कृण्वत सु॒मारु॑तं॒ न पू॒र्वीरति॒ क्षप॑: ।\n\nदि॒वस्पु॒त्रास॒ एता॒ न ये॑तिर आदि॒त्यास॒स्ते अ॒क्रा न वा॑वृधुः ॥२॥\n\nप्र ये दि॒वः पृ॑थि॒व्या न ब॒र्हणा॒ त्मना॑ रिरि॒च्रे अ॒भ्रान्न सूर्य॑: ।\n\nपाज॑स्वन्तो॒ न वी॒राः प॑न॒स्यवो॑ रि॒शाद॑सो॒ न मर्या॑ अ॒भिद्य॑वः ॥३॥\n\nयु॒ष्माकं॑ बु॒ध्ने अ॒पां न याम॑नि विथु॒र्यति॒ न म॒ही श्र॑थ॒र्यति॑ ।\n\nवि॒श्वप्सु॑र्य॒ज्ञो अ॒र्वाग॒यं सु व॒: प्रय॑स्वन्तो॒ न स॒त्राच॒ आ ग॑त ॥४॥\n\nयू॒यं धू॒र्षु प्र॒युजो॒ न र॒श्मिभि॒र्ज्योति॑ष्मन्तो॒ न भा॒सा व्यु॑ष्टिषु ।\n\nश्ये॒नासो॒ न स्वय॑शसो रि॒शाद॑सः प्र॒वासो॒ न प्रसि॑तासः परि॒प्रुष॑: ॥५॥\n\nप्र यद्वह॑ध्वे मरुतः परा॒काद्यू॒यं म॒हः सं॒वर॑णस्य॒ वस्व॑: ।\n\nवि॒दा॒नासो॑ वसवो॒ राध्य॑स्या॒ऽऽराच्चि॒द्द्वेष॑: सनु॒तर्यु॑योत ॥६॥\n\nय उ॒दृचि॑ य॒ज्ञे अ॑ध्वरे॒ष्ठा म॒रुद्भ्यो॒ न मानु॑षो॒ ददा॑शत् ।\n\nरे॒वत्स वयो॑ दधते सु॒वीरं॒ स दे॒वाना॒मपि॑ गोपी॒थे अ॑स्तु ॥७॥\n\nते हि य॒ज्ञेषु॑ य॒ज्ञिया॑स॒ ऊमा॑ आदि॒त्येन॒ नाम्ना॒ शम्भ॑विष्ठाः ।\n\nते नो॑ऽवन्तु रथ॒तूर्म॑नी॒षां म॒हश्च॒ याम॑न्नध्व॒रे च॑का॒नाः ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 78,
"text": "८ स्यूमरश्मिर्भार्गवः। मरुतः। त्रिष्टुप् , २,५-७ जगती।\n\nविप्रा॑सो॒ न मन्म॑भिः स्वा॒ध्यो॑ देवा॒व्यो॒३ न य॒ज्ञैः स्वप्न॑सः ।\n\nराजा॑नो॒ न चि॒त्राः सु॑सं॒दृश॑: क्षिती॒नां न मर्या॑ अरे॒पस॑: ॥१॥\n\nअ॒ग्निर्न ये भ्राज॑सा रु॒क्मव॑क्षसो॒ वाता॑सो॒ न स्व॒युज॑: स॒द्यऊ॑तयः ।\n\nप्र॒ज्ञा॒तारो॒ न ज्येष्ठा॑: सुनी॒तय॑: सु॒शर्मा॑णो॒ न सोमा॑ ऋ॒तं य॒ते ॥२॥\n\nवाता॑सो॒ न ये धुन॑यो जिग॒त्नवो॑ऽग्नी॒नां न जि॒ह्वा वि॑रो॒किण॑: ।\n\nवर्म॑ण्वन्तो॒ न यो॒धाः शिमी॑वन्तः पितॄ॒णां न शंसा॑: सुरा॒तय॑: ॥३॥\n\nरथा॑नां॒ न ये॒१राः सना॑भयो जिगी॒वांसो॒ न शूरा॑ अ॒भिद्य॑वः ।\n\nव॒रे॒यवो॒ न मर्या॑ घृत॒प्रुषो॑ऽभिस्व॒र्तारो॑ अ॒र्कं न सु॒ष्टुभ॑: ॥४॥\n\nअश्वा॑सो॒ न ये ज्येष्ठा॑स आ॒शवो॑ दिधि॒षवो॒ न र॒थ्य॑: सु॒दान॑वः ।\n\nआपो॒ न नि॒म्नैरु॒दभि॑र्जिग॒त्नवो॑ वि॒श्वरू॑पा॒ अङ्गि॑रसो॒ न साम॑भिः ॥५॥\n\nग्रावा॑णो॒ न सू॒रय॒: सिन्धु॑मातर आदर्दि॒रासो॒ अद्र॑यो॒ न वि॒श्वहा॑ ।\n\nशि॒शूला॒ न क्री॒ळय॑: सुमा॒तरो॑ महाग्रा॒मो न याम॑न्नु॒त त्वि॒षा ॥६॥\n\nउ॒षसां॒ न के॒तवो॑ऽध्वर॒श्रिय॑: शुभं॒यवो॒ नाञ्जिभि॒र्व्य॑श्वितन् ।\n\n सिन्ध॑वो॒ न य॒यियो॒ भ्राज॑दृष्टयः परा॒वतो॒ न योज॑नानि ममिरे ॥७॥\n\nसु॒भा॒गान्नो॑ देवाः कृणुता सु॒रत्ना॑न॒स्मान्त्स्तो॒तॄन्म॑रुतो वावृधा॒नाः ।\n\nअधि॑ स्तो॒त्रस्य॑ स॒ख्यस्य॑ गात स॒नाद्धि वो॑ रत्न॒धेया॑नि॒ सन्ति॑ ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 79,
"text": "७ सौचीकोऽग्निर्वैश्वानरो वा, सप्तिर्वाजंभरो वा। अग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nअप॑श्यमस्य मह॒तो म॑हि॒त्वमम॑र्त्यस्य॒ मर्त्या॑सु वि॒क्षु ।\n\nनाना॒ हनू॒ विभृ॑ते॒ सं भ॑रेते॒ असि॑न्वती॒ बप्स॑ती॒ भूर्य॑त्तः ॥१॥\n\nगुहा॒ शिरो॒ निहि॑त॒मृध॑ग॒क्षी असि॑न्वन्नत्ति जि॒ह्वया॒ वना॑नि ।\n\nअत्रा॑ण्यस्मै प॒ड्भिः सं भ॑रन्त्युत्ता॒नह॑स्ता॒ नम॒साधि॑ वि॒क्षु ॥२॥\n\nप्र मा॒तुः प्र॑त॒रं गुह्य॑मि॒च्छन्कु॑मा॒रो न वी॒रुध॑: सर्पदु॒र्वीः ।\n\nस॒सं न प॒क्वम॑विदच्छु॒चन्तं॑ रिरि॒ह्वांसं॑ रि॒प उ॒पस्थे॑ अ॒न्तः ॥३॥\n\nतद्वा॑मृ॒तं रो॑दसी॒ प्र ब्र॑वीमि॒ जाय॑मानो मा॒तरा॒ गर्भो॑ अत्ति ।\n\nनाहं दे॒वस्य॒ मर्त्य॑श्चिकेता॒ऽग्निर॒ङ्ग विचे॑ता॒: स प्रचे॑ताः ॥४॥\n\nयो अ॑स्मा॒ अन्नं॑ तृ॒ष्वा॒३दधा॒त्याज्यै॑र्घृ॒तैर्जु॒होति॒ पुष्य॑ति ।\n\nतस्मै॑ स॒हस्र॑म॒क्षभि॒र्वि च॒क्षेऽग्ने॑ वि॒श्वत॑: प्र॒त्यङ्ङ॑सि॒ त्वम् ॥५॥\n\nकिं दे॒वेषु॒ त्यज॒ एन॑श्चक॒र्थाऽग्ने॑ पृ॒च्छामि॒ नु त्वामवि॑द्वान् ।\n\nअक्री॑ळ॒न्क्रीळ॒न्हरि॒रत्त॑वे॒ऽदन्वि प॑र्व॒शश्च॑कर्त॒ गामि॑वा॒सिः ॥६॥\n\nविषू॑चो॒ अश्वा॑न्युयुजे वने॒जा ऋजी॑तिभी रश॒नाभि॑र्गृभी॒तान् ।\n\nच॒क्ष॒दे मि॒त्रो वसु॑भि॒: सुजा॑त॒: समा॑नृधे॒ पर्व॑भिर्वावृधा॒नः ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 80,
"text": "७ सौचीकोऽग्निर्वैश्वानरो वा, सप्तिर्वाजंभरो वा। अग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nअ॒ग्निः सप्तिं॑ वाजम्भ॒रं द॑दात्य॒ग्निर्वी॒रं श्रुत्यं॑ कर्मनि॒ष्ठाम् ।\n\nअ॒ग्नी रोद॑सी॒ वि च॑रत्सम॒ञ्जन्न॒ग्निर्नारीं॑ वी॒रकु॑क्षिं॒ पुरं॑धिम् ॥१॥\n\nअ॒ग्नेरप्न॑सः स॒मिद॑स्तु भ॒द्राऽग्निर्म॒ही रोद॑सी॒ आ वि॑वेश ।\n\nअ॒ग्निरेकं॑ चोदयत्स॒मत्स्व॒ग्निर्वृ॒त्राणि॑ दयते पु॒रूणि॑ ॥२॥\n\nअ॒ग्निर्ह॒ त्यं जर॑त॒: कर्ण॑मावा॒ऽग्निर॒द्भ्यो निर॑दह॒ज्जरू॑थम् ।\n\nअ॒ग्निरत्रिं॑ घ॒र्म उ॑रुष्यद॒न्तर॒ग्निर्नृ॒मेधं॑ प्र॒जया॑सृज॒त्सम् ॥३॥\n\nअ॒ग्निर्दा॒द्द्रवि॑णं वी॒रपे॑शा अ॒ग्निॠषिं॒ यः स॒हस्रा॑ स॒नोति॑ ।\n\nअ॒ग्निर्दि॒वि ह॒व्यमा त॑ताना॒ऽग्नेर्धामा॑नि॒ विभृ॑ता पुरु॒त्रा ॥४॥\n\nअ॒ग्निमु॒क्थैॠष॑यो॒ वि ह्व॑यन्ते॒ऽग्निं नरो॒ याम॑नि बाधि॒तास॑: ।\n\nअ॒ग्निं वयो॑ अ॒न्तरि॑क्षे॒ पत॑न्तो॒ऽग्निः स॒हस्रा॒ परि॑ याति॒ गोना॑म् ॥५॥\n\nअ॒ग्निं विश॑ ईळते॒ मानु॑षी॒र्या अ॒ग्निं मनु॑षो॒ नहु॑षो॒ वि जा॒ताः ।\n\nअ॒ग्निर्गान्ध॑र्वीं प॒थ्या॑मृ॒तस्या॒ऽग्नेर्गव्यू॑तिर्घृ॒त आ निष॑त्ता ॥६॥\n\nअ॒ग्नये॒ ब्रह्म॑ ऋ॒भव॑स्ततक्षुर॒ग्निं म॒हाम॑वोचामा सुवृ॒क्तिम् ।\n\nअग्ने॒ प्राव॑ जरि॒तारं॑ यवि॒ष्ठाऽग्ने॒ महि॒ द्रवि॑ण॒मा य॑जस्व ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 81,
"text": "७ विश्वकर्मा भौवनः। विश्वकर्मा । त्रिष्टुप् , २ विराड्रूपा।\n\nय इ॒मा विश्वा॒ भुव॑नानि॒ जुह्व॒दृषि॒र्होता॒ न्यसी॑दत्पि॒ता न॑: ।\n\nस आ॒शिषा॒ द्रवि॑णमि॒च्छमा॑नः प्रथम॒च्छदव॑राँ॒ आ वि॑वेश ॥१॥\n\nकिं स्वि॑दासीदधि॒ष्ठान॑मा॒रम्भ॑णं कत॒मत्स्वि॑त्क॒थासी॑त् ।\n\nयतो॒ भूमिं॑ ज॒नय॑न्वि॒श्वक॑र्मा॒ वि द्यामौर्णो॑न्महि॒ना वि॒श्वच॑क्षाः ॥२॥\n\nवि॒श्वत॑श्चक्षुरु॒त वि॒श्वतो॑मुखो वि॒श्वतो॑बाहुरु॒त वि॒श्वत॑स्पात् ।\n\nसं बा॒हुभ्यां॒ धम॑ति॒ सं पत॑त्रै॒र्द्यावा॒भूमी॑ ज॒नय॑न्दे॒व एक॑: ॥३॥\n\nकिं स्वि॒द्वनं॒ क उ॒ स वृ॒क्ष आ॑स॒ यतो॒ द्यावा॑पृथि॒वी नि॑ष्टत॒क्षुः ।\n\nमनी॑षिणो॒ मन॑सा पृ॒च्छतेदु॒ तद्यद॒ध्यति॑ष्ठ॒द्भुव॑नानि धा॒रय॑न् ॥४॥\n\nया ते॒ धामा॑नि पर॒माणि॒ याव॒मा या म॑ध्य॒मा वि॑श्वकर्मन्नु॒तेमा ।\n\nशिक्षा॒ सखि॑भ्यो ह॒विषि॑ स्वधावः स्व॒यं य॑जस्व त॒न्वं॑ वृधा॒नः ॥५॥\n\nविश्व॑कर्मन्ह॒विषा॑ वावृधा॒नः स्व॒यं य॑जस्व पृथि॒वीमु॒त द्याम् ।\n\nमुह्य॑न्त्व॒न्ये अ॒भितो॒ जना॑स इ॒हास्माकं॑ म॒घवा॑ सू॒रिर॑स्तु ॥६॥\n\nवा॒चस्पतिं॑ वि॒श्वक॑र्माणमू॒तये॑ मनो॒जुवं॒ वाजे॑ अ॒द्या हु॑वेम ।\n\nस नो॒ विश्वा॑नि॒ हव॑नानि जोषद्वि॒श्वश॑म्भू॒रव॑से सा॒धुक॑र्मा ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 82,
"text": "७ विश्वकर्मा भौवनः। विश्वकर्मा। त्रिष्टुप् ।\n\nचक्षु॑षः पि॒ता मन॑सा॒ हि धीरो॑ घृ॒तमे॑ने अजन॒न्नन्न॑माने ।\n\nय॒देदन्ता॒ अद॑दृहन्त॒ पूर्व॒ आदिद्द्यावा॑पृथि॒वी अ॑प्रथेताम् ॥१॥\n\nवि॒श्वक॑र्मा॒ विम॑ना॒ आद्विहा॑या धा॒ता वि॑धा॒ता प॑र॒मोत सं॒दृक् ।\n\nतेषा॑मि॒ष्टानि॒ समि॒षा म॑दन्ति॒ यत्रा॑ सप्तऋ॒षीन्प॒र एक॑मा॒हुः ॥२॥\n\nयो न॑: पि॒ता ज॑नि॒ता यो वि॑धा॒ता धामा॑नि॒ वेद॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ।\n\nयो दे॒वानां॑ नाम॒धा एक॑ ए॒व तं स॑म्प्र॒श्नं भुव॑ना यन्त्य॒न्या ॥३॥\n\nत आय॑जन्त॒ द्रवि॑णं॒ सम॑स्मा॒ ऋष॑य॒: पूर्वे॑ जरि॒तारो॒ न भू॒ना ।\n\nअ॒सूर्ते॒ सूर्ते॒ रज॑सि निष॒त्ते ये भू॒तानि॑ स॒मकृ॑ण्वन्नि॒मानि॑ ॥४॥\n\nप॒रो दि॒वा प॒र ए॒ना पृ॑थि॒व्या प॒रो दे॒वेभि॒रसु॑रै॒र्यदस्ति॑ ।\n\nकं स्वि॒द्गर्भं॑ प्रथ॒मं द॑ध्र॒ आपो॒ यत्र॑ दे॒वाः स॒मप॑श्यन्त॒ विश्वे॑ ॥५॥\n\nतमिद्गर्भं॑ प्रथ॒मं द॑ध्र॒ आपो॒ यत्र॑ दे॒वाः स॒मग॑च्छन्त॒ विश्वे॑ ।\n\nअ॒जस्य॒ नाभा॒वध्येक॒मर्पि॑तं॒ यस्मि॒न्विश्वा॑नि॒ भुव॑नानि त॒स्थुः ॥६॥\n\nन तं वि॑दाथ॒ य इ॒मा ज॒जाना॒ऽन्यद्यु॒ष्माक॒मन्त॑रं बभूव ।\n\nनी॒हा॒रेण॒ प्रावृ॑ता॒ जल्प्या॑ चाऽसु॒तृप॑ उक्थ॒शास॑श्चरन्ति ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 83,
"text": "७ मन्युस्तापसः। मन्युः। त्रिष्टुप् , १ जगती।\n\nयस्ते॑ म॒न्योऽवि॑धद्वज्र सायक॒ सह॒ ओज॑: पुष्यति॒ विश्व॑मानु॒षक् ।\n\nसा॒ह्याम॒ दास॒मार्यं॒ त्वया॑ यु॒जा सह॑स्कृतेन॒ सह॑सा॒ सह॑स्वता ॥१\n\nम॒न्युरिन्द्रो॑ म॒न्युरे॒वास॑ दे॒वो म॒न्युर्होता॒ वरु॑णो जा॒तवे॑दाः ।\n\nम॒न्युं विश॑ ईळते॒ मानु॑षी॒र्याः पा॒हि नो॑ मन्यो॒ तप॑सा स॒जोषा॑: ॥२॥\n\nअ॒भी॑हि मन्यो त॒वस॒स्तवी॑या॒न्तप॑सा यु॒जा वि ज॑हि॒ शत्रू॑न् ।\n\nअ॒मि॒त्र॒हा वृ॑त्र॒हा द॑स्यु॒हा च॒ विश्वा॒ वसू॒न्या भ॑रा॒ त्वं न॑: ॥३॥\n\nत्वं हि म॑न्यो अ॒भिभू॑त्योजाः स्वय॒म्भूर्भामो॑ अभिमातिषा॒हः ।\n\nवि॒श्वच॑र्षणि॒: सहु॑रि॒: सहा॑वान॒स्मास्वोज॒: पृत॑नासु धेहि ॥४॥\n\nअ॒भा॒गः सन्नप॒ परे॑तो अस्मि॒ तव॒ क्रत्वा॑ तवि॒षस्य॑ प्रचेतः ।\n\nतं त्वा॑ मन्यो अक्र॒तुर्जि॑हीळा॒हं स्वा त॒नूर्ब॑ल॒देया॑य॒ मेहि॑ ॥५॥\n\nअ॒यं ते॑ अ॒स्म्युप॒ मेह्य॒र्वाङ्प्र॑तीची॒नः स॑हुरे विश्वधायः ।\n\nमन्यो॑ वज्रिन्न॒भि मामा व॑वृत्स्व॒ हना॑व॒ दस्यूँ॑रु॒त बो॑ध्या॒पेः ॥६॥\n\nअ॒भि प्रेहि॑ दक्षिण॒तो भ॑वा॒ मेऽधा॑ वृ॒त्राणि॑ जङ्घनाव॒ भूरि॑ ।\n\nजु॒होमि॑ ते ध॒रुणं॒ मध्वो॒ अग्र॑मु॒भा उ॑पां॒शु प्र॑थ॒मा पि॑बाव ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 84,
"text": "७ मन्युस्तापसः। मन्युः। जगती,१-३ त्रिष्टुप्।\n\nत्वया॑ मन्यो स॒रथ॑मारु॒जन्तो॒ हर्ष॑माणासो धृषि॒ता म॑रुत्वः ।\n\nति॒ग्मेष॑व॒ आयु॑धा सं॒शिशा॑ना अ॒भि प्र य॑न्तु॒ नरो॑ अ॒ग्निरू॑पाः ॥१॥\n\nअ॒ग्निरि॑व मन्यो त्विषि॒तः स॑हस्व सेना॒नीर्न॑: सहुरे हू॒त ए॑धि ।\n\nह॒त्वाय॒ शत्रू॒न्वि भ॑जस्व॒ वेद॒ ओजो॒ मिमा॑नो॒ वि मृधो॑ नुदस्व ॥२॥\n\nसह॑स्व मन्यो अ॒भिमा॑तिम॒स्मे रु॒जन्मृ॒णन्प्र॑मृ॒णन्प्रेहि॒ शत्रू॑न् ।\n\nउ॒ग्रं ते॒ पाजो॑ न॒न्वा रु॑रुध्रे व॒शी वशं॑ नयस एकज॒ त्वम् ॥३॥\n\nएको॑ बहू॒नाम॑सि मन्यवीळि॒तो विशं॑विशं यु॒धये॒ सं शि॑शाधि ।\n\nअकृ॑त्तरु॒क्त्वया॑ यु॒जा व॒यं द्यु॒मन्तं॒ घोषं॑ विज॒याय॑ कृण्महे ॥४॥\n\nवि॒जे॒ष॒कृदिन्द्र॑ इवानवब्र॒वो॒३ऽस्माकं॑ मन्यो अधि॒पा भ॑वे॒ह ।\n\nप्रि॒यं ते॒ नाम॑ सहुरे गृणीमसि वि॒द्मा तमुत्सं॒ यत॑ आब॒भूथ॑ ॥५॥\n\nआभू॑त्या सह॒जा व॑ज्र सायक॒ सहो॑ बिभर्ष्यभिभूत॒ उत्त॑रम् ।\n\nक्रत्वा॑ नो मन्यो स॒ह मे॒द्ये॑धि महाध॒नस्य॑ पुरुहूत सं॒सृजि॑ ॥६॥\n\nसंसृ॑ष्टं॒ धन॑मु॒भयं॑ स॒माकृ॑तम॒स्मभ्यं॑ दत्तां॒ वरु॑णश्च म॒न्युः ।\n\nभियं॒ दधा॑ना॒ हृद॑येषु॒ शत्र॑व॒: परा॑जितासो॒ अप॒ नि ल॑यन्ताम् ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 85,
"text": "४७ सावित्री सूर्या ऋषिका। १-५ सोमः, ६-१६ सूर्याविवाहः, १७ देवाः, १८ सोमार्कौ, १९ चन्द्रमाः, २०-२८ नृणां विवाहमन्त्रा आशी:प्रायाः, २९-३० वधूवासः संस्पर्शनिन्दा, ३१ दम्पत्योर्यक्ष्मनाशनं, ३२-४७ सूर्या सावित्री। अनुष्टुप् , १४,१९-२१,२३-२४,२६,३६-३७,४४ त्रिष्टुप्, १८,२७,४३ जगती, ३४ उरोबृहती।\n\nस॒त्येनोत्त॑भिता॒ भूमि॒: सूर्ये॒णोत्त॑भिता॒ द्यौः । ऋ॒तेना॑दि॒त्यास्ति॑ष्ठन्ति दि॒वि सोमो॒ अधि॑ श्रि॒तः ॥१॥\n\nसोमे॑नादि॒त्या ब॒लिन॒: सोमे॑न पृथि॒वी म॒ही । अथो॒ नक्ष॑त्राणामे॒षामु॒पस्थे॒ सोम॒ आहि॑तः ॥२॥\n\nसोमं॑ मन्यते पपि॒वान्यत्स॑म्पिं॒षन्त्योष॑धिम् । सोमं॒ यं ब्र॒ह्माणो॑ वि॒दुर्न तस्या॑श्नाति॒ कश्च॒न ॥३॥\n\nआ॒च्छद्वि॑धानैर्गुपि॒तो बार्ह॑तैः सोम रक्षि॒तः । ग्राव्णा॒मिच्छृ॒ण्वन्ति॑ष्ठसि॒ न ते॑ अश्नाति॒ पार्थि॑वः ॥४॥\n\nयत्त्वा॑ देव प्र॒पिब॑न्ति॒ तत॒ आ प्या॑यसे॒ पुन॑: । वा॒युः सोम॑स्य रक्षि॒ता समा॑नां॒ मास॒ आकृ॑तिः ॥५॥\n\nरैभ्या॑सीदनु॒देयी॑ नाराशं॒सी न्योच॑नी । सू॒र्याया॑ भ॒द्रमिद्वासो॒ गाथ॑यैति॒ परि॑ष्कृतम् ॥६॥\n\nचित्ति॑रा उप॒बर्ह॑णं॒ चक्षु॑रा अ॒भ्यञ्ज॑नम् । द्यौर्भूमि॒: कोश॑ आसी॒द्यदया॑त्सू॒र्या पति॑म् ॥७॥\n\nस्तोमा॑ आसन्प्रति॒धय॑: कु॒रीरं॒ छन्द॑ ओप॒शः । सू॒र्याया॑ अ॒श्विना॑ व॒राऽग्निरा॑सीत्पुरोग॒वः ॥८॥\n\nसोमो॑ वधू॒युर॑भवद॒श्विना॑स्तामु॒भा व॒रा । सू॒र्यां यत्पत्ये॒ शंस॑न्तीं॒ मन॑सा सवि॒ताद॑दात् ॥९॥\n\nमनो॑ अस्या॒ अन॑ आसी॒द्द्यौरा॑सीदु॒त च्छ॒दिः । शु॒क्राव॑न॒ड्वाहा॑वास्तां॒ यदया॑त्सू॒र्या गृ॒हम् ॥१०॥\n\nऋ॒क्सा॒माभ्या॑म॒भिहि॑तौ॒ गावौ॑ ते साम॒नावि॑तः । श्रोत्रं॑ ते च॒क्रे आ॑स्तां दि॒वि पन्था॑श्चराचा॒रः ॥११॥\n\nशुची॑ ते च॒क्रे या॒त्या व्या॒नो अक्ष॒ आह॑तः । अनो॑ मन॒स्मयं॑ सू॒र्याऽऽरो॑हत्प्रय॒ती पति॑म् ॥१२॥\n\nसू॒र्याया॑ वह॒तुः प्रागा॑त्सवि॒ता यम॒वासृ॑जत् । अ॒घासु॑ हन्यन्ते॒ गावोऽर्जु॑न्यो॒: पर्यु॑ह्यते ॥१३॥\n\nयद॑श्विना पृ॒च्छमा॑ना॒वया॑तं त्रिच॒क्रेण॑ वह॒तुं सू॒र्याया॑: ।\n\n विश्वे॑ दे॒वा अनु॒ तद्वा॑मजानन्पु॒त्रः पि॒तरा॑ववृणीत पू॒षा ॥१४॥\n\nयदया॑तं शुभस्पती वरे॒यं सू॒र्यामुप॑ । क्वैकं॑ च॒क्रं वा॑मासी॒त्क्व॑ दे॒ष्ट्राय॑ तस्थथुः ॥१५॥\n\nद्वे ते॑ च॒क्रे सू॑र्ये ब्र॒ह्माण॑ ऋतु॒था वि॑दुः । अथैकं॑ च॒क्रं यद्गुहा॒ तद॑द्धा॒तय॒ इद्वि॑दुः ॥१६॥\n\nसू॒र्यायै॑ दे॒वेभ्यो॑ मि॒त्राय॒ वरु॑णाय च । ये भू॒तस्य॒ प्रचे॑तस इ॒दं तेभ्यो॑ऽकरं॒ नम॑: ॥१७॥\n\nपू॒र्वा॒प॒रं च॑रतो मा॒ययै॒तौ शिशू॒ क्रीळ॑न्तौ॒ परि॑ यातो अध्व॒रम् ।\n\nविश्वा॑न्य॒न्यो भुव॑नाभि॒चष्ट॑ ऋ॒तूँर॒न्यो वि॒दध॑ज्जायते॒ पुन॑: ॥१८॥\n\nनवो॑नवो भवति॒ जाय॑मा॒नोऽह्नां॑ के॒तुरु॒षसा॑मे॒त्यग्र॑म् ।\n\nभा॒गं दे॒वेभ्यो॒ वि द॑धात्या॒यन्प्र च॒न्द्रमा॑स्तिरते दी॒र्घमायु॑: ॥१९॥\n\nसु॒किं॒शु॒कं श॑ल्म॒लिं वि॒श्वरू॑पं॒ हिर॑ण्यवर्णं सु॒वृतं॑ सुच॒क्रम् ।\n\nआ रो॑ह सूर्ये अ॒मृत॑स्य लो॒कं स्यो॒नं पत्ये॑ वह॒तुं कृ॑णुष्व ॥२०॥\n\nउदी॒र्ष्वात॒: पति॑वती॒ ह्ये॒३षा वि॒श्वाव॑सुं॒ नम॑सा गी॒र्भिरी॑ळे ।\n\nअ॒न्यामि॑च्छ पितृ॒षदं॒ व्य॑क्तां॒ स ते॑ भा॒गो ज॒नुषा॒ तस्य॑ विद्धि ॥२१॥\n\nउदी॒र्ष्वातो॑ विश्वावसो॒ नम॑सेळा महे त्वा । अ॒न्यामि॑च्छ प्रफ॒र्व्यं१ सं जा॒यां पत्या॑ सृज ॥२२॥\n\nअ॒नृ॒क्ष॒रा ऋ॒जव॑: सन्तु॒ पन्था॒ येभि॒: सखा॑यो॒ यन्ति॑ नो वरे॒यम् ।\n\nसम॑र्य॒मा सं भगो॑ नो निनीया॒त्सं जा॑स्प॒त्यं सु॒यम॑मस्तु देवाः ॥२३॥\n\nप्र त्वा॑ मुञ्चामि॒ वरु॑णस्य॒ पाशा॒द्येन॒ त्वाब॑ध्नात्सवि॒ता सु॒शेव॑: ।\n\n ऋ॒तस्य॒ योनौ॑ सुकृ॒तस्य॑ लो॒केऽरि॑ष्टां त्वा स॒ह पत्या॑ दधामि ॥२४॥\n\nप्रेतो मु॒ञ्चामि॒ नामुत॑: सुब॒द्धाम॒मुत॑स्करम् । यथे॒यमि॑न्द्र मीढ्वः सुपु॒त्रा सु॒भगास॑ति ॥२५॥\n\nपू॒षा त्वे॒तो न॑यतु हस्त॒गृह्या॒ऽश्विना॑ त्वा॒ प्र व॑हतां॒ रथे॑न ।\n\nगृ॒हान्ग॑च्छ गृ॒हप॑त्नी॒ यथासो॑ व॒शिनी॒ त्वं वि॒दथ॒मा व॑दासि ॥२६॥\n\nइ॒ह प्रि॒यं प्र॒जया॑ ते॒ समृ॑ध्यताम॒स्मिन्गृ॒हे गार्ह॑पत्याय जागृहि ।\n\nए॒ना पत्या॑ त॒न्वं१ सं सृ॑ज॒स्वाधा॒ जिव्री॑ वि॒दथ॒मा व॑दाथः ॥२७॥\n\nनी॒ल॒लो॒हि॒तं भ॑वति कृ॒त्यास॒क्तिर्व्य॑ज्यते । एध॑न्ते अस्या ज्ञा॒तय॒: पति॑र्ब॒न्धेषु॑ बध्यते ॥२८॥\n\nपरा॑ देहि शामु॒ल्यं॑ ब्र॒ह्मभ्यो॒ वि भ॑जा॒ वसु॑ । कृ॒त्यैषा प॒द्वती॑ भू॒त्व्या जा॒या वि॑शते॒ पति॑म् ॥२९॥\n\nअ॒श्री॒रा त॒नूर्भ॑वति॒ रुश॑ती पा॒पया॑मु॒या । पति॒र्यद्व॒ध्वो॒३ वास॑सा॒ स्वमङ्ग॑मभि॒धित्स॑ते ॥३०॥\n\nये व॒ध्व॑श्च॒न्द्रं व॑ह॒तुं यक्ष्मा॒ यन्ति॒ जना॒दनु॑ । पुन॒स्तान्य॒ज्ञिया॑ दे॒वा नय॑न्तु॒ यत॒ आग॑ताः ॥३॥१\n\nमा वि॑दन्परिप॒न्थिनो॒ य आ॒सीद॑न्ति॒ दम्प॑ती । सु॒गेभि॑र्दु॒र्गमती॑ता॒मप॑ द्रा॒न्त्वरा॑तयः ॥३२॥\n\nसु॒म॒ङ्ग॒लीरि॒यं व॒धूरि॒मां स॒मेत॒ पश्य॑त । सौभा॑ग्यमस्यै द॒त्त्वायाऽथास्तं॒ वि परे॑तन ॥३३॥\n\nतृ॒ष्टमे॒तत्कटु॑कमे॒तद॑पा॒ष्ठव॑द्वि॒षव॒न्नैतदत्त॑वे । सू॒र्यां यो ब्र॒ह्मा वि॒द्यात्स इद्वाधू॑यमर्हति ॥३४॥\n\nआ॒शस॑नं वि॒शस॑न॒मथो॑ अधिवि॒कर्त॑नम् । सू॒र्याया॑: पश्य रू॒पाणि॒ तानि॑ ब्र॒ह्मा तु शु॑न्धति ॥३५॥\n\nगृ॒भ्णामि॑ ते सौभग॒त्वाय॒ हस्तं॒ मया॒ पत्या॑ ज॒रद॑ष्टि॒र्यथास॑: ।\n\n भगो॑ अर्य॒मा स॑वि॒ता पुरं॑धि॒र्मह्यं॑ त्वादु॒र्गार्ह॑पत्याय दे॒वाः ॥३६॥\n\nतां पू॑षञ्छि॒वत॑मा॒मेर॑यस्व॒ यस्यां॒ बीजं॑ मनु॒ष्या॒३ वप॑न्ति ।\n\nया न॑ ऊ॒रू उ॑श॒ती वि॒श्रया॑ते॒ यस्या॑मु॒शन्त॑: प्र॒हरा॑म॒ शेप॑म् ॥३७॥\n\nतुभ्य॒मग्रे॒ पर्य॑वहन्त्सू॒र्यां व॑ह॒तुना॑ स॒ह । पुन॒: पति॑भ्यो जा॒यां दा अ॑ग्ने प्र॒जया॑ स॒ह ॥३८॥\n\nपुन॒: पत्नी॑म॒ग्निर॑दा॒दायु॑षा स॒ह वर्च॑सा । दी॒र्घायु॑रस्या॒ यः पति॒र्जीवा॑ति श॒रद॑: श॒तम् ॥३९॥\n\nसोम॑: प्रथ॒मो वि॑विदे गन्ध॒र्वो वि॑विद॒ उत्त॑रः । तृ॒तीयो॑ अ॒ग्निष्टे॒ पति॑स्तु॒रीय॑स्ते मनुष्य॒जाः ॥४०॥\n\nसोमो॑ ददद्गन्ध॒र्वाय॑ गन्ध॒र्वो द॑दद॒ग्नये॑ । र॒यिं च॑ पु॒त्राँश्चा॑दाद॒ग्निर्मह्य॒मथो॑ इ॒माम् ॥४१॥\n\nइ॒हैव स्तं॒ मा वि यौ॑ष्टं॒ विश्व॒मायु॒र्व्य॑श्नुतम् । क्रीळ॑न्तौ पु॒त्रैर्नप्तृ॑भि॒र्मोद॑मानौ॒ स्वे गृ॒हे ॥४२॥\n\nआ न॑: प्र॒जां ज॑नयतु प्र॒जाप॑तिराजर॒साय॒ सम॑नक्त्वर्य॒मा ।\n\nअदु॑र्मङ्गलीः पतिलो॒कमा वि॑श॒ शं नो॑ भव द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे ॥४३॥\n\nअघो॑रचक्षु॒रप॑तिघ्न्येधि शि॒वा प॒शुभ्य॑: सु॒मना॑: सु॒वर्चा॑: ।\n\nवी॒र॒सूर्दे॒वका॑मा स्यो॒ना शं नो॑ भव द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे ॥४४॥\n\nइ॒मां त्वमि॑न्द्र मीढ्वः सुपु॒त्रां सु॒भगां॑ कृणु । दशा॑स्यां पु॒त्राना धे॑हि॒ पति॑मेकाद॒शं कृ॑धि ॥४५॥\n\nस॒म्राज्ञी॒ श्वशु॑रे भव स॒म्राज्ञी॑ श्व॒श्र्वां भ॑व । नना॑न्दरि स॒म्राज्ञी॑ भव स॒म्राज्ञी॒ अधि॑ दे॒वृषु॑ ॥४६॥\n\nसम॑ञ्जन्तु॒ विश्वे॑ दे॒वाः समापो॒ हृद॑यानि नौ । सं मा॑त॒रिश्वा॒ सं धा॒ता समु॒ देष्ट्री॑ दधातु नौ ॥४७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 86,
"text": "(२३) इन्द्रः, ७,१३,२३ ऐन्द्रो वृषाकपिः, २-६,९-१०,१५-१८ इन्द्राणी। इन्द्रः। पंक्तिः।\n\nवि हि सोतो॒रसृ॑क्षत॒ नेन्द्रं॑ दे॒वम॑मंसत ।\n\nयत्राम॑दद्वृ॒षाक॑पिर॒र्यः पु॒ष्टेषु॒ मत्स॑खा॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥१॥\n\nपरा॒ ही॑न्द्र॒ धाव॑सि वृ॒षाक॑पे॒रति॒ व्यथि॑: ।\n\nनो अह॒ प्र वि॑न्दस्य॒न्यत्र॒ सोम॑पीतये॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥२॥\n\nकिम॒यं त्वां वृ॒षाक॑पिश्च॒कार॒ हरि॑तो मृ॒गः ।\n\nयस्मा॑ इर॒स्यसीदु॒ न्व१र्यो वा॑ पुष्टि॒मद्वसु॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥३॥\n\nयमि॒मं त्वं वृ॒षाक॑पिं प्रि॒यमि॑न्द्राभि॒रक्ष॑सि ।\n\nश्वा न्व॑स्य जम्भिष॒दपि॒ कर्णे॑ वराह॒युर्विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥४॥\n\nप्रि॒या त॒ष्टानि॑ मे क॒पिर्व्य॑क्ता॒ व्य॑दूदुषत् ।\n\nशिरो॒ न्व॑स्य राविषं॒ न सु॒गं दु॒ष्कृते॑ भुवं॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥५॥\n\nन मत्स्त्री सु॑भ॒सत्त॑रा॒ न सु॒याशु॑तरा भुवत् ।\n\nन मत्प्रति॑च्यवीयसी॒ न सक्थ्युद्य॑मीयसी॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥६॥\n\nउ॒वे अ॑म्ब सुलाभिके॒ यथे॑वा॒ङ्ग भ॑वि॒ष्यति॑ ।\n\nभ॒सन्मे॑ अम्ब॒ सक्थि॑ मे॒ शिरो॑ मे॒ वी॑व हृष्यति॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥७॥\n\nकिं सु॑बाहो स्वङ्गुरे॒ पृथु॑ष्टो॒ पृथु॑जाघने ।\n\nकिं शू॑रपत्नि न॒स्त्वम॒भ्य॑मीषि वृ॒षाक॑पिं॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥८॥\n\nअ॒वीरा॑मिव॒ माम॒यं श॒रारु॑र॒भि म॑न्यते ।\n\nउ॒ताहम॑स्मि वी॒रिणीन्द्र॑पत्नी म॒रुत्स॑खा॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥९॥\n\nसं॒हो॒त्रं स्म॑ पु॒रा नारी॒ सम॑नं॒ वाव॑ गच्छति ।\n\nवे॒धा ऋ॒तस्य॑ वी॒रिणीन्द्र॑पत्नी महीयते॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥१०॥\n\nइ॒न्द्रा॒णीमा॒सु नारि॑षु सु॒भगा॑म॒हम॑श्रवम् ।\n\nन॒ह्य॑स्या अप॒रं च॒न ज॒रसा॒ मर॑ते॒ पति॒र्विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥११॥\n\nनाहमि॑न्द्राणि रारण॒ सख्यु॑र्वृ॒षाक॑पेॠ॒ते ।\n\nयस्ये॒दमप्यं॑ ह॒विः प्रि॒यं दे॒वेषु॒ गच्छ॑ति॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥१२॥\n\nवृषा॑कपायि॒ रेव॑ति॒ सुपु॑त्र॒ आदु॒ सुस्नु॑षे ।\n\nघस॑त्त॒ इन्द्र॑ उ॒क्षण॑: प्रि॒यं का॑चित्क॒रं ह॒विर्विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥१३॥\n\nउ॒क्ष्णो हि मे॒ पञ्च॑दश सा॒कं पच॑न्ति विंश॒तिम् ।\n\nउ॒ताहम॑द्मि॒ पीव॒ इदु॒भा कु॒क्षी पृ॑णन्ति मे॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥१४॥\n\nवृ॒ष॒भो न ति॒ग्मशृ॑ङ्गो॒ऽन्तर्यू॒थेषु॒ रोरु॑वत् ।\n\nम॒न्थस्त॑ इन्द्र॒ शं हृ॒दे यं ते॑ सु॒नोति॑ भाव॒युर्विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥१५॥\n\nन सेशे॒ यस्य॒ रम्ब॑तेऽन्त॒रा स॒क्थ्या॒३ कपृ॑त् ।\n\nसेदी॑शे॒ यस्य॑ रोम॒शं नि॑षे॒दुषो॑ वि॒जृम्भ॑ते॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥१६॥\n\nन सेशे॒ यस्य॑ रोम॒शं नि॑षे॒दुषो॑ वि॒जृम्भ॑ते ।\n\nसेदी॑शे॒ यस्य॒ रम्ब॑तेऽन्त॒रा स॒क्थ्या॒३ कपृ॒द्विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥१७॥\n\nअ॒यमि॑न्द्र वृ॒षाक॑पि॒: पर॑स्वन्तं ह॒तं वि॑दत् ।\n\nअ॒सिं सू॒नां नवं॑ च॒रुमादेध॒स्यान॒ आचि॑तं॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥१८॥\n\nअ॒यमे॑मि वि॒चाक॑शद्विचि॒न्वन्दास॒मार्य॑म् ।\n\nपिबा॑मि पाक॒सुत्व॑नो॒ऽभि धीर॑मचाकशं॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥१९॥\n\nधन्व॑ च॒ यत्कृ॒न्तत्रं॑ च॒ कति॑ स्वि॒त्ता वि योज॑ना ।\n\nनेदी॑यसो वृषाक॒पेऽस्त॒मेहि॑ गृ॒हाँ उप॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥२०॥\n\nपुन॒रेहि॑ वृषाकपे सुवि॒ता क॑ल्पयावहै ।\n\nय ए॒ष स्व॑प्न॒नंश॒नोऽस्त॒मेषि॑ प॒था पुन॒र्विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥२१॥\n\nयदुद॑ञ्चो वृषाकपे गृ॒हमि॒न्द्राज॑गन्तन ।\n\nक्व१ स्य पु॑ल्व॒घो मृ॒गः कम॑गञ्जन॒योप॑नो॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥२२॥\n\nपर्शु॑र्ह॒ नाम॑ मान॒वी सा॒कं स॑सूव विंश॒तिम् ।\n\nभ॒द्रं भ॑ल॒ त्यस्या॑ अभू॒द्यस्या॑ उ॒दर॒माम॑य॒द्विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥२३॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 87,
"text": "२५ पायुर्भारद्वाजः।रक्षोहाग्निः।त्रिष्टुप् , २२-२५ अनुष्टुप्।\n\nर॒क्षो॒हणं॑ वा॒जिन॒मा जि॑घर्मि मि॒त्रं प्रथि॑ष्ठ॒मुप॑ यामि॒ शर्म॑ ।\n\nशिशा॑नो अ॒ग्निः क्रतु॑भि॒: समि॑द्ध॒: स नो॒ दिवा॒ स रि॒षः पा॑तु॒ नक्त॑म् ॥१॥\n\nअयो॑दंष्ट्रो अ॒र्चिषा॑ यातु॒धाना॒नुप॑ स्पृश जातवेद॒: समि॑द्धः ।\n\nआ जि॒ह्वया॒ मूर॑देवान्रभस्व क्र॒व्यादो॑ वृ॒क्त्व्यपि॑ धत्स्वा॒सन् ॥२॥\n\nउ॒भोभ॑यावि॒न्नुप॑ धेहि॒ दंष्ट्रा॑ हिं॒स्रः शिशा॒नोऽव॑रं॒ परं॑ च ।\n\nउ॒तान्तरि॑क्षे॒ परि॑ याहि राज॒ञ्जम्भै॒: सं धे॑ह्य॒भि या॑तु॒धाना॑न् ॥३॥\n\nय॒ज्ञैरिषू॑: सं॒नम॑मानो अग्ने वा॒चा श॒ल्याँ अ॒शनि॑भिर्दिहा॒नः ।\n\nताभि॑र्विध्य॒ हृद॑ये यातु॒धाना॑न्प्रती॒चो बा॒हून्प्रति॑ भङ्ध्येषाम् ॥४॥\n\nअग्ने॒ त्वचं॑ यातु॒धान॑स्य भिन्धि हिं॒स्राशनि॒र्हर॑सा हन्त्वेनम् ।\n\n प्र पर्वा॑णि जातवेदः शृणीहि क्र॒व्यात्क्र॑वि॒ष्णुर्वि चि॑नोतु वृ॒क्णम् ॥५॥\n\nयत्रे॒दानीं॒ पश्य॑सि जातवेद॒स्तिष्ठ॑न्तमग्न उ॒त वा॒ चर॑न्तम् ।\n\nयद्वा॒न्तरि॑क्षे प॒थिभि॒: पत॑न्तं॒ तमस्ता॑ विध्य॒ शर्वा॒ शिशा॑नः ॥६॥\n\nउ॒ताल॑ब्धं स्पृणुहि जातवेद आलेभा॒नादृ॒ष्टिभि॑र्यातु॒धाना॑त् ।\n\nअग्ने॒ पूर्वो॒ नि ज॑हि॒ शोशु॑चान आ॒माद॒: क्ष्विङ्का॒स्तम॑द॒न्त्वेनी॑: ॥७॥\n\nइ॒ह प्र ब्रू॑हि यत॒मः सो अ॑ग्ने॒ यो या॑तु॒धानो॒ य इ॒दं कृ॒णोति॑ ।\n\nतमा र॑भस्व स॒मिधा॑ यविष्ठ नृ॒चक्ष॑स॒श्चक्षु॑षे रन्धयैनम् ॥८॥\n\nती॒क्ष्णेना॑ग्ने॒ चक्षु॑षा रक्ष य॒ज्ञं प्राञ्चं॒ वसु॑भ्य॒: प्र ण॑य प्रचेतः ।\n\nहिं॒स्रं रक्षां॑स्य॒भि शोशु॑चानं॒ मा त्वा॑ दभन्यातु॒धाना॑ नृचक्षः ॥९॥\n\nनृ॒चक्षा॒ रक्ष॒: परि॑ पश्य वि॒क्षु तस्य॒ त्रीणि॒ प्रति॑ शृणी॒ह्यग्रा॑ ।\n\nतस्या॑ग्ने पृ॒ष्टीर्हर॑सा शृणीहि त्रे॒धा मूलं॑ यातु॒धान॑स्य वृश्च ॥१०॥\n\nत्रिर्या॑तु॒धान॒: प्रसि॑तिं त एत्वृ॒तं यो अ॑ग्ने॒ अनृ॑तेन॒ हन्ति॑ ।\n\n तम॒र्चिषा॑ स्फू॒र्जय॑ञ्जातवेदः सम॒क्षमे॑नं गृण॒ते नि वृ॑ङ्धि ॥११॥\n\nतद॑ग्ने॒ चक्षु॒: प्रति॑ धेहि रे॒भे श॑फा॒रुजं॒ येन॒ पश्य॑सि यातु॒धान॑म् ।\n\nअ॒थ॒र्व॒वज्ज्योति॑षा॒ दैव्ये॑न स॒त्यं धूर्व॑न्तम॒चितं॒ न्यो॑ष ॥१२॥\n\nयद॑ग्ने अ॒द्य मि॑थु॒ना शपा॑तो॒ यद्वा॒चस्तृ॒ष्टं ज॒नय॑न्त रे॒भाः ।\n\nम॒न्योर्मन॑सः शर॒व्या॒३ जाय॑ते॒ या तया॑ विध्य॒ हृद॑ये यातु॒धाना॑न् ॥१३॥\n\nपरा॑ शृणीहि॒ तप॑सा यातु॒धाना॒न्परा॑ग्ने॒ रक्षो॒ हर॑सा शृणीहि ।\n\nपरा॒र्चिषा॒ मूर॑देवाञ्छृणीहि॒ परा॑सु॒तृपो॑ अ॒भि शोशु॑चानः ॥१४॥\n\nपरा॒द्य दे॒वा वृ॑जि॒नं शृ॑णन्तु प्र॒त्यगे॑नं श॒पथा॑ यन्तु तृ॒ष्टाः ।\n\nवा॒चास्ते॑नं॒ शर॑व ऋच्छन्तु॒ मर्म॒न्विश्व॑स्यैतु॒ प्रसि॑तिं यातु॒धान॑: ॥१५॥\n\nयः पौरु॑षेयेण क्र॒विषा॑ सम॒ङ्क्ते यो अश्व्ये॑न प॒शुना॑ यातु॒धान॑: ।\n\nयो अ॒घ्न्याया॒ भर॑ति क्षी॒रम॑ग्ने॒ तेषां॑ शी॒र्षाणि॒ हर॒सापि॑ वृश्च ॥१६॥\n\nसं॒व॒त्स॒रीणं॒ पय॑ उ॒स्रिया॑या॒स्तस्य॒ माशी॑द्यातु॒धानो॑ नृचक्षः ।\n\nपी॒यूष॑मग्ने यत॒मस्तितृ॑प्सा॒त्तं प्र॒त्यञ्च॑म॒र्चिषा॑ विध्य॒ मर्म॑न् ॥१७॥\n\nवि॒षं गवां॑ यातु॒धाना॑: पिब॒न्त्वा वृ॑श्च्यन्ता॒मदि॑तये दु॒रेवा॑: ।\n\nपरै॑नान्दे॒वः स॑वि॒ता द॑दातु॒ परा॑ भा॒गमोष॑धीनां जयन्ताम् ॥१८॥\n\nस॒नाद॑ग्ने मृणसि यातु॒धाना॒न्न त्वा॒ रक्षां॑सि॒ पृत॑नासु जिग्युः ।\n\nअनु॑ दह स॒हमू॑रान्क्र॒व्यादो॒ मा ते॑ हे॒त्या मु॑क्षत॒ दैव्या॑याः ॥१९॥\n\nत्वं नो॑ अग्ने अध॒रादुद॑क्ता॒त्त्वं प॒श्चादु॒त र॑क्षा पु॒रस्ता॑त् ।\n\nप्रति॒ ते ते॑ अ॒जरा॑स॒स्तपि॑ष्ठा अ॒घशं॑सं॒ शोशु॑चतो दहन्तु ॥२०॥\n\nप॒श्चात्पु॒रस्ता॑दध॒रादुद॑क्तात्क॒विः काव्ये॑न॒ परि॑ पाहि राजन् ।\n\nसखे॒ सखा॑यम॒जरो॑ जरि॒म्णेऽग्ने॒ मर्ताँ॒ अम॑र्त्य॒स्त्वं न॑: ॥२१॥\n\nपरि॑ त्वाग्ने॒ पुरं॑ व॒यं विप्रं॑ सहस्य धीमहि । धृ॒षद्व॑र्णं दि॒वेदि॑वे ह॒न्तारं॑ भङ्गु॒राव॑ताम् ॥२२॥\n\nवि॒षेण॑ भङ्गु॒राव॑त॒: प्रति॑ ष्म र॒क्षसो॑ दह । अग्ने॑ ति॒ग्मेन॑ शो॒चिषा॒ तपु॑रग्राभिॠ॒ष्टिभि॑: ॥२३॥\n\nप्रत्य॑ग्ने मिथु॒ना द॑ह यातु॒धाना॑ किमी॒दिना॑ । सं त्वा॑ शिशामि जागृ॒ह्यद॑ब्धं विप्र॒ मन्म॑भिः ॥२४॥\n\nप्रत्य॑ग्ने॒ हर॑सा॒ हर॑: शृणी॒हि वि॒श्वत॒: प्रति॑ । या॒तु॒धान॑स्य र॒क्षसो॒ बलं॒ वि रु॑ज वी॒र्य॑म् ॥२५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 88,
"text": "१९ आंगिरसो मूर्धन्वान् , वामदेव्यो वा। सूर्य-वैश्वानरोऽग्निः। त्रिष्टुप्।\n\nह॒विष्पान्त॑म॒जरं॑ स्व॒र्विदि॑ दिवि॒स्पृश्याहु॑तं॒ जुष्ट॑म॒ग्नौ ।\n\nतस्य॒ भर्म॑णे॒ भुव॑नाय दे॒वा धर्म॑णे॒ कं स्व॒धया॑ पप्रथन्त ॥१॥\n\nगी॒र्णं भुव॑नं॒ तम॒साप॑गूळ्हमा॒विः स्व॑रभवज्जा॒ते अ॒ग्नौ ।\n\nतस्य॑ दे॒वाः पृ॑थि॒वी द्यौरु॒तापोऽर॑णय॒न्नोष॑धीः स॒ख्ये अ॑स्य ॥२॥\n\nदे॒वेभि॒र्न्वि॑षि॒तो य॒ज्ञिये॑भिर॒ग्निं स्तो॑षाण्य॒जरं॑ बृ॒हन्त॑म् ।\n\nयो भा॒नुना॑ पृथि॒वीं द्यामु॒तेमामा॑त॒तान॒ रोद॑सी अ॒न्तरि॑क्षम् ॥३॥\n\nयो होतासी॑त्प्रथ॒मो दे॒वजु॑ष्टो॒ यं स॒माञ्ज॒न्नाज्ये॑ना वृणा॒नाः ।\n\nस प॑त॒त्री॑त्व॒रं स्था जग॒द्यच्छ्वा॒त्रम॒ग्निर॑कृणोज्जा॒तवे॑दाः ॥४॥\n\nयज्जा॑तवेदो॒ भुव॑नस्य मू॒र्धन्नति॑ष्ठो अग्ने स॒ह रो॑च॒नेन॑ ।\n\nतं त्वा॑हेम म॒तिभि॑र्गी॒र्भिरु॒क्थैः स य॒ज्ञियो॑ अभवो रोदसि॒प्राः ॥५॥\n\nमू॒र्धा भु॒वो भ॑वति॒ नक्त॑म॒ग्निस्तत॒: सूर्यो॑ जायते प्रा॒तरु॒द्यन् ।\n\nमा॒यामू॒ तु य॒ज्ञिया॑नामे॒तामपो॒ यत्तूर्णि॒श्चर॑ति प्रजा॒नन् ॥६॥\n\nदृ॒शेन्यो॒ यो म॑हि॒ना समि॒द्धोऽरो॑चत दि॒वियो॑निर्वि॒भावा॑ ।\n\nतस्मि॑न्न॒ग्नौ सू॑क्तवा॒केन॑ दे॒वा ह॒विर्विश्व॒ आजु॑हवुस्तनू॒पाः ॥७॥\n\nसू॒क्त॒वा॒कं प्र॑थ॒ममादिद॒ग्निमादिद्ध॒विर॑जनयन्त दे॒वाः ।\n\n स ए॑षां य॒ज्ञो अ॑भवत्तनू॒पास्तं द्यौर्वे॑द॒ तं पृ॑थि॒वी तमाप॑: ॥८॥\n\nयं दे॒वासोऽज॑नयन्ता॒ग्निं यस्मि॒न्नाजु॑हवु॒र्भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ।\n\nसो अ॒र्चिषा॑ पृथि॒वीं द्यामु॒तेमामृ॑जू॒यमा॑नो अतपन्महि॒त्वा ॥९॥\n\nस्तोमे॑न॒ हि दि॒वि दे॒वासो॑ अ॒ग्निमजी॑जन॒ञ्छक्ति॑भी रोदसि॒प्राम् ।\n\nतमू॑ अकृण्वन्त्रे॒धा भु॒वे कं स ओष॑धीः पचति वि॒श्वरू॑पाः ॥१०॥\n\nय॒देदे॑न॒मद॑धुर्य॒ज्ञिया॑सो दि॒वि दे॒वाः सूर्य॑मादिते॒यम् ।\n\nय॒दा च॑रि॒ष्णू मि॑थु॒नावभू॑ता॒मादित्प्राप॑श्य॒न्भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥११॥\n\nविश्व॑स्मा अ॒ग्निं भुव॑नाय दे॒वा वै॑श्वान॒रं के॒तुमह्ना॑मकृण्वन् ।\n\nआ यस्त॒तानो॒षसो॑ विभा॒तीरपो॑ ऊर्णोति॒ तमो॑ अ॒र्चिषा॒ यन् ॥१२॥\n\nवै॒श्वा॒न॒रं क॒वयो॑ य॒ज्ञिया॑सो॒ऽग्निं दे॒वा अ॑जनयन्नजु॒र्यम् ।\n\nनक्ष॑त्रं प्र॒त्नममि॑नच्चरि॒ष्णु य॒क्षस्याध्य॑क्षं तवि॒षं बृ॒हन्त॑म् ॥१३॥\n\nवै॒श्वा॒न॒रं वि॒श्वहा॑ दीदि॒वांसं॒ मन्त्रै॑र॒ग्निं क॒विमच्छा॑ वदामः ।\n\nयो म॑हि॒म्ना प॑रिब॒भूवो॒र्वी उ॒तावस्ता॑दु॒त दे॒वः प॒रस्ता॑त् ॥१४॥\n\nद्वे स्रु॒ती अ॑शृणवं पितॄ॒णाम॒हं दे॒वाना॑मु॒त मर्त्या॑नाम् ।\n\nताभ्या॑मि॒दं विश्व॒मेज॒त्समे॑ति॒ यद॑न्त॒रा पि॒तरं॑ मा॒तरं॑ च ॥१५॥\n\nद्वे स॑मी॒ची बि॑भृत॒श्चर॑न्तं शीर्ष॒तो जा॒तं मन॑सा॒ विमृ॑ष्टम् ।\n\nस प्र॒त्यङ्विश्वा॒ भुव॑नानि तस्था॒वप्र॑युच्छन्त॒रणि॒र्भ्राज॑मानः ॥१६॥\n\nयत्रा॒ वदे॑ते॒ अव॑र॒: पर॑श्च यज्ञ॒न्यो॑: कत॒रो नौ॒ वि वे॑द ।\n\nआ शे॑कु॒रित्स॑ध॒मादं॒ सखा॑यो॒ नक्ष॑न्त य॒ज्ञं क इ॒दं वि वो॑चत् ॥१७॥\n\nकत्य॒ग्नय॒: कति॒ सूर्या॑स॒: कत्यु॒षास॒: कत्यु॑ स्वि॒दाप॑: ।\n\nनोप॒स्पिजं॑ वः पितरो वदामि पृ॒च्छामि॑ वः कवयो वि॒द्मने॒ कम् ॥१८॥\n\nया॒व॒न्मा॒त्रमु॒षसो॒ न प्रती॑कं सुप॒र्ण्यो॒३ वस॑ते मातरिश्वः ।\n\nताव॑द्दधा॒त्युप॑ य॒ज्ञमा॒यन्ब्रा॑ह्म॒णो होतु॒रव॑रो नि॒षीद॑न् ॥१९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 89,
"text": "१८ रेणुर्वैश्वामित्रः। इन्द्रः, ५ इन्द्रासोमौ। त्रिष्टुप्।\n\nइन्द्रं॑ स्तवा॒ नृत॑मं॒ यस्य॑ म॒ह्ना वि॑बबा॒धे रो॑च॒ना वि ज्मो अन्ता॑न् ।\n\nआ यः प॒प्रौ च॑र्षणी॒धृद्वरो॑भि॒: प्र सिन्धु॑भ्यो रिरिचा॒नो म॑हि॒त्वा ॥१॥\n\nस सूर्य॒: पर्यु॒रू वरां॒स्येन्द्रो॑ ववृत्या॒द्रथ्ये॑व च॒क्रा ।\n\nअति॑ष्ठन्तमप॒स्यं१ न सर्गं॑ कृ॒ष्णा तमां॑सि॒ त्विष्या॑ जघान ॥२॥\n\nस॒मा॒नम॑स्मा॒ अन॑पावृदर्च क्ष्म॒या दि॒वो अस॑मं॒ ब्रह्म॒ नव्य॑म् ।\n\nवि यः पृ॒ष्ठेव॒ जनि॑मान्य॒र्य इन्द्र॑श्चि॒काय॒ न सखा॑यमी॒षे ॥३॥\n\nइन्द्रा॑य॒ गिरो॒ अनि॑शितसर्गा अ॒पः प्रेर॑यं॒ सग॑रस्य बु॒ध्नात् ।\n\nयो अक्षे॑णेव च॒क्रिया॒ शची॑भि॒र्विष्व॑क्त॒स्तम्भ॑ पृथि॒वीमु॒त द्याम् ॥४॥\n\nआपा॑न्तमन्युस्तृ॒पल॑प्रभर्मा॒ धुनि॒: शिमी॑वा॒ञ्छरु॑माँ ऋजी॒षी ।\n\nसोमो॒ विश्वा॑न्यत॒सा वना॑नि॒ नार्वागिन्द्रं॑ प्रति॒माना॑नि देभुः ॥५॥\n\nन यस्य॒ द्यावा॑पृथि॒वी न धन्व॒ नान्तरि॑क्षं॒ नाद्र॑य॒: सोमो॑ अक्षाः ।\n\nयद॑स्य म॒न्युर॑धिनी॒यमा॑नः शृ॒णाति॑ वी॒ळु रु॒जति॑ स्थि॒राणि॑ ॥६॥\n\nज॒घान॑ वृ॒त्रं स्वधि॑ति॒र्वने॑व रु॒रोज॒ पुरो॒ अर॑द॒न्न सिन्धू॑न् ।\n\nबि॒भेद॑ गि॒रिं नव॒मिन्न कु॒म्भमा गा इन्द्रो॑ अकृणुत स्व॒युग्भि॑: ॥७॥\n\nत्वं ह॒ त्यदृ॑ण॒या इ॑न्द्र॒ धीरो॒ऽसिर्न पर्व॑ वृजि॒ना शृ॑णासि ।\n\nप्र ये मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ धाम॒ युजं॒ न जना॑ मि॒नन्ति॑ मि॒त्रम् ॥८॥\n\nप्र ये मि॒त्रं प्रार्य॒मणं॑ दु॒रेवा॒: प्र सं॒गिर॒: प्र वरु॑णं मि॒नन्ति॑ ।\n\n न्य१मित्रे॑षु व॒धमि॑न्द्र॒ तुम्रं॒ वृष॒न्वृषा॑णमरु॒षं शि॑शीहि ॥९॥\n\nइन्द्रो॑ दि॒व इन्द्र॑ ईशे पृथि॒व्या इन्द्रो॑ अ॒पामिन्द्र॒ इत्पर्व॑तानाम् ।\n\nइन्द्रो॑ वृ॒धामिन्द्र॒ इन्मेधि॑राणा॒मिन्द्र॒: क्षेमे॒ योगे॒ हव्य॒ इन्द्र॑: ॥१०॥\n\nप्राक्तुभ्य॒ इन्द्र॒: प्र वृ॒धो अह॑भ्य॒: प्रान्तरि॑क्षा॒त्प्र स॑मु॒द्रस्य॑ धा॒सेः ।\n\n प्र वात॑स्य॒ प्रथ॑स॒: प्र ज्मो अन्ता॒त्प्र सिन्धु॑भ्यो रिरिचे॒ प्र क्षि॒तिभ्य॑: ॥११॥\n\nप्र शोशु॑चत्या उ॒षसो॒ न के॒तुर॑सि॒न्वा ते॑ वर्ततामिन्द्र हे॒तिः ।\n\nअश्मे॑व विध्य दि॒व आ सृ॑जा॒नस्तपि॑ष्ठेन॒ हेष॑सा॒ द्रोघ॑मित्रान् ॥१२॥\n\nअन्वह॒ मासा॒ अन्विद्वना॒न्यन्वोष॑धी॒रनु॒ पर्व॑तासः ।\n\nअन्विन्द्रं॒ रोद॑सी वावशा॒ने अन्वापो॑ अजिहत॒ जाय॑मानम् ॥१३॥\n\nकर्हि॑ स्वि॒त्सा त॑ इन्द्र चे॒त्यास॑द॒घस्य॒ यद्भि॒नदो॒ रक्ष॒ एष॑त् ।\n\nमि॒त्र॒क्रुवो॒ यच्छस॑ने॒ न गाव॑: पृथि॒व्या आ॒पृग॑मु॒या शय॑न्ते ॥१४॥\n\nश॒त्रू॒यन्तो॑ अ॒भि ये न॑स्तत॒स्रे महि॒ व्राध॑न्त ओग॒णास॑ इन्द्र ।\n\nअ॒न्धेना॒मित्रा॒स्तम॑सा सचन्तां सुज्यो॒तिषो॑ अ॒क्तव॒स्ताँ अ॒भि ष्यु॑: ॥१५॥\n\nपु॒रूणि॒ हि त्वा॒ सव॑ना॒ जना॑नां॒ ब्रह्मा॑णि॒ मन्द॑न्गृण॒तामृषी॑णाम् ।\n\nइ॒मामा॒घोष॒न्नव॑सा॒ सहू॑तिं ति॒रो विश्वाँ॒ अर्च॑तो याह्य॒र्वाङ् ॥१६॥\n\nए॒वा ते॑ व॒यमि॑न्द्र भुञ्जती॒नां वि॒द्याम॑ सुमती॒नां नवा॑नाम् ।\n\nवि॒द्याम॒ वस्तो॒रव॑सा गृ॒णन्तो॑ वि॒श्वामि॑त्रा उ॒त त॑ इन्द्र नू॒नम् ॥१७॥\n\nशु॒नं हु॑वेम म॒घवा॑न॒मिन्द्र॑म॒स्मिन्भरे॒ नृत॑मं॒ वाज॑सातौ ।\n\n शृ॒ण्वन्त॑मु॒ग्रमू॒तये॑ स॒मत्सु॒ घ्नन्तं॑ वृ॒त्राणि॑ सं॒जितं॒ धना॑नाम् ॥१८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 90,
"text": "१६ नारायणः। पुरुषः। अनुष्टुप् , १६ त्रिष्टुप्।\n\nस॒हस्र॑शीर्षा॒ पुरु॑षः सहस्रा॒क्षः स॒हस्र॑पात् । स भूमिं॑ वि॒श्वतो॑ वृ॒त्वाऽत्य॑तिष्ठद्दशाङ्गु॒लम् ॥१॥\n\nपुरु॑ष ए॒वेदं सर्वं॒ यद्भू॒तं यच्च॒ भव्य॑म् । उ॒तामृ॑त॒त्वस्येशा॑नो॒ यदन्ने॑नाति॒रोह॑ति ॥२॥\n\nए॒तावा॑नस्य महि॒माऽतो॒ ज्यायाँ॑श्च॒ पूरु॑षः । पादो॑ऽस्य॒ विश्वा॑ भू॒तानि॑ त्रि॒पाद॑स्या॒मृतं॑ दि॒वि ॥३॥\n\nत्रि॒पादू॒र्ध्व उदै॒त्पुरु॑ष॒: पादो॑ऽस्ये॒हाभ॑व॒त्पुन॑: । ततो॒ विष्व॒ङ्व्य॑क्रामत्साशनानश॒ने अ॒भि ॥४॥\n\nतस्मा॑द्वि॒राळ॑जायत वि॒राजो॒ अधि॒ पूरु॑षः । स जा॒तो अत्य॑रिच्यत प॒श्चाद्भूमि॒मथो॑ पु॒रः ॥५॥\n\nयत्पुरु॑षेण ह॒विषा॑ दे॒वा य॒ज्ञमत॑न्वत । व॒स॒न्तो अ॑स्यासी॒दाज्यं॑ ग्री॒ष्म इ॒ध्मः श॒रद्ध॒विः ॥६॥\n\nतं य॒ज्ञं ब॒र्हिषि॒ प्रौक्ष॒न्पुरु॑षं जा॒तम॑ग्र॒तः । तेन॑ दे॒वा अ॑यजन्त सा॒ध्या ऋष॑यश्च॒ ये ॥७॥\n\nतस्मा॑द्य॒ज्ञात्स॑र्व॒हुत॒: सम्भृ॑तं पृषदा॒ज्यम् । प॒शून्ताँश्च॑क्रे वाय॒व्या॑नार॒ण्यान्ग्रा॒म्याश्च॒ ये ॥८॥\n\nतस्मा॑द्य॒ज्ञात्स॑र्व॒हुत॒ ऋच॒: सामा॑नि जज्ञिरे । छन्दां॑सि जज्ञिरे॒ तस्मा॒द्यजु॒स्तस्मा॑दजायत ॥९॥\n\nतस्मा॒दश्वा॑ अजायन्त॒ ये के चो॑भ॒याद॑तः । गावो॑ ह जज्ञिरे॒ तस्मा॒त्तस्मा॑ज्जा॒ता अ॑जा॒वय॑: ॥१०॥\n\nयत्पुरु॑षं॒ व्यद॑धुः कति॒धा व्य॑कल्पयन् । मुखं॒ किम॑स्य॒ कौ बा॒हू का ऊ॒रू पादा॑ उच्येते ॥११॥\n\nब्रा॒ह्म॒णो॑ऽस्य॒ मुख॑मासीद्बा॒हू रा॑ज॒न्य॑: कृ॒तः । ऊ॒रू तद॑स्य॒ यद्वैश्य॑: प॒द्भ्यां शू॒द्रो अ॑जायत ॥१२॥\n\nच॒न्द्रमा॒ मन॑सो जा॒तश्चक्षो॒: सूर्यो॑ अजायत । मुखा॒दिन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॑ प्रा॒णाद्वा॒युर॑जायत ॥१३॥\n\nनाभ्या॑ आसीद॒न्तरि॑क्षं शी॒र्ष्णो द्यौः सम॑वर्तत । प॒द्भ्यां भूमि॒र्दिश॒: श्रोत्रा॒त्तथा॑ लो॒काँ अ॑कल्पयन् ॥१४॥\n\nस॒प्तास्या॑सन्परि॒धय॒स्त्रिः स॒प्त स॒मिध॑: कृ॒ताः । दे॒वा यद्य॒ज्ञं त॑न्वा॒ना अब॑ध्न॒न्पुरु॑षं प॒शुम् ॥१५॥\n\nय॒ज्ञेन॑ य॒ज्ञम॑यजन्त दे॒वास्तानि॒ धर्मा॑णि प्रथ॒मान्या॑सन् ।\n\nते ह॒ नाकं॑ महि॒मान॑: सचन्त॒ यत्र॒ पूर्वे॑ सा॒ध्याः सन्ति॑ दे॒वाः ॥१६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 91,
"text": "१५ अरुणो वैतहव्यः। अग्निः। जगती, १५ त्रिष्टुप्।\n\nसं जा॑गृ॒वद्भि॒र्जर॑माण इध्यते॒ दमे॒ दमू॑ना इ॒षय॑न्नि॒ळस्प॒दे ।\n\n विश्व॑स्य॒ होता॑ ह॒विषो॒ वरे॑ण्यो वि॒भुर्वि॒भावा॑ सु॒षखा॑ सखीय॒ते ॥१॥\n\nस द॑र्शत॒श्रीरति॑थिर्गृ॒हेगृ॑हे॒ वने॑वने शिश्रिये तक्व॒वीरि॑व ।\n\nजनं॑जनं॒ जन्यो॒ नाति॑ मन्यते॒ विश॒ आ क्षे॑ति वि॒श्यो॒३ विशं॑विशम् ॥२॥\n\nसु॒दक्षो॒ दक्षै॒: क्रतु॑नासि सु॒क्रतु॒रग्ने॑ क॒विः काव्ये॑नासि विश्व॒वित् ।\n\nवसु॒र्वसू॑नां क्षयसि॒ त्वमेक॒ इद्द्यावा॑ च॒ यानि॑ पृथि॒वी च॒ पुष्य॑तः ॥३॥\n\nप्र॒जा॒नन्न॑ग्ने॒ तव॒ योनि॑मृ॒त्विय॒मिळा॑यास्प॒दे घृ॒तव॑न्त॒मास॑दः ।\n\nआ ते॑ चिकित्र उ॒षसा॑मि॒वेत॑योऽरे॒पस॒: सूर्य॑स्येव र॒श्मय॑: ॥४॥\n\nतव॒ श्रियो॑ व॒र्ष्य॑स्येव वि॒द्युत॑श्चि॒त्राश्चि॑कित्र उ॒षसां॒ न के॒तव॑: ।\n\nयदोष॑धीर॒भिसृ॑ष्टो॒ वना॑नि च॒ परि॑ स्व॒यं चि॑नु॒षे अन्न॑मा॒स्ये॑ ॥५॥\n\nतमोष॑धीर्दधिरे॒ गर्भ॑मृ॒त्वियं॒ तमापो॑ अ॒ग्निं ज॑नयन्त मा॒तर॑: ।\n\nतमित्स॑मा॒नं व॒निन॑श्च वी॒रुधो॒ऽन्तर्व॑तीश्च॒ सुव॑ते च वि॒श्वहा॑ ॥६॥\n\nवातो॑पधूत इषि॒तो वशाँ॒ अनु॑ तृ॒षु यदन्ना॒ वेवि॑षद्वि॒तिष्ठ॑से ।\n\nआ ते॑ यतन्ते र॒थ्यो॒३ यथा॒ पृथ॒क्छर्धां॑स्यग्ने अ॒जरा॑णि॒ धक्ष॑तः ॥७॥\n\nमे॒धा॒का॒रं वि॒दथ॑स्य प्र॒साध॑नम॒ग्निं होता॑रं परि॒भूत॑मं म॒तिम् ।\n\nतमिदर्भे॑ ह॒विष्या स॑मा॒नमित्तमिन्म॒हे वृ॑णते॒ नान्यं त्वत् ॥८॥\n\nत्वामिदत्र॑ वृणते त्वा॒यवो॒ होता॑रमग्ने वि॒दथे॑षु वे॒धस॑: ।\n\nयद्दे॑व॒यन्तो॒ दध॑ति॒ प्रयां॑सि ते ह॒विष्म॑न्तो॒ मन॑वो वृ॒क्तब॑र्हिषः ॥९॥\n\nतवा॑ग्ने हो॒त्रं तव॑ पो॒त्रमृ॒त्वियं॒ तव॑ ने॒ष्ट्रं त्वम॒ग्निदृ॑ताय॒तः ।\n\nतव॑ प्रशा॒स्त्रं त्वम॑ध्वरीयसि ब्र॒ह्मा चासि॑ गृ॒हप॑तिश्च नो॒ दमे॑ ॥१०॥\n\nयस्तुभ्य॑मग्ने अ॒मृता॑य॒ मर्त्य॑: स॒मिधा॒ दाश॑दु॒त वा॑ ह॒विष्कृ॑ति ।\n\nतस्य॒ होता॑ भवसि॒ यासि॑ दू॒त्य१मुप॑ ब्रूषे॒ यज॑स्यध्वरी॒यसि॑ ॥११॥\n\nइ॒मा अ॑स्मै म॒तयो॒ वाचो॑ अ॒स्मदाँ ऋचो॒ गिर॑: सुष्टु॒तय॒: सम॑ग्मत ।\n\nव॒सू॒यवो॒ वस॑वे जा॒तवे॑दसे वृ॒द्धासु॑ चि॒द्वर्ध॑नो॒ यासु॑ चा॒कन॑त् ॥१२॥\n\nइ॒मां प्र॒त्नाय॑ सुष्टु॒तिं नवी॑यसीं वो॒चेय॑मस्मा उश॒ते शृ॒णोतु॑ नः ।\n\n भू॒या अन्त॑रा हृ॒द्य॑स्य नि॒स्पृशे॑ जा॒येव॒ पत्य॑ उश॒ती सु॒वासा॑: ॥१३॥\n\nयस्मि॒न्नश्वा॑स ऋष॒भास॑ उ॒क्षणो॑ व॒शा मे॒षा अ॑वसृ॒ष्टास॒ आहु॑ताः ।\n\nकी॒ला॒ल॒पे सोम॑पृष्ठाय वे॒धसे॑ हृ॒दा म॒तिं ज॑नये॒ चारु॑म॒ग्नये॑ ॥१४॥\n\nअहा॑व्यग्ने ह॒विरा॒स्ये॑ ते स्रु॒ची॑व घृ॒तं च॒म्वी॑व॒ सोम॑: ।\n\nवा॒ज॒सनिं॑ र॒यिम॒स्मे सु॒वीरं॑ प्रश॒स्तं धे॑हि य॒शसं॑ बृ॒हन्त॑म् ॥१५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 92,
"text": "१५ शार्यातो मानवः। विश्वेदेवाः। जगती।\n\nय॒ज्ञस्य॑ वो र॒थ्यं॑ वि॒श्पतिं॑ वि॒शां होता॑रम॒क्तोरति॑थिं वि॒भाव॑सुम् ।\n\nशोच॒ञ्छुष्का॑सु॒ हरि॑णीषु॒ जर्भु॑र॒द्वृषा॑ के॒तुर्य॑ज॒तो द्याम॑शायत ॥१॥\n\nइ॒मम॑ञ्ज॒स्पामु॒भये॑ अकृण्वत ध॒र्माण॑म॒ग्निं वि॒दथ॑स्य॒ साध॑नम् ।\n\nअ॒क्तुं न य॒ह्वमु॒षस॑: पु॒रोहि॑तं॒ तनू॒नपा॑तमरु॒षस्य॑ निंसते ॥२॥\n\nबळ॑स्य नी॒था वि प॒णेश्च॑ मन्महे व॒या अ॑स्य॒ प्रहु॑ता आसु॒रत्त॑वे ।\n\nय॒दा घो॒रासो॑ अमृत॒त्वमाश॒तादिज्जन॑स्य॒ दैव्य॑स्य चर्किरन् ॥३॥\n\nऋ॒तस्य॒ हि प्रसि॑ति॒र्द्यौरु॒रु व्यचो॒ नमो॑ म॒ह्य१रम॑ति॒: पनी॑यसी ।\n\nइन्द्रो॑ मि॒त्रो वरु॑ण॒: सं चि॑कित्रि॒रेऽथो॒ भग॑: सवि॒ता पू॒तद॑क्षसः ॥४॥\n\nप्र रु॒द्रेण॑ य॒यिना॑ यन्ति॒ सिन्ध॑वस्ति॒रो म॒हीम॒रम॑तिं दधन्विरे ।\n\nयेभि॒: परि॑ज्मा परि॒यन्नु॒रु ज्रयो॒ वि रोरु॑वज्ज॒ठरे॒ विश्व॑मु॒क्षते॑ ॥५॥\n\nक्रा॒णा रु॒द्रा म॒रुतो॑ वि॒श्वकृ॑ष्टयो दि॒वः श्ये॒नासो॒ असु॑रस्य नी॒ळय॑: ।\n\nतेभि॑श्चष्टे॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मेन्द्रो॑ दे॒वेभि॑रर्व॒शेभि॒रर्व॑शः ॥६॥\n\nइन्द्रे॒ भुजं॑ शशमा॒नास॑ आशत॒ सूरो॒ दृशी॑के॒ वृष॑णश्च॒ पौंस्ये॑ ।\n\nप्र ये न्व॑स्या॒र्हणा॑ ततक्षि॒रे युजं॒ वज्रं॑ नृ॒षद॑नेषु का॒रव॑: ॥७॥\n\nसूर॑श्चि॒दा ह॒रितो॑ अस्य रीरम॒दिन्द्रा॒दा कश्चि॑द्भयत॒ज तवी॑यसः ।\n\nभी॒मस्य॒ वृष्णो॑ ज॒ठरा॑दभि॒श्वसो॑ दि॒वेदि॑वे॒ सहु॑रिः स्त॒न्नबा॑धितः ॥८॥\n\nस्तोमं॑ वो अ॒द्य रु॒द्राय॒ शिक्व॑से क्ष॒यद्वी॑राय॒ नम॑सा दिदिष्टन ।\n\nयेभि॑: शि॒वः स्ववाँ॑ एव॒याव॑भिर्दि॒वः सिष॑क्ति॒ स्वय॑शा॒ निका॑मभिः ॥९॥\n\nते हि प्र॒जाया॒ अभ॑रन्त॒ वि श्रवो॒ बृह॒स्पति॑र्वृष॒भः सोम॑जामयः ।\n\nय॒ज्ञैरथ॑र्वा प्रथ॒मो वि धा॑रयद्दे॒वा दक्षै॒र्भृग॑व॒: सं चि॑कित्रिरे ॥१०॥\n\nते हि द्यावा॑पृथि॒वी भूरि॑रेतसा॒ नरा॒शंस॒श्चतु॑रङ्गो य॒मोऽदि॑तिः ।\n\nदे॒वस्त्वष्टा॑ द्रविणो॒दा ऋ॑भु॒क्षण॒: प्र रो॑द॒सी म॒रुतो॒ विष्णु॑रर्हिरे ॥११॥\n\nउ॒त स्य न॑ उ॒शिजा॑मुर्वि॒या क॒विरहि॑: शृणोतु बु॒ध्न्यो॒३ हवी॑मनि ।\n\nसूर्या॒मासा॑ वि॒चर॑न्ता दिवि॒क्षिता॑ धि॒या श॑मीनहुषी अ॒स्य बो॑धतम् ॥१२॥\n\nप्र न॑: पू॒षा च॒रथं॑ वि॒श्वदे॑व्यो॒ऽपां नपा॑दवतु वा॒युरि॒ष्टये॑ ।\n\nआ॒त्मानं॒ वस्यो॑ अ॒भि वात॑मर्चत॒ तद॑श्विना सुहवा॒ याम॑नि श्रुतम् ॥१३॥\n\nवि॒शामा॒सामभ॑यानामधि॒क्षितं॑ गी॒र्भिरु॒ स्वय॑शसं गृणीमसि ।\n\nग्नाभि॒र्विश्वा॑भि॒रदि॑तिमन॒र्वण॑म॒क्तोर्युवा॑नं नृ॒मणा॒ अधा॒ पति॑म् ॥१४॥\n\nरेभ॒दत्र॑ ज॒नुषा॒ पूर्वो॒ अङ्गि॑रा॒ ग्रावा॑ण ऊ॒र्ध्वा अ॒भि च॑क्षुरध्व॒रम् ।\n\nयेभि॒र्विहा॑या॒ अभ॑वद्विचक्ष॒णः पाथ॑: सु॒मेकं॒ स्वधि॑ति॒र्वन॑न्वति ॥१५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 93,
"text": "१५ तान्वः पार्थ्यः। विश्वेदेवाः। प्रस्तारपंक्तिः २,३,१३ अनुष्टुप् , ९ अक्षरैः पंक्तिः, ११ न्यङ्कुसारिणी, १५ पुरस्ताद्बृहती ।\n\nमहि॑ द्यावापृथिवी भूतमु॒र्वी नारी॑ य॒ह्वी न रोद॑सी॒ सदं॑ नः । तेभि॑र्नः पातं॒ सह्य॑स ए॒भिर्न॑: पातं शू॒षणि॑ ॥१॥\n\nय॒ज्ञेय॑ज्ञे॒ स मर्त्यो॑ दे॒वान्त्स॑पर्यति । यः सु॒म्नैर्दी॑र्घ॒श्रुत्त॑म आ॒विवा॑सत्येनान् ॥२॥\n\nविश्वे॑षामिरज्यवो दे॒वानां॒ वार्म॒हः । विश्वे॒ हि वि॒श्वम॑हसो॒ विश्वे॑ य॒ज्ञेषु॑ य॒ज्ञिया॑: ॥३॥\n\nते घा॒ राजा॑नो अ॒मृत॑स्य म॒न्द्रा अ॑र्य॒मा मि॒त्रो वरु॑ण॒: परि॑ज्मा । कद्रु॒द्रो नृ॒णां स्तु॒तो म॒रुत॑: पू॒षणो॒ भग॑: ॥४॥\n\nउ॒त नो॒ नक्त॑म॒पां वृ॑षण्वसू॒ सूर्या॒मासा॒ सद॑नाय सध॒न्या॑ । सचा॒ यत्साद्ये॑षा॒महि॑र्बु॒ध्नेषु॑ बु॒ध्न्य॑: ॥५॥\n\nउ॒त नो॑ दे॒वाव॒श्विना॑ शु॒भस्पती॒ धाम॑भिर्मि॒त्रावरु॑णा उरुष्यताम् । म॒हः स रा॒य एष॒तेऽति॒ धन्वे॑व दुरि॒ता ॥६॥\n\nउ॒त नो॑ रु॒द्रा चि॑न्मृळताम॒श्विना॒ विश्वे॑ दे॒वासो॒ रथ॒स्पति॒र्भग॑: । ऋ॒भुर्वाज॑ ऋभुक्षण॒: परि॑ज्मा विश्ववेदसः ॥७॥\n\nऋ॒भुॠ॑भु॒क्षा ऋ॒भुर्वि॑ध॒तो मद॒ आ ते॒ हरी॑ जूजुवा॒नस्य॑ वा॒जिना॑ । दु॒ष्टरं॒ यस्य॒ साम॑ चि॒दृध॑ग्य॒ज्ञो न मानु॑षः ॥८॥\n\nकृ॒धी नो॒ अह्र॑यो देव सवित॒: स च॑ स्तुषे म॒घोना॑म् ।\n\nस॒हो न॒ इन्द्रो॒ वह्नि॑भि॒र्न्ये॑षां चर्षणी॒नां च॒क्रं र॒श्मिं न यो॑युवे ॥९॥\n\nऐषु॑ द्यावापृथिवी धातं म॒हद॒स्मे वी॒रेषु॑ वि॒श्वच॑र्षणि॒ श्रव॑: । पृ॒क्षं वाज॑स्य सा॒तये॑ पृ॒क्षं रा॒योत तु॒र्वणे॑ ॥१०॥\n\nए॒तं शंस॑मिन्द्रास्म॒युष्ट्वं कूचि॒त्सन्तं॑ सहसावन्न॒भिष्ट॑ये । सदा॑ पाह्य॒भिष्ट॑ये मे॒दतां॑ वे॒दता॑ वसो ॥११॥\n\nए॒तं मे॒ स्तोमं॑ त॒ना न सूर्ये॑ द्यु॒तद्या॑मानं वावृधन्त नृ॒णाम् । सं॒वन॑नं॒ नाश्व्यं॒ तष्टे॒वान॑पच्युतम् ॥१२॥\n\nवा॒वर्त॒ येषां॑ रा॒या यु॒क्तैषां॑ हिर॒ण्ययी॑ । ने॒मधि॑ता॒ न पौंस्या॒ वृथे॑व वि॒ष्टान्ता॑ ॥१३॥\n\nप्र तद्दु॒:शीमे॒ पृथ॑वाने वे॒ने प्र रा॒मे वो॑च॒मसु॑रे म॒घव॑त्सु । ये यु॒क्त्वाय॒ पञ्च॑ श॒तास्म॒यु प॒था वि॒श्राव्ये॑षाम् ॥१४॥\n\nअधीन्न्वत्र॑ सप्त॒तिं च॑ स॒प्त च॑ । स॒द्यो दि॑दिष्ट॒ तान्व॑: स॒द्यो दि॑दिष्ट पा॒र्थ्यः स॒द्यो दि॑दिष्ट माय॒वः ॥१५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 94,
"text": "१४ अर्बुदः काद्रवेयः सर्पः। ग्रावाणः। जगती, ५, ७, १४ त्रिष्टुप्।\n\nप्रैते व॑दन्तु॒ प्र व॒यं व॑दाम॒ ग्राव॑भ्यो॒ वाचं॑ वदता॒ वद॑द्भ्यः ।\n\nयद॑द्रयः पर्वताः सा॒कमा॒शव॒: श्लोकं॒ घोषं॒ भर॒थेन्द्रा॑य सो॒मिन॑: ॥१॥\n\nए॒ते व॑दन्ति श॒तव॑त्स॒हस्र॑वद॒भि क्र॑न्दन्ति॒ हरि॑तेभिरा॒सभि॑: ।\n\nवि॒ष्ट्वी ग्रावा॑णः सु॒कृत॑: सुकृ॒त्यया॒ होतु॑श्चि॒त्पूर्वे॑ हवि॒रद्य॑माशत ॥२॥\n\nए॒ते व॑द॒न्त्यवि॑दन्न॒ना मधु॒ न्यू॑ङ्खयन्ते॒ अधि॑ प॒क्व आमि॑षि ।\n\nवृ॒क्षस्य॒ शाखा॑मरु॒णस्य॒ बप्स॑त॒स्ते सूभ॑र्वा वृष॒भाः प्रेम॑राविषुः ॥३॥\n\nबृ॒हद्व॑दन्ति मदि॒रेण॑ म॒न्दिनेन्द्रं॒ क्रोश॑न्तोऽविदन्न॒ना मधु॑ ।\n\nसं॒रभ्या॒ धीरा॒: स्वसृ॑भिरनर्तिषुराघो॒षय॑न्तः पृथि॒वीमु॑प॒ब्दिभि॑: ॥४॥\n\nसु॒प॒र्णा वाच॑मक्र॒तोप॒ द्यव्या॑ख॒रे कृष्णा॑ इषि॒रा अ॑नर्तिषुः ।\n\nन्य१ङ्नि य॒न्त्युप॑रस्य निष्कृ॒तं पु॒रू रेतो॑ दधिरे सूर्य॒श्वित॑: ॥५॥\n\nउ॒ग्रा इ॑व प्र॒वह॑न्तः स॒माय॑मुः सा॒कं यु॒क्ता वृष॑णो॒ बिभ्र॑तो॒ धुर॑: ।\n\n यच्छ्व॒सन्तो॑ जग्रसा॒ना अरा॑विषुः शृ॒ण्व ए॑षां प्रो॒थथो॒ अर्व॑तामिव ॥६॥\n\nदशा॑वनिभ्यो॒ दश॑कक्ष्येभ्यो॒ दश॑योक्त्रेभ्यो॒ दश॑योजनेभ्यः ।\n\nदशा॑भीशुभ्यो अर्चता॒जरे॑भ्यो॒ दश॒ धुरो॒ दश॑ यु॒क्ता वह॑द्भ्यः ॥७॥\n\nते अद्र॑यो॒ दश॑यन्त्रास आ॒शव॒स्तेषा॑मा॒धानं॒ पर्ये॑ति हर्य॒तम् ।\n\nत ऊ॑ सु॒तस्य॑ सो॒म्यस्यान्ध॑सों॒ऽशोः पी॒यूषं॑ प्रथ॒मस्य॑ भेजिरे ॥८॥\n\nते सो॒मादो॒ हरी॒ इन्द्र॑स्य निंसतें॒ऽशुं दु॒हन्तो॒ अध्या॑सते॒ गवि॑ ।\n\n तेभि॑र्दु॒ग्धं प॑पि॒वान्त्सो॒म्यं मध्विन्द्रो॑ वर्धते॒ प्रथ॑ते वृषा॒यते॑ ॥९॥\n\nवृषा॑ वो अं॒शुर्न किला॑ रिषाथ॒नेळा॑वन्त॒: सद॒मित्स्थ॒नाशि॑ताः ।\n\nरै॒व॒त्येव॒ मह॑सा॒ चार॑वः स्थन॒ यस्य॑ ग्रावाणो॒ अजु॑षध्वमध्व॒रम् ॥१०॥\n\nतृ॒दि॒ला अतृ॑दिलासो॒ अद्र॑योऽश्रम॒णा अशृ॑थिता॒ अमृ॑त्यवः ।\n\n अ॒ना॒तु॒रा अ॒जरा॒: स्थाम॑विष्णवः सुपी॒वसो॒ अतृ॑षिता॒ अतृ॑ष्णजः ॥११॥\n\nध्रु॒वा ए॒व व॑: पि॒तरो॑ यु॒गेयु॑गे॒ क्षेम॑कामास॒: सद॑सो॒ न यु॑ञ्जते ।\n\nअ॒जु॒र्यासो॑ हरि॒षाचो॑ ह॒रिद्र॑व॒ आ द्यां रवे॑ण पृथि॒वीम॑शुश्रवुः ॥१२॥\n\nतदिद्व॑द॒न्त्यद्र॑यो वि॒मोच॑ने॒ याम॑न्नञ्ज॒स्पा इ॑व॒ घेदु॑प॒ब्दिभि॑: ।\n\nवप॑न्तो॒ बीज॑मिव धान्या॒कृत॑: पृ॒ञ्चन्ति॒ सोमं॒ न मि॑नन्ति॒ बप्स॑तः ॥१३॥\n\nसु॒ते अ॑ध्व॒रे अधि॒ वाच॑मक्र॒ता ऽऽक्री॒ळयो॒ न मा॒तरं॑ तु॒दन्त॑: ।\n\nवि षू मु॑ञ्चा सुषु॒वुषो॑ मनी॒षां वि व॑र्तन्ता॒मद्र॑य॒श्चाय॑मानाः ॥१४॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 95,
"text": "१८ ऐलः पुरूरवाः। उर्वशी देवता। २,४-५,७, ११, १३, १५-१६,१८, उर्वशी ऋषिका। पुरूरवा देवता। त्रिष्टुप्।\n\nह॒ये जाये॒ मन॑सा॒ तिष्ठ॑ घोरे॒ वचां॑सि मि॒श्रा कृ॑णवावहै॒ नु ।\n\nन नौ॒ मन्त्रा॒ अनु॑दितास ए॒ते मय॑स्कर॒न्पर॑तरे च॒नाह॑न् ॥१॥\n\nकिमे॒ता वा॒चा कृ॑णवा॒ तवा॒हं प्राक्र॑मिषमु॒षसा॑मग्रि॒येव॑ ।\n\nपुरू॑रव॒: पुन॒रस्तं॒ परे॑हि दुराप॒ना वात॑ इवा॒हम॑स्मि ॥२॥\n\nइषु॒र्न श्रि॒य इ॑षु॒धेर॑स॒ना गो॒षाः श॑त॒सा न रंहि॑: ।\n\nअ॒वीरे॒ क्रतौ॒ वि द॑विद्युत॒न्नोरा॒ न मा॒युं चि॑तयन्त॒ धुन॑यः ॥३॥\n\nसा वसु॒ दध॑ती॒ श्वशु॑राय॒ वय॒ उषो॒ यदि॒ वष्ट्यन्ति॑गृहात् ।\n\nअस्तं॑ ननक्षे॒ यस्मि॑ञ्चा॒कन्दिवा॒ नक्तं॑ श्नथि॒ता वै॑त॒सेन॑ ॥४॥\n\nत्रिः स्म॒ माह्न॑: श्नथयो वैत॒सेनो॒त स्म॒ मेऽव्य॑त्यै पृणासि ।\n\nपुरू॑र॒वोऽनु॑ ते॒ केत॑मायं॒ राजा॑ मे वीर त॒न्व१स्तदा॑सीः ॥५॥\n\nया सु॑जू॒र्णिः श्रेणि॑: सु॒म्नआ॑पिर्ह्र॒देच॑क्षु॒र्न ग्र॒न्थिनी॑ चर॒ण्युः ।\n\nता अ॒ञ्जयो॑ऽरु॒णयो॒ न स॑स्रुः श्रि॒ये गावो॒ न धे॒नवो॑ऽनवन्त ॥६॥\n\nसम॑स्मि॒ञ्जाय॑मान आसत॒ ग्ना उ॒तेम॑वर्धन्न॒द्य१: स्वगू॑र्ताः ।\n\nम॒हे यत्त्वा॑ पुरूरवो॒ रणा॒याऽव॑र्धयन्दस्यु॒हत्या॑य दे॒वाः ॥७॥\n\nसचा॒ यदा॑सु॒ जह॑ती॒ष्वत्क॒ममा॑नुषीषु॒ मानु॑षो नि॒षेवे॑ । अप॑ स्म॒ मत्त॒रस॑न्ती॒ न भु॒ज्युस्ता अ॑त्रसन्रथ॒स्पृशो॒ नाश्वा॑: ॥८॥\n\nयदा॑सु॒ मर्तो॑ अ॒मृता॑सु नि॒स्पृक्सं क्षो॒णीभि॒: क्रतु॑भि॒र्न पृ॒ङ्क्ते ।\n\nता आ॒तयो॒ न त॒न्व॑: शुम्भत॒ स्वा अश्वा॑सो॒ न क्री॒ळयो॒ दन्द॑शानाः ॥९॥\n\nवि॒द्युन्न या पत॑न्ती॒ दवि॑द्यो॒द्भर॑न्ती मे॒ अप्या॒ काम्या॑नि ।\n\nजनि॑ष्टो अ॒पो नर्य॒: सुजा॑त॒: प्रोर्वशी॑ तिरत दी॒र्घमायु॑: ॥१०॥\n\nज॒ज्ञि॒ष इ॒त्था गो॒पीथ्या॑य॒ हि द॒धाथ॒ तत्पु॑रूरवो म॒ ओज॑: ।\n\nअशा॑सं त्वा वि॒दुषी॒ सस्मि॒न्नह॒न्न म॒ आशृ॑णो॒: किम॒भुग्व॑दासि ॥११॥\n\nक॒दा सू॒नुः पि॒तरं॑ जा॒त इ॑च्छाच्च॒क्रन्नाश्रु॑ वर्तयद्विजा॒नन् ।\n\nको दम्प॑ती॒ सम॑नसा॒ वि यू॑यो॒दध॒ यद॒ग्निः श्वशु॑रेषु॒ दीद॑यत् ॥१२॥\n\nप्रति॑ ब्रवाणि व॒र्तय॑ते॒ अश्रु॑ च॒क्रन्न क्र॑न्ददा॒ध्ये॑ शि॒वायै॑ ।\n\nप्र तत्ते॑ हिनवा॒ यत्ते॑ अ॒स्मे परे॒ह्यस्तं॑ न॒हि मू॑र॒ माप॑: ॥१३॥\n\nसु॒दे॒वो अ॒द्य प्र॒पते॒दना॑वृत्परा॒वतं॑ पर॒मां गन्त॒वा उ॑ ।\n\nअधा॒ शयी॑त॒ निॠ॑तेरु॒पस्थेऽधै॑नं॒ वृका॑ रभ॒सासो॑ अ॒द्युः ॥१४॥\n\nपुरू॑रवो॒ मा मृ॑था॒ मा प्र प॑प्तो॒ मा त्वा॒ वृका॑सो॒ अशि॑वास उ क्षन् ।\n\nन वै स्त्रैणा॑नि स॒ख्यानि॑ सन्ति सालावृ॒काणां॒ हृद॑यान्ये॒ता ॥१५॥\n\nयद्विरू॒पाच॑रं॒ मर्त्ये॒ष्वव॑सं॒ रात्री॑: श॒रद॒श्चत॑स्रः ।\n\nघृ॒तस्य॑ स्तो॒कं स॒कृदह्न॑ आश्नां॒ तादे॒वेदं ता॑तृपा॒णा च॑रामि ॥१६॥\n\nअ॒न्त॒रि॒क्ष॒प्रां रज॑सो वि॒मानी॒मुप॑ शिक्षाम्यु॒र्वशीं॒ वसि॑ष्ठः ।\n\nउप॑ त्वा रा॒तिः सु॑कृ॒तस्य॒ तिष्ठा॒न्नि व॑र्तस्व॒ हृद॑यं तप्यते मे ॥१७॥\n\nइति॑ त्वा दे॒वा इ॒म आ॑हुरैळ॒ यथे॑मे॒तद्भव॑सि मृ॒त्युब॑न्धुः ।\n\nप्र॒जा ते॑ दे॒वान्ह॒विषा॑ यजाति स्व॒र्ग उ॒ त्वमपि॑ मादयासे ॥१८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 96,
"text": "१३ बरुरांगिरसः, सर्वहरिर्वा ऐन्द्रः। हरिः। जगती, १२-१३ त्रिष्टुप्।\n\nप्र ते॑ म॒हे वि॒दथे॑ शंसिषं॒ हरी॒ प्र ते॑ वन्वे व॒नुषो॑ हर्य॒तं मद॑म् ।\n\nघृ॒तं न यो हरि॑भि॒श्चारु॒ सेच॑त॒ आ त्वा॑ विशन्तु॒ हरि॑वर्पसं॒ गिर॑: ॥१॥\n\nहरिं॒ हि योनि॑म॒भि ये स॒मस्व॑रन्हि॒न्वन्तो॒ हरी॑ दि॒व्यं यथा॒ सद॑: ।\n\nआ यं पृ॒णन्ति॒ हरि॑भि॒र्न धे॒नव॒ इन्द्रा॑य शू॒षं हरि॑वन्तमर्चत ॥२॥\n\nसो अ॑स्य॒ वज्रो॒ हरि॑तो॒ य आ॑य॒सो हरि॒र्निका॑मो॒ हरि॒रा गभ॑स्त्योः ।\n\nद्यु॒म्नी सु॑शि॒प्रो हरि॑मन्युसायक॒ इन्द्रे॒ नि रू॒पा हरि॑ता मिमिक्षिरे ॥३॥\n\nदि॒वि न के॒तुरधि॑ धायि हर्य॒तो वि॒व्यच॒द्वज्रो॒ हरि॑तो॒ न रंह्या॑ ।\n\nतु॒ददहिं॒ हरि॑शिप्रो॒ य आ॑य॒सः स॒हस्र॑शोका अभवद्धरिम्भ॒रः ॥४॥\n\nत्वंत्व॑महर्यथा॒ उप॑स्तुत॒: पूर्वे॑भिरिन्द्र हरिकेश॒ यज्व॑भिः ।\n\nत्वं ह॑र्यसि॒ तव॒ विश्व॑मु॒क्थ्य१मसा॑मि॒ राधो॑ हरिजात हर्य॒तम् ॥५॥\n\nता व॒ज्रिणं॑ म॒न्दिनं॒ स्तोम्यं॒ मद॒ इन्द्रं॒ रथे॑ वहतो हर्य॒ता हरी॑ ।\n\nपु॒रूण्य॑स्मै॒ सव॑नानि॒ हर्य॑त॒ इन्द्रा॑य॒ सोमा॒ हर॑यो दधन्विरे ॥६॥\n\nअरं॒ कामा॑य॒ हर॑यो दधन्विरे स्थि॒राय॑ हिन्व॒न्हर॑यो॒ हरी॑ तु॒रा ।\n\nअर्व॑द्भि॒र्यो हरि॑भि॒र्जोष॒मीय॑ते॒ सो अ॑स्य॒ कामं॒ हरि॑वन्तमानशे ॥७॥\n\nहरि॑श्मशारु॒र्हरि॑केश आय॒सस्तु॑र॒स्पेये॒ यो ह॑रि॒पा अव॑र्धत ।\n\nअर्व॑द्भि॒र्यो हरि॑भिर्वा॒जिनी॑वसु॒रति॒ विश्वा॑ दुरि॒ता पारि॑ष॒द्धरी॑ ॥८॥\n\nस्रुवे॑व॒ यस्य॒ हरि॑णी विपे॒ततु॒: शिप्रे॒ वाजा॑य॒ हरि॑णी॒ दवि॑ध्वतः ।\n\nप्र यत्कृ॒ते च॑म॒से मर्मृ॑ज॒द्धरी॑ पी॒त्वा मद॑स्य हर्य॒तस्यान्ध॑सः ॥९॥\n\nउ॒त स्म॒ सद्म॑ हर्य॒तस्य॑ प॒स्त्यो॒३रत्यो॒ न वाजं॒ हरि॑वाँ अचिक्रदत् ।\n\nम॒ही चि॒द्धि धि॒षणाह॑र्य॒दोज॑सा बृ॒हद्वयो॑ दधिषे हर्य॒तश्चि॒दा ॥१०॥\n\nआ रोद॑सी॒ हर्य॑माणो महि॒त्वा नव्यं॑नव्यं हर्यसि॒ मन्म॒ नु प्रि॒यम् ।\n\n प्र प॒स्त्य॑मसुर हर्य॒तं गोरा॒विष्कृ॑धि॒ हर॑ये॒ सूर्या॑य ॥११॥\n\nआ त्वा॑ ह॒र्यन्तं॑ प्र॒युजो॒ जना॑नां॒ रथे॑ वहन्तु॒ हरि॑शिप्रमिन्द्र ।\n\n पिबा॒ यथा॒ प्रति॑भृतस्य॒ मध्वो॒ हर्य॑न्य॒ज्ञं स॑ध॒मादे॒ दशो॑णिम् ॥१२॥\n\nअपा॒: पूर्वे॑षां हरिवः सु॒ताना॒मथो॑ इ॒दं सव॑नं॒ केव॑लं ते ।\n\nम॒म॒द्धि सोमं॒ मधु॑मन्तमिन्द्र स॒त्रा वृ॑षञ्ज॒ठर॒ आ वृ॑षस्व ॥१३॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 97,
"text": "२३ आथर्वणो भिषग्। ओषधयः। अनुष्टुप्।\n\nया ओष॑धी॒: पूर्वा॑ जा॒ता दे॒वेभ्य॑स्त्रियु॒गं पु॒रा । मनै॒ नु ब॒भ्रूणा॑म॒हं श॒तं धामा॑नि स॒प्त च॑ ॥१॥\n\nश॒तं वो॑ अम्ब॒ धामा॑नि स॒हस्र॑मु॒त वो॒ रुह॑: । अधा॑ शतक्रत्वो यू॒यमि॒मं मे॑ अग॒दं कृ॑त ॥२॥\n\nओष॑धी॒: प्रति॑ मोदध्वं॒ पुष्प॑वतीः प्र॒सूव॑रीः । अश्वा॑ इव स॒जित्व॑रीर्वी॒रुध॑: पारयि॒ष्ण्व॑: ॥३॥\n\nओष॑धी॒रिति॑ मातर॒स्तद्वो॑ देवी॒रुप॑ ब्रुवे । स॒नेय॒मश्वं॒ गां वास॑ आ॒त्मानं॒ तव॑ पूरुष ॥४॥\n\nअ॒श्व॒त्थे वो॑ नि॒षद॑नं प॒र्णे वो॑ वस॒तिष्कृ॒ता । गो॒भाज॒ इत्किला॑सथ॒ यत्स॒नव॑थ॒ पूरु॑षम् ॥५॥\n\nयत्रौष॑धीः स॒मग्म॑त॒ राजा॑न॒: समि॑ताविव । विप्र॒: स उ॑च्यते भि॒षग्र॑क्षो॒हामी॑व॒चात॑नः ॥६॥\n\nअ॒श्वा॒व॒तीं सो॑माव॒तीमू॒र्जय॑न्ती॒मुदो॑जसम् । आवि॑त्सि॒ सर्वा॒ ओष॑धीर॒स्मा अ॑रि॒ष्टता॑तये ॥७॥\n\nउच्छुष्मा॒ ओष॑धीनां॒ गावो॑ गो॒ष्ठादि॑वेरते । धनं॑ सनि॒ष्यन्ती॑नामा॒त्मानं॒ तव॑ पूरुष ॥८॥\n\nइष्कृ॑ति॒र्नाम॑ वो मा॒ताऽथो॑ यू॒यं स्थ॒ निष्कृ॑तीः । सी॒राः प॑त॒त्रिणी॑: स्थन॒ यदा॒मय॑ति॒ निष्कृ॑थ ॥९॥\n\nअति॒ विश्वा॑: परि॒ष्ठा स्ते॒न इ॑व व्र॒जम॑क्रमुः । ओष॑धी॒: प्राचु॑च्यवु॒र्यत्किं च॑ त॒न्वो॒३ रप॑: ॥१०॥\n\nयदि॒मा वा॒जय॑न्न॒हमोष॑धी॒र्हस्त॑ आद॒धे । आ॒त्मा यक्ष्म॑स्य नश्यति पु॒रा जी॑व॒गृभो॑ यथा ॥११॥\n\nयस्यौ॑षधीः प्र॒सर्प॒थाङ्ग॑मङ्गं॒ परु॑ष्परुः । ततो॒ यक्ष्मं॒ वि बा॑धध्व उ॒ग्रो म॑ध्यम॒शीरि॑व ॥१२॥\n\nसा॒कं य॑क्ष्म॒ प्र प॑त॒ चाषे॑ण किकिदी॒विना॑ । सा॒कं वात॑स्य॒ ध्राज्या॑ सा॒कं न॑श्य नि॒हाक॑या ॥१३॥\n\nअ॒न्या वो॑ अ॒न्याम॑वत्व॒न्यान्यस्या॒ उपा॑वत । ताः सर्वा॑: संविदा॒ना इ॒दं मे॒ प्राव॑ता॒ वच॑: ॥१४॥\n\nयाः फ॒लिनी॒र्या अ॑फ॒ला अ॑पु॒ष्पा याश्च॑ पु॒ष्पिणी॑: । बृह॒स्पति॑प्रसूता॒स्ता नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥१५॥\n\nमु॒ञ्चन्तु॑ मा शप॒थ्या॒३दथो॑ वरु॒ण्या॑दु॒त । अथो॑ य॒मस्य॒ पड्बी॑शा॒त्सर्व॑स्माद्देवकिल्बि॒षात् ॥१६॥\n\nअ॒व॒पत॑न्तीरवदन्दि॒व ओष॑धय॒स्परि॑ । यं जी॒वम॒श्नवा॑महै॒ न स रि॑ष्याति॒ पूरु॑षः ॥१७॥\n\nया ओष॑धी॒: सोम॑राज्ञीर्ब॒ह्वीः श॒तवि॑चक्षणाः । तासां॒ त्वम॑स्युत्त॒मारं॒ कामा॑य॒ शं हृ॒दे ॥१८॥\n\nया ओष॑धी॒: सोम॑राज्ञी॒र्विष्ठि॑ताः पृथि॒वीमनु॑ । बृह॒स्पति॑प्रसूता अ॒स्यै सं द॑त्त वी॒र्य॑म् ॥१९॥\n\nमा वो॑ रिषत्खनि॒ता यस्मै॑ चा॒हं खना॑मि वः । द्वि॒पच्चतु॑ष्पद॒स्माकं॒ सर्व॑मस्त्वनातु॒रम् ॥२०॥\n\nयाश्चे॒दमु॑पशृ॒ण्वन्ति॒ याश्च॑ दू॒रं परा॑गताः । सर्वा॑: सं॒गत्य॑ वीरुधो॒ऽस्यै सं द॑त्त वी॒र्य॑म् ॥२१॥\n\nओष॑धय॒: सं व॑दन्ते॒ सोमे॑न स॒ह राज्ञा॑ । यस्मै॑ कृ॒णोति॑ ब्राह्म॒णस्तं रा॑जन्पारयामसि ॥२२॥\n\nत्वमु॑त्त॒मास्यो॑षधे॒ तव॑ वृ॒क्षा उप॑स्तयः । उप॑स्तिरस्तु॒ सो॒३ऽस्माकं॒ यो अ॒स्माँ अ॑भि॒दास॑ति ॥२३॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 98,
"text": "१२ आर्ष्टिषेणो देवापिः (वृष्टिकामः) । देवाः। त्रिष्टुप्।\n\nबृह॑स्पते॒ प्रति॑ मे दे॒वता॑मिहि मि॒त्रो वा॒ यद्वरु॑णो॒ वासि॑ पू॒षा ।\n\nआ॒दि॒त्यैर्वा॒ यद्वसु॑भिर्म॒रुत्वा॒न्त्स प॒र्जन्यं॒ शंत॑नवे वृषाय ॥१॥\n\nआ दे॒वो दू॒तो अ॑जि॒रश्चि॑कि॒त्वान्त्वद्दे॑वापे अ॒भि माम॑गच्छत् ।\n\nप्र॒ती॒ची॒नः प्रति॒ मामा व॑वृत्स्व॒ दधा॑मि ते द्यु॒मतीं॒ वाच॑मा॒सन् ॥२॥\n\nअ॒स्मे धे॑हि द्यु॒मतीं॒ वाच॑मा॒सन्बृह॑स्पते अनमी॒वामि॑षि॒राम् ।\n\nयया॑ वृ॒ष्टिं शंत॑नवे॒ वना॑व दि॒वो द्र॒प्सो मधु॑माँ॒ आ वि॑वेश ॥३॥\n\nआ नो॑ द्र॒प्सा मधु॑मन्तो विश॒न्त्विन्द्र॑ दे॒ह्यधि॑रथं स॒हस्र॑म् ।\n\nनि षी॑द हो॒त्रमृ॑तु॒था य॑जस्व दे॒वान्दे॑वापे ह॒विषा॑ सपर्य ॥४॥\n\nआ॒र्ष्टि॒षे॒णो हो॒त्रमृषि॑र्नि॒षीद॑न्दे॒वापि॑र्देवसुम॒तिं चि॑कि॒त्वान् ।\n\nस उत्त॑रस्मा॒दध॑रं समु॒द्रम॒पो दि॒व्या अ॑सृजद्व॒र्ष्या॑ अ॒भि ॥५॥\n\nअ॒स्मिन्त्स॑मु॒द्रे अध्युत्त॑रस्मि॒न्नापो॑ दे॒वेभि॒र्निवृ॑ता अतिष्ठन् ।\n\nता अ॑द्रवन्नार्ष्टिषे॒णेन॑ सृ॒ष्टा दे॒वापि॑ना॒ प्रेषि॑ता मृ॒क्षिणी॑षु ॥६॥\n\nयद्दे॒वापि॒: शंत॑नवे पु॒रोहि॑तो हो॒त्राय॑ वृ॒तः कृ॒पय॒न्नदी॑धेत् ।\n\nदे॒व॒श्रुतं॑ वृष्टि॒वनिं॒ ररा॑णो॒ बृह॒स्पति॒र्वाच॑मस्मा अयच्छत् ॥७॥\n\nयं त्वा॑ दे॒वापि॑: शुशुचा॒नो अ॑ग्न आर्ष्टिषे॒णो म॑नु॒ष्य॑: समी॒धे ।\n\nविश्वे॑भिर्दे॒वैर॑नुम॒द्यमा॑न॒: प्र प॒र्जन्य॑मीरया वृष्टि॒मन्त॑म् ॥८॥\n\nत्वां पूर्व॒ ऋष॑यो गी॒र्भिरा॑य॒न्त्वाम॑ध्व॒रेषु॑ पुरुहूत॒ विश्वे॑ ।\n\nस॒हस्रा॒ण्यधि॑रथान्य॒स्मे आ नो॑ य॒ज्ञं रो॑हिद॒श्वोप॑ याहि ॥९॥\n\nए॒तान्य॑ग्ने नव॒तिर्नव॒ त्वे आहु॑ता॒न्यधि॑रथा स॒हस्रा॑ ।\n\nतेभि॑र्वर्धस्व त॒न्व॑: शूर पू॒र्वीर्दि॒वो नो॑ वृ॒ष्टिमि॑षि॒तो रि॑रीहि ॥१०॥\n\nए॒तान्य॑ग्ने नव॒तिं स॒हस्रा॒ सं प्र य॑च्छ॒ वृष्ण॒ इन्द्रा॑य भा॒गम् ।\n\nवि॒द्वान्प॒थ ऋ॑तु॒शो दे॑व॒याना॒नप्यौ॑ला॒नं दि॒वि दे॒वेषु॑ धेहि ॥११॥\n\nअग्ने॒ बाध॑स्व॒ वि मृधो॒ वि दु॒र्गहाऽपामी॑वा॒मप॒ रक्षां॑सि सेध ।\n\nअ॒स्मात्स॑मु॒द्राद्बृ॑ह॒तो दि॒वो नो॒ऽपां भू॒मान॒मुप॑ नः सृजे॒ह ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 99,
"text": "१२ वम्रो वैखानसः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nकं न॑श्चि॒त्रमि॑षण्यसि चिकि॒त्वान्पृ॑थु॒ग्मानं॑ वा॒श्रं वा॑वृ॒धध्यै॑ ।\n\nकत्तस्य॒ दातु॒ शव॑सो॒ व्यु॑ष्टौ॒ तक्ष॒द्वज्रं॑ वृत्र॒तुर॒मपि॑न्वत् ॥१॥\n\nस हि द्यु॒ता वि॒द्युता॒ वेति॒ साम॑ पृ॒थुं योनि॑मसुर॒त्वा स॑साद ।\n\nस सनी॑ळेभिः प्रसहा॒नो अ॑स्य॒ भ्रातु॒र्न ऋ॒ते स॒प्तथ॑स्य मा॒याः ॥२॥\n\nस वाजं॒ याताप॑दुष्पदा॒ यन्त्स्व॑र्षाता॒ परि॑ षदत्सनि॒ष्यन् ।\n\nअ॒न॒र्वा यच्छ॒तदु॑रस्य॒ वेदो॒ घ्नञ्छि॒श्नदे॑वाँ अ॒भि वर्प॑सा॒ भूत् ॥३॥\n\nस य॒ह्व्यो॒३ऽवनी॒र्गोष्वर्वा ऽऽजु॑होति प्रध॒न्या॑सु॒ सस्रि॑: ।\n\nअ॒पादो॒ यत्र॒ युज्या॑सोऽर॒था द्रो॒ण्य॑श्वास॒ ईर॑ते घृ॒तं वाः ॥४॥\n\nस रु॒द्रेभि॒रश॑स्तवार॒ ऋभ्वा॑ हि॒त्वी गय॑मा॒रेअ॑वद्य॒ आगा॑त् ।\n\nव॒म्रस्य॑ मन्ये मिथु॒ना विव॑व्री॒ अन्न॑म॒भीत्या॑रोदयन्मुषा॒यन् ॥५॥\n\nस इद्दासं॑ तुवी॒रवं॒ पति॒र्दन्ष॑ळ॒क्षं त्रि॑शी॒र्षाणं॑ दमन्यत् ।\n\nअ॒स्य त्रि॒तो न्वोज॑सा वृधा॒नो वि॒पा व॑रा॒हमयो॑अग्रया हन् ॥६॥\n\nस द्रुह्व॑णे॒ मनु॑ष ऊर्ध्वसा॒न आ सा॑विषदर्शसा॒नाय॒ शरु॑म् ।\n\nस नृत॑मो॒ नहु॑षो॒ऽस्मत्सुजा॑त॒: पुरो॑ऽभिन॒दर्ह॑न्दस्यु॒हत्ये॑ ॥७॥\n\nसो अ॒भ्रियो॒ न यव॑स उद॒न्यन्क्षया॑य गा॒तुं वि॒दन्नो॑ अ॒स्मे ।\n\nउप॒ यत्सीद॒दिन्दुं॒ शरी॑रैः श्ये॒नोऽयो॑पाष्टिर्हन्ति॒ दस्यू॑न् ॥८॥\n\nस व्राध॑तः शवसा॒नेभि॑रस्य॒ कुत्सा॑य॒ शुष्णं॑ कृ॒पणे॒ परा॑दात् ।\n\nअ॒यं क॒विम॑नयच्छ॒स्यमा॑न॒मत्कं॒ यो अ॑स्य॒ सनि॑तो॒त नृ॒णाम् ॥९॥\n\nअ॒यं द॑श॒स्यन्नर्ये॑भिरस्य द॒स्मो दे॒वेभि॒र्वरु॑णो॒ न मा॒यी ।\n\nअ॒यं क॒नीन॑ ऋतु॒पा अ॑वे॒द्यमि॑मीता॒ररुं॒ यश्चतु॑ष्पात् ॥१०॥\n\nअ॒स्य स्तोमे॑भिरौशि॒ज ऋ॒जिश्वा॑ व्र॒जं द॑रयद्वृष॒भेण॒ पिप्रो॑: ।\n\nसुत्वा॒ यद्य॑ज॒तो दी॒दय॒द्गीः पुर॑ इया॒नो अ॒भि वर्प॑सा॒ भूत् ॥११॥\n\nए॒वा म॒हो अ॑सुर व॒क्षथा॑य वम्र॒कः प॒ड्भिरुप॑ सर्प॒दिन्द्र॑म् ।\n\nस इ॑या॒नः क॑रति स्व॒स्तिम॑स्मा॒ इष॒मूर्जं॑ सुक्षि॒तिं विश्व॒माभा॑: ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 100,
"text": "१२ दुवस्युर्वान्दनः। विश्वेदेवाः। जगती, १२ त्रिष्टुप्।\n\nइन्द्र॒ दृह्य॑ मघव॒न्त्वाव॒दिद्भु॒ज इ॒ह स्तु॒तः सु॑त॒पा बो॑धि नो वृ॒धे ।\n\nदे॒वेभि॑र्नः सवि॒ता प्राव॑तु श्रु॒तमा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥१॥\n\nभरा॑य॒ सु भ॑रत भा॒गमृ॒त्वियं॒ प्र वा॒यवे॑ शुचि॒पे क्र॒न्ददि॑ष्टये ।\n\nगौ॒रस्य॒ यः पय॑सः पी॒तिमा॑न॒श आ स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥२॥\n\nआ नो॑ दे॒वः स॑वि॒ता सा॑विष॒द्वय॑ ऋजूय॒ते यज॑मानाय सुन्व॒ते ।\n\nयथा॑ दे॒वान्प्र॑ति॒भूषे॑म पाक॒वदा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥३॥\n\nइन्द्रो॑ अ॒स्मे सु॒मना॑ अस्तु वि॒श्वहा॒ राजा॒ सोम॑: सुवि॒तस्याध्ये॑तु नः ।\n\nयथा॑यथा मि॒त्रधि॑तानि संद॒धुरा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥४॥\n\nइन्द्र॑ उ॒क्थेन॒ शव॑सा॒ परु॑र्दधे॒ बृह॑स्पते प्रतरी॒तास्यायु॑षः ।\n\nय॒ज्ञो मनु॒: प्रम॑तिर्नः पि॒ता हि क॒मा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥५॥\n\nइन्द्र॑स्य॒ नु सुकृ॑तं॒ दैव्यं॒ सहो॒ऽग्निर्गृ॒हे ज॑रि॒ता मेधि॑रः क॒विः ।\n\nय॒ज्ञश्च॑ भूद्वि॒दथे॒ चारु॒रन्त॑म॒ आ स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥६॥\n\nन वो॒ गुहा॑ चकृम॒ भूरि॑ दुष्कृ॒तं नाविष्ट्यं॑ वसवो देव॒हेळ॑नम् ।\n\nमाकि॑र्नो देवा॒ अनृ॑तस्य॒ वर्प॑स॒ आ स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥७॥\n\nअपामी॑वां सवि॒ता सा॑विष॒न्न्य१ग्वरी॑य॒ इदप॑ सेध॒न्त्वद्र॑यः ।\n\n ग्रावा॒ यत्र॑ मधु॒षुदु॒च्यते॑ बृ॒हदा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥८॥\n\nऊ॒र्ध्वो ग्रावा॑ वसवोऽस्तु सो॒तरि॒ विश्वा॒ द्वेषां॑सि सनु॒तर्यु॑योत ।\n\nस नो॑ दे॒वः स॑वि॒ता पा॒युरीड्य॒ आ स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥९॥\n\nऊर्जं॑ गावो॒ यव॑से॒ पीवो॑ अत्तन ऋ॒तस्य॒ याः सद॑ने॒ कोशे॑ अ॒ङ्ग्ध्वे ।\n\nत॒नूरे॒व त॒न्वो॑ अस्तु भेष॒जमा स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥१०॥\n\nक्र॒तु॒प्रावा॑ जरि॒ता शश्व॑ता॒मव॒ इन्द्र॒ इद्भ॒द्रा प्रम॑तिः सु॒ताव॑ताम् ।\n\nपू॒र्णमूध॑र्दि॒व्यं यस्य॑ सि॒क्तय॒ आ स॒र्वता॑ति॒मदि॑तिं वृणीमहे ॥११॥\n\nचि॒त्रस्ते॑ भा॒नुः क्र॑तु॒प्रा अ॑भि॒ष्टिः सन्ति॒ स्पृधो॑ जरणि॒प्रा अधृ॑ष्टाः ।\n\nरजि॑ष्ठया॒ रज्या॑ प॒श्व आ गोस्तूतू॑र्षति॒ पर्यग्रं॑ दुव॒स्युः ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 101,
"text": "१२ बुधः सौम्यः। विश्वे देवा, ऋत्विजो वा । त्रिष्टुप् ४, ६ गायत्री, ५ बृहती, ९,१२ जगती।\n\nउद्बु॑ध्यध्वं॒ सम॑नसः सखाय॒: सम॒ग्निमि॑न्ध्वं ब॒हव॒: सनी॑ळाः ।\n\nद॒धि॒क्राम॒ग्निमु॒षसं॑ च दे॒वीमिन्द्रा॑व॒तोऽव॑से॒ नि ह्व॑ये वः ॥१॥\n\nम॒न्द्रा कृ॑णुध्वं॒ धिय॒ आ त॑नुध्वं॒ नाव॑मरित्र॒पर॑णीं कृणुध्वम् ।\n\nइष्कृ॑णुध्व॒मायु॒धारं॑ कृणुध्वं॒ प्राञ्चं॑ य॒ज्ञं प्र ण॑यता सखायः ॥२॥\n\nयु॒नक्त॒ सीरा॒ वि यु॒गा त॑नुध्वं कृ॒ते योनौ॑ वपते॒ह बीज॑म् ।\n\n गि॒रा च॑ श्रु॒ष्टिः सभ॑रा॒ अस॑न्नो॒ नेदी॑य॒ इत्सृ॒ण्य॑: प॒क्वमेया॑त् ॥३॥\n\nसीरा॑ युञ्जन्ति क॒वयो॑ यु॒गा वि त॑न्वते॒ पृथ॑क् । धीरा॑ दे॒वेषु॑ सुम्न॒या ॥४॥\n\nनिरा॑हा॒वान्कृ॑णोतन॒ सं व॑र॒त्रा द॑धातन । सि॒ञ्चाम॑हा अव॒तमु॒द्रिणं॑ व॒यं सु॒षेक॒मनु॑पक्षितम् ॥५॥\n\nइष्कृ॑ताहावमव॒तं सु॑वर॒त्रं सु॑षेच॒नम् । उ॒द्रिणं॑ सिञ्चे॒ अक्षि॑तम् ॥६॥\n\nप्री॒णी॒ताश्वा॑न्हि॒तं ज॑याथ स्वस्ति॒वाहं॒ रथ॒मित्कृ॑णुध्वम् ।\n\nद्रोणा॑हावमव॒तमश्म॑चक्र॒मंस॑त्रकोशं सिञ्चता नृ॒पाण॑म् ॥७॥\n\nव्र॒जं कृ॑णुध्वं॒ स हि वो॑ नृ॒पाणो॒ वर्म॑ सीव्यध्वं बहु॒ला पृ॒थूनि॑ ।\n\nपुर॑: कृणुध्व॒माय॑सी॒रधृ॑ष्टा॒ मा व॑: सुस्रोच्चम॒सो दृंह॑ता॒ तम् ॥८॥\n\nआ वो॒ धियं॑ य॒ज्ञियां॑ वर्त ऊ॒तये॒ देवा॑ दे॒वीं य॑ज॒तां य॒ज्ञिया॑मि॒ह ।\n\nसा नो॑ दुहीय॒द्यव॑सेव ग॒त्वी स॒हस्र॑धारा॒ पय॑सा म॒ही गौः ॥९॥\n\nआ तू षि॑ञ्च॒ हरि॑मीं॒ द्रोरु॒पस्थे॒ वाशी॑भिस्तक्षताश्म॒न्मयी॑भिः ।\n\nपरि॑ ष्वजध्वं॒ दश॑ क॒क्ष्या॑भिरु॒भे धुरौ॒ प्रति॒ वह्निं॑ युनक्त ॥१०॥\n\nउ॒भे धुरौ॒ वह्नि॑रा॒पिब्द॑मानो॒ऽन्तर्योने॑व चरति द्वि॒जानि॑: ।\n\nवन॒स्पतिं॒ वन॒ आस्था॑पयध्वं॒ नि षू द॑धिध्व॒मख॑नन्त॒ उत्स॑म् ॥११॥\n\nकपृ॑न्नरः कपृ॒थमुद्द॑धातन चो॒दय॑त खु॒दत॒ वाज॑सातये ।\n\nनि॒ष्टि॒ग्र्य॑: पु॒त्रमा च्या॑वयो॒तय॒ इन्द्रं॑ स॒बाध॑ इ॒ह सोम॑पीतये ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 102,
"text": "१२ मुद्गलो भार्म्यश्वः। द्रुघणः, इन्द्रो वा। त्रिष्टुप्, १,३, १२ बृहती।\n\nप्र ते॒ रथं॑ मिथू॒कृत॒मिन्द्रो॑ऽवतु धृष्णु॒या ।\n\nअ॒स्मिन्ना॒जौ पु॑रुहूत श्र॒वाय्ये॑ धनभ॒क्षेषु॑ नोऽव ॥१॥\n\nउत्स्म॒ वातो॑ वहति॒ वासो॑ऽस्या॒ अधि॑रथं॒ यदज॑यत्स॒हस्र॑म् ।\n\n र॒थीर॑भून्मुद्ग॒लानी॒ गवि॑ष्टौ॒ भरे॑ कृ॒तं व्य॑चेदिन्द्रसे॒ना ॥२॥\n\nअ॒न्तर्य॑च्छ॒ जिघां॑सतो॒ वज्र॑मिन्द्राभि॒दास॑तः ।\n\nदास॑स्य वा मघव॒न्नार्य॑स्य वा सनु॒तर्य॑वया व॒धम् ॥३॥\n\nउ॒द्नो ह्र॒दम॑पिब॒ज्जर्हृ॑षाण॒: कूटं॑ स्म तृं॒हद॒भिमा॑तिमेति ।\n\nप्र मु॒ष्कभा॑र॒: श्रव॑ इ॒च्छमा॑नोऽजि॒रं बा॒हू अ॑भर॒त्सिषा॑सन् ॥४॥\n\nन्य॑क्रन्दयन्नुप॒यन्त॑ एन॒ममे॑हयन्वृष॒भं मध्य॑ आ॒जेः ।\n\nतेन॒ सूभ॑र्वं श॒तव॑त्स॒हस्रं॒ गवां॒ मुद्ग॑लः प्र॒धने॑ जिगाय ॥५॥\n\nक॒कर्द॑वे वृष॒भो यु॒क्त आ॑सी॒दवा॑वची॒त्सार॑थिरस्य के॒शी ।\n\nदुधे॑र्यु॒क्तस्य॒ द्रव॑तः स॒हान॑स ऋ॒च्छन्ति॑ ष्मा नि॒ष्पदो॑ मुद्ग॒लानी॑म् ॥६॥\n\nउ॒त प्र॒धिमुद॑हन्नस्य वि॒द्वानुपा॑युन॒ग्वंस॑ग॒मत्र॒ शिक्ष॑न् ।\n\nइन्द्र॒ उदा॑व॒त्पति॒मघ्न्या॑ना॒मरं॑हत॒ पद्या॑भिः क॒कुद्मा॑न् ॥७॥\n\nशु॒नम॑ष्ट्रा॒व्य॑चरत्कप॒र्दी व॑र॒त्रायां॒ दार्वा॒नह्य॑मानः ।\n\nनृ॒म्णानि॑ कृ॒ण्वन्ब॒हवे॒ जना॑य॒ गाः प॑स्पशा॒नस्तवि॑षीरधत्त ॥८॥\n\nइ॒मं तं प॑श्य वृष॒भस्य॒ युञ्जं॒ काष्ठा॑या॒ मध्ये॑ द्रुघ॒णं शया॑नम् ।\n\nयेन॑ जि॒गाय॑ श॒तव॑त्स॒हस्रं॒ गवां॒ मुद्ग॑लः पृत॒नाज्ये॑षु ॥९॥\n\nआ॒रे अ॒घा को न्वि१त्था द॑दर्श॒ यं यु॒ञ्जन्ति॒ तम्वा स्था॑पयन्ति ।\n\n नास्मै॒ तृणं॒ नोद॒कमा भ॑र॒न्त्युत्त॑रो धु॒रो व॑हति प्र॒देदि॑शत् ॥१०॥\n\nप॒रि॒वृ॒क्तेव॑ पति॒विद्य॑मान॒ट् पीप्या॑ना॒ कूच॑क्रेणेव सि॒ञ्चन् ।\n\nए॒षै॒ष्या॑ चिद्र॒थ्या॑ जयेम सुम॒ङ्गलं॒ सिन॑वदस्तु सा॒तम् ॥११॥\n\nत्वं विश्व॑स्य॒ जग॑त॒श्चक्षु॑रिन्द्रासि॒ चक्षु॑षः । वृषा॒ यदा॒जिं वृष॑णा॒ सिषा॑ससि चो॒दय॒न्वध्रि॑णा यु॒जा ॥१२॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 103,
"text": "१३ ऐन्द्रोऽप्रतिरथः। इन्द्रः, ४ बृहस्पति:, १२ अप्वा देवी, १३ मरुतो वा। त्रिष्टुप् , १३ अनुष्टुप्।\n\nआ॒शुः शिशा॑नो वृष॒भो न भी॒मो घ॑नाघ॒नः क्षोभ॑णश्चर्षणी॒नाम् ।\n\nसं॒क्रन्द॑नोऽनिमि॒ष ए॑कवी॒रः श॒तं सेना॑ अजयत्सा॒कमिन्द्र॑: ॥१॥\n\nसं॒क्रन्द॑नेनानिमि॒षेण॑ जि॒ष्णुना॑ युत्का॒रेण॑ दुश्च्यव॒नेन॑ धृ॒ष्णुना॑ ।\n\nतदिन्द्रे॑ण जयत॒ तत्स॑हध्वं॒ युधो॑ नर॒ इषु॑हस्तेन॒ वृष्णा॑ ॥२॥\n\nस इषु॑हस्तै॒: स नि॑ष॒ङ्गिभि॑र्व॒शी संस्र॑ष्टा॒ स युध॒ इन्द्रो॑ ग॒णेन॑ ।\n\nसं॒सृ॒ष्ट॒जित्सो॑म॒पा बा॑हुश॒र्ध्यु१ग्रध॑न्वा॒ प्रति॑हिताभि॒रस्ता॑ ॥३॥\n\nबृह॑स्पते॒ परि॑ दीया॒ रथे॑न रक्षो॒हामित्राँ॑ अप॒बाध॑मानः ।\n\nप्र॒भ॒ञ्जन्त्सेना॑: प्रमृ॒णो यु॒धा जय॑न्न॒स्माक॑मेध्यवि॒ता रथा॑नाम् ॥४॥\n\nब॒ल॒वि॒ज्ञा॒यः स्थवि॑र॒: प्रवी॑र॒: सह॑स्वान्वा॒जी सह॑मान उ॒ग्रः ।\n\nअ॒भिवी॑रो अ॒भिस॑त्वा सहो॒जा जैत्र॑मिन्द्र॒ रथ॒मा ति॑ष्ठ गो॒वित् ॥५॥\n\nगो॒त्र॒भिदं॑ गो॒विदं॒ वज्र॑बाहुं॒ जय॑न्त॒मज्म॑ प्रमृ॒णन्त॒मोज॑सा ।\n\nइ॒मं स॑जाता॒ अनु॑ वीरयध्व॒मिन्द्रं॑ सखायो॒ अनु॒ सं र॑भध्वम् ॥६॥\n\nअ॒भि गो॒त्राणि॒ सह॑सा॒ गाह॑मानोऽद॒यो वी॒रः श॒तम॑न्यु॒रिन्द्र॑: ।\n\nदु॒श्च्य॒व॒नः पृ॑तना॒षाळ॑यु॒ध्यो॒३ऽस्माकं॒ सेना॑ अवतु॒ प्र यु॒त्सु ॥७॥\n\nइन्द्र॑ आसां ने॒ता बृह॒स्पति॒र्दक्षि॑णा य॒ज्ञः पु॒र ए॑तु॒ सोम॑: ।\n\nदे॒व॒से॒नाना॑मभिभञ्जती॒नां जय॑न्तीनां म॒रुतो॑ य॒न्त्वग्र॑म् ॥८॥\n\nइन्द्र॑स्य॒ वृष्णो॒ वरु॑णस्य॒ राज्ञ॑ आदि॒त्यानां॑ म॒रुतां॒ शर्ध॑ उ॒ग्रम् ।\n\nम॒हाम॑नसां भुवनच्य॒वानां॒ घोषो॑ दे॒वानां॒ जय॑ता॒मुद॑स्थात् ॥९॥\n\nउद्ध॑र्षय मघव॒न्नायु॑धा॒न्युत्सत्व॑नां माम॒कानां॒ मनां॑सि ।\n\nउद्वृ॑त्रहन्वा॒जिनां॒ वाजि॑ना॒न्युद्रथा॑नां॒ जय॑तां यन्तु॒ घोषा॑: ॥१०॥\n\nअ॒स्माक॒मिन्द्र॒: समृ॑तेषु ध्व॒जेष्व॒स्माकं॒ या इष॑व॒स्ता ज॑यन्तु ।\n\nअ॒स्माकं॑ वी॒रा उत्त॑रे भवन्त्व॒स्माँ उ॑ देवा अवता॒ हवे॑षु ॥११॥\n\nअ॒मीषां॑ चि॒त्तं प्र॑तिलो॒भय॑न्ती गृहा॒णाङ्गा॑न्यप्वे॒ परे॑हि ।\n\nअ॒भि प्रेहि॒ निर्द॑ह हृ॒त्सु शोकै॑र॒न्धेना॒मित्रा॒स्तम॑सा सचन्ताम् ॥१२॥\n\nप्रेता॒ जय॑ता नर॒ इन्द्रो॑ व॒: शर्म॑ यच्छतु । उ॒ग्रा व॑: सन्तु बा॒हवो॑ऽनाधृ॒ष्या यथास॑थ ॥१३॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 104,
"text": "११ अष्टको वैश्वामित्रः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nअसा॑वि॒ सोम॑: पुरुहूत॒ तुभ्यं॒ हरि॑भ्यां य॒ज्ञमुप॑ याहि॒ तूय॑म् ।\n\nतुभ्यं॒ गिरो॒ विप्र॑वीरा इया॒ना द॑धन्वि॒र इ॑न्द्र॒ पिबा॑ सु॒तस्य॑ ॥१॥\n\nअ॒प्सु धू॒तस्य॑ हरिव॒: पिबे॒ह नृभि॑: सु॒तस्य॑ ज॒ठरं॑ पृणस्व ।\n\nमि॒मि॒क्षुर्यमद्र॑य इन्द्र॒ तुभ्यं॒ तेभि॑र्वर्धस्व॒ मद॑मुक्थवाहः ॥२॥\n\nप्रोग्रां पी॒तिं वृष्ण॑ इयर्मि स॒त्यां प्र॒यै सु॒तस्य॑ हर्यश्व॒ तुभ्य॑म् ।\n\nइन्द्र॒ धेना॑भिरि॒ह मा॑दयस्व धी॒भिर्विश्वा॑भि॒: शच्या॑ गृणा॒नः ॥३॥\n\nऊ॒ती श॑चीव॒स्तव॑ वी॒र्ये॑ण॒ वयो॒ दधा॑ना उ॒शिज॑ ऋत॒ज्ञाः ।\n\nप्र॒जाव॑दिन्द्र॒ मनु॑षो दुरो॒णे त॒स्थुर्गृ॒णन्त॑: सध॒माद्या॑सः ॥४॥\n\nप्रणी॑तिभिष्टे हर्यश्व सु॒ष्टोः सु॑षु॒म्नस्य॑ पुरु॒रुचो॒ जना॑सः ।\n\nमंहि॑ष्ठामू॒तिं वि॒तिरे॒ दधा॑ना स्तो॒तार॑ इन्द्र॒ तव॑ सू॒नृता॑भिः ॥५॥\n\nउप॒ ब्रह्मा॑णि हरिवो॒ हरि॑भ्यां॒ सोम॑स्य याहि पी॒तये॑ सु॒तस्य॑ ।\n\nइन्द्र॑ त्वा य॒ज्ञः क्षम॑माणमानड्दा॒श्वाँ अ॑स्यध्व॒रस्य॑ प्रके॒तः ॥६॥\n\nस॒हस्र॑वाजमभिमाति॒षाहं॑ सु॒तेर॑णं म॒घवा॑नं सुवृ॒क्तिम् ।\n\nउप॑ भूषन्ति॒ गिरो॒ अप्र॑तीत॒मिन्द्रं॑ नम॒स्या ज॑रि॒तुः प॑नन्त ॥७॥\n\nस॒प्तापो॑ दे॒वीः सु॒रणा॒ अमृ॑क्ता॒ याभि॒: सिन्धु॒मत॑र इन्द्र पू॒र्भित् ।\n\nन॒व॒तिं स्रो॒त्या नव॑ च॒ स्रव॑न्तीर्दे॒वेभ्यो॑ गा॒तुं मनु॑षे च विन्दः ॥८॥\n\nअ॒पो म॒हीर॒भिश॑स्तेरमु॒ञ्चोऽजा॑गरा॒स्वधि॑ दे॒व एक॑: ।\n\nइन्द्र॒ यास्त्वं वृ॑त्र॒तूर्ये॑ च॒कर्थ॒ ताभि॑र्वि॒श्वायु॑स्त॒न्वं॑ पुपुष्याः ॥९॥\n\nवी॒रेण्य॒: क्रतु॒रिन्द्र॑: सुश॒स्तिरु॒तापि॒ धेना॑ पुरुहू॒तमी॑ट्टे ।\n\nआर्द॑यद्वृ॒त्रमकृ॑णोदु लो॒कं स॑सा॒हे श॒क्रः पृत॑ना अभि॒ष्टिः ॥१०॥\n\nशु॒नं हु॑वेम म॒घवा॑न॒मिन्द्र॑म॒स्मिन्भरे॒ नृत॑मं॒ वाज॑सातौ ।\n\nशृ॒ण्वन्त॑मु॒ग्रमू॒तये॑ स॒मत्सु॒ घ्नन्तं॑ वृ॒त्राणि॑ सं॒जितं॒ धना॑नाम् ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 105,
"text": "११ कौत्सो दुर्मित्रः सुमित्रो वा। इन्द्रः। उष्णिक्, १ गायत्री वा २,७ पिपीलिकमध्या, ११ त्रिष्टुप् ।\n\nक॒दा व॑सो स्तो॒त्रं हर्य॑त॒ आव॑ श्म॒शा रु॑ध॒द्वाः । दी॒र्घं सु॒तं वा॒ताप्या॑य ॥१॥\n\nहरी॒ यस्य॑ सु॒युजा॒ विव्र॑ता॒ वेरर्व॒न्तानु॒ शेपा॑ । उ॒भा र॒जी न के॒शिना॒ पति॒र्दन् ॥२॥\n\nअप॒ योरिन्द्र॒: पाप॑ज॒ आ मर्तो॒ न श॑श्रमा॒णो बि॑भी॒वान् । शु॒भे यद्यु॑यु॒जे तवि॑षीवान् ॥३॥\n\nसचा॒योरिन्द्र॒श्चर्कृ॑ष॒ आँ उ॑पान॒सः स॑प॒र्यन् । न॒दयो॒र्विव्र॑तयो॒: शूर॒ इन्द्र॑: ॥४॥\n\nअधि॒ यस्त॒स्थौ केश॑वन्ता॒ व्यच॑स्वन्ता॒ न पु॒ष्ट्यै । व॒नोति॒ शिप्रा॑भ्यां शि॒प्रिणी॑वान् ॥५॥\n\nप्रास्तौ॑दृ॒ष्वौजा॑ ऋ॒ष्वेभि॑स्त॒तक्ष॒ शूर॒: शव॑सा । ऋ॒भुर्न क्रतु॑भिर्मात॒रिश्वा॑ ॥६॥\n\nवज्रं॒ यश्च॒क्रे सु॒हना॑य॒ दस्य॑वे हिरीम॒शो हिरी॑मान् । अरु॑तहनु॒रद्भु॑तं॒ न रज॑: ॥७॥\n\nअव॑ नो वृजि॒ना शि॑शीह्यृ॒चा व॑नेमा॒नृच॑: । नाब्र॑ह्मा य॒ज्ञ ऋध॒ग्जोष॑ति॒ त्वे ॥८॥\n\nऊ॒र्ध्वा यत्ते॑ त्रे॒तिनी॒ भूद्य॒ज्ञस्य॑ धू॒र्षु सद्म॑न् । स॒जूर्नावं॒ स्वय॑शसं॒ सचा॒योः ॥९॥\n\nश्रि॒ये ते॒ पृश्नि॑रुप॒सेच॑नी भूच्छ्रि॒ये दर्वि॑ररे॒पाः । यया॒ स्वे पात्रे॑ सि॒ञ्चस॒ उत् ॥१०॥\n\nश॒तं वा॒ यद॑सुर्य॒ प्रति॑ त्वा सुमि॒त्र इ॒त्थास्तौ॑द्दुर्मि॒त्र इ॒त्थास्तौ॑त् ।\n\nआवो॒ यद्द॑स्यु॒हत्ये॑ कुत्सपु॒त्रं प्रावो॒ यद्द॑स्यु॒हत्ये॑ कुत्सव॒त्सम् ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 106,
"text": "११ भूतांशः काश्यपः। अश्विनौ। त्रिष्टुप्।\n\nउ॒भा उ॑ नू॒नं तदिद॑र्थयेथे॒ वि त॑न्वाथे॒ धियो॒ वस्त्रा॒पसे॑व ।\n\nस॒ध्री॒ची॒ना यात॑वे॒ प्रेम॑जीगः सु॒दिने॑व॒ पृक्ष॒ आ तं॑सयेथे ॥१॥\n\nउ॒ष्टारे॑व॒ फर्व॑रेषु श्रयेथे प्रायो॒गेव॒ श्वात्र्या॒ शासु॒रेथ॑: ।\n\nदू॒तेव॒ हि ष्ठो य॒शसा॒ जने॑षु॒ माप॑ स्थातं महि॒षेवा॑व॒पाना॑त् ॥२॥\n\nसा॒कं॒युजा॑ शकु॒नस्ये॑व प॒क्षा प॒श्वेव॑ चि॒त्रा यजु॒रा ग॑मिष्टम् ।\n\nअ॒ग्निरि॑व देव॒योर्दी॑दि॒वांसा॒ परि॑ज्मानेव यजथः पुरु॒त्रा ॥३॥\n\nआ॒पी वो॑ अ॒स्मे पि॒तरे॑व पु॒त्रोग्रेव॑ रु॒चा नृ॒पती॑व तु॒र्यै ।\n\nइर्ये॑व पु॒ष्ट्यै कि॒रणे॑व भु॒ज्यै श्रु॑ष्टी॒वाने॑व॒ हव॒मा ग॑मिष्टम् ॥४॥\n\nवंस॑गेव पूष॒र्या॑ शि॒म्बाता॑ मि॒त्रेव॑ ऋ॒ता श॒तरा॒ शात॑पन्ता ।\n\nवाजे॑वो॒च्चा वय॑सा घर्म्ये॒ष्ठा मेषे॑वे॒षा स॑प॒र्या॒३ पुरी॑षा ॥५॥\n\nसृ॒ण्ये॑व ज॒र्भरी॑ तु॒र्फरी॑तू नैतो॒शेव॑ तु॒र्फरी॑ पर्फ॒रीका॑ ।\n\nउ॒द॒न्य॒जेव॒ जेम॑ना मदे॒रू ता मे॑ ज॒राय्व॒जरं॑ म॒रायु॑ ॥६॥\n\nप॒ज्रेव॒ चर्च॑रं॒ जारं॑ म॒रायु॒ क्षद्मे॒वार्थे॑षु तर्तरीथ उग्रा ।\n\nऋ॒भू नाप॑त्खरम॒ज्रा ख॒रज्रु॑र्वा॒युर्न प॑र्फरत्क्षयद्रयी॒णाम् ॥७॥\n\nघ॒र्मेव॒ मधु॑ ज॒ठरे॑ स॒नेरू॒ भगे॑विता तु॒र्फरी॒ फारि॒वार॑म् ।\n\nप॒त॒रेव॑ चच॒रा च॒न्द्रनि॑र्णि॒ङ्मन॑ऋङ्गा मन॒न्या॒३ न जग्मी॑ ॥८॥\n\nबृ॒हन्ते॑व ग॒म्भरे॑षु प्रति॒ष्ठां पादे॑व गा॒धं तर॑ते विदाथः ।\n\nकर्णे॑व॒ शासु॒रनु॒ हि स्मरा॒थोंऽशे॑व नो भजतं चि॒त्रमप्न॑: ॥९॥\n\nआ॒र॒ङ्ग॒रेव॒ मध्वेर॑येथे सार॒घेव॒ गवि॑ नी॒चीन॑बारे ।\n\nकी॒नारे॑व॒ स्वेद॑मासिष्विदा॒ना क्षामे॑वो॒र्जा सू॑यव॒सात्स॑चेथे ॥१०॥\n\nऋ॒ध्याम॒ स्तोमं॑ सनु॒याम॒ वाज॒मा नो॒ मन्त्रं॑ स॒रथे॒होप॑ यातम् ।\n\nयशो॒ न प॒क्वं मधु॒ गोष्व॒न्तरा भू॒तांशो॑ अ॒श्विनो॒: काम॑मप्राः ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 107,
"text": "११ दिव्य आंगिरसः, दक्षिणा वा प्राजापत्या। दक्षिना, दक्षिणादातारो वा। त्रिष्टुप् , ४ जगती।\n\nआ॒विर॑भू॒न्महि॒ माघो॑नमेषां॒ विश्वं॑ जी॒वं तम॑सो॒ निर॑मोचि ।\n\nमहि॒ ज्योति॑: पि॒तृभि॑र्द॒त्तमागा॑दु॒रुः पन्था॒ दक्षि॑णाया अदर्शि ॥१॥\n\nउ॒च्चा दि॒वि दक्षि॑णावन्तो अस्थु॒र्ये अ॑श्व॒दाः स॒ह ते सूर्ये॑ण ।\n\nहि॒र॒ण्य॒दा अ॑मृत॒त्वं भ॑जन्ते वासो॒दाः सो॑म॒ प्र ति॑रन्त॒ आयु॑: ॥२॥\n\nदैवी॑ पू॒र्तिर्दक्षि॑णा देवय॒ज्या न क॑वा॒रिभ्यो॑ न॒हि ते पृ॒णन्ति॑ ।\n\nअथा॒ नर॒: प्रय॑तदक्षिणासोऽवद्यभि॒या ब॒हव॑: पृणन्ति ॥३॥\n\nश॒तधा॑रं वा॒युम॒र्कं स्व॒र्विदं॑ नृ॒चक्ष॑स॒स्ते अ॒भि च॑क्षते ह॒विः ।\n\nये पृ॒णन्ति॒ प्र च॒ यच्छ॑न्ति संग॒मे ते दक्षि॑णां दुहते स॒प्तमा॑तरम् ॥४॥\n\nदक्षि॑णावान्प्रथ॒मो हू॒त ए॑ति॒ दक्षि॑णावान्ग्राम॒णीरग्र॑मेति ।\n\nतमे॒व म॑न्ये नृ॒पतिं॒ जना॑नां॒ यः प्र॑थ॒मो दक्षि॑णामावि॒वाय॑ ॥५॥\n\nतमे॒व ऋषिं॒ तमु॑ ब्र॒ह्माण॑माहुर्यज्ञ॒न्यं॑ साम॒गामु॑क्थ॒शास॑म् ।\n\nस शु॒क्रस्य॑ त॒न्वो॑ वेद ति॒स्रो यः प्र॑थ॒मो दक्षि॑णया र॒राध॑ ॥६॥\n\nदक्षि॒णाश्वं॒ दक्षि॑णा॒ गां द॑दाति॒ दक्षि॑णा च॒न्द्रमु॒त यद्धिर॑ण्यम् ।\n\nदक्षि॒णान्नं॑ वनुते॒ यो न॑ आ॒त्मा दक्षि॑णां॒ वर्म॑ कृणुते विजा॒नन् ॥७॥\n\nन भो॒जा म॑म्रु॒र्न न्य॒र्थमी॑यु॒र्न रि॑ष्यन्ति॒ न व्य॑थन्ते ह भो॒जाः ।\n\nइ॒दं यद्विश्वं॒ भुव॑नं॒ स्व॑श्चै॒तत्सर्वं॒ दक्षि॑णैभ्यो ददाति ॥८॥\n\nभो॒जा जि॑ग्युः सुर॒भिं योनि॒मग्रे॑ भो॒जा जि॑ग्युर्व॒ध्वं१ या सु॒वासा॑: ।\n\nभो॒जा जि॑ग्युरन्त॒:पेयं॒ सुरा॑या भो॒जा जि॑ग्यु॒र्ये अहू॑ताः प्र॒यन्ति॑ ॥९॥\n\nभो॒जायाश्वं॒ सं मृ॑जन्त्या॒शुं भो॒जाया॑स्ते क॒न्या॒३ शुम्भ॑माना ।\n\nभो॒जस्ये॒दं पु॑ष्क॒रिणी॑व॒ वेश्म॒ परि॑ष्कृतं देवमा॒नेव॑ चि॒त्रम् ॥१०॥\n\nभो॒जमश्वा॑: सुष्ठु॒वाहो॑ वहन्ति सु॒वृद्रथो॑ वर्तते॒ दक्षि॑णायाः ।\n\nभो॒जं दे॑वासोऽवता॒ भरे॑षु भो॒जः शत्रू॑न्त्समनी॒केषु॒ जेता॑ ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 108,
"text": "११ पणयोऽसुराः। सरमा देवता। २,४,६,८,१०-११ सरमा देवशुनी ऋषिका। पणयो देवता। त्रिष्टुप्।\n\nकिमि॒च्छन्ती॑ स॒रमा॒ प्रेदमा॑नड्दू॒रे ह्यध्वा॒ जगु॑रिः परा॒चैः ।\n\nकास्मेहि॑ति॒: का परि॑तक्म्यासीत्क॒थं र॒साया॑ अतर॒: पयां॑सि ॥१॥\n\nइन्द्र॑स्य दू॒तीरि॑षि॒ता च॑रामि म॒ह इ॒च्छन्ती॑ पणयो नि॒धीन्व॑: ।\n\nअ॒ति॒ष्कदो॑ भि॒यसा॒ तन्न॑ आव॒त्तथा॑ र॒साया॑ अतरं॒ पयां॑सि ॥२॥\n\nकी॒दृङ्ङिन्द्र॑: सरमे॒ का दृ॑शी॒का यस्ये॒दं दू॒तीरस॑रः परा॒कात् ।\n\nआ च॒ गच्छा॑न्मि॒त्रमे॑ना दधा॒माऽथा॒ गवां॒ गोप॑तिर्नो भवाति ॥३॥\n\nनाहं तं वे॑द॒ दभ्यं॒ दभ॒त्स यस्ये॒दं दू॒तीरस॑रं परा॒कात् ।\n\nन तं गू॑हन्ति स्र॒वतो॑ गभी॒रा ह॒ता इन्द्रे॑ण पणयः शयध्वे ॥४॥\n\nइ॒मा गाव॑: सरमे॒ या ऐच्छ॒: परि॑ दि॒वो अन्ता॑न्त्सुभगे॒ पत॑न्ती ।\n\nकस्त॑ एना॒ अव॑ सृजा॒दयु॑ध्व्यु॒तास्माक॒मायु॑धा सन्ति ति॒ग्मा ॥५॥\n\nअ॒से॒न्या व॑: पणयो॒ वचां॑स्यनिष॒व्यास्त॒न्व॑: सन्तु पा॒पीः ।\n\nअधृ॑ष्टो व॒ एत॒वा अ॑स्तु॒ पन्था॒ बृह॒स्पति॑र्व उभ॒या न मृ॑ळात् ॥६॥\n\nअ॒यं नि॒धिः स॑रमे॒ अद्रि॑बुध्नो॒ गोभि॒रश्वे॑भि॒र्वसु॑भि॒र्न्यृ॑ष्टः ।\n\nरक्ष॑न्ति॒ तं प॒णयो॒ ये सु॑गो॒पा रेकु॑ प॒दमल॑क॒मा ज॑गन्थ ॥७॥\n\nएह ग॑म॒न्नृष॑य॒: सोम॑शिता अ॒यास्यो॒ अङ्गि॑रसो॒ नव॑ग्वाः ।\n\nत ए॒तमू॒र्वं वि भ॑जन्त॒ गोना॒मथै॒तद्वच॑: प॒णयो॒ वम॒न्नित् ॥८॥\n\nए॒वा च॒ त्वं स॑रम आज॒गन्थ॒ प्रबा॑धिता॒ सह॑सा॒ दैव्ये॑न ।\n\nस्वसा॑रं त्वा कृणवै॒ मा पुन॑र्गा॒ अप॑ ते॒ गवां॑ सुभगे भजाम ॥९॥\n\nनाहं वे॑द भ्रातृ॒त्वं नो स्व॑सृ॒त्वमिन्द्रो॑ विदु॒रङ्गि॑रसश्च घो॒राः ।\n\nगोका॑मा मे अच्छदय॒न्यदाय॒मपात॑ इत पणयो॒ वरी॑यः ॥१०॥\n\nदू॒रमि॑त पणयो॒ वरी॑य॒ उद्गावो॑ यन्तु मिन॒तीॠ॒तेन॑ ।\n\nबृह॒स्पति॒र्या अवि॑न्द॒न्निगू॑ळ्हा॒: सोमो॒ ग्रावा॑ण॒ ऋष॑यश्च॒ विप्रा॑: ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 109,
"text": "७ जुहूर्ब्रह्मजाया, ब्राह्मः ऊर्ध्वनाभा वा।विश्वेदेवाः। त्रिष्टुप् , ६-७ अनुष्टुप्।\n\nते॑ऽवदन्प्रथ॒मा ब्र॑ह्मकिल्बि॒षेऽकू॑पारः सलि॒लो मा॑त॒रिश्वा॑ ।\n\nवी॒ळुह॑रा॒स्तप॑ उ॒ग्रो म॑यो॒भूरापो॑ दे॒वीः प्र॑थम॒जा ऋ॒तेन॑ ॥१॥\n\nसोमो॒ राजा॑ प्रथ॒मो ब्र॑ह्मजा॒यां पुन॒: प्राय॑च्छ॒दहृ॑णीयमानः ।\n\nअ॒न्व॒र्ति॒ता वरु॑णो मि॒त्र आ॑सीद॒ग्निर्होता॑ हस्त॒गृह्या नि॑नाय ॥२॥\n\nहस्ते॑नै॒व ग्रा॒ह्य॑ आ॒धिर॑स्या ब्रह्मजा॒येयमिति॒ चेदवो॑चन् ।\n\nन दू॒ताय॑ प्र॒ह्ये॑ तस्थ ए॒षा तथा॑ रा॒ष्ट्रं गु॑पि॒तं क्ष॒त्रिय॑स्य ॥३॥\n\nदे॒वा ए॒तस्या॑मवदन्त॒ पूर्वे॑ सप्तऋ॒षय॒स्तप॑से॒ ये नि॑षे॒दुः ।\n\nभी॒मा जा॒या ब्रा॑ह्म॒णस्योप॑नीता दु॒र्धां द॑धाति पर॒मे व्यो॑मन् ॥४॥\n\nब्र॒ह्म॒चा॒री च॑रति॒ वेवि॑ष॒द्विष॒: स दे॒वानां॑ भव॒त्येक॒मङ्ग॑म् ।\n\nतेन॑ जा॒यामन्व॑विन्द॒द्बृह॒स्पति॒: सोमे॑न नी॒तां जु॒ह्वं१ न दे॑वाः ॥५॥\n\nपुन॒र्वै दे॒वा अ॑ददु॒: पुन॑र्मनु॒ष्या॑ उ॒त । राजा॑नः स॒त्यं कृ॑ण्वा॒ना ब्र॑ह्मजा॒यां पुन॑र्ददुः ॥६॥\n\nपु॒न॒र्दाय॑ ब्रह्मजा॒यां कृ॒त्वी दे॒वैर्नि॑किल्बि॒षम् । ऊर्जं॑ पृथि॒व्या भ॒क्त्वायो॑रुगा॒यमुपा॑सते ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 110,
"text": "११ जमदग्निर्भार्गवः, जामदग्न्यो रामो वा। आप्रीसूक्तं = (१ इध्मः समिद्धोऽग्निर्वा, २ तनूनपात् , ३ इळ:, ४ बर्हिः, ५ देवीर्द्वारः, ६ उषासानक्ता, ७ दैव्यौ होतारौ प्रचेतसौ, ८ त्रिस्रो देव्यः सरस्वतीळाभारत्यः, ९ त्वष्टा, १० वनस्पतिः, ११ स्वाहाकृतयः) । त्रिष्टुप्।\n\nसमि॑द्धो अ॒द्य मनु॑षो दुरो॒णे दे॒वो दे॒वान्य॑जसि जातवेदः ।\n\nआ च॒ वह॑ मित्रमहश्चिकि॒त्वान्त्वं दू॒तः क॒विर॑सि॒ प्रचे॑ताः ॥१॥\n\nतनू॑नपात्प॒थ ऋ॒तस्य॒ याना॒न्मध्वा॑ सम॒ञ्जन्त्स्व॑दया सुजिह्व ।\n\nमन्मा॑नि धी॒भिरु॒त य॒ज्ञमृ॒न्धन्दे॑व॒त्रा च॑ कृणुह्यध्व॒रं न॑: ॥२॥\n\nआ॒जुह्वा॑न॒ ईड्यो॒ वन्द्य॒श्चा ऽऽया॑ह्यग्ने॒ वसु॑भिः स॒जोषा॑: ।\n\nत्वं दे॒वाना॑मसि यह्व॒ होता॒ स ए॑नान्यक्षीषि॒तो यजी॑यान् ॥३॥\n\nप्रा॒चीनं॑ ब॒र्हिः प्र॒दिशा॑ पृथि॒व्या वस्तो॑र॒स्या वृ॑ज्यत॒र अग्रे॒ अह्ना॑म् ।\n\nव्यु॑ प्रथते वित॒रं वरी॑यो दे॒वेभ्यो॒ अदि॑तये स्यो॒नम् ॥४॥\n\nव्यच॑स्वतीरुर्वि॒या वि श्र॑यन्तां॒ पति॑भ्यो॒ न जन॑य॒: शुम्भ॑मानाः ।\n\nदेवी॑र्द्वारो बृहतीर्विश्वमिन्वा दे॒वेभ्यो॑ भवत सुप्राय॒णाः ॥५॥\n\nआ सु॒ष्वय॑न्ती यज॒ते उपा॑के उ॒षासा॒नक्ता॑ सदतां॒ नि योनौ॑ ।\n\nदि॒व्ये योष॑णे बृह॒ती सु॑रु॒क्मे अधि॒ श्रियं॑ शुक्र॒पिशं॒ दधा॑ने ॥६॥\n\nदैव्या॒ होता॑रा प्रथ॒मा सु॒वाचा॒ मिमा॑ना य॒ज्ञं मनु॑षो॒ यज॑ध्यै ।\n\nप्र॒चो॒दय॑न्ता वि॒दथे॑षु का॒रू प्रा॒चीनं॒ ज्योति॑: प्र॒दिशा॑ दि॒शन्ता॑ ॥७॥\n\nआ नो॑ य॒ज्ञं भार॑ती॒ तूय॑मे॒त्विळा॑ मनु॒ष्वदि॒ह चे॒तय॑न्ती ।\n\nति॒स्रो दे॒वीर्ब॒र्हिरेदं स्यो॒नं सर॑स्वती॒ स्वप॑सः सदन्तु ॥८॥\n\nय इ॒मे द्यावा॑पृथि॒वी जनि॑त्री रू॒पैरपिं॑श॒द्भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ।\n\nतम॒द्य हो॑तरिषि॒तो यजी॑यान्दे॒वं त्वष्टा॑रमि॒ह य॑क्षि वि॒द्वान् ॥९॥\n\nउ॒पाव॑सृज॒ त्मन्या॑ सम॒ञ्जन्दे॒वानां॒ पाथ॑ ऋतु॒था ह॒वींषि॑ ।\n\nवन॒स्पति॑: शमि॒ता दे॒वो अ॒ग्निः स्वद॑न्तु ह॒व्यं मधु॑ना घृ॒तेन॑ ॥१०॥\n\nस॒द्यो जा॒तो व्य॑मिमीत य॒ज्ञम॒ग्निर्दे॒वाना॑मभवत्पुरो॒गाः ।\n\nअ॒स्य होतु॑: प्र॒दिश्यृ॒तस्य॑ वा॒चि स्वाहा॑कृतं ह॒विर॑दन्तु दे॒वाः ॥११॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 111,
"text": "१० वैरूपोऽष्टादंष्ट्रः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nमनी॑षिण॒: प्र भ॑रध्वं मनी॒षां यथा॑यथा म॒तय॒: सन्ति॑ नृ॒णाम् ।\n\nइन्द्रं॑ स॒त्यैरेर॑यामा कृ॒तेभि॒: स हि वी॒रो गि॑र्वण॒स्युर्विदा॑नः ॥१॥\n\nऋ॒तस्य॒ हि सद॑सो धी॒तिरद्यौ॒त्सं गा॑र्ष्टे॒यो वृ॑ष॒भो गोभि॑रानट् ।\n\nउद॑तिष्ठत्तवि॒षेणा॒ रवे॑ण म॒हान्ति॑ चि॒त्सं वि॑व्याचा॒ रजां॑सि ॥२॥\n\nइन्द्र॒: किल॒ श्रुत्या॑ अ॒स्य वे॑द॒ स हि जि॒ष्णुः प॑थि॒कृत्सूर्या॑य ।\n\nआन्मेनां॑ कृ॒ण्वन्नच्यु॑तो॒ भुव॒द्गोः पति॑र्दि॒वः स॑न॒जा अप्र॑तीतः ॥३॥\n\nइन्द्रो॑ म॒ह्ना म॑ह॒तो अ॑र्ण॒वस्य॑ व्र॒तामि॑ना॒दङ्गि॑रोभिर्गृणा॒नः ।\n\nपु॒रूणि॑ चि॒न्नि त॑ताना॒ रजां॑सि दा॒धार॒ यो ध॒रुणं॑ स॒त्यता॑ता ॥४॥\n\nइन्द्रो॑ दि॒वः प्र॑ति॒मानं॑ पृथि॒व्या विश्वा॑ वेद॒ सव॑ना॒ हन्ति॒ शुष्ण॑म् ।\n\nम॒हीं चि॒द्द्यामात॑नो॒त्सूर्ये॑ण चा॒स्कम्भ॑ चि॒त्कम्भ॑नेन॒ स्कभी॑यान् ॥५॥\n\nवज्रे॑ण॒ हि वृ॑त्र॒हा वृ॒त्रमस्त॒रदे॑वस्य॒ शूशु॑वानस्य मा॒याः ।\n\nवि धृ॑ष्णो॒ अत्र॑ धृष॒ता ज॑घ॒न्थाऽथा॑भवो मघवन्बा॒ह्वो॑जाः ॥६॥\n\nसच॑न्त॒ यदु॒षस॒: सूर्ये॑ण चि॒त्राम॑स्य के॒तवो॒ राम॑विन्दन् ।\n\nआ यन्नक्ष॑त्रं॒ ददृ॑शे दि॒वो न पुन॑र्य॒तो नकि॑र॒द्धा नु वे॑द ॥७॥\n\nदू॒रं किल॑ प्रथ॒मा ज॑ग्मुरासा॒मिन्द्र॑स्य॒ याः प्र॑स॒वे स॒स्रुराप॑: ।\n\nक्व॑ स्वि॒दग्रं॒ क्व॑ बु॒ध्न आ॑सा॒मापो॒ मध्यं॒ क्व॑ वो नू॒नमन्त॑: ॥८॥\n\nसृ॒जः सिन्धूँ॒रहि॑ना जग्रसा॒नाँ आदिदे॒ताः प्र वि॑विज्रे ज॒वेन॑ ।\n\nमुमु॑क्षमाणा उ॒त या मु॑मु॒च्रेऽधेदे॒ता न र॑मन्ते॒ निति॑क्ताः ॥९॥\n\nस॒ध्रीची॒: सिन्धु॑मुश॒तीरि॑वायन्त्स॒नाज्जा॒र आ॑रि॒तः पू॒र्भिदा॑साम् ।\n\nअस्त॒मा ते॒ पार्थि॑वा॒ वसू॑न्य॒स्मे ज॑ग्मुः सू॒नृता॑ इन्द्र पू॒र्वीः ॥१०॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 112,
"text": "१० वैरूपो नभः प्रभेदनः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nइन्द्र॒ पिब॑ प्रतिका॒मं सु॒तस्य॑ प्रातःसा॒वस्तव॒ हि पू॒र्वपी॑तिः ।\n\nहर्ष॑स्व॒ हन्त॑वे शूर॒ शत्रू॑नु॒क्थेभि॑ष्टे वी॒र्या॒३ प्र ब्र॑वाम ॥१\n\nयस्ते॒ रथो॒ मन॑सो॒ जवी॑या॒नेन्द्र॒ तेन॑ सोम॒पेया॑य याहि ।\n\nतूय॒मा ते॒ हर॑य॒: प्र द्र॑वन्तु॒ येभि॒र्यासि॒ वृष॑भि॒र्मन्द॑मानः ॥२॥\n\nहरि॑त्वता॒ वर्च॑सा॒ सूर्य॑स्य॒ श्रेष्ठै॑ रू॒पैस्त॒न्वं॑ स्पर्शयस्व ।\n\nअ॒स्माभि॑रिन्द्र॒ सखि॑भिर्हुवा॒नः स॑ध्रीची॒नो मा॑दयस्वा नि॒षद्य॑ ॥३॥\n\nयस्य॒ त्यत्ते॑ महि॒मानं॒ मदे॑ष्वि॒मे म॒ही रोद॑सी॒ नावि॑विक्ताम् ।\n\nतदोक॒ आ हरि॑भिरिन्द्र यु॒क्तैः प्रि॒येभि॑र्याहि प्रि॒यमन्न॒मच्छ॑ ॥४॥\n\nयस्य॒ शश्व॑त्पपि॒वाँ इ॑न्द्र॒ शत्रू॑ननानुकृ॒त्या रण्या॑ च॒कर्थ॑ ।\n\nस ते॒ पुरं॑धिं॒ तवि॑षीमियर्ति॒ स ते॒ मदा॑य सु॒त इ॑न्द्र॒ सोम॑: ॥५॥\n\nइ॒दं ते॒ पात्रं॒ सन॑वित्तमिन्द्र॒ पिबा॒ सोम॑मे॒ना श॑तक्रतो ।\n\nपू॒र्ण आ॑हा॒वो म॑दि॒रस्य॒ मध्वो॒ यं विश्व॒ इद॑भि॒हर्य॑न्ति दे॒वाः ॥६॥\n\nवि हि त्वामि॑न्द्र पुरु॒धा जना॑सो हि॒तप्र॑यसो वृषभ॒ ह्वय॑न्ते ।\n\nअ॒स्माकं॑ ते॒ मधु॑मत्तमानी॒मा भु॑व॒न्त्सव॑ना॒ तेषु॑ हर्य ॥७॥\n\nप्र त॑ इन्द्र पू॒र्व्याणि॒ प्र नू॒नं वी॒र्या॑ वोचं प्रथ॒मा कृ॒तानि॑ ।\n\nस॒ती॒नम॑न्युरश्रथायो॒ अद्रिं॑ सुवेद॒नाम॑कृणो॒र्ब्रह्म॑णे॒ गाम् ॥८॥\n\nनि षु सी॑द गणपते ग॒णेषु॒ त्वामा॑हु॒र्विप्र॑तमं कवी॒नाम् ।\n\nन ऋ॒ते त्वत्क्रि॑यते॒ किं च॒नारे म॒हाम॒र्कं म॑घवञ्चि॒त्रम॑र्च ॥९॥\n\nअ॒भि॒ख्या नो॑ मघव॒न्नाध॑माना॒न्त्सखे॑ बो॒धि व॑सुपते॒ सखी॑नाम् ।\n\nरणं॑ कृधि रणकृत्सत्यशु॒ष्माऽभ॑क्ते चि॒दा भ॑जा रा॒ये अ॒स्मान् ॥१०॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 113,
"text": "१० वैरूपः शतप्रभेदनः। इन्द्रः। जगती, १० त्रिष्टुप्।\n\nतम॑स्य॒ द्यावा॑पृथि॒वी सचे॑तसा॒ विश्वे॑भिर्दे॒वैरनु॒ शुष्म॑मावताम् ।\n\nयदैत्कृ॑ण्वा॒नो म॑हि॒मान॑मिन्द्रि॒यं पी॒त्वी सोम॑स्य॒ क्रतु॑माँ अवर्धत ॥१॥\n\nतम॑स्य॒ विष्णु॑र्महि॒मान॒मोज॑सां॒ऽशुं द॑ध॒न्वान्मधु॑नो॒ वि र॑प्शते ।\n\nदे॒वेभि॒रिन्द्रो॑ म॒घवा॑ स॒याव॑भिर्वृ॒त्रं ज॑घ॒न्वाँ अ॑भव॒द्वरे॑ण्यः ॥२॥\n\nवृ॒त्रेण॒ यदहि॑ना॒ बिभ्र॒दायु॑धा स॒मस्थि॑था यु॒धये॒ शंस॑मा॒विदे॑ ।\n\nविश्वे॑ ते॒ अत्र॑ म॒रुत॑: स॒ह त्मनाऽव॑र्धन्नुग्र महि॒मान॑मिन्द्रि॒यम् ॥३॥\n\nज॒ज्ञा॒न ए॒व व्य॑बाधत॒ स्पृध॒: प्राप॑श्यद्वी॒रो अ॒भि पौंस्यं॒ रण॑म् ।\n\nअवृ॑श्च॒दद्रि॒मव॑ स॒स्यद॑: सृज॒दस्त॑भ्ना॒न्नाकं॑ स्वप॒स्यया॑ पृ॒थुम् ॥४॥\n\nआदिन्द्र॑: स॒त्रा तवि॑षीरपत्यत॒ वरी॑यो॒ द्यावा॑पृथि॒वी अ॑बाधत ।\n\nअवा॑भरद्धृषि॒तो वज्र॑माय॒सं शेवं॑ मि॒त्राय॒ वरु॑णाय दा॒शुषे॑ ॥५॥\n\nइन्द्र॒स्यात्र॒ तवि॑षीभ्यो विर॒प्शिन॑ ऋघाय॒तो अ॑रंहयन्त म॒न्यवे॑ ।\n\nवृ॒त्रं यदु॒ग्रो व्यवृ॑श्च॒दोज॑सा॒ऽपो बिभ्र॑तं॒ तम॑सा॒ परी॑वृतम् ॥६॥\n\nया वी॒र्या॑णि प्रथ॒मानि॒ कर्त्वा॑ महि॒त्वेभि॒र्यत॑मानौ समी॒यतु॑: ।\n\nध्वा॒न्तं तमोऽव॑ दध्वसे ह॒त इन्द्रो॑ म॒ह्ना पू॒र्वहू॑तावपत्यत ॥७॥\n\nविश्वे॑ दे॒वासो॒ अध॒ वृष्ण्या॑नि॒ तेऽव॑र्धय॒न्त्सोम॑वत्या वच॒स्यया॑ ।\n\nर॒द्धं वृ॒त्रमहि॒मिन्द्र॑स्य॒ हन्म॑ना॒ऽग्निर्न जम्भै॑स्तृ॒ष्वन्न॑मावयत् ॥८॥\n\nभूरि॒ दक्षे॑भिर्वच॒नेभि॒ॠक्व॑भिः स॒ख्येभि॑: स॒ख्यानि॒ प्र वो॑चत ।\n\n इन्द्रो॒ धुनिं॑ च॒ चुमु॑रिं च द॒म्भय॑ञ्छ्रद्धामन॒स्या शृ॑णुते द॒भीत॑ये ॥९॥\n\nत्वं पु॒रूण्या भ॑रा॒ स्वश्व्या॒ येभि॒र्मंसै॑ नि॒वच॑नानि॒ शंस॑न् ।\n\nसु॒गेभि॒र्विश्वा॑ दुरि॒ता त॑रेम वि॒दो षु ण॑ उर्वि॒या गा॒धम॒द्य ॥१०॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 114,
"text": "१० वैरूपः सध्रिः, तापसो धर्मो वा। विश्वे देवाः।त्रिष्टुप्, ४ जगती।\n\nघ॒र्मा सम॑न्ता त्रि॒वृतं॒ व्या॑पतु॒स्तयो॒र्जुष्टिं॑ मात॒रिश्वा॑ जगाम ।\n\nदि॒वस्पयो॒ दिधि॑षाणा अवेषन्वि॒दुर्दे॒वाः स॒हसा॑मानम॒र्कम् ॥१॥\n\nति॒स्रो दे॒ष्ट्राय॒ निॠ॑ती॒रुपा॑सते दीर्घ॒श्रुतो॒ वि हि जा॒नन्ति॒ वह्न॑यः ।\n\nतासां॒ नि चि॑क्युः क॒वयो॑ नि॒दानं॒ परे॑षु॒ या गुह्ये॑षु व्र॒तेषु॑ ॥२॥\n\nचतु॑ष्कपर्दा युव॒तिः सु॒पेशा॑ घृ॒तप्र॑तीका व॒युना॑नि वस्ते ।\n\nतस्यां॑ सुप॒र्णा वृष॑णा॒ नि षे॑दतु॒र्यत्र॑ दे॒वा द॑धि॒रे भा॑ग॒धेय॑म् ॥३॥\n\nएक॑: सुप॒र्णः स स॑मु॒द्रमा वि॑वेश॒ स इ॒दं विश्वं॒ भुव॑नं॒ वि च॑ष्टे ।\n\nतं पाके॑न॒ मन॑सापश्य॒मन्ति॑त॒स्तं मा॒ता रे॑ळ्हि॒ स उ॑ रेळ्हि मा॒तर॑म् ॥४॥\n\nसु॒प॒र्णं विप्रा॑: क॒वयो॒ वचो॑भि॒रेकं॒ सन्तं॑ बहु॒धा क॑ल्पयन्ति ।\n\nछन्दां॑सि च॒ दध॑तो अध्व॒रेषु॒ ग्रहा॒न्त्सोम॑स्य मिमते॒ द्वाद॑श ॥५॥\n\nष॒ट्त्रिं॒शाँश्च॑ च॒तुर॑: क॒ल्पय॑न्त॒श्छन्दां॑सि च॒ दध॑त आद्वाद॒शम् ।\n\nय॒ज्ञं वि॒माय॑ क॒वयो॑ मनी॒ष ऋ॑क्सा॒माभ्यां॒ प्र रथं॑ वर्तयन्ति ॥६॥\n\nचतु॑र्दशा॒न्ये म॑हि॒मानो॑ अस्य॒ तं धीरा॑ वा॒चा प्र ण॑यन्ति स॒प्त ।\n\nआप्ना॑नं ती॒र्थं क इ॒ह प्र वो॑च॒द्येन॑ प॒था प्र॒पिब॑न्ते सु॒तस्य॑ ॥७॥\n\nस॒ह॒स्र॒धा प॑ञ्चद॒शान्यु॒क्था याव॒द्द्यावा॑पृथि॒वी ताव॒दित्तत् ।\n\nस॒ह॒स्र॒धा म॑हि॒मान॑: स॒हस्रं॒ याव॒द्ब्रह्म॒ विष्ठि॑तं॒ ताव॑ती॒ वाक् ॥८॥\n\nकश्छन्द॑सां॒ योग॒मा वे॑द॒ धीर॒: को धिष्ण्यां॒ प्रति॒ वाचं॑ पपाद ।\n\nकमृ॒त्विजा॑मष्ट॒मं शूर॑माहु॒र्हरी॒ इन्द्र॑स्य॒ नि चि॑काय॒ कः स्वि॑त् ॥९॥\n\nभूम्या॒ अन्तं॒ पर्येके॑ चरन्ति॒ रथ॑स्य धू॒र्षु यु॒क्तासो॑ अस्थुः ।\n\nश्रम॑स्य दा॒यं वि भ॑जन्त्येभ्यो य॒दा य॒मो भव॑ति ह॒र्म्ये हि॒तः ॥१०॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 115,
"text": "९ वार्ष्टिहव्य उपस्तुतः। अग्निः।जगती, ८ त्रिष्टुप्, ९ शक्करी।\n\nचि॒त्र इच्छिशो॒स्तरु॑णस्य व॒क्षथो॒ न यो मा॒तरा॑व॒प्येति॒ धात॑वे ।\n\nअ॒नू॒धा यदि॒ जीज॑न॒दधा॑ च॒ नु व॒वक्ष॑ स॒द्यो महि॑ दू॒त्यं१ चर॑न् ॥१॥\n\nअ॒ग्निर्ह॒ नाम॑ धायि॒ दन्न॒पस्त॑म॒: सं यो वना॑ यु॒वते॒ भस्म॑ना द॒ता ।\n\nअ॒भि॒प्र॒मुरा॑ जु॒ह्वा॑ स्वध्व॒र इ॒नो न प्रोथ॑मानो॒ यव॑से॒ वृषा॑ ॥२॥\n\nतं वो॒ विं न द्रु॒षदं॑ दे॒वमन्ध॑स॒ इन्दुं॒ प्रोथ॑न्तं प्र॒वप॑न्तमर्ण॒वम् ।\n\nआ॒सा वह्निं॒ न शो॒चिषा॑ विर॒प्शिनं॒ महि॑व्रतं॒ न स॒रज॑न्त॒मध्व॑नः ॥३॥\n\nवि यस्य॑ ते ज्रयसा॒नस्या॑जर॒ धक्षो॒र्न वाता॒: परि॒ सन्त्यच्यु॑ताः ।\n\nआ र॒ण्वासो॒ युयु॑धयो॒ न स॑त्व॒नं त्रि॒तं न॑शन्त॒ प्र शि॒षन्त॑ इ॒ष्टये॑ ॥४॥\n\nस इद॒ग्निः कण्व॑तम॒: कण्व॑सखा॒ऽर्यः पर॒स्यान्त॑रस्य॒ तरु॑षः ।\n\nअ॒ग्निः पा॑तु गृण॒तो अ॒ग्निः सू॒रीन॒ग्निर्द॑दातु॒ तेषा॒मवो॑ नः ॥५॥\n\nवा॒जिन्त॑माय॒ सह्य॑से सुपित्र्य तृ॒षु च्यवा॑नो॒ अनु॑ जा॒तवे॑दसे ।\n\nअ॒नु॒द्रे चि॒द्यो धृ॑ष॒ता वरं॑ स॒ते म॒हिन्त॑माय॒ धन्व॒नेद॑विष्य॒ते ॥६॥\n\nए॒वाग्निर्मर्तै॑: स॒ह सू॒रिभि॒र्वसु॑: ष्टवे॒ सह॑सः सू॒नरो॒ नृभि॑: ।\n\nमि॒त्रासो॒ न ये सुधि॑ता ऋता॒यवो॒ द्यावो॒ न द्यु॒म्नैर॒भि सन्ति॒ मानु॑षान् ॥७॥\n\nऊर्जो॑ नपात्सहसाव॒न्निति॑ त्वोपस्तु॒तस्य॑ वन्दते॒ वृषा॒ वाक् ।\n\nत्वां स्तो॑षाम॒ त्वया॑ सु॒वीरा॒ द्राघी॑य॒ आयु॑: प्रत॒रं दधा॑नाः ॥८॥\n\nइति॑ त्वाग्ने वृष्टि॒हव्य॑स्य पु॒त्रा उ॑पस्तु॒तास॒ ऋष॑योऽवोचन् ।\n\nताँश्च॑ पा॒हि गृ॑ण॒तश्च॑ सू॒रीन्वष॒ड्वष॒ळित्यू॒र्ध्वासो॑ अनक्ष॒न्नमो॒ नम॒ इत्यू॒र्ध्वासो॑ अनक्षन् ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 116,
"text": "९ स्थौरोऽग्नियुतः स्थौरोऽग्नियूपो वा।इन्द्रः त्रिष्टुप्।\n\nपिबा॒ सोमं॑ मह॒त इ॑न्द्रि॒याय॒ पिबा॑ वृ॒त्राय॒ हन्त॑वे शविष्ठ ।\n\nपिब॑ रा॒ये शव॑से हू॒यमा॑न॒: पिब॒ मध्व॑स्तृ॒पदि॒न्द्रा वृ॑षस्व ॥१॥\n\nअ॒स्य पि॑ब क्षु॒मत॒: प्रस्थि॑त॒स्येन्द्र॒ सोम॑स्य॒ वर॒मा सु॒तस्य॑ ।\n\nस्व॒स्ति॒दा मन॑सा मादयस्वाऽर्वाची॒नो रे॒वते॒ सौभ॑गाय ॥२॥\n\nम॒मत्तु॑ त्वा दि॒व्यः सोम॑ इन्द्र म॒मत्तु॒ यः सू॒यते॒ पार्थि॑वेषु ।\n\nम॒मत्तु॒ येन॒ वरि॑वश्च॒कर्थ॑ म॒मत्तु॒ येन॑ निरि॒णासि॒ शत्रू॑न् ॥३॥\n\nआ द्वि॒बर्हा॑ अमि॒नो या॒त्विन्द्रो॒ वृषा॒ हरि॑भ्यां॒ परि॑षिक्त॒मन्ध॑: ।\n\nगव्या सु॒तस्य॒ प्रभृ॑तस्य॒ मध्व॑: स॒त्रा खेदा॑मरुश॒हा वृ॑षस्व ॥४॥\n\nनि ति॒ग्मानि॑ भ्रा॒शय॒न्भ्राश्या॒न्यव॑ स्थि॒रा त॑नुहि यातु॒जूना॑म् ।\n\nउ॒ग्राय॑ ते॒ सहो॒ बलं॑ ददामि प्र॒तीत्या॒ शत्रू॑न्विग॒देषु॑ वृश्च ॥५॥\n\nव्य१र्य इ॑न्द्र तनुहि॒ श्रवां॒स्योज॑: स्थि॒रेव॒ धन्व॑नो॒ऽभिमा॑तीः ।\n\nअ॒स्म॒द्र्य॑ग्वावृधा॒नः सहो॑भि॒रनि॑भृष्टस्त॒न्वं॑ वावृधस्व ॥६॥\n\nइ॒दं ह॒विर्म॑घव॒न्तुभ्यं॑ रा॒तं प्रति॑ सम्रा॒ळहृ॑णानो गृभाय ।\n\nतुभ्यं॑ सु॒तो म॑घव॒न्तुभ्यं॑ प॒क्वो॒३ऽद्धी॑न्द्र॒ पिब॑ च॒ प्रस्थि॑तस्य ॥७॥\n\nअ॒द्धीदि॑न्द्र॒ प्रस्थि॑ते॒मा ह॒वींषि॒ चनो॑ दधिष्व पच॒तोत सोम॑म् ।\n\nप्रय॑स्वन्त॒: प्रति॑ हर्यामसि त्वा स॒त्याः स॑न्तु॒ यज॑मानस्य॒ कामा॑: ॥८॥\n\nप्रेन्द्रा॒ग्निभ्यां॑ सुवच॒स्यामि॑यर्मि॒ सिन्धा॑विव॒ प्रेर॑यं॒ नाव॑म॒र्कैः ।\n\nअया॑ इव॒ परि॑ चरन्ति दे॒वा ये अ॒स्मभ्यं॑ धन॒दा उ॒द्भिद॑श्च ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 117,
"text": "९ भिक्षुरांगिरसः। धनान्नदानं। त्रिष्टुप् , १-२ जगती।\n\nन वा उ॑ दे॒वाः क्षुध॒मिद्व॒धं द॑दुरु॒ताशि॑त॒मुप॑ गच्छन्ति मृ॒त्यव॑: ।\n\nउ॒तो र॒यिः पृ॑ण॒तो नोप॑ दस्यत्यु॒तापृ॑णन्मर्डि॒तारं॒ न वि॑न्दते ॥१॥\n\nय आ॒ध्राय॑ चकमा॒नाय॑ पि॒त्वोऽन्न॑वा॒न्त्सन्र॑फि॒तायो॑पज॒ग्मुषे॑ ।\n\nस्थि॒रं मन॑: कृणु॒ते सेव॑ते पु॒रोतो चि॒त्स म॑र्डि॒तारं॒ न वि॑न्दते ॥२॥\n\nस इद्भो॒जो यो गृ॒हवे॒ ददा॒त्यन्न॑कामाय॒ चर॑ते कृ॒शाय॑ ।\n\nअर॑मस्मै भवति॒ याम॑हूता उ॒ताप॒रीषु॑ कृणुते॒ सखा॑यम् ॥३॥\n\nन स सखा॒ यो न ददा॑ति॒ सख्ये॑ सचा॒भुवे॒ सच॑मानाय पि॒त्वः ।\n\nअपा॑स्मा॒त्प्रेया॒न्न तदोको॑ अस्ति पृ॒णन्त॑म॒न्यमर॑णं चिदिच्छेत् ॥४॥\n\nपृ॒णी॒यादिन्नाध॑मानाय॒ तव्या॒न्द्राघी॑यांस॒मनु॑ पश्येत॒ पन्था॑म् ।\n\nओ हि वर्त॑न्ते॒ रथ्ये॑व च॒क्राऽन्यम॑न्य॒मुप॑ तिष्ठन्त॒ राय॑: ॥५॥\n\nमोघ॒मन्नं॑ विन्दते॒ अप्र॑चेताः स॒त्यं ब्र॑वीमि व॒ध इत्स तस्य॑ ।\n\nनार्य॒मणं॒ पुष्य॑ति॒ नो सखा॑यं॒ केव॑लाघो भवति केवला॒दी ॥६॥\n\nकृ॒षन्नित्फाल॒ आशि॑तं कृणोति॒ यन्नध्वा॑न॒मप॑ वृङ्क्ते च॒रित्रै॑: ।\n\nवद॑न्ब्र॒ह्माव॑दतो॒ वनी॑यान्पृ॒णन्ना॒पिरपृ॑णन्तम॒भि ष्या॑त् ॥७॥\n\nएक॑पा॒द्भूयो॑ द्वि॒पदो॒ वि च॑क्रमे द्वि॒पात्त्रि॒पाद॑म॒भ्ये॑ति प॒श्चात् ।\n\nचतु॑ष्पादेति द्वि॒पदा॑मभिस्व॒रे स॒म्पश्य॑न्प॒ङ्क्तीरु॑प॒तिष्ठ॑मानः ॥८॥\n\nस॒मौ चि॒द्धस्तौ॒ न स॒मं वि॑विष्टः सम्मा॒तरा॑ चि॒न्न स॒मं दु॑हाते ।\n\nय॒मयो॑श्चि॒न्न स॒मा वी॒र्या॑णि ज्ञा॒ती चि॒त्सन्तौ॒ न स॒मं पृ॑णीतः ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 118,
"text": "९ उरुक्षय आमहीयवः। रक्षोहाऽग्निः। गायत्री।\n\nअग्ने॒ हंसि॒ न्य१त्रिणं॒ दीद्य॒न्मर्त्ये॒ष्वा । स्वे क्षये॑ शुचिव्रत ॥१॥\n\nउत्ति॑ष्ठसि॒ स्वा॑हुतो घृ॒तानि॒ प्रति॑ मोदसे । यत्त्वा॒ स्रुच॑: स॒मस्थि॑रन् ॥२॥\n\nस आहु॑तो॒ वि रो॑चते॒ऽग्निरी॒ळेन्यो॑ गि॒रा । स्रु॒चा प्रती॑कमज्यते ॥३॥\n\nघृ॒तेना॒ग्निः सम॑ज्यते॒ मधु॑प्रतीक॒ आहु॑तः । रोच॑मानो वि॒भाव॑सुः ॥४॥\n\nजर॑माण॒: समि॑ध्यसे दे॒वेभ्यो॑ हव्यवाहन । तं त्वा॑ हवन्त॒ मर्त्या॑: ॥५॥\n\nतं म॑र्ता॒ अम॑र्त्यं घृ॒तेना॒ग्निं स॑पर्यत । अदा॑भ्यं गृ॒हप॑तिम् ॥६॥\n\nअदा॑भ्येन शो॒चिषाऽग्ने॒ रक्ष॒स्त्वं द॑ह । गो॒पा ऋ॒तस्य॑ दीदिहि ॥७॥\n\nस त्वम॑ग्ने॒ प्रती॑केन॒ प्रत्यो॑ष यातुधा॒न्य॑: । उ॒रु॒क्षये॑षु॒ दीद्य॑त् ॥८॥\n\nतं त्वा॑ गी॒र्भिरु॑रु॒क्षया॑ हव्य॒वाहं॒ समी॑धिरे । यजि॑ष्ठं॒ मानु॑षे॒ जने॑ ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 119,
"text": "१३ ऐन्द्रो लब:।आत्मा (इन्द्रः) । गायत्री।\n\nइति॒ वा इति॑ मे॒ मनो॒ गामश्वं॑ सनुया॒मिति॑ । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥१॥\n\nप्र वाता॑ इव॒ दोध॑त॒ उन्मा॑ पी॒ता अ॑यंसत । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥२॥\n\nउन्मा॑ पी॒ता अ॑यंसत॒ रथ॒मश्वा॑ इवा॒शव॑: । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥३॥\n\nउप॑ मा म॒तिर॑स्थित वा॒श्रा पु॒त्रमि॑व प्रि॒यम् । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥४॥\n\nअ॒हं तष्टे॑व व॒न्धुरं॒ पर्य॑चामि हृ॒दा म॒तिम् । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥५॥\n\nन॒हि मे॑ अक्षि॒पच्च॒नाऽच्छा॑न्त्सु॒: पञ्च॑ कृ॒ष्टय॑: । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥६॥\n\nन॒हि मे॒ रोद॑सी उ॒भे अ॒न्यं प॒क्षं च॒न प्रति॑ । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥७॥\n\nअ॒भि द्यां म॑हि॒ना भु॑वम॒भी॒३मां पृ॑थि॒वीं म॒हीम् । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥८॥\n\nहन्ता॒हं पृ॑थि॒वीमि॒मां नि द॑धानी॒ह वे॒ह वा॑ । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥९॥\n\nओ॒षमित्पृ॑थि॒वीम॒हं ज॒ङ्घना॑नी॒ह वे॒ह वा॑ । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥१०॥\n\nदि॒वि मे॑ अ॒न्यः प॒क्षो॒३ऽधो अ॒न्यम॑चीकृषम् । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥११॥\n\nअ॒हम॑स्मि महाम॒हो॑ऽभिन॒भ्यमुदी॑षितः । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥१२॥\n\nगृ॒हो या॒म्यरं॑कृतो दे॒वेभ्यो॑ हव्य॒वाह॑नः । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥१३॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 120,
"text": "९ आथर्वणो बृहहिवः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nतदिदा॑स॒ भुव॑नेषु॒ ज्येष्ठं॒ यतो॑ ज॒ज्ञ उ॒ग्रस्त्वे॒षनृ॑म्णः ।\n\nस॒द्यो ज॑ज्ञा॒नो नि रि॑णाति॒ शत्रू॒ननु॒ यं विश्वे॒ मद॒न्त्यूमा॑: ॥१॥\n\nवा॒वृ॒धा॒नः शव॑सा॒ भूर्यो॑जा॒: शत्रु॑र्दा॒साय॑ भि॒यसं॑ दधाति ।\n\nअव्य॑नच्च व्य॒नच्च॒ सस्नि॒ सं ते॑ नवन्त॒ प्रभृ॑ता॒ मदे॑षु ॥२॥\n\nत्वे क्रतु॒मपि॑ वृञ्जन्ति॒ विश्वे॒ द्विर्यदे॒ते त्रिर्भव॒न्त्यूमा॑: ।\n\nस्वा॒दोः स्वादी॑यः स्वा॒दुना॑ सृजा॒ सम॒दः सु मधु॒ मधु॑ना॒भि यो॑धीः ॥३॥\n\nइति॑ चि॒द्धि त्वा॒ धना॒ जय॑न्तं॒ मदे॑मदे अनु॒मद॑न्ति॒ विप्रा॑: ।\n\nओजी॑यो धृष्णो स्थि॒रमा त॑नुष्व॒ मा त्वा॑ दभन्यातु॒धाना॑ दु॒रेवा॑: ॥४॥\n\nत्वया॑ व॒यं शा॑शद्महे॒ रणे॑षु प्र॒पश्य॑न्तो यु॒धेन्या॑नि॒ भूरि॑ ।\n\nचो॒दया॑मि त॒ आयु॑धा॒ वचो॑भि॒: सं ते॑ शिशामि॒ ब्रह्म॑णा॒ वयां॑सि ॥५॥\n\nस्तु॒षेय्यं॑ पुरु॒वर्प॑स॒मृभ्व॑मि॒नत॑ममा॒प्त्यमा॒प्त्याना॑म् ।\n\nआ द॑र्षते॒ शव॑सा स॒प्त दानू॒न्प्र सा॑क्षते प्रति॒माना॑नि॒ भूरि॑ ॥६॥\n\nनि तद्द॑धि॒षेऽव॑रं॒ परं॑ च॒ यस्मि॒न्नावि॒थाव॑सा दुरो॒णे ।\n\nआ मा॒तरा॑ स्थापयसे जिग॒त्नू अत॑ इनोषि॒ कर्व॑रा पु॒रूणि॑ ॥७॥\n\nइ॒मा ब्रह्म॑ बृ॒हद्दि॑वो विव॒क्तीन्द्रा॑य शू॒षम॑ग्रि॒यः स्व॒र्षाः ।\n\nम॒हो गो॒त्रस्य॑ क्षयति स्व॒राजो॒ दुर॑श्च॒ विश्वा॑ अवृणो॒दप॒ स्वाः ॥८॥\n\nए॒वा म॒हान्बृ॒हद्दि॑वो॒ अथ॒र्वाऽवो॑च॒त्स्वां त॒न्व१मिन्द्र॑मे॒व ।\n\nस्वसा॑रो मात॒रिभ्व॑रीररि॒प्रा हि॒न्वन्ति॑ च॒ शव॑सा व॒र्धय॑न्ति च ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 121,
"text": "१० हिरण्यगर्भः प्राजापत्य:। कः(प्रजापतिः)। त्रिष्टुप्।\n\nहि॒र॒ण्य॒ग॒र्भः सम॑वर्त॒ताग्रे॑ भू॒तस्य॑ जा॒तः पति॒रेक॑ आसीत् ।\n\nस दा॑धार पृथि॒वीं द्यामु॒तेमां कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥१॥\n\nय आ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य॒ विश्व॑ उ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॑ दे॒वाः ।\n\nयस्य॑ छा॒यामृतं॒ यस्य॑ मृ॒त्युः कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥२॥\n\nयः प्रा॑ण॒तो नि॑मिष॒तो म॑हि॒त्वैक॒ इद्राजा॒ जग॑तो ब॒भूव॑ ।\n\nय ईशे॑ अ॒स्य द्वि॒पद॒श्चतु॑ष्पद॒: कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥३॥\n\nयस्ये॒मे हि॒मव॑न्तो महि॒त्वा यस्य॑ समु॒द्रं र॒सया॑ स॒हाहुः ।\n\nयस्ये॒माः प्र॒दिशो॒ यस्य॑ बा॒हू कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥४॥\n\nयेन॒ द्यौरु॒ग्रा पृ॑थि॒वी च॑ दृ॒ळ्हा येन॒ स्व॑ स्तभि॒तं येन॒ नाक॑: ।\n\nयो अ॒न्तरि॑क्षे॒ रज॑सो वि॒मान॒: कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥५॥\n\nयं क्रन्द॑सी॒ अव॑सा तस्तभा॒ने अ॒भ्यैक्षे॑तां॒ मन॑सा॒ रेज॑माने ।\n\nयत्राधि॒ सूर॒ उदि॑तो वि॒भाति॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥६॥\n\nआपो॑ ह॒ यद्बृ॑ह॒तीर्विश्व॒माय॒न्गर्भं॒ दधा॑ना ज॒नय॑न्तीर॒ग्निम् ।\n\nततो॑ दे॒वानां॒ सम॑वर्त॒तासु॒रेक॒: कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥७॥\n\nयश्चि॒दापो॑ महि॒ना प॒र्यप॑श्य॒द्दक्षं॒ दधा॑ना ज॒नय॑न्तीर्य॒ज्ञम् ।\n\nयो दे॒वेष्वधि॑ दे॒व एक॒ आसी॒त्कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥८॥\n\nमा नो॑ हिंसीज्जनि॒ता यः पृ॑थि॒व्या यो वा॒ दिवं॑ स॒त्यध॑र्मा ज॒जान॑ ।\n\nयश्चा॒पश्च॒न्द्रा बृ॑ह॒तीर्ज॒जान॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥९॥\n\nप्रजा॑पते॒ न त्वदे॒तान्य॒न्यो विश्वा॑ जा॒तानि॒ परि॒ ता ब॑भूव ।\n\nयत्का॑मास्ते जुहु॒मस्तन्नो॑ अस्तु व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥१०"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 122,
"text": "८ चित्रमहा वासिष्ठः । अग्निः। जगतीः १,५ त्रिष्टुप्।\n\nवसुं॒ न चि॒त्रम॑हसं गृणीषे वा॒मं शेव॒मति॑थिमद्विषे॒ण्यम् ।\n\nस रा॑सते शु॒रुधो॑ वि॒श्वधा॑यसो॒ऽग्निर्होता॑ गृ॒हप॑तिः सु॒वीर्य॑म् ॥१\n\nजु॒षा॒णो अ॑ग्ने॒ प्रति॑ हर्य मे॒ वचो॒ विश्वा॑नि वि॒द्वान्व॒युना॑नि सुक्रतो ।\n\nघृत॑निर्णि॒ग्ब्रह्म॑णे गा॒तुमेर॑य॒ तव॑ दे॒वा अ॑जनय॒न्ननु॑ व्र॒तम् ॥२॥\n\nस॒प्त धामा॑नि परि॒यन्नम॑र्त्यो॒ दाश॑द्दा॒शुषे॑ सु॒कृते॑ मामहस्व ।\n\nसु॒वीरे॑ण र॒यिणा॑ग्ने स्वा॒भुवा॒ यस्त॒ आन॑ट् स॒मिधा॒ तं जु॑षस्व ॥३॥\n\nय॒ज्ञस्य॑ के॒तुं प्र॑थ॒मं पु॒रोहि॑तं ह॒विष्म॑न्त ईळते स॒प्त वा॒जिन॑म् ।\n\nशृ॒ण्वन्त॑म॒ग्निं घृ॒तपृ॑ष्ठमु॒क्षणं॑ पृ॒णन्तं॑ दे॒वं पृ॑ण॒ते सु॒वीर्य॑म् ॥४॥\n\nत्वं दू॒तः प्र॑थ॒मो वरे॑ण्य॒: स हू॒यमा॑नो अ॒मृता॑य मत्स्व ।\n\nत्वां म॑र्जयन्म॒रुतो॑ दा॒शुषो॑ गृ॒हे त्वां स्तोमे॑भि॒र्भृग॑वो॒ वि रु॑रुचुः ॥५॥\n\nइषं॑ दु॒हन्त्सु॒दुघां॑ वि॒श्वधा॑यसं यज्ञ॒प्रिये॒ यज॑मानाय सुक्रतो ।\n\nअग्ने॑ घृ॒तस्नु॒स्त्रिॠ॒तानि॒ दीद्य॑द्व॒र्तिर्य॒ज्ञं प॑रि॒यन्त्सु॑क्रतूयसे ॥६॥\n\nत्वामिद॒स्या उ॒षसो॒ व्यु॑ष्टिषु दू॒तं कृ॑ण्वा॒ना अ॑यजन्त॒ मानु॑षाः ।\n\nत्वां दे॒वा म॑ह॒याय्या॑य वावृधु॒राज्य॑मग्ने निमृ॒जन्तो॑ अध्व॒रे ॥७॥\n\nनि त्वा॒ वसि॑ष्ठा अह्वन्त वा॒जिनं॑ गृ॒णन्तो॑ अग्ने वि॒दथे॑षु वे॒धस॑: ।\n\nरा॒यस्पोषं॒ यज॑मानेषु धारय यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 123,
"text": "८ वेनो भार्गवः। वेनः। त्रिष्टुप्।\n\nअ॒यं वे॒नश्चो॑दय॒त्पृश्नि॑गर्भा॒ ज्योति॑र्जरायू॒ रज॑सो वि॒माने॑ ।\n\nइ॒मम॒पां सं॑ग॒मे सूर्य॑स्य॒ शिशुं॒ न विप्रा॑ म॒तिभी॑ रिहन्ति ॥१\n\nस॒मु॒द्रादू॒र्मिमुदि॑यर्ति वे॒नो न॑भो॒जाः पृ॒ष्ठं ह॑र्य॒तस्य॑ दर्शि ।\n\nऋ॒तस्य॒ साना॒वधि॑ वि॒ष्टपि॒ भ्राट् स॑मा॒नं योनि॑म॒भ्य॑नूषत॒ व्राः ॥२॥\n\nस॒मा॒नं पू॒र्वीर॒भि वा॑वशा॒नास्तिष्ठ॑न्व॒त्सस्य॑ मा॒तर॒: सनी॑ळाः ।\n\nऋ॒तस्य॒ साना॒वधि॑ चक्रमा॒णा रि॒हन्ति॒ मध्वो॑ अ॒मृत॑स्य॒ वाणी॑: ॥३॥\n\nजा॒नन्तो॑ रू॒पम॑कृपन्त॒ विप्रा॑ मृ॒गस्य॒ घोषं॑ महि॒षस्य॒ हि ग्मन् ।\n\nऋ॒तेन॒ यन्तो॒ अधि॒ सिन्धु॑मस्थुर्वि॒दद्ग॑न्ध॒र्वो अ॒मृता॑नि॒ नाम॑ ॥४॥\n\nअ॒प्स॒रा जा॒रमु॑पसिष्मिया॒णा योषा॑ बिभर्ति पर॒मे व्यो॑मन् ।\n\nचर॑त्प्रि॒यस्य॒ योनि॑षु प्रि॒यः सन्त्सीद॑त्प॒क्षे हि॑र॒ण्यये॒ स वे॒नः ॥५॥\n\nनाके॑ सुप॒र्णमुप॒ यत्पत॑न्तं हृ॒दा वेन॑न्तो अ॒भ्यच॑क्षत त्वा ।\n\nहिर॑ण्यपक्षं॒ वरु॑णस्य दू॒तं य॒मस्य॒ योनौ॑ शकु॒नं भु॑र॒ण्युम् ॥६॥\n\nऊ॒र्ध्वो ग॑न्ध॒र्वो अधि॒ नाके॑ अस्थात्प्र॒त्यङ्चि॒त्रा बिभ्र॑द॒स्यायु॑धानि ।\n\nवसा॑नो॒ अत्कं॑ सुर॒भिं दृ॒शे कं स्व१र्ण नाम॑ जनत प्रि॒याणि॑ ॥७॥\n\nद्र॒प्सः स॑मु॒द्रम॒भि यज्जिगा॑ति॒ पश्य॒न्गृध्र॑स्य॒ चक्ष॑सा॒ विध॑र्मन् ।\n\nभा॒नुः शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॑ चका॒नस्तृ॒तीये॑ चक्रे॒ रज॑सि प्रि॒याणि॑ ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 124,
"text": "९ अग्नि:, १,५-९ अग्नि-वरुण-सोमाः। १अग्निः,२-४ अग्नेरात्माः, ५,७-८ वरुण:, ६ सोमः, ९ इन्द्रः। त्रिष्टुप् ७ जगती।\n\nइ॒मं नो॑ अग्न॒ उप॑ य॒ज्ञमेहि॒ पञ्च॑यामं त्रि॒वृतं॑ स॒प्तत॑न्तुम् ।\n\nअसो॑ हव्य॒वाळु॒त न॑: पुरो॒गा ज्योगे॒व दी॒र्घं तम॒ आश॑यिष्ठाः ॥१॥\n\nअदे॑वाद्दे॒वः प्र॒चता॒ गुहा॒ यन्प्र॒पश्य॑मानो अमृत॒त्वमे॑मि ।\n\nशि॒वं यत्सन्त॒मशि॑वो॒ जहा॑मि॒ स्वात्स॒ख्यादर॑णीं॒ नाभि॑मेमि ॥२॥\n\nपश्य॑न्न॒न्यस्या॒ अति॑थिं व॒याया॑ ऋ॒तस्य॒ धाम॒ वि मि॑मे पु॒रूणि॑ ।\n\nशंसा॑मि पि॒त्रे असु॑राय॒ शेव॑मयज्ञि॒याद्य॒ज्ञियं॑ भा॒गमे॑मि ॥३॥\n\nब॒ह्वीः समा॑ अकरम॒न्तर॑स्मि॒न्निन्द्रं॑ वृणा॒नः पि॒तरं॑ जहामि ।\n\nअ॒ग्निः सोमो॒ वरु॑ण॒स्ते च्य॑वन्ते प॒र्याव॑र्द्रा॒ष्ट्रं तद॑वाम्या॒यन् ॥४॥\n\nनिर्मा॑या उ॒ त्ये असु॑रा अभूव॒न्त्वं च॑ मा वरुण का॒मया॑से ।\n\n ऋ॒तेन॑ राज॒न्ननृ॑तं विवि॒ञ्चन्मम॑ रा॒ष्ट्रस्याधि॑पत्य॒मेहि॑ ॥५॥\n\nइ॒दं स्व॑रि॒दमिदा॑स वा॒मम॒यं प्र॑का॒श उ॒र्व१न्तरि॑क्षम् ।\n\nहना॑व वृ॒त्रं नि॒रेहि॑ सोम ह॒विष्ट्वा॒ सन्तं॑ ह॒विषा॑ यजाम ॥६॥\n\nक॒विः क॑वि॒त्वा दि॒वि रू॒पमास॑ज॒दप्र॑भूती॒ वरु॑णो॒ निर॒पः सृ॑जत् ।\n\nक्षेमं॑ कृण्वा॒ना जन॑यो॒ न सिन्ध॑व॒स्ता अ॑स्य॒ वर्णं॒ शुच॑यो भरिभ्रति ॥७॥\n\nता अ॑स्य॒ ज्येष्ठ॑मिन्द्रि॒यं स॑चन्ते॒ ता ई॒मा क्षे॑ति स्व॒धया॒ मद॑न्तीः ।\n\nता ईं॒ विशो॒ न राजा॑नं वृणा॒ना बी॑भ॒त्सुवो॒ अप॑ वृ॒त्राद॑तिष्ठन् ॥८॥\n\nबी॒भ॒त्सूनां॑ स॒युजं॑ हं॒समा॑हुर॒पां दि॒व्यानां॑ स॒ख्ये चर॑न्तम् ।\n\nअ॒नु॒ष्टुभ॒मनु॑ चर्चू॒र्यमा॑ण॒मिन्द्रं॒ नि चि॑क्युः क॒वयो॑ मनी॒षा ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 125,
"text": "८ वागाम्भृणी। आत्मा। त्रिष्टुप् , २ जगती।\n\nअ॒हं रु॒द्रेभि॒र्वसु॑भिश्चराम्य॒हमा॑दि॒त्यैरु॒त वि॒श्वदे॑वैः ।\n\nअ॒हं मि॒त्रावरु॑णो॒भा बि॑भर्म्य॒हमि॑न्द्रा॒ग्नी अ॒हम॒श्विनो॒भा ॥१॥\n\nअ॒हं सोम॑माह॒नसं॑ बिभर्म्य॒हं त्वष्टा॑रमु॒त पू॒षणं॒ भग॑म् ।\n\nअ॒हं द॑धामि॒ द्रवि॑णं ह॒विष्म॑ते सुप्रा॒व्ये॒३ यज॑मानाय सुन्व॒ते ॥२॥\n\nअ॒हं राष्ट्री॑ सं॒गम॑नी॒ वसू॑नां चिकि॒तुषी॑ प्रथ॒मा य॒ज्ञिया॑नाम् ।\n\nतां मा॑ दे॒वा व्य॑दधुः पुरु॒त्रा भूरि॑स्थात्रां॒ भूर्या॑वे॒शय॑न्तीम् ॥३॥\n\nमया॒ सो अन्न॑मत्ति॒ यो वि॒पश्य॑ति॒ यः प्राणि॑ति॒ य ईं॑ शृ॒णोत्यु॒क्तम् ।\n\nअ॒म॒न्तवो॒ मां त उप॑ क्षियन्ति श्रु॒धि श्रु॑त श्रद्धि॒वं ते॑ वदामि ॥४॥\n\nअ॒हमे॒व स्व॒यमि॒दं व॑दामि॒ जुष्टं॑ दे॒वेभि॑रु॒त मानु॑षेभिः ।\n\nयं का॒मये॒ तंत॑मु॒ग्रं कृ॑णोमि॒ तं ब्र॒ह्माणं॒ तमृषिं॒ तं सु॑मे॒धाम् ॥५॥\n\nअ॒हं रु॒द्राय॒ धनु॒रा त॑नोमि ब्रह्म॒द्विषे॒ शर॑वे॒ हन्त॒वा उ॑ ।\n\nअ॒हं जना॑य स॒मदं॑ कृणोम्य॒हं द्यावा॑पृथि॒वी आ वि॑वेश ॥६॥\n\nअ॒हं सु॑वे पि॒तर॑मस्य मू॒र्धन्मम॒ योनि॑र॒प्स्व१न्तः स॑मु॒द्रे ।\n\nततो॒ वि ति॑ष्ठे॒ भुव॒नानु॒ विश्वो॒तामूं द्यां व॒र्ष्मणोप॑ स्पृशामि ॥७॥\n\nअ॒हमे॒व वात॑ इव॒ प्र वा॑म्या॒रभ॑माणा॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ।\n\nप॒रो दि॒वा प॒र ए॒ना पृ॑थि॒व्यैताव॑ती महि॒ना सं ब॑भूव ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 126,
"text": "८ शैलूषिः कुल्मलबर्हिषो, वामदेव्योऽहोमुग्वा। विश्वेदेवाः। उपरिष्टाद्बृहती,८ त्रिष्टुप्।\n\nन तमंहो॒ न दु॑रि॒तं देवा॑सो अष्ट॒ मर्त्य॑म् । स॒जोष॑सो॒ यम॑र्य॒मा मि॒त्रो नय॑न्ति॒ वरु॑णो॒ अति॒ द्विष॑: ॥१॥\n\nतद्धि व॒यं वृ॑णी॒महे॒ वरु॑ण॒ मित्रार्य॑मन् । येना॒ निरंह॑सो यू॒यं पा॒थ ने॒था च॒ मर्त्य॒मति॒ द्विष॑: ॥२॥\n\nते नू॒नं नो॒ऽयमू॒तये॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । नयि॑ष्ठा उ नो ने॒षणि॒ पर्षि॑ष्ठा उ नः प॒र्षण्यति॒ द्विष॑: ॥३॥\n\nयू॒यं विश्वं॒ परि॑ पाथ॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । यु॒ष्माकं॒ शर्म॑णि प्रि॒ये स्याम॑ सुप्रणीत॒योऽति॒ द्विष॑: ॥४॥\n\nआ॒दि॒त्यासो॒ अति॒ स्रिधो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । उ॒ग्रं म॒रुद्भी॑ रु॒द्रं हु॑वे॒मेन्द्र॑म॒ग्निं स्व॒स्तयेऽति॒ द्विष॑: ॥५॥\n\nनेता॑र ऊ॒ षु ण॑स्ति॒रो वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । अति॒ विश्वा॑नि दुरि॒ता राजा॑नश्चर्षणी॒नामति॒ द्विष॑: ॥६॥\n\nशु॒नम॒स्मभ्य॑मू॒तये॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । शर्म॑ यच्छन्तु स॒प्रथ॑ आदि॒त्यासो॒ यदीम॑हे॒ अति॒ द्विष॑: ॥७॥\n\nयथा॑ ह॒ त्यद्व॑सवो गौ॒र्यं॑ चित्प॒दि षि॒ताममु॑ञ्चता यजत्राः ।\n\nए॒वो ष्व१स्मन्मु॑ञ्चता॒ व्यंह॒: प्र ता॑र्यग्ने प्रत॒रं न॒ आयु॑: ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 127,
"text": "८ कुशिकः सौभरः, रात्रिर्वा भारद्वाजी। रात्रिः। गायत्री।\n\nरात्री॒ व्य॑ख्यदाय॒ती पु॑रु॒त्रा दे॒व्य१क्षभि॑: । विश्वा॒ अधि॒ श्रियो॑ऽधित ॥१॥\n\nओर्व॑प्रा॒ अम॑र्त्या नि॒वतो॑ दे॒व्यु१द्वत॑: । ज्योति॑षा बाधते॒ तम॑: ॥२॥\n\nनिरु॒ स्वसा॑रमस्कृतो॒षसं॑ दे॒व्या॑य॒ती । अपेदु॑ हासते॒ तम॑: ॥३॥\n\nसा नो॑ अ॒द्य यस्या॑ व॒यं नि ते॒ याम॒न्नवि॑क्ष्महि । वृ॒क्षे न व॑स॒तिं वय॑: ॥४॥\n\nनि ग्रामा॑सो अविक्षत॒ नि प॒द्वन्तो॒ नि प॒क्षिण॑: । नि श्ये॒नास॑श्चिद॒र्थिन॑: ॥५॥\n\nया॒वया॑ वृ॒क्यं१ वृकं॑ य॒वय॑ स्ते॒नमू॑र्म्ये । अथा॑ नः सु॒तरा॑ भव ॥६॥\n\nउप॑ मा॒ पेपि॑श॒त्तम॑: कृ॒ष्णं व्य॑क्तमस्थित । उष॑ ऋ॒णेव॑ यातय ॥७॥\n\nउप॑ ते॒ गा इ॒वाक॑रं वृणी॒ष्व दु॑हितर्दिवः । रात्रि॒ स्तोमं॒ न जि॒ग्युषे॑ ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 128,
"text": "९ विहव्य आंगिरसः। विश्वेदेवाः। त्रिष्टुप् , ९ जगती।\n\nममा॑ग्ने॒ वर्चो॑ विह॒वेष्व॑स्तु व॒यं त्वेन्धा॑नास्त॒न्वं॑ पुषेम ।\n\nमह्यं॑ नमन्तां प्र॒दिश॒श्चत॑स्र॒स्त्वयाध्य॑क्षेण॒ पृत॑ना जयेम ॥१॥\n\nमम॑ दे॒वा वि॑ह॒वे स॑न्तु॒ सर्व॒ इन्द्र॑वन्तो म॒रुतो॒ विष्णु॑र॒ग्निः ।\n\nममा॒न्तरि॑क्षमु॒रुलो॑कमस्तु॒ मह्यं॒ वात॑: पवतां॒ कामे॑ अ॒स्मिन् ॥२॥\n\nमयि॑ दे॒वा द्रवि॑ण॒मा य॑जन्तां॒ मय्या॒शीर॑स्तु॒ मयि॑ दे॒वहू॑तिः ।\n\nदैव्या॒ होता॑रो वनुषन्त॒ पूर्वेऽरि॑ष्टाः स्याम त॒न्वा॑ सु॒वीरा॑: ॥३॥\n\nमह्यं॑ यजन्तु॒ मम॒ यानि॑ ह॒व्याऽऽकू॑तिः स॒त्या मन॑सो मे अस्तु ।\n\nएनो॒ मा नि गां॑ कत॒मच्च॒नाहं विश्वे॑ देवासो॒ अधि॑ वोचता नः ॥४॥\n\nदेवी॑: षळुर्वीरु॒रु न॑: कृणोत॒ विश्वे॑ देवास इ॒ह वी॑रयध्वम् ।\n\nमा हा॑स्महि प्र॒जया॒ मा त॒नूभि॒र्मा र॑धाम द्विष॒ते सो॑म राजन् ॥५॥\n\nअग्ने॑ म॒न्युं प्र॑तिनु॒दन्परे॑षा॒मद॑ब्धो गो॒पाः परि॑ पाहि न॒स्त्वम् ।\n\nप्र॒त्यञ्चो॑ यन्तु नि॒गुत॒: पुन॒स्ते॒३ऽमैषां॑ चि॒त्तं प्र॒बुधां॒ वि ने॑शत् ॥६॥\n\nधा॒ता धा॑तॄ॒णां भुव॑नस्य॒ यस्पति॑र्दे॒वं त्रा॒तार॑मभिमातिषा॒हम् ।\n\nइ॒मं य॒ज्ञम॒श्विनो॒भा बृह॒स्पति॑र्दे॒वाः पा॑न्तु॒ यज॑मानं न्य॒र्थात् ॥७॥\n\nउ॒रु॒व्यचा॑ नो महि॒षः शर्म॑ यंसद॒स्मिन्हवे॑ पुरुहू॒तः पु॑रु॒क्षुः ।\n\nस न॑: प्र॒जायै॑ हर्यश्व मृळ॒येन्द्र॒ मा नो॑ रीरिषो॒ मा परा॑ दाः ॥८॥\n\nये न॑: स॒पत्ना॒ अप॒ ते भ॑वन्त्विन्द्रा॒ग्निभ्या॒मव॑ बाधामहे॒ तान् ।\n\nवस॑वो रु॒द्रा आ॑दि॒त्या उ॑परि॒स्पृशं॑ मो॒ग्रं चेत्ता॑रमधिरा॒जम॑क्रन् ॥९॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 129,
"text": "७ प्रजापतिः परमेष्ठी। भाववृत्तम्। त्रिष्टुप्।\n\nनास॑दासी॒न्नो सदा॑सीत्त॒दानीं॒ नासी॒द्रजो॒ नो व्यो॑मा प॒रो यत् ।\n\nकिमाव॑रीव॒: कुह॒ कस्य॒ शर्म॒न्नम्भ॒: किमा॑सी॒द्गह॑नं गभी॒रम् ॥१॥\n\nन मृ॒त्युरा॑सीद॒मृतं॒ न तर्हि॒ न रात्र्या॒ अह्न॑ आसीत्प्रके॒तः ।\n\nआनी॑दवा॒तं स्व॒धया॒ तदेकं॒ तस्मा॑द्धा॒न्यन्न प॒रः किं च॒नास॑ ॥२॥\n\nतम॑ आसी॒त्तम॑सा गू॒ळ्हमग्रे॑ऽप्रके॒तं स॑लि॒लं सर्व॑मा इ॒दम् ।\n\nतु॒च्छ्येना॒भ्वपि॑हितं॒ यदासी॒त्तप॑स॒स्तन्म॑हि॒नाजा॑य॒तैक॑म् ॥३॥\n\nकाम॒स्तदग्रे॒ सम॑वर्त॒ताधि॒ मन॑सो॒ रेत॑: प्रथ॒मं यदासी॑त् ।\n\nस॒तो बन्धु॒मस॑ति॒ निर॑विन्दन्हृ॒दि प्र॒तीष्या॑ क॒वयो॑ मनी॒षा ॥४॥\n\nति॒र॒श्चीनो॒ वित॑तो र॒श्मिरे॑षाम॒धः स्वि॑दा॒सी३दु॒परि॑ स्विदासी३त् ।\n\nरे॒तो॒धा आ॑सन्महि॒मान॑ आसन्त्स्व॒धा अ॒वस्ता॒त्प्रय॑तिः प॒रस्ता॑त् ॥५॥\n\nको अ॒द्धा वे॑द॒ क इ॒ह प्र वो॑च॒त्कुत॒ आजा॑ता॒ कुत॑ इ॒यं विसृ॑ष्टिः ।\n\nअ॒र्वाग्दे॒वा अ॒स्य वि॒सर्ज॑ने॒नाऽथा॒ को वे॑द॒ यत॑ आब॒भूव॑ ॥६॥\n\nइ॒यं विसृ॑ष्टि॒र्यत॑ आब॒भूव॒ यदि॑ वा द॒धे यदि॑ वा॒ न ।\n\nयो अ॒स्याध्य॑क्षः पर॒मे व्यो॑म॒न्त्सो अ॒ङ्ग वे॑द॒ यदि॑ वा॒ न वेद॑ ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 130,
"text": "७ यज्ञः प्राजापत्यः। भाववृत्तम्। त्रिष्टुप् , १ जगती।\n\nयो य॒ज्ञो वि॒श्वत॒स्तन्तु॑भिस्त॒त एक॑शतं देवक॒र्मेभि॒राय॑तः ।\n\nइ॒मे व॑यन्ति पि॒तरो॒ य आ॑य॒युः प्र व॒याप॑ व॒येत्या॑सते त॒ते ॥१॥\n\nपुमाँ॑ एनं तनुत॒ उत्कृ॑णत्ति॒ पुमा॒न्वि त॑त्ने॒ अधि॒ नाके॑ अ॒स्मिन् ।\n\nइ॒मे म॒यूखा॒ उप॑ सेदुरू॒ सद॒: सामा॑नि चक्रु॒स्तस॑रा॒ण्योत॑वे ॥२॥\n\nकासी॑त्प्र॒मा प्र॑ति॒मा किं नि॒दान॒माज्यं॒ किमा॑सीत्परि॒धिः क आ॑सीत् ।\n\nछन्द॒: किमा॑सी॒त्प्रउ॑गं॒ किमु॒क्थं यद्दे॒वा दे॒वमय॑जन्त॒ विश्वे॑ ॥३॥\n\nअ॒ग्नेर्गा॑य॒त्र्य॑भवत्स॒युग्वो॒ष्णिह॑या सवि॒ता सं ब॑भूव ।\n\nअ॒नु॒ष्टुभा॒ सोम॑ उ॒क्थैर्मह॑स्वा॒न्बृह॒स्पते॑र्बृह॒ती वाच॑मावत् ॥४॥\n\nवि॒राण्मि॒त्रावरु॑णयोरभि॒श्रीरिन्द्र॑स्य त्रि॒ष्टुबि॒ह भा॒गो अह्न॑: ।\n\nविश्वा॑न्दे॒वाञ्जग॒त्या वि॑वेश॒ तेन॑ चाकॢप्र॒ ऋष॑यो मनु॒ष्या॑: ॥५॥\n\nचा॒कॢ॒प्रे तेन॒ ऋष॑यो मनु॒ष्या॑ य॒ज्ञे जा॒ते पि॒तरो॑ नः पुरा॒णे ।\n\nपश्य॑न्मन्ये॒ मन॑सा॒ चक्ष॑सा॒ तान्य इ॒मं य॒ज्ञमय॑जन्त॒ पूर्वे॑ ॥६॥\n\nस॒हस्तो॑माः स॒हछ॑न्दस आ॒वृत॑: स॒हप्र॑मा॒ ऋष॑यः स॒प्त दैव्या॑: ।\n\nपूर्वे॑षां॒ पन्था॑मनु॒दृश्य॒ धीरा॑ अ॒न्वाले॑भिरे र॒थ्यो॒३ न र॒श्मीन् ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 131,
"text": "७ सुकीर्तिः काक्षीवत्। इन्द्रः,४-५ अश्विनौ। त्रिष्टुप् , ४ अनुष्टुप्।\n\nअप॒ प्राच॑ इन्द्र॒ विश्वाँ॑ अ॒मित्रा॒नपापा॑चो अभिभूते नुदस्व ।\n\nअपोदी॑चो॒ अप॑ शूराध॒राच॑ उ॒रौ यथा॒ तव॒ शर्म॒न्मदे॑म ॥१॥\n\nकु॒विद॒ङ्ग यव॑मन्तो॒ यवं॑ चि॒द्यथा॒ दान्त्य॑नुपू॒र्वं वि॒यूय॑ ।\n\nइ॒हेहै॑षां कृणुहि॒ भोज॑नानि॒ ये ब॒र्हिषो॒ नमो॑वृक्तिं॒ न ज॒ग्मुः ॥२॥\n\nन॒हि स्थूर्यृ॑तु॒था या॒तमस्ति॒ नोत श्रवो॑ विविदे संग॒मेषु॑ ।\n\nग॒व्यन्त॒ इन्द्रं॑ स॒ख्याय॒ विप्रा॑ अश्वा॒यन्तो॒ वृष॑णं वा॒जय॑न्तः ॥३॥\n\nयु॒वं सु॒राम॑मश्विना॒ नमु॑चावासु॒रे सचा॑ । वि॒पि॒पा॒ना शु॑भस्पती॒ इन्द्रं॒ कर्म॑स्वावतम् ॥४॥\n\nपु॒त्रमि॑व पि॒तरा॑व॒श्विनो॒भेन्द्रा॒वथु॒: काव्यै॑र्दं॒सना॑भिः ।\n\nयत्सु॒रामं॒ व्यपि॑ब॒: शची॑भि॒: सर॑स्वती त्वा मघवन्नभिष्णक् ॥५॥\n\nइन्द्र॑: सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ अवो॑भिः सुमृळी॒को भ॑वतु वि॒श्ववे॑दाः ।\n\nबाध॑तां॒ द्वेषो॒ अभ॑यं कृणोतु सु॒वीर्य॑स्य॒ पत॑यः स्याम ॥६॥\n\nतस्य॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिय॒स्याऽपि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म ।\n\nस सु॒त्रामा॒ स्ववाँ॒ इन्द्रो॑ अ॒स्मे आ॒राच्चि॒द्द्वेष॑: सनु॒तर्यु॑योतु ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 132,
"text": "७ शकपूतो नार्मेधः। मित्रावरुणौ, १ द्युभूम्यश्विनः। विराड्रूपा, १ न्यङ्कुसारिणी, २,६ प्रस्तारपंक्तिः, ७ महासतोबृहती।\n\nई॒जा॒नमिद्द्यौर्गू॒र्ताव॑सुरीजा॒नं भूमि॑र॒भि प्र॑भू॒षणि॑ ।\n\nई॒जा॒नं दे॒वाव॒श्विना॑व॒भि सु॒म्नैर॑वर्धताम् ॥१॥\n\nता वां॑ मित्रावरुणा धार॒यत्क्षि॑ती सुषु॒म्नेषि॑त॒त्वता॑ यजामसि ।\n\nयु॒वोः क्रा॒णाय॑ स॒ख्यैर॒भि ष्या॑म र॒क्षस॑: ॥२॥\n\nअधा॑ चि॒न्नु यद्दिधि॑षामहे वाम॒भि प्रि॒यं रेक्ण॒: पत्य॑मानाः ।\n\nद॒द्वाँ वा॒ यत्पुष्य॑ति॒ रेक्ण॒: सम्वा॑र॒न्नकि॑रस्य म॒घानि॑ ॥३॥\n\nअ॒साव॒न्यो अ॑सुर सूयत॒ द्यौस्त्वं विश्वे॑षां वरुणासि॒ राजा॑ ।\n\nमू॒र्धा रथ॑स्य चाक॒न्नैताव॒तैन॑सान्तक॒ध्रुक् ॥४॥\n\nअ॒स्मिन्त्स्वे॒३तच्छक॑पूत॒ एनो॑ हि॒ते मि॒त्रे निग॑तान्हन्ति वी॒रान् ।\n\nअ॒वोर्वा॒ यद्धात्त॒नूष्वव॑: प्रि॒यासु॑ य॒ज्ञिया॒स्वर्वा॑ ॥५॥\n\nयु॒वोर्हि मा॒तादि॑तिर्विचेतसा॒ द्यौर्न भूमि॒: पय॑सा पुपू॒तनि॑ ।\n\nअव॑ प्रि॒या दि॑दिष्टन॒ सूरो॑ निनिक्त र॒श्मिभि॑: ॥६॥\n\nयु॒वं ह्य॑प्न॒राजा॒वसी॑दतं॒ तिष्ठ॒द्रथं॒ न धू॒र्षदं॑ वन॒र्षद॑म् ।\n\nता न॑: कणूक॒यन्ती॑र्नृ॒मेध॑स्तत्रे॒ अंह॑सः सु॒मेध॑स्तत्रे॒ अंह॑सः ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 133,
"text": "७ सुदाः पैजवनः। इन्द्रः।शक्करी, ४-६ महापंक्तिः, ७ त्रिष्टुप्।\n\nप्रो ष्व॑स्मै पुरोर॒थमिन्द्रा॑य शू॒षम॑र्चत ।\n\nअ॒भीके॑ चिदु लोक॒कृत्सं॒गे स॒मत्सु॑ वृत्र॒हाऽस्माकं॑ बोधि चोदि॒ता नभ॑न्तामन्य॒केषां॑ ज्या॒का अधि॒ धन्व॑सु ॥१॥\n\nत्वं सिन्धूँ॒रवा॑सृजोऽध॒राचो॒ अह॒न्नहि॑म् ।\n\nअ॒श॒त्रुरि॑न्द्र जज्ञिषे॒ विश्वं॑ पुष्यसि॒ वार्यं॒ तं त्वा॒ परि॑ ष्वजामहे॒ नभ॑न्तामन्य॒केषां॑ ज्या॒का अधि॒ धन्व॑सु ॥२॥\n\nवि षु विश्वा॒ अरा॑तयो॒ऽर्यो न॑शन्त नो॒ धिय॑: ।\n\nअस्ता॑सि॒ शत्र॑वे व॒धं यो न॑ इन्द्र॒ जिघां॑सति॒ या ते॑ रा॒तिर्द॒दिर्वसु॒ नभ॑न्तामन्य॒केषां॑ ज्या॒का अधि॒ धन्व॑सु ॥३॥\n\nयो न॑ इन्द्रा॒भितो॒ जनो॑ वृका॒युरा॒दिदे॑शति ।\n\nअ॒ध॒स्प॒दं तमीं॑ कृधि विबा॒धो अ॑सि सास॒हिर्नभ॑न्तामन्य॒केषां॑ ज्या॒का अधि॒ धन्व॑सु ॥४॥\n\nयो न॑ इन्द्राभि॒दास॑ति॒ सना॑भि॒र्यश्च॒ निष्ट्य॑: ।\n\nअव॒ तस्य॒ बलं॑ तिर म॒हीव॒ द्यौरध॒ त्मना॒ नभ॑न्तामन्य॒केषां॑ ज्या॒का अधि॒ धन्व॑सु ॥५॥\n\nव॒यमि॑न्द्र त्वा॒यव॑: सखि॒त्वमा र॑भामहे ।\n\nऋ॒तस्य॑ नः प॒था न॒याऽति॒ विश्वा॑नि दुरि॒ता नभ॑न्तामन्य॒केषां॑ ज्या॒का अधि॒ धन्व॑सु ॥६॥\n\nअ॒स्मभ्यं॒ सु त्वमि॑न्द्र॒ तां शि॑क्ष॒ या दोह॑ते॒ प्रति॒ वरं॑ जरि॒त्रे ।\n\nअच्छि॑द्रोध्नी पी॒पय॒द्यथा॑ नः स॒हस्र॑धारा॒ पय॑सा म॒ही गौः ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 134,
"text": "७,१-६ (पूर्वार्धस्य) मान्धाता यौवनाश्वः,६ (उत्तरार्धस्य) ७ गोधा ऋषिका। इन्द्रः। महापंक्तिः, ७ पंक्तिः।\n\nउ॒भे यदि॑न्द्र॒ रोद॑सी आप॒प्राथो॒षा इ॑व ।\n\nम॒हान्तं॑ त्वा म॒हीनां॑ स॒म्राजं॑ चर्षणी॒नां दे॒वी जनि॑त्र्यजीजनद्भ॒द्रा जनि॑त्र्यजीजनत् ॥१॥\n\nअव॑ स्म दुर्हणाय॒तो मर्त॑स्य तनुहि स्थि॒रम् ।\n\nअ॒ध॒स्प॒दं तमीं॑ कृधि॒ यो अ॒स्माँ आ॒दिदे॑शति दे॒वी जनि॑त्र्यजीजनद्भ॒द्रा जनि॑त्र्यजीजनत् ॥२॥\n\nअव॒ त्या बृ॑ह॒तीरिषो॑ वि॒श्वश्च॑न्द्रा अमित्रहन् ।\n\nशची॑भिः शक्र धूनु॒हीन्द्र॒ विश्वा॑भिरू॒तिभि॑र्दे॒वी जनि॑त्र्यजीजनद्भ॒द्रा जनि॑त्र्यजीजनत् ॥४॥\n\nअव॒ यत्त्वं श॑तक्रत॒विन्द्र॒ विश्वा॑नि धूनु॒षे ।\n\nर॒यिं न सु॑न्व॒ते सचा॑ सह॒स्रिणी॑भिरू॒तिभि॑र्दे॒वी जनि॑त्र्यजीजनद्भ॒द्रा जनि॑त्र्यजीजनत् ॥४॥\n\nअव॒ स्वेदा॑ इवा॒भितो॒ विष्व॑क्पतन्तु दि॒द्यव॑: ।\n\n दूर्वा॑या इव॒ तन्त॑वो॒ व्य१स्मदे॑तु दुर्म॒तिर्दे॒वी जनि॑त्र्यजीजनद्भ॒द्रा जनि॑त्र्यजीजनत् ॥५॥\n\nदी॒र्घं ह्य॑ङ्कु॒शं य॑था॒ शक्तिं॒ बिभ॑र्षि मन्तुमः ।\n\nपूर्वे॑ण मघवन्प॒दाऽजो व॒यां यथा॑ यमो दे॒वी जनि॑त्र्यजीजनद्भ॒द्रा जनि॑त्र्यजीजनत् ॥६॥\n\nनकि॑र्देवा मिनीमसि॒ नकि॒रा यो॑पयामसि मन्त्र॒श्रुत्यं॑ चरामसि ।\n\nप॒क्षेभि॑रपिक॒क्षेभि॒रत्रा॒भि सं र॑भामहे ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 135,
"text": "७ कुमारो यामायनः। यमः। अनुष्टुप्।\n\nयस्मि॑न्वृ॒क्षे सु॑पला॒शे दे॒वैः स॒म्पिब॑ते य॒मः । अत्रा॑ नो वि॒श्पति॑: पि॒ता पु॑रा॒णाँ अनु॑ वेनति ॥१॥\n\nपु॒रा॒णाँ अ॑नु॒वेन॑न्तं॒ चर॑न्तं पा॒पया॑मु॒या । अ॒सू॒यन्न॒भ्य॑चाकशं॒ तस्मा॑ अस्पृहयं॒ पुन॑: ॥२॥\n\nयं कु॑मार॒ नवं॒ रथ॑मच॒क्रं मन॒साकृ॑णोः । एके॑षं वि॒श्वत॒: प्राञ्च॒मप॑श्य॒न्नधि॑ तिष्ठसि ॥३॥\n\nयं कु॑मार॒ प्राव॑र्तयो॒ रथं॒ विप्रे॑भ्य॒स्परि॑ । तं सामानु॒ प्राव॑र्तत॒ समि॒तो ना॒व्याहि॑तम् ॥४॥\n\nकः कु॑मा॒रम॑जनय॒द्रथं॒ को निर॑वर्तयत् । कः स्वि॒त्तद॒द्य नो॑ ब्रूयादनु॒देयी॒ यथाभ॑वत् ॥५॥\n\nयथाभ॑वदनु॒देयी॒ ततो॒ अग्र॑मजायत । पु॒रस्ता॑द्बु॒ध्न आत॑तः प॒श्चान्नि॒रय॑णं कृ॒तम् ॥६॥\n\nइ॒दं य॒मस्य॒ साद॑नं देवमा॒नं यदु॒च्यते॑ । इ॒यम॑स्य धम्यते ना॒ळीर॒यं गी॒र्भिः परि॑ष्कृतः ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 136,
"text": "१ जूतिः, २ वातजूतिः, ३ विप्रजूतिः, ४ वृषाणकः, ५ करिक्रतः, ६ एतशः ७ ऋष्यश्रृंगः (एते वातरशना मुनयः)। केशिनः = अग्नि-सूर्य-वायवः। अनुष्टुप्।\n\nके॒श्य१ग्निं के॒शी वि॒षं के॒शी बि॑भर्ति॒ रोद॑सी । के॒शी विश्वं॒ स्व॑र्दृ॒शे के॒शीदं ज्योति॑रुच्यते ॥१॥\n\nमुन॑यो॒ वात॑रशनाः पि॒शङ्गा॑ वसते॒ मला॑ । वात॒स्यानु॒ ध्राजिं॑ यन्ति॒ यद्दे॒वासो॒ अवि॑क्षत ॥२॥\n\nउन्म॑दिता॒ मौने॑येन॒ वाताँ॒ आ त॑स्थिमा व॒यम् । शरी॒रेद॒स्माकं॑ यू॒यं मर्ता॑सो अ॒भि प॑श्यथ ॥३॥\n\nअ॒न्तरि॑क्षेण पतति॒ विश्वा॑ रू॒पाव॒चाक॑शत् । मुनि॑र्दे॒वस्य॑देवस्य॒ सौकृ॑त्याय॒ सखा॑ हि॒तः ॥४॥\n\nवात॒स्याश्वो॑ वा॒योः सखाथो॑ दे॒वेषि॑तो॒ मुनि॑: । उ॒भौ स॑मु॒द्रावा क्षे॑ति॒ यश्च॒ पूर्व॑ उ॒ताप॑रः ॥५॥\n\nअ॒प्स॒रसां॑ गन्ध॒र्वाणां॑ मृ॒गाणां॒ चर॑णे॒ चर॑न् । के॒शी केत॑स्य वि॒द्वान्त्सखा॑ स्वा॒दुर्म॒दिन्त॑मः ॥६॥\n\nवा॒युर॑स्मा॒ उपा॑मन्थत्पि॒नष्टि॑ स्मा कुनन्न॒मा । के॒शी वि॒षस्य॒ पात्रे॑ण॒ यद्रु॒द्रेणापि॑बत्स॒ह ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 137,
"text": "७,१ भरद्वाज:, २ कश्यपः, ३ गौतमः, ४ अत्रिः, ५ विश्वामित्रः, ६ जमदग्निः, ७ वसिष्ठः। विश्वेदेवाः। अनुष्टुप्।\n\nउ॒त दे॑वा॒ अव॑हितं॒ देवा॒ उन्न॑यथा॒ पुन॑: । उ॒ताग॑श्च॒क्रुषं॑ देवा॒ देवा॑ जी॒वय॑था॒ पुन॑: ॥१॥\n\nद्वावि॒मौ वातौ॑ वात॒ आ सिन्धो॒रा प॑रा॒वत॑: । दक्षं॑ ते अ॒न्य आ वा॑तु॒ परा॒न्यो वा॑तु॒ यद्रप॑: ॥२॥\n\nआ वा॑त वाहि भेष॒जं वि वा॑त वाहि॒ यद्रप॑: । त्वं हि वि॒श्वभे॑षजो दे॒वानां॑ दू॒त ईय॑से ॥३॥\n\nआ त्वा॑गमं॒ शंता॑तिभि॒रथो॑ अरि॒ष्टता॑तिभिः । दक्षं॑ ते भ॒द्रमाभा॑र्षं॒ परा॒ यक्ष्मं॑ सुवामि ते ॥४॥\n\nत्राय॑न्तामि॒ह दे॒वास्त्राय॑तां म॒रुतां॑ ग॒णः । त्राय॑न्तां॒ विश्वा॑ भू॒तानि॒ यथा॒यम॑र॒पा अस॑त् ॥५॥\n\nआप॒ इद्वा उ॑ भेष॒जीरापो॑ अमीव॒चात॑नीः । आप॒: सर्व॑स्य भेष॒जीस्तास्ते॑ कृण्वन्तु भेष॒जम् ॥६॥\n\nहस्ता॑भ्यां॒ दश॑शाखाभ्यां जि॒ह्वा वा॒चः पु॑रोग॒वी । अ॒ना॒म॒यि॒त्नुभ्यां॑ त्वा॒ ताभ्यां॒ त्वोप॑ स्पृशामसि ॥७॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 138,
"text": "६ अंग औरवः।इन्द्रः। जगती।\n\nतव॒ त्य इ॑न्द्र स॒ख्येषु॒ वह्न॑य ऋ॒तं म॑न्वा॒ना व्य॑दर्दिरुर्व॒लम् ।\n\nयत्रा॑ दश॒स्यन्नु॒षसो॑ रि॒णन्न॒पः कुत्सा॑य॒ मन्म॑न्न॒ह्य॑श्च दं॒सय॑: ॥१॥\n\nअवा॑सृजः प्र॒स्व॑: श्व॒ञ्चयो॑ गि॒रीनुदा॑ज उ॒स्रा अपि॑बो॒ मधु॑ प्रि॒यम् ।\n\nअव॑र्धयो व॒निनो॑ अस्य॒ दंस॑सा शु॒शोच॒ सूर्य॑ ऋ॒तजा॑तया गि॒रा ॥२॥\n\nवि सूर्यो॒ मध्ये॑ अमुच॒द्रथं॑ दि॒वो वि॒दद्दा॒साय॑ प्रति॒मान॒मार्य॑: ।\n\nदृ॒ळ्हानि॒ पिप्रो॒रसु॑रस्य मा॒यिन॒ इन्द्रो॒ व्या॑स्यच्चकृ॒वाँ ऋ॒जिश्व॑ना ॥३॥\n\nअना॑धृष्टानि धृषि॒तो व्या॑स्यन्नि॒धीँरदे॑वाँ अमृणद॒यास्य॑: ।\n\nमा॒सेव॒ सूर्यो॒ वसु॒ पुर्य॒मा द॑दे गृणा॒नः शत्रूँ॑रशृणाद्वि॒रुक्म॑ता ॥४॥\n\nअयु॑द्धसेनो वि॒भ्वा॑ विभिन्द॒ता दाश॑द्वृत्र॒हा तुज्या॑नि तेजते ।\n\nइन्द्र॑स्य॒ वज्रा॑दबिभेदभि॒श्नथ॒: प्राक्रा॑मच्छु॒न्ध्यूरज॑हादु॒षा अन॑: ॥५॥\n\nए॒ता त्या ते॒ श्रुत्या॑नि॒ केव॑ला॒ यदेक॒ एक॒मकृ॑णोरय॒ज्ञम् ।\n\nमा॒सां वि॒धान॑मदधा॒ अधि॒ द्यवि॒ त्वया॒ विभि॑न्नं भरति प्र॒धिं पि॒ता ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 139,
"text": "६ देवगन्धर्वो विश्वावसुः। सविता, ४-६ आत्मा। त्रिष्टुप्।\n\nसूर्य॑रश्मि॒र्हरि॑केशः पु॒रस्ता॑त्सवि॒ता ज्योति॒रुद॑याँ॒ अज॑स्रम् ।\n\nतस्य॑ पू॒षा प्र॑स॒वे या॑ति वि॒द्वान्त्स॒म्पश्य॒न्विश्वा॒ भुव॑नानि गो॒पाः ॥१॥\n\nनृ॒चक्षा॑ ए॒ष दि॒वो मध्य॑ आस्त आपप्रि॒वान्रोद॑सी अ॒न्तरि॑क्षम् ।\n\nस वि॒श्वाची॑र॒भि च॑ष्टे घृ॒ताची॑रन्त॒रा पूर्व॒मप॑रं च के॒तुम् ॥२॥\n\nरा॒यो बु॒ध्नः सं॒गम॑नो॒ वसू॑नां॒ विश्वा॑ रू॒पाभि च॑ष्टे॒ शची॑भिः ।\n\nदे॒व इ॑व सवि॒ता स॒त्यध॒र्मेन्द्रो॒ न त॑स्थौ सम॒रे धना॑नाम् ॥३॥\n\nवि॒श्वाव॑सुं सोम गन्ध॒र्वमापो॑ ददृ॒शुषी॒स्तदृ॒तेना॒ व्या॑यन् ।\n\nतद॒न्ववै॒दिन्द्रो॑ रारहा॒ण आ॑सां॒ परि॒ सूर्य॑स्य परि॒धीँर॑पश्यत् ॥४॥\n\nवि॒श्वाव॑सुर॒भि तन्नो॑ गृणातु दि॒व्यो ग॑न्ध॒र्वो रज॑सो वि॒मान॑: ।\n\nयद्वा॑ घा स॒त्यमु॒त यन्न वि॒द्म धियो॑ हिन्वा॒नो धिय॒ इन्नो॑ अव्याः ॥५॥\n\nसस्नि॑मविन्द॒च्चर॑णे न॒दीना॒मपा॑वृणो॒द्दुरो॒ अश्म॑व्रजानाम् ।\n\nप्रासां॑ गन्ध॒र्वो अ॒मृता॑नि वोच॒दिन्द्रो॒ दक्षं॒ परि॑ जानाद॒हीना॑म् ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 140,
"text": "६ अग्निः पावकः। अग्निः। सतोबृहती, १-२ विष्टारपंक्तिः, ६ उपरिष्टाज्ज्योतिः।\n\nअग्ने॒ तव॒ श्रवो॒ वयो॒ महि॑ भ्राजन्ते अ॒र्चयो॑ विभावसो ।\n\nबृह॑द्भानो॒ शव॑सा॒ वाज॑मु॒क्थ्यं१ दधा॑सि दा॒शुषे॑ कवे ॥१॥\n\nपा॒व॒कव॑र्चाः शु॒क्रव॑र्चा॒ अनू॑नवर्चा॒ उदि॑यर्षि भा॒नुना॑ ।\n\nपु॒त्रो मा॒तरा॑ वि॒चर॒न्नुपा॑वसि पृ॒णक्षि॒ रोद॑सी उ॒भे ॥२॥\n\nऊर्जो॑ नपाज्जातवेदः सुश॒स्तिभि॒र्मन्द॑स्व धी॒तिभि॑र्हि॒तः ।\n\nत्वे इष॒: सं द॑धु॒र्भूरि॑वर्पसश्चि॒त्रोत॑यो वा॒मजा॑ताः ॥३॥\n\nइ॒र॒ज्यन्न॑ग्ने प्रथयस्व ज॒न्तुभि॑र॒स्मे रायो॑ अमर्त्य ।\n\nस द॑र्श॒तस्य॒ वपु॑षो॒ वि रा॑जसि पृ॒णक्षि॑ सान॒सिं क्रतु॑म् ॥४॥\n\nइ॒ष्क॒र्तार॑मध्व॒रस्य॒ प्रचे॑तसं॒ क्षय॑न्तं॒ राध॑सो म॒हः ।\n\nरा॒तिं वा॒मस्य॑ सु॒भगां॑ म॒हीमिषं॒ दधा॑सि सान॒सिं र॒यिम् ॥५॥\n\nऋ॒तावा॑नं महि॒षं वि॒श्वद॑र्शतम॒ग्निं सु॒म्नाय॑ दधिरे पु॒रो जना॑: ।\n\nश्रुत्क॑र्णं स॒प्रथ॑स्तमं त्वा गि॒रा दैव्यं॒ मानु॑षा यु॒गा ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 141,
"text": "६ अग्निस्तापसः। विश्वेदेवाः। अनुष्टुप्।\n\nअग्ने॒ अच्छा॑ वदे॒ह न॑: प्र॒त्यङ्न॑: सु॒मना॑ भव । प्र नो॑ यच्छ विशस्पते धन॒दा अ॑सि न॒स्त्वम् ॥१॥\n\nप्र नो॑ यच्छत्वर्य॒मा प्र भग॒: प्र बृह॒स्पति॑: । प्र दे॒वाः प्रोत सू॒नृता॑ रा॒यो दे॒वी द॑दातु नः ॥२॥\n\nसोमं॒ राजा॑न॒मव॑से॒ऽग्निं गी॒र्भिर्ह॑वामहे । आ॒दि॒त्यान्विष्णुं॒ सूर्यं॑ ब्र॒ह्माणं॑ च॒ बृह॒स्पति॑म् ॥३॥\n\nइ॒न्द्र॒वा॒यू बृह॒स्पतिं॑ सु॒हवे॒ह ह॑वामहे । यथा॑ न॒: सर्व॒ इज्जन॒: संग॑त्यां सु॒मना॒ अस॑त् ॥४॥\n\nअ॒र्य॒मणं॒ बृह॒स्पति॒मिन्द्रं॒ दाना॑य चोदय । वातं॒ विष्णुं॒ सर॑स्वतीं सवि॒तारं॑ च वा॒जिन॑म् ॥५॥\n\nत्वं नो॑ अग्ने अ॒ग्निभि॒र्ब्रह्म॑ य॒ज्ञं च॑ वर्धय । त्वं नो॑ दे॒वता॑तये रा॒यो दाना॑य चोदय ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 142,
"text": "८ शार्गां: १-२ जरिता, ३-४ द्रोणः, ५-६ सारिसृक्व:, ७-८ स्तम्बमित्रः। अग्निः। त्रिष्टुप् , १-२ जगती, ७-८ अनुष्टुप्।\n\nअ॒यम॑ग्ने जरि॒ता त्वे अ॑भू॒दपि॒ सह॑सः सूनो न॒ह्य१न्यदस्त्याप्य॑म् ।\n\nभ॒द्रं हि शर्म॑ त्रि॒वरू॑थ॒मस्ति॑ त आ॒रे हिंसा॑ना॒मप॑ दि॒द्युमा कृ॑धि ॥१॥\n\nप्र॒वत्ते॑ अग्ने॒ जनि॑मा पितूय॒तः सा॒चीव॒ विश्वा॒ भुव॑ना॒ न्यृ॑ञ्जसे ।\n\nप्र सप्त॑य॒: प्र स॑निषन्त नो॒ धिय॑: पु॒रश्च॑रन्ति पशु॒पा इ॑व॒ त्मना॑ ॥२॥\n\nउ॒त वा उ॒ परि॑ वृणक्षि॒ बप्स॑द्ब॒होर॑ग्न॒ उल॑पस्य स्वधावः ।\n\nउ॒त खि॒ल्या उ॒र्वरा॑णां भवन्ति॒ मा ते॑ हे॒तिं तवि॑षीं चुक्रुधाम ॥३॥\n\nयदु॒द्वतो॑ नि॒वतो॒ यासि॒ बप्स॒त्पृथ॑गेषि प्रग॒र्धिनी॑व॒ सेना॑ ।\n\nय॒दा ते॒ वातो॑ अनु॒वाति॑ शो॒चिर्वप्ते॑व॒ श्मश्रु॑ वपसि॒ प्र भूम॑ ॥४॥\n\nप्रत्य॑स्य॒ श्रेण॑यो ददृश्र॒ एकं॑ नि॒यानं॑ ब॒हवो॒ रथा॑सः ।\n\nबा॒हू यद॑ग्ने अनु॒मर्मृ॑जानो॒ न्य॑ङ्ङुत्ता॒नाम॒न्वेषि॒ भूमि॑म् ॥५॥\n\nउत्ते॒ शुष्मा॑ जिहता॒मुत्ते॑ अ॒र्चिरुत्ते॑ अग्ने शशमा॒नस्य॒ वाजा॑: ।\n\nउच्छ्व॑ञ्चस्व॒ नि न॑म॒ वर्ध॑मान॒ आ त्वा॒द्य विश्वे॒ वस॑वः सदन्तु ॥६॥\n\nअ॒पामि॒दं न्यय॑नं समु॒द्रस्य॑ नि॒वेश॑नम् । अ॒न्यं कृ॑णुष्वे॒तः पन्थां॒ तेन॑ याहि॒ वशाँ॒ अनु॑ ॥७॥\n\nआय॑ने ते प॒राय॑णे॒ दूर्वा॑ रोहन्तु पु॒ष्पिणी॑: । ह्र॒दाश्च॑ पु॒ण्डरी॑काणि समु॒द्रस्य॑ गृ॒हा इ॒मे ॥८॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 143,
"text": "६ अत्रिः सांख्यः। अश्विनौ। अनुष्टुप्।\n\nत्यं चि॒दत्रि॑मृत॒जुर॒मर्थ॒मश्वं॒ न यात॑वे । क॒क्षीव॑न्तं॒ यदी॒ पुना॒ रथं॒ न कृ॑णु॒थो नव॑म् ॥१॥\n\nत्यं चि॒दश्वं॒ न वा॒जिन॑मरे॒णवो॒ यमत्न॑त । दृ॒ळ्हं ग्र॒न्थिं न वि ष्य॑त॒मत्रिं॒ यवि॑ष्ठ॒मा रज॑: ॥२॥\n\nनरा॒ दंसि॑ष्ठा॒वत्र॑ये॒ शुभ्रा॒ सिषा॑सतं॒ धिय॑: । अथा॒ हि वां॑ दि॒वो न॑रा॒ पुन॒ स्तोमो॒ न वि॒शसे॑ ॥३॥\n\nचि॒ते तद्वां॑ सुराधसा रा॒तिः सु॑म॒तिर॑श्विना । आ यन्न॒: सद॑ने पृ॒थौ सम॑ने॒ पर्ष॑थो नरा ॥४॥\n\nयु॒वं भु॒ज्युं स॑मु॒द्र आ रज॑सः पा॒र ई॑ङ्खि॒तम् । या॒तमच्छा॑ पत॒त्रिभि॒र्नास॑त्या सा॒तये॑ कृतम् ॥५॥\n\nआ वां॑ सु॒म्नैः शं॒यू इ॑व॒ मंहि॑ष्ठा॒ विश्व॑वेदसा । सम॒स्मे भू॑षतं न॒रोत्सं॒ न पि॒प्युषी॒रिष॑: ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 144,
"text": "६ तार्क्ष्र्यः सुपर्णः, यामायन ऊर्ध्वकृशनो वा। इन्द्रः। गायत्री, २ बृहती, ५ सतोबृहती, ६ विष्टारपंक्तिः।\n\nअ॒यं हि ते॒ अम॑र्त्य॒ इन्दु॒रत्यो॒ न पत्य॑ते । दक्षो॑ वि॒श्वायु॑र्वे॒धसे॑ ॥१॥\n\nअ॒यम॒स्मासु॒ काव्य॑ ऋ॒भुर्वज्रो॒ दास्व॑ते । अ॒यं बि॑भर्त्यू॒र्ध्वकृ॑शनं॒ मद॑मृ॒भुर्न कृत्व्यं॒ मद॑म् ॥२॥\n\nघृषु॑: श्ये॒नाय॒ कृत्व॑न आ॒सु स्वासु॒ वंस॑गः । अव॑ दीधेदही॒शुव॑: ॥३॥\n\nयं सु॑प॒र्णः प॑रा॒वत॑: श्ये॒नस्य॑ पु॒त्र आभ॑रत् । श॒तच॑क्रं॒ यो॒३ऽह्यो॑ वर्त॒निः ॥४॥\n\nयं ते॑ श्ये॒नश्चारु॑मवृ॒कं प॒दाभ॑रदरु॒णं मा॒नमन्ध॑सः ।\n\nए॒ना वयो॒ वि ता॒र्यायु॑र्जी॒वस॑ ए॒ना जा॑गार ब॒न्धुता॑ ॥५॥\n\nए॒वा तदिन्द्र॒ इन्दु॑ना दे॒वेषु॑ चिद्धारयाते॒ महि॒ त्यज॑: ।\n\nक्रत्वा॒ वयो॒ वि ता॒र्यायु॑: सुक्रतो॒ क्रत्वा॒यम॒स्मदा सु॒तः ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 145,
"text": "६ इन्द्राणी।सपत्नीबाधनम् (उपनिषत्) । अनुष्टुप् , ६ पंक्तिः।\n\nइ॒मां ख॑ना॒म्योष॑धिं वी॒रुधं॒ बल॑वत्तमाम् । यया॑ स॒पत्नीं॒ बाध॑ते॒ यया॑ संवि॒न्दते॒ पति॑म् ॥१॥\n\nउत्ता॑नपर्णे॒ सुभ॑गे॒ देव॑जूते॒ सह॑स्वति । स॒पत्नीं॑ मे॒ परा॑ धम॒ पतिं॑ मे॒ केव॑लं कुरु ॥२॥\n\nउत्त॑रा॒हमु॑त्तर॒ उत्त॒रेदुत्त॑राभ्यः । अथा॑ स॒पत्नी॒ या ममाऽध॑रा॒ साध॑राभ्यः ॥३॥\n\nन॒ह्य॑स्या॒ नाम॑ गृ॒भ्णामि॒ नो अ॒स्मिन्र॑मते॒ जने॑ । परा॑मे॒व प॑रा॒वतं॑ स॒पत्नीं॑ गमयामसि ॥४॥\n\nअ॒हम॑स्मि॒ सह॑मा॒नाऽथ॒ त्वम॑सि सास॒हिः । उ॒भे सह॑स्वती भू॒त्वी स॒पत्नीं॑ मे सहावहै ॥५॥\n\nउप॑ तेऽधां॒ सह॑मानाम॒भि त्वा॑धां॒ सही॑यसा ।\n\nमामनु॒ प्र ते॒ मनो॑ व॒त्सं गौरि॑व धावतु प॒था वारि॑व धावतु ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 146,
"text": "६ ऐरम्मदो देवमुनि:। अरण्यानी।अनुष्टुप्।\n\nअर॑ण्या॒न्यर॑ण्यान्य॒सौ या प्रेव॒ नश्य॑सि । क॒था ग्रामं॒ न पृ॑च्छसि॒ न त्वा॒ भीरि॑व विन्दती३ ॥१॥\n\nवृ॒षा॒र॒वाय॒ वद॑ते॒ यदु॒पाव॑ति चिच्चि॒कः । आ॒घा॒टिभि॑रिव धा॒वय॑न्नरण्या॒निर्म॑हीयते ॥२॥\n\nउ॒त गाव॑ इवादन्त्यु॒त वेश्मे॑व दृश्यते । उ॒तो अ॑रण्या॒निः सा॒यं श॑क॒टीरि॑व सर्जति ॥३॥\n\nगाम॒ङ्गैष आ ह्व॑यति॒ दार्व॒ङ्गैषो अपा॑वधीत् । वस॑न्नरण्या॒न्यां सा॒यमक्रु॑क्ष॒दिति॑ मन्यते ॥४॥\n\nन वा अ॑रण्या॒निर्ह॑न्त्य॒न्यश्चेन्नाभि॒गच्छ॑ति । स्वा॒दोः फल॑स्य ज॒ग्ध्वाय॑ यथा॒कामं॒ नि प॑द्यते ॥५॥\n\nआञ्ज॑नगन्धिं सुर॒भिं ब॑ह्व॒न्नामकृ॑षीवलाम् । प्राहं मृ॒गाणां॑ मा॒तर॑मरण्या॒निम॑शंसिषम् ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 147,
"text": "५ सुवेदाः शैरीषिः। इन्द्रः। जगती, ५ त्रिष्टुप्।\n\nश्रत्ते॑ दधामि प्रथ॒माय॑ म॒न्यवेऽह॒न्यद्वृ॒त्रं नर्यं॑ वि॒वेर॒पः ।\n\nउ॒भे यत्त्वा॒ भव॑तो॒ रोद॑सी॒ अनु॒ रेज॑ते॒ शुष्मा॑त्पृथि॒वी चि॑दद्रिवः ॥१॥\n\nत्वं मा॒याभि॑रनवद्य मा॒यिनं॑ श्रवस्य॒ता मन॑सा वृ॒त्रम॑र्दयः ।\n\nत्वामिन्नरो॑ वृणते॒ गवि॑ष्टिषु॒ त्वां विश्वा॑सु॒ हव्या॒स्विष्टि॑षु ॥२॥\n\nऐषु॑ चाकन्धि पुरुहूत सू॒रिषु॑ वृ॒धासो॒ ये म॑घवन्नान॒शुर्म॒घम् ।\n\nअर्च॑न्ति तो॒के तन॑ये॒ परि॑ष्टिषु मे॒धसा॑ता वा॒जिन॒मह्र॑ये॒ धने॑ ॥३॥\n\nस इन्नु रा॒यः सुभृ॑तस्य चाकन॒न्मदं॒ यो अ॑स्य॒ रंह्यं॒ चिके॑तति ।\n\nत्वावृ॑धो मघवन्दा॒श्व॑ध्वरो म॒क्षू स वाजं॑ भरते॒ धना॒ नृभि॑: ॥४॥\n\nत्वं शर्धा॑य महि॒ना गृ॑णा॒न उ॒रु कृ॑धि मघवञ्छ॒ग्धि रा॒यः ।\n\nत्वं नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो॒ न मा॒यी पि॒त्वो न द॑स्म दयसे विभ॒क्ता ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 148,
"text": "५ पृथुर्वैन्यः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nसु॒ष्वा॒णास॑ इन्द्र स्तु॒मसि॑ त्वा सस॒वांस॑श्च तुविनृम्ण॒ वाज॑म् ।\n\nआ नो॑ भर सुवि॒तं यस्य॑ चा॒कन्त्मना॒ तना॑ सनुयाम॒ त्वोता॑: ॥१॥\n\nऋ॒ष्वस्त्वमि॑न्द्र शूर जा॒तो दासी॒र्विश॒: सूर्ये॑ण सह्याः ।\n\nगुहा॑ हि॒तं गुह्यं॑ गू॒ळ्हम॒प्सु बि॑भृ॒मसि॑ प्र॒स्रव॑णे॒ न सोम॑म् ॥२॥\n\nअ॒र्यो वा॒ गिरो॑ अ॒भ्य॑र्च वि॒द्वानृषी॑णां॒ विप्र॑: सुम॒तिं च॑का॒नः ।\n\nते स्या॑म॒ ये र॒णय॑न्त॒ सोमै॑रे॒नोत तुभ्यं॑ रथोळ्ह भ॒क्षैः ॥३॥\n\nइ॒मा ब्रह्मे॑न्द्र॒ तुभ्यं॑ शंसि॒ दा नृभ्यो॑ नृ॒णां शू॑र॒ शव॑: ।\n\nतेभि॑र्भव॒ सक्र॑तु॒र्येषु॑ चा॒कन्नु॒त त्रा॑यस्व गृण॒त उ॒त स्तीन् ॥४॥\n\nश्रु॒धी हव॑मिन्द्र शूर॒ पृथ्या॑ उ॒त स्त॑वसे वे॒न्यस्या॒र्कैः ।\n\nआ यस्ते॒ योनिं॑ घृ॒तव॑न्त॒मस्वा॑रू॒र्मिर्न निम्नैर्द्र॑वयन्त॒ वक्वा॑: ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 149,
"text": "५ अर्चन् हैरण्यस्तूपः। सविता। त्रिष्टुप्।\n\nस॒वि॒ता य॒न्त्रैः पृ॑थि॒वीम॑रम्णादस्कम्भ॒ने स॑वि॒ता द्याम॑दृंहत् ।\n\nअश्व॑मिवाधुक्ष॒द्धुनि॑म॒न्तरि॑क्षम॒तूर्ते॑ ब॒द्धं स॑वि॒ता स॑मु॒द्रम् ॥१॥\n\nयत्रा॑ समु॒द्रः स्क॑भि॒तो व्यौन॒दपां॑ नपात्सवि॒ता तस्य॑ वेद ।\n\nअतो॒ भूरत॑ आ॒ उत्थि॑तं॒ रजोऽतो॒ द्यावा॑पृथि॒वी अ॑प्रथेताम् ॥२॥\n\nप॒श्चेदम॒न्यद॑भव॒द्यज॑त्र॒मम॑र्त्यस्य॒ भुव॑नस्य भू॒ना ।\n\nसु॒प॒र्णो अ॒ङ्ग स॑वि॒तुर्ग॒रुत्मा॒न्पूर्वो॑ जा॒तः स उ॑ अ॒स्यानु॒ धर्म॑ ॥३॥\n\nगाव॑ इव॒ ग्रामं॒ यूयु॑धिरि॒वाश्वा॑न्वा॒श्रेव॑ व॒त्सं सु॒मना॒ दुहा॑ना ।\n\nपति॑रिव जा॒याम॒भि नो॒ न्ये॑तु ध॒र्ता दि॒वः स॑वि॒ता वि॒श्ववा॑रः ॥४॥\n\nहिर॑ण्यस्तूपः सवित॒र्यथा॑ त्वाऽऽङ्गिर॒सो जु॒ह्वे वाजे॑ अ॒स्मिन् ।\n\nए॒वा त्वार्च॒न्नव॑से॒ वन्द॑मान॒: सोम॑स्येवां॒शुं प्रति॑ जागरा॒हम् ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 150,
"text": "५ मृळीको वासिष्ठः। अग्निः। बृहती, ४-५ उपरिष्टाज्ज्योतिः, ४ जगती वा।\n\nसमि॑द्धश्चि॒त्समि॑ध्यसे दे॒वेभ्यो॑ हव्यवाहन । आ॒दि॒त्यै रु॒द्रैर्वसु॑भिर्न॒ आ ग॑हि मृळी॒काय॑ न॒ आ ग॑हि ॥१॥\n\nइ॒मं य॒ज्ञमि॒दं वचो॑ जुजुषा॒ण उ॒पाग॑हि । मर्ता॑सस्त्वा समिधान हवामहे मृळी॒काय॑ हवामहे ॥२॥\n\nत्वामु॑ जा॒तवे॑दसं वि॒श्ववा॑रं गृणे धि॒या । अग्ने॑ दे॒वाँ आ व॑ह नः प्रि॒यव्र॑तान्मृळी॒काय॑ प्रि॒यव्र॑तान् ॥३॥\n\nअ॒ग्निर्दे॒वो दे॒वाना॑मभवत्पु॒रोहि॑तो॒ऽग्निं म॑नु॒ष्या॒३ ऋष॑य॒: समी॑धिरे ।\n\nअ॒ग्निं म॒हो धन॑साताव॒हं हु॑वे मृळी॒कं धन॑सातये ॥४॥\n\nअ॒ग्निरत्रिं॑ भ॒रद्वा॑जं॒ गवि॑ष्ठिरं॒ प्राव॑न्न॒: कण्वं॑ त्र॒सद॑स्युमाह॒वे ।\n\nअ॒ग्निं वसि॑ष्ठो हवते पु॒रोहि॑तो मृळी॒काय॑ पु॒रोहि॑तः ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 151,
"text": "श्रद्धा सूक्त\n\n५ श्रद्धा कामायनी।श्रधा । अनुष्टुप्।\n\nश्र॒द्धया॒ग्निः समि॑ध्यते श्र॒द्धया॑ हूयते ह॒विः । श्र॒द्धां भग॑स्य मू॒र्धनि॒ वच॒सा वे॑दयामसि ॥१\n\nप्रि॒यं श्र॑द्धे॒ दद॑तः प्रि॒यं श्र॑द्धे॒ दिदा॑सतः । प्रि॒यं भो॒जेषु॒ यज्व॑स्वि॒दं म॑ उदि॒तं कृ॑धि ॥२\n\nयथा॑ दे॒वा असु॑रेषु श्र॒द्धामु॒ग्रेषु॑ चक्रि॒रे । ए॒वं भो॒जेषु॒ यज्व॑स्व॒स्माक॑मुदि॒तं कृ॑धि ॥३\n\nश्र॒द्धां दे॒वा यज॑माना वा॒युगो॑पा॒ उपा॑सते । श्र॒द्धां हृ॑द॒य्य१याकू॑त्या श्र॒द्धया॑ विन्दते॒ वसु॑ ॥४\n\nश्र॒द्धां प्रा॒तर्ह॑वामहे श्र॒द्धां म॒ध्यंदि॑नं॒ परि॑ । श्र॒द्धां सूर्य॑स्य नि॒म्रुचि॒ श्रद्धे॒ श्रद्धा॑पये॒ह न॑: ॥५"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 152,
"text": "५ शासो भारद्वाजः। इन्द्रः। अनुष्टुप्।\n\nशा॒स इ॒त्था म॒हाँ अ॑स्यमित्रखा॒दो अद्भु॑तः । न यस्य॑ ह॒न्यते॒ सखा॒ न जीय॑ते॒ कदा॑ च॒न ॥१\n\nस्व॒स्ति॒दा वि॒शस्पति॑र्वृत्र॒हा वि॑मृ॒धो व॒शी । वृषेन्द्र॑: पु॒र ए॑तु नः सोम॒पा अ॑भयंक॒रः ॥२\n\nवि रक्षो॒ वि मृधो॑ जहि॒ वि वृ॒त्रस्य॒ हनू॑ रुज । वि म॒न्युमि॑न्द्र वृत्रहन्न॒मित्र॑स्याभि॒दास॑तः ॥३\n\nवि न॑ इन्द्र॒ मृधो॑ जहि नी॒चा य॑च्छ पृतन्य॒तः । यो अ॒स्माँ अ॑भि॒दास॒त्यध॑रं गमया॒ तम॑: ॥४\n\nअपे॑न्द्र द्विष॒तो मनोऽप॒ जिज्या॑सतो व॒धम् । वि म॒न्योः शर्म॑ यच्छ॒ वरी॑यो यवया व॒धम् ॥५"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 153,
"text": "५ देवजामय इन्द्रमातरः। इन्द्रः। गायत्री।\n\nई॒ङ्खय॑न्तीरप॒स्युव॒ इन्द्रं॑ जा॒तमुपा॑सते । भे॒जा॒नास॑: सु॒वीर्य॑म् ॥१॥\n\nत्वमि॑न्द्र॒ बला॒दधि॒ सह॑सो जा॒त ओज॑सः । त्वं वृ॑ष॒न्वृषेद॑सि ॥२॥\n\nत्वमि॑न्द्रासि वृत्र॒हा व्य१न्तरि॑क्षमतिरः । उद्द्याम॑स्तभ्ना॒ ओज॑सा ॥३॥\n\nत्वमि॑न्द्र स॒जोष॑सम॒र्कं बि॑भर्षि बा॒ह्वोः । वज्रं॒ शिशा॑न॒ ओज॑सा ॥४॥\n\nत्वमि॑न्द्राभि॒भूर॑सि॒ विश्वा॑ जा॒तान्योज॑सा । स विश्वा॒ भुव॒ आभ॑वः ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 154,
"text": "५ यमी वैवस्वती। भाववृत्तम्। अनुष्टुप्।\n\nसोम॒ एके॑भ्यः पवते घृ॒तमेक॒ उपा॑सते । येभ्यो॒ मधु॑ प्र॒धाव॑ति॒ ताँश्चि॑दे॒वापि॑ गच्छतात् ॥१॥\n\nतप॑सा॒ ये अ॑नाधृ॒ष्यास्तप॑सा॒ ये स्व॑र्य॒युः । तपो॒ ये च॑क्रि॒रे मह॒स्ताँश्चि॑दे॒वापि॑ गच्छतात् ॥२॥\n\nये युध्य॑न्ते प्र॒धने॑षु॒ शूरा॑सो॒ ये त॑नू॒त्यज॑: । ये वा॑ स॒हस्र॑दक्षिणा॒स्ताँश्चि॑दे॒वापि॑ गच्छतात् ॥३॥\n\nये चि॒त्पूर्व॑ ऋत॒साप॑ ऋ॒तावा॑न ऋता॒वृध॑: । पि॒तॄन्तप॑स्वतो यम॒ ताँश्चि॑दे॒वापि॑ गच्छतात् ॥४॥\n\nस॒हस्र॑णीथाः क॒वयो॒ ये गो॑पा॒यन्ति॒ सूर्य॑म् । ऋषी॒न्तप॑स्वतो यम तपो॒जाँ अपि॑ गच्छतात् ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 155,
"text": "५ शिरिम्बिठो भारद्वाजः। अलक्ष्मीघ्नम् , २-३ ब्रह्मणस्पतिः, ५ विश्वेदेवाः। अनुष्टुप्।\n\nअरा॑यि॒ काणे॒ विक॑टे गि॒रिं ग॑च्छ सदान्वे । शि॒रिम्बि॑ठस्य॒ सत्व॑भि॒स्तेभि॑ष्ट्वा चातयामसि ॥१॥\n\nच॒त्तो इ॒तश्च॒त्तामुत॒: सर्वा॑ भ्रू॒णान्या॒रुषी॑ । अ॒रा॒य्यं॑ ब्रह्मणस्पते॒ तीक्ष्ण॑शृण्गोदृ॒षन्नि॑हि ॥२॥\n\nअ॒दो यद्दारु॒ प्लव॑ते॒ सिन्धो॑: पा॒रे अ॑पूरु॒षम् । तदा र॑भस्व दुर्हणो॒ तेन॑ गच्छ परस्त॒रम् ॥३॥\n\nयद्ध॒ प्राची॒रज॑ग॒न्तोरो॑ मण्डूरधाणिकीः । ह॒ता इन्द्र॑स्य॒ शत्र॑व॒: सर्वे॑ बुद्बु॒दया॑शवः ॥४॥\n\nपरी॒मे गाम॑नेषत॒ पर्य॒ग्निम॑हृषत । दे॒वेष्व॑क्रत॒ श्रव॒: क इ॒माँ आ द॑धर्षति ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 156,
"text": "५ केतुराग्नेयः। अग्निः। गायत्री।\n\nअ॒ग्निं हि॑न्वन्तु नो॒ धिय॒: सप्ति॑मा॒शुमि॑वा॒जिषु॑ । तेन॑ जेष्म॒ धनं॑धनम् ॥१॥\n\nयया॒ गा आ॒करा॑महे॒ सेन॑याग्ने॒ तवो॒त्या । तां नो॑ हिन्व म॒घत्त॑ये ॥२॥\n\nआग्ने॑ स्थू॒रं र॒यिं भ॑र पृ॒थुं गोम॑न्तम॒श्विन॑म् । अ॒ङ्धि खं व॒र्तया॑ प॒णिम् ॥३॥\n\nअग्ने॒ नक्ष॑त्रम॒जर॒मा सूर्यं॑ रोहयो दि॒वि । दध॒ज्ज्योति॒र्जने॑भ्यः ॥४॥\n\nअग्ने॑ के॒तुर्वि॒शाम॑सि॒ प्रेष्ठ॒: श्रेष्ठ॑ उपस्थ॒सत् । बोधा॑ स्तो॒त्रे वयो॒ दध॑त् ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 157,
"text": "५ भुवन आप्त्यः, साधनो वा भौवनः।विश्वेदेवाः। द्विपदा त्रिष्टुप्।\n\nइ॒मा नु कं॒ भुव॑ना सीषधा॒मेन्द्र॑श्च॒ विश्वे॑ च दे॒वाः ॥१\n\nय॒ज्ञं च॑ नस्त॒न्वं॑ च प्र॒जां चा॑ऽऽदि॒त्यैरिन्द्र॑: स॒ह ची॑कॢपाति ॥१॥ २\n\nआ॒दि॒त्यैरिन्द्र॒: सग॑णो म॒रुद्भि॑र॒स्माकं॑ भूत्ववि॒ता त॒नूना॑म् ॥३\n\nह॒त्वाय॑ दे॒वा असु॑रा॒न्यदाय॑न्दे॒वा दे॑व॒त्वम॑भि॒रक्ष॑माणाः ॥२॥ ४\n\nप्र॒त्यञ्च॑म॒र्कम॑नय॒ञ्छची॑भि॒रादित्स्व॒धामि॑षि॒रां पर्य॑पश्यन् ॥३॥ ५"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 158,
"text": "५ चक्षुः सौर्यः। सूर्यः। गायत्री, २ स्वराट्।\n\nसूर्यो॑ नो दि॒वस्पा॑तु॒ वातो॑ अ॒न्तरि॑क्षात् । अ॒ग्निर्न॒: पार्थि॑वेभ्यः ॥१॥\n\nजोषा॑ सवित॒र्यस्य॑ ते॒ हर॑: श॒तं स॒वाँ अर्ह॑ति । पा॒हि नो॑ दि॒द्युत॒: पत॑न्त्याः ॥२॥\n\nचक्षु॑र्नो दे॒वः स॑वि॒ता चक्षु॑र्न उ॒त पर्व॑तः । चक्षु॑र्धा॒ता द॑धातु नः ॥३॥\n\nचक्षु॑र्नो धेहि॒ चक्षु॑षे॒ चक्षु॑र्वि॒ख्यै त॒नूभ्य॑: । सं चे॒दं वि च॑ पश्येम ॥४॥\n\nसु॒सं॒दृशं॑ त्वा व॒यं प्रति॑ पश्येम सूर्य । वि प॑श्येम नृ॒चक्ष॑सः ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 159,
"text": "६ पौलोमी शची। शची (आत्मानं तुष्टाव)। अनुष्टुप्।\n\nउद॒सौ सूर्यो॑ अगा॒दुद॒यं मा॑म॒को भग॑: । अ॒हं तद्वि॑द्व॒ला पति॑म॒भ्य॑साक्षि विषास॒हिः ॥१॥\n\nअ॒हं के॒तुर॒हं मू॒र्धाऽहमु॒ग्रा वि॒वाच॑नी । ममेदनु॒ क्रतुं॒ पति॑: सेहा॒नाया॑ उ॒पाच॑रेत् ॥२॥\n\nमम॑ पु॒त्राः श॑त्रु॒हणोऽथो॑ मे दुहि॒ता वि॒राट् । उ॒ताहम॑स्मि संज॒या पत्यौ॑ मे॒ श्लोक॑ उत्त॒मः ॥३॥\n\nयेनेन्द्रो॑ ह॒विषा॑ कृ॒त्व्यभ॑वद्द्यु॒म्न्यु॑त्त॒मः । इ॒दं तद॑क्रि देवा असप॒त्ना किला॑भुवम् ॥४॥\n\nअ॒स॒प॒त्ना स॑पत्न॒घ्नी जय॑न्त्यभि॒भूव॑री । आवृ॑क्षम॒न्यासां॒ वर्चो॒ राधो॒ अस्थे॑यसामिव ॥५॥\n\nसम॑जैषमि॒मा अ॒हं स॒पत्नी॑रभि॒भूव॑री । यथा॒हम॒स्य वी॒रस्य॑ वि॒राजा॑नि॒ जन॑स्य च ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 160,
"text": "५ पूरणो वैश्वामित्रः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।\n\nती॒व्रस्या॒भिव॑यसो अ॒स्य पा॑हि सर्वर॒था वि हरी॑ इ॒ह मु॑ञ्च ।\n\n इन्द्र॒ मा त्वा॒ यज॑मानासो अ॒न्ये नि री॑रम॒न्तुभ्य॑मि॒मे सु॒तास॑: ॥१॥\n\nतुभ्यं॑ सु॒तास्तुभ्य॑मु॒ सोत्वा॑स॒स्त्वां गिर॒: श्वात्र्या॒ आ ह्व॑यन्ति ।\n\n इन्द्रे॒दम॒द्य सव॑नं जुषा॒णो विश्व॑स्य वि॒द्वाँ इ॒ह पा॑हि॒ सोम॑म् ॥२॥\n\nय उ॑श॒ता मन॑सा॒ सोम॑मस्मै सर्वहृ॒दा दे॒वका॑मः सु॒नोति॑ ।\n\nन गा इन्द्र॒स्तस्य॒ परा॑ ददाति प्रश॒स्तमिच्चारु॑मस्मै कृणोति ॥३॥\n\nअनु॑स्पष्टो भवत्ये॒षो अ॑स्य॒ यो अ॑स्मै रे॒वान्न सु॒नोति॒ सोम॑म् ।\n\nनिर॑र॒त्नौ म॒घवा॒ तं द॑धाति ब्रह्म॒द्विषो॑ ह॒न्त्यना॑नुदिष्टः ॥४॥\n\nअ॒श्वा॒यन्तो॑ ग॒व्यन्तो॑ वा॒जय॑न्तो॒ हवा॑महे॒ त्वोप॑गन्त॒वा उ॑ ।\n\nआ॒भूष॑न्तस्ते सुम॒तौ नवा॑यां व॒यमि॑न्द्र त्वा शु॒नं हु॑वेम ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 161,
"text": "५ प्राजापत्यो यक्ष्मनाशनः।इन्द्राग्नी, राजयक्ष्मघ्नं वा। त्रिष्टुप् , ५ अनुष्टुप्।\n\nमु॒ञ्चामि॑ त्वा ह॒विषा॒ जीव॑नाय॒ कम॑ज्ञातय॒क्ष्मादु॒त रा॑जय॒क्ष्मात् ।\n\nग्राहि॑र्ज॒ग्राह॒ यदि॑ वै॒तदे॑नं॒ तस्या॑ इन्द्राग्नी॒ प्र मु॑मुक्तमेनम् ॥१॥\n\nयदि॑ क्षि॒तायु॒र्यदि॑ वा॒ परे॑तो॒ यदि॑ मृ॒त्योर॑न्ति॒कं नी॑त ए॒व ।\n\nतमा ह॑रामि॒ निॠ॑तेरु॒पस्था॒दस्पा॑र्षमेनं श॒तशा॑रदाय ॥२॥\n\nस॒ह॒स्रा॒क्षेण॑ श॒तशा॑रदेन श॒तायु॑षा ह॒विषाहा॑र्षमेनम् ।\n\nश॒तं यथे॒मं श॒रदो॒ नया॒तीन्द्रो॒ विश्व॑स्य दुरि॒तस्य॑ पा॒रम् ॥३॥\n\nश॒तं जी॑व श॒रदो॒ वर्ध॑मानः श॒तं हे॑म॒न्ताञ्छ॒तमु॑ वस॒न्तान् ।\n\nश॒तमि॑न्द्रा॒ग्नी स॑वि॒ता बृह॒स्पति॑: श॒तायु॑षा ह॒विषे॒मं पुन॑र्दुः ॥४॥\n\nआहा॑र्षं॒ त्वावि॑दं त्वा॒ पुन॒रागा॑: पुनर्नव । सर्वा॑ङ्ग॒ सर्वं॑ ते॒ चक्षु॒: सर्व॒मायु॑श्च तेऽविदम् ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 162,
"text": "६ ब्राह्मो रक्षोहा। रक्षोहा। अनुष्टुप्।\n\nब्रह्म॑णा॒ग्निः सं॑विदा॒नो र॑क्षो॒हा बा॑धतामि॒तः । अमी॑वा॒ यस्ते॒ गर्भं॑ दु॒र्णामा॒ योनि॑मा॒शये॑ ॥१॥\n\nयस्ते॒ गर्भ॒ममी॑वा दु॒र्णामा॒ योनि॑मा॒शये॑ । अ॒ग्निष्टं ब्रह्म॑णा स॒ह निष्क्र॒व्याद॑मनीनशत् ॥२॥\n\nयस्ते॒ हन्ति॑ प॒तय॑न्तं निष॒त्स्नुं यः स॑रीसृ॒पम् । जा॒तं यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥३॥\n\nयस्त॑ ऊ॒रू वि॒हर॑त्यन्त॒रा दम्प॑ती॒ शये॑ । योनिं॒ यो अ॒न्तरा॒रेळ्हि॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥४॥\n\nयस्त्वा॒ भ्राता॒ पति॑र्भू॒त्वा जा॒रो भू॒त्वा नि॒पद्य॑ते । प्र॒जां यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥५॥\n\nयस्त्वा॒ स्वप्ने॑न॒ तम॑सा मोहयि॒त्वा नि॒पद्य॑ते । प्र॒जां यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 163,
"text": "६ विवृहा काश्यपः। यक्ष्मनाशनम्। अनुष्टुप्।\n\nअ॒क्षीभ्यां॑ ते॒ नासि॑काभ्यां॒ कर्णा॑भ्यां॒ छुबु॑का॒दधि॑ । यक्ष्मं॑ शीर्ष॒ण्यं॑ म॒स्तिष्का॑ज्जि॒ह्वाया॒ वि वृ॑हामि ते ॥१॥\n\nग्री॒वाभ्य॑स्त उ॒ष्णिहा॑भ्य॒: कीक॑साभ्यो अनू॒क्या॑त् । यक्ष्मं॑ दोष॒ण्य१मंसा॑भ्यां बा॒हुभ्यां॒ वि वृ॑हामि ते ॥२॥\n\nआ॒न्त्रेभ्य॑स्ते॒ गुदा॑भ्यो वनि॒ष्ठोर्हृद॑या॒दधि॑ । यक्ष्मं॒ मत॑स्नाभ्यां य॒क्नः प्ला॒शिभ्यो॒ वि वृ॑हामि ते ॥३॥\n\nऊ॒रुभ्यां॑ ते अष्ठी॒वद्भ्यां॒ पार्ष्णि॑भ्यां॒ प्रप॑दाभ्याम् । यक्ष्मं॒ श्रोणि॑भ्यां॒ भास॑दा॒द्भंस॑सो॒ वि वृ॑हामि ते ॥४॥\n\nमेह॑नाद्वनं॒कर॑णा॒ल्लोम॑भ्यस्ते न॒खेभ्य॑: । यक्ष्मं॒ सर्व॑स्मादा॒त्मन॒स्तमि॒दं वि वृ॑हामि ते ॥५॥\n\nअङ्गा॑दङ्गा॒ल्लोम्नो॑लोम्नो जा॒तं पर्व॑णिपर्वणि । यक्ष्मं॒ सर्व॑स्मादा॒त्मन॒स्तमि॒दं वि वृ॑हामि ते ॥६॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 164,
"text": "५ प्रचेता आंगिरसः। दु:स्वप्ननाशनम्। अनुष्टुप् , ३ त्रिष्टुप्, ५ पंक्तिः।\n\nअपे॑हि मनसस्प॒तेऽप॑ क्राम प॒रश्च॑र । प॒रो निॠ॑त्या॒ आ च॑क्ष्व बहु॒धा जीव॑तो॒ मन॑: ॥१॥\n\nभ॒द्रं वै वरं॑ वृणते भ॒द्रं यु॑ञ्जन्ति॒ दक्षि॑णम् । भ॒द्रं वै॑वस्व॒ते चक्षु॑र्बहु॒त्रा जीव॑तो॒ मन॑: ॥२॥\n\nयदा॒शसा॑ नि॒:शसा॑भि॒शसो॑पारि॒म जाग्र॑तो॒ यत्स्व॒पन्त॑: ।\n\nअ॒ग्निर्विश्वा॒न्यप॑ दुष्कृ॒तान्यजु॑ष्टान्या॒रे अ॒स्मद्द॑धातु ॥३॥\n\nयदि॑न्द्र ब्रह्मणस्पतेऽभिद्रो॒हं चरा॑मसि । प्रचे॑ता न आङ्गिर॒सो द्वि॑ष॒तां पा॒त्वंह॑सः ॥४॥\n\nअजै॑ष्मा॒द्यास॑नाम॒ चाभू॒माना॑गसो व॒यम् ।\n\nजा॒ग्र॒त्स्व॒प्नः सं॑क॒ल्पः पा॒पो यं द्वि॒ष्मस्तं स ऋ॑च्छतु॒ यो नो॒ द्वेष्टि॒ तमृ॑च्छतु ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 165,
"text": "५ नैऋर्तः कपोतः।विश्वेदेवाः। त्रिष्टुप्।\n\nदेवा॑: क॒पोत॑ इषि॒तो यदि॒च्छन्दू॒तो निॠ॑त्या इ॒दमा॑ज॒गाम॑ ।\n\nतस्मा॑ अर्चाम कृ॒णवा॑म॒ निष्कृ॑तिं॒ शं नो॑ अस्तु द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे ॥१॥\n\nशि॒वः क॒पोत॑ इषि॒तो नो॑ अस्त्वना॒गा दे॑वाः शकु॒नो गृ॒हेषु॑ ।\n\nअ॒ग्निर्हि विप्रो॑ जु॒षतां॑ ह॒विर्न॒: परि॑ हे॒तिः प॒क्षिणी॑ नो वृणक्तु ॥२॥\n\nहे॒तिः प॒क्षिणी॒ न द॑भात्य॒स्माना॒ष्ट्र्यां प॒दं कृ॑णुते अग्नि॒धाने॑ ।\n\nशं नो॒ गोभ्य॑श्च॒ पुरु॑षेभ्यश्चास्तु॒ मा नो॑ हिंसीदि॒ह दे॑वाः क॒पोत॑: ॥३॥\n\nयदुलू॑को॒ वद॑ति मो॒घमे॒तद्यत्क॒पोत॑: प॒दम॒ग्नौ कृ॒णोति॑ ।\n\nयस्य॑ दू॒तः प्रहि॑त ए॒ष ए॒तत्तस्मै॑ य॒माय॒ नमो॑ अस्तु मृ॒त्यवे॑ ॥४॥\n\nऋ॒चा क॒पोतं॑ नुदत प्र॒णोद॒मिषं॒ मद॑न्त॒: परि॒ गां न॑यध्वम् ।\n\nसं॒यो॒पय॑न्तो दुरि॒तानि॒ विश्वा॑ हि॒त्वा न॒ ऊर्जं॒ प्र प॑ता॒त्पति॑ष्ठः ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,
"sukta": 166,
"text": "५ ऋषभो वैराजः, ऋषभः शाक्वरो वा। सपत्न्घ्नम्। अनुष्टुप् , ५ महापंक्तिः।\n\nऋ॒ष॒भं मा॑ समा॒नानां॑ स॒पत्ना॑नां विषास॒हिम् । ह॒न्तारं॒ शत्रू॑णां कृधि वि॒राजं॒ गोप॑तिं॒ गवा॑म् ॥१॥\n\nअ॒हम॑स्मि सपत्न॒हेन्द्र॑ इ॒वारि॑ष्टो॒ अक्ष॑तः । अ॒धः स॒पत्ना॑ मे प॒दोरि॒मे सर्वे॑ अ॒भिष्ठि॑ताः ॥२॥\n\nअत्रै॒व वोऽपि॑ नह्याम्यु॒भे आर्त्नी॑ इव॒ ज्यया॑ । वाच॑स्पते॒ नि षे॑धे॒मान्यथा॒ मदध॑रं॒ वदा॑न् ॥३॥\n\nअ॒भि॒भूर॒हमाग॑मं वि॒श्वक॑र्मेण॒ धाम्ना॑ । आ व॑श्चि॒त्तमा वो॑ व्र॒तमा वो॒ऽहं समि॑तिं ददे ॥४॥\n\nयो॒ग॒क्षे॒मं व॑ आ॒दाया॒ऽहं भू॑यासमुत्त॒म आ वो॑ मू॒र्धान॑मक्रमीम् ।\n\nअ॒ध॒स्प॒दान्म॒ उद्व॑दत म॒ण्डूका॑ इवोद॒कान्म॒ण्डूका॑ उद॒कादि॑व ॥५॥"
},
{
"veda": "rigveda",
"mandala": 10,