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संत कबीर जी के दोहे — 1101 to 1150

धन रहै न जोबन रहै, रहै न गांव न ठांव।
कबीर जग में जस रहै, करिदे किसी का काम।।११०१।।

अर्थ: धन और युवावस्था स्थायी नहीं होती, न ही गांव या स्थान स्थायी होते हैं। कबीर कहते हैं कि दुनिया में नाम और यश तब ही बना रहता है जब हम दूसरों की सेवा करते हैं।

Meaning: Wealth and youth do not last, nor do villages or places. Kabir says that reputation in the world remains only by serving others.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने जीवन की अस्थिरता को व्यक्त किया है। धन और युवावस्था स्थायी नहीं हैं, और न ही किसी गांव या स्थान की स्थिरता है। कबीर का कहना है कि सच्चा यश और सम्मान केवल दूसरों की सेवा करने से ही प्राप्त होता है। यही सच्चा मार्ग है जो जीवन में स्थायी प्रभाव छोड़ता है।


कबीर यह मन मसखरा, कहूं तो मानै रोस।
जा मारग साहिब मिलै, तहां न चालै कोस।।११०२।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि यह मन एक मसखरा है, जिसे अगर डांटा जाए तो नाराज हो जाता है। जिस मार्ग पर मालिक मिलते हैं, वहां यह दूरी नहीं मापता।

Meaning: Kabir says that this mind is a jester, and it becomes angry if scolded. On the path where the Master is found, it does not measure distance.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की स्वभाविकता को दर्शाया है। मन स्वभाव से ही अस्थिर और अज्ञानी होता है। यदि इसे डांटा जाए तो यह गुस्सा हो जाता है और सही मार्ग पर चलने में विफल रहता है। जब हमें सच्चे गुरु या मालिक मिलते हैं, तो मन उन पर ध्यान नहीं देता और सही मार्ग को नहीं पहचानता। इसका मतलब है कि मन की अस्थिरता और स्वभाविकता हमें सच्चे मार्ग पर चलने से रोकती है।


कुंभै बांधा जल रहै, जल बिन कुंभ न होय।
ज्ञानै बांध बन रहै, मन बिनु ज्ञान न होय।।११०३।।

अर्थ: पानी से भरा हुआ घड़ा उपयोगी होता है, लेकिन बिना पानी के वह बेकार है। ज्ञान मन द्वारा ही प्राप्त होता है, और बिना मन के ज्ञान नहीं होता।

Meaning: A pot holds water, and without water, the pot has no value. Knowledge is bound by the mind, and without the mind, knowledge does not exist.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने ज्ञान और मन के बीच के संबंध को स्पष्ट किया है। जैसे एक घड़ा पानी के बिना बेकार होता है, वैसे ही ज्ञान बिना मन के कुछ नहीं होता। मन ही वह माध्यम है जो ज्ञान को ग्रहण करता है और उसका उपयोग करता है। इसलिए, ज्ञान का वास्तविक मूल्य तब तक नहीं होता जब तक कि वह मन के साथ जुड़ा न हो।


मन चलतां तन भी चलै, ताते मन को घेर।
तन मन दोऊ बसि करै, होय राइ सुमेर।।११०४।।

अर्थ: जब मन अस्थिर होता है, तब शरीर भी अस्थिर हो जाता है। जब मन और शरीर दोनों पर नियंत्रण हो जाता है, तब व्यक्ति सुमेरु पर्वत की ऊचाइयों को प्राप्त कर सकता है।

Meaning: When the mind is restless, the body also becomes restless. When both the mind and body are under control, one can attain the heights of Mount Sumeru.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन और शरीर के आपसी संबंध को बताया है। अगर मन अशांत और अस्थिर होता है, तो इसका असर शरीर पर भी पड़ता है और शरीर भी अस्थिर हो जाता है। परंतु, जब मन और शरीर दोनों को नियंत्रण में रखा जाता है, तब व्यक्ति उच्चतम स्थिति, जैसे सुमेरु पर्वत, तक पहुँच सकता है। इसका तात्पर्य है कि मानसिक और शारीरिक संतुलन एक व्यक्ति को उच्च स्थिति और शांति प्राप्त करने में मदद करता है।


काया देवल मन धजा, विषय लहर फहराय।
मन चलते देवल चले, ताका सरबस जाय।।११०५।।

अर्थ: शरीर एक मंदिर है, और मन उसकी ध्वजा है। जब मन चलता है, तो मंदिर भी साथ चलता है; इस प्रकार, सब कुछ मन के अनुसार चलता है।

Meaning: The body is a temple, and the mind is its flag. When the mind moves, the temple moves along with it; thus, everything follows.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने शरीर और मन के रिश्ते को मंदिर और ध्वजा के माध्यम से समझाया है। जैसे एक मंदिर की ध्वजा उसकी स्थिति को दर्शाती है, वैसे ही मन शरीर की स्थिति और गतिविधियों को निर्धारित करता है। जब मन की दिशा बदलती है, तो शरीर भी उसी दिशा में चलता है। इस प्रकार, मन की अवस्था शरीर की अवस्था को प्रभावित करती है।


मेरे मन में परि गई, ऐसी एक दरार।
फाटाफटिक पषान ज्‍यूं, मिलै न दूजी बार।।११०६।।

अर्थ: मेरे मन में एक दरार आ गई है, जैसे एक पत्थर फट गया हो। एक बार यह दरार हो जाने के बाद, इसे फिर से नहीं पाया जा सकता।

Meaning: A crack has appeared in my mind, like a stone split. It cannot be found again once it has been broken.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन में आई दरार की तुलना एक टूटे हुए पत्थर से की है। यह दरार, जो कि एक बार हो जाने पर कभी ठीक नहीं हो सकती, मानसिक स्थिति में स्थायी बदलाव का संकेत है। इसका मतलब है कि एक बार मन में जो भी गहरी छाप या समस्या आ जाती है, वह स्थायी रूप से रहती है और उसे पहले जैसा ठीक नहीं किया जा सकता।


पहिले यह मन कागा था, करता जीवन घात।
अब तो मन हंसा भया, मोती चुनि-चुनि खात।।११०७।।

अर्थ: पहले यह मन एक कौआ था, जो जीवन को हानि पहुँचाता था। अब यह मन एक हंस बन गया है, जो मोती चुन-चुन कर खाता है।

Meaning: Earlier this mind was like a crow, causing harm to life. Now the mind has become like a swan, consuming pearls one by one.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की स्थिति में परिवर्तन को वर्णित किया है। पहले मन को 'कौआ' कहा गया है, जो नकारात्मक और नुकसानदायक स्वभाव का प्रतीक है। लेकिन समय के साथ, मन 'हंस' में बदल गया है, जो शुद्ध और सकारात्मक गुणों को दर्शाता है। मोती चुन-चुन कर खाना यह दर्शाता है कि अब मन उच्च और शुभ विचारों को ग्रहण करता है। यह बदलाव साधना और आत्म-उन्नति का प्रतीक है।


कबीर मन परबत भया, अब मैं पाया जान।
टांकी लागी प्रेम की, निकसी कंचन खान।।११०८।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि मन पर्वत जैसा हो गया है और मैंने इसे जान लिया है। प्रेम की टांकी से स्वर्ण का खजाना निकल आया है।

Meaning: Kabir says that the mind has become like a mountain, and I have realized this. The reservoir of love has yielded a treasure of gold.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन के बदलते स्वरूप का वर्णन किया है। पहले मन को एक पर्वत के समान बताया गया है, जो स्थिर और विशाल होता है। इसके साथ ही, प्रेम की टांकी से स्वर्ण का खजाना निकलने का मतलब है कि जब मन में प्रेम और भक्ति की गहराई होती है, तो अमूल्य ज्ञान और आत्मा की संपत्ति प्राप्त होती है। यह आत्मज्ञान और प्रेम की शक्ति को दर्शाता है।


काया कजरी बन अहै, मन कुंजर महमन्‍त।
अंकुस ज्ञान रतन है, फेरै साधु सन्‍त।।११०९।।

अर्थ: शरीर एक कजरी (अंधेरा बादल) के समान है और मन एक हाथी के समान है। ज्ञान का अंकुस साधुओं और संतों के पास होता है।

Meaning: The body is like a dark cloud, and the mind is like an elephant. The goad of knowledge is with the saints and sages.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने शरीर और मन की तुलना की है। शरीर को कजरी यानी अंधेरे बादल जैसा बताया गया है, जो अज्ञानी और अस्थिर होता है। मन को हाथी के समान कहा गया है, जो विशाल और शक्तिशाली है, लेकिन उसे नियंत्रित करने की आवश्यकता है। ज्ञान का अंकुस, जो कि एक प्रकार का शस्त्र होता है, साधुओं और संतों के पास होता है, जो इस ज्ञान को सही दिशा देने का काम करते हैं। यह दोहा ज्ञान की महत्वता और साधुओं की भूमिका को दर्शाता है।


बिना सीस का मिरग है, चहं दिस चरने जाय।
बांधि लाओ गुरुज्ञान सूं, राखो तत्‍व लगाय।।१११०।।

अर्थ: सीस के बिना मृग चारों दिशाओं में भटकता है। इसे गुरु के ज्ञान से बांधो और इसे लक्ष्य पर बनाए रखो।

Meaning: The deer without its antlers roams in all directions. Bind it with the knowledge of the Guru and keep it focused.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने एक मृग की स्थिति की तुलना एक व्यक्ति के मानसिक स्थिति से की है। बिना सीस (अलौकिक शक्ति) के मृग चारों दिशाओं में भटकता है, जैसे कि बिना मार्गदर्शन के व्यक्ति भटकता है। गुरु के ज्ञान से इसे बांधना और सही दिशा में बनाए रखना यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक मार्गदर्शन और सही ज्ञान प्राप्त करने से जीवन को सही दिशा मिलती है। यह गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है।


अपने अपने चोर को, सब कोय डारै मार।
मेरा चोर मुझको मिलै, सरबस डारुं वार।।११११।।

अर्थ: हर कोई दूसरों के अंदर चोर को सजा देता है, लेकिन मेरे अंदर का चोर खुद को सजा देता हूँ। इस आत्म-साक्षात्कार से मैं सभी को सजा देता हूँ।

Meaning: Everyone punishes the thief within others, but the thief within me I punish myself. I punish everyone with this realization.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने आत्म-निरीक्षण और आत्म-आलोचना की बात की है। लोग दूसरों के दोषों को उजागर करते हैं और उन्हें सजा देते हैं, लेकिन खुद के दोष को पहचानना और उसे सुधारना कठिन होता है। कबीर कहते हैं कि उनके खुद के दोष को पहचान कर सुधारना ही असली आत्मज्ञान है, और इसी से वे सबको सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। यह आत्म-जागरूकता और आत्म-सुधार का संदेश देता है।


कबीर मन तो एक है, भावै जहां लगाय।
भावै गुरु की भक्ति कर, भावे विषय कमाय।।१११२।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि मन एक ही होता है; वह उसी ओर झुकता है जहाँ उसका झुकाव होता है। यदि मन गुरु की भक्ति की ओर झुकता है, तो यह विषयों की ओर भी झुक जाएगा।

Meaning: Kabir says the mind is one; it follows where it is inclined. If it inclines towards devotion to the Guru, it will also incline towards worldly pursuits.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की प्रवृत्तियों को समझाया है। उन्होंने कहा है कि मन में एकता होती है और वह उस दिशा में बहता है जहाँ उसका झुकाव होता है। यदि मन गुरु की भक्ति की ओर झुका है, तो वह संसारिक विषयों की ओर भी झुक जाएगा। यह दर्शाता है कि मन की दिशा और प्रवृत्ति जीवन के कर्मों को प्रभावित करती है और इसे सही दिशा में मोड़ना आवश्यक है।


तन का बैरी कोइ नहीं, जो मन शीतल होय।
तूं आपा को डारि दे, दया करे सब कोय।।१११३।।

अर्थ: यदि मन शांत हो तो शरीर का कोई भी बैरी नहीं होता। जब आप अपने अहंकार को छोड़ देते हैं, तब सभी लोग दयालु हो जाते हैं।

Meaning: There is no enemy of the body if the mind is calm. When you abandon ego, everyone becomes compassionate.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की शांति और अहंकार के त्याग की महत्वता को बताया है। उन्होंने कहा है कि अगर मन शांत हो, तो शरीर में कोई भी शत्रु नहीं होता। अहंकार का त्याग करने से सभी लोग दयालु और सहानुभूति से भरे लगते हैं। यह दोहा बताता है कि अहंकार की उपस्थिति दूसरों से शत्रुता पैदा करती है, लेकिन जब अहंकार दूर हो जाता है, तो स्नेह और दया का वातावरण बनता है।


मना मनोरथ छांड़‍ि दे, तेरा किया न होय।
पानी में घी नीकसै, रूखा खाय न कोय।।१११४।।

अर्थ: मन के इच्छाओं को छोड़ दो; जो कुछ भी किया है, वह पूरा नहीं होगा। जैसे पानी में घी नहीं मिल सकता, वैसे ही सूखा आहार भी पूरा नहीं होता।

Meaning: Abandon the desires of the mind; what you have done will not be achieved. Just as ghee does not flow in water, so does not a dry diet fulfill.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने इच्छाओं और मन की प्रवृत्तियों को समझाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा है कि जब मन की इच्छाओं को छोड़ दिया जाता है, तब ही किसी काम में सफलता मिलती है। उदाहरण के तौर पर, पानी में घी नहीं मिल सकता और सूखा भोजन भी संतोषजनक नहीं होता। इसका मतलब है कि मन की इच्छाओं को नियंत्रित करने से ही वास्तविक संतोष और सफलता मिलती है।


चंचल मन निहचल करै, फिर‍ि फिरि नाम लगाय।
तन मन दोउ बसि करै, ताका कछु नहिं जाय।।१११५।।

अर्थ: जब चंचल मन स्थिर हो जाता है और बार-बार भगवान का नाम लेता है, तो तन और मन दोनों नियंत्रित हो जाते हैं, और कुछ भी नहीं खोता।

Meaning: When the restless mind becomes still and repeats the name of the Lord, both body and mind are controlled, and nothing is lost.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की स्थिरता और भगवान के नाम की महत्ता को बताया है। जब मन की चंचलता को समाप्त किया जाता है और नियमित रूप से भगवान का नाम लिया जाता है, तो शरीर और मन दोनों नियंत्रित होते हैं। इसका अर्थ है कि जब मन और शरीर पर नियंत्रण होता है, तब कुछ भी खोता नहीं है। यह ध्यान और साधना की प्रभावशीलता को दर्शाता है।


मेरा मन मकरन्‍द था, करता बहुत बिगार।
सूधा होय मारग चला, हरि आगे हम लार।।१११६।।

अर्थ: मेरा मन मकरंद के समान था, जो बहुत असंतुलन पैदा करता था। जब यह शुद्ध हुआ, तो मैंने मार्ग को पाया और भगवान के चरणों में शरण ली।

Meaning: My mind was like honey, causing much disturbance. When it became pure, I found the path, and I seek refuge at the feet of the Lord.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की स्थिति और उसकी शुद्धता के महत्व को बताया है। उन्होंने कहा है कि पहले उनका मन मकरंद (शहद) के जैसा था, जो भ्रम और अशांति पैदा करता था। लेकिन जब मन शुद्ध हुआ, तो उन्होंने सही मार्ग को पाया और भगवान के चरणों में शरण ली। यह शुद्धता और आत्म-ज्ञान के माध्यम से सही मार्ग प्राप्त करने का संकेत है।


कबीर मनहि गयंद है, आंकुस दे दे राखु।
विष की बेली परिहरो, अमृत का फल चाखु।।१११७।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि मन जंगली होता है; इसे अनुशासन से नियंत्रित करें। विषैले बेलों को छोड़ दें और अमरता के फल का स्वाद लें।

Meaning: Kabir says the mind is wild; keep it under control with discipline. Abandon the poisonous creeper and taste the fruit of immortality.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन के नियंत्रण की आवश्यकता को बताया है। उन्होंने कहा है कि मन स्वाभाविक रूप से अनियंत्रित होता है और इसे अनुशासन से नियंत्रित करना चाहिए। विष की बेल का मतलब है बुरे विचार और आदतें, जिन्हें त्यागकर अमरता प्राप्त करने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। यह शुद्धता और आत्म-नियंत्रण की ओर इशारा करता है।


कबीर यह मन लालची, समझै नहीं गंवार।
भजन करन को आलसी, खाने को तैयार।।१११८।।

अर्थ: कबीर ने मन को लालची और अज्ञानी बताया है। यह भजन करने में आलसी होता है लेकिन भोग-विलास के लिए हमेशा तैयार रहता है।

Meaning: Kabir describes the mind as greedy and ignorant. It is lazy in devotion but always ready for indulgence.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की लालच और उसकी प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला है। मन अक्सर भजन और ध्यान में आलसी होता है, लेकिन भोग और इच्छाओं के लिए हमेशा तैयार रहता है। यह उन आंतरिक संघर्षों को दर्शाता है जो व्यक्ति को भक्ति और भोग के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।


महमंता मन मारि ले, घट ही मांही घेर।
जल ही चालै पीठ दे, आंकूस दे दे फेर।।१११९।।

अर्थ: अहंकारी मन को मार डालो और शुद्धता से खुद को घेर लो। पानी को पीठ से बहने दो और अनुशासन से उसे नियंत्रित करो।

Meaning: Kill the egoistic mind and surround yourself with purity. Let the water flow from the back and control it with a discipline.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने अहंकार को नियंत्रित करने और शुद्धता को अपनाने की बात की है। उन्होंने बताया है कि अहंकारी मन को समाप्त करके और शुद्धता को अपने जीवन में समेटकर, आत्म-नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। पानी का बहाव पीठ से प्रतीक है, जिसे अनुशासन से नियंत्रित किया जाना चाहिए।


मन मनसा जब जायगी, तब आवैगी और।
जबही निहचल होगया, तब पावैगा ठौर।।११२०।।

अर्थ: जब मन को वश में किया जाएगा और स्थिर हो जाएगा, तब शांति आएगी। केवल तब ही जब यह स्थिर होगा, यह अपना स्थान पाएगा।

Meaning: When the mind is tamed and becomes stable, then peace will come. Only when it becomes steady, will it find its place.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की स्थिरता और शांति की प्राप्ति की बात की है। उन्होंने कहा है कि जब मन को शांत और स्थिर किया जाता है, तभी शांति प्राप्त होती है। मन की स्थिरता ही शांति और संतोष की ओर ले जाती है। यह ध्यान और आत्म-नियंत्रण की आवश्यकता को दर्शाता है।


अकथ कथा या मनहि की, कहैं कबीर समुझाय।
जो याको समझा परै, ताको काल न खाय।।११२१।।

अर्थ: अकथ कथा का वर्णन कबीर ने किया है। जो लोग इसे समझते हैं, वे काल से प्रभावित नहीं होते।

Meaning: The story of the unspoken is told by Kabir. Those who understand it are not consumed by time.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने 'अकथ कथा' (अकथनीय सत्य) की बात की है और कहा है कि जो इसे समझते हैं, वे समय के प्रभाव से मुक्त होते हैं। इसका मतलब है कि गहरे आत्मज्ञान और समझ से व्यक्ति काल और परिस्थितियों से परे हो जाता है। यह ज्ञान और आत्म-ज्ञान की अत्यधिक महत्वपूर्णता को दर्शाता है।


सुर नर मुनि सबको ठगै, मनहिं लिया औतार।
जो कोई याते बच, तीन लोक ते न्‍यार।।११२२।।

अर्थ: देवता, मनुष्य और ऋषि सभी धोखाधड़ी करते हैं, मन को अपना साधन मानते हैं। जो इस धोखे से बच जाते हैं, वे तीन लोकों से परे होते हैं।

Meaning: The gods, humans, and sages all deceive, taking the mind as their vehicle. Those who escape this deception are beyond the three worlds.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की धोखाधड़ी और इसके प्रभाव की बात की है। उन्होंने कहा है कि सभी देवता, मनुष्य, और ऋषि भी मन के माध्यम से धोखा देते हैं। केवल वही लोग इस धोखे से बच पाते हैं जो अपने मन को नियंत्रित कर लेते हैं और तीनों लोकों से परे हो जाते हैं। यह आत्म-ज्ञान और मन की समझ की महत्वपूर्णता को दर्शाता है।


धरती फाटै मेघ मिलै, कपड़ा फाटै डौर।
तन फाटै को औषधि, मन फाटै नहिं ठौर।।११२३।।

अर्थ: धरती बादलों से मिलकर फट जाती है, और कपड़ा खींचने से फट जाता है। शरीर की बीमारियों का इलाज हो सकता है, लेकिन मन की दरारों का कोई इलाज नहीं है।

Meaning: The earth cracks when rain meets clouds, and cloth tears when pulled. There is medicine for the body’s ailments, but there is no cure for the cracks in the mind.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की समस्याओं और शरीर की बीमारियों के बीच अंतर को बताया है। जबकि शरीर की समस्याओं के लिए उपचार संभव है, मन की दरारें और आंतरिक समस्याओं का कोई इलाज नहीं है। यह मन की शांति और मानसिक स्थिरता के महत्व को रेखांकित करता है।


यह मन नीचा मूल है, नीचा करम सुहाय।
अमृत छाडै मान करि, विषहि प्रीत करि खाय।।११२४।।

अर्थ: मन स्वाभाविक रूप से नीचा होता है, और नीच कार्य अच्छे लगते हैं। यह मान के लिए अमृत को छोड़ देता है और विष को प्यार के साथ अपनाता है।

Meaning: The mind is inherently low, and low actions seem pleasant. It abandons nectar for the sake of pride and embraces poison with affection.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की स्वाभाविक स्थिति और इसके व्यवहार की बात की है। उन्होंने बताया है कि मन अक्सर नीच कार्यों को पसंद करता है और गर्व के लिए अमृत को छोड़ देता है, जबकि विष को अपनाता है। यह मन की स्वाभाविक प्रवृत्तियों और उनके परिणामों को दर्शाता है।


मन को मारूं पटकि के, टूक टूक ह्वै जाय।
विष की क्‍यारी बोयके, लुनता क्‍यौं पछिताय।।११२५।।

अर्थ: भले ही मैं मन को मारकर टुकड़े-टुकड़े कर दूं, यह जिद्दी बना रहता है। विष बोने का पछतावा क्यों, जब यही मन कष्ट लाता है?

Meaning: Even if I strike the mind and break it into pieces, it remains stubborn. Why regret sowing poison when it is the mind that brings suffering?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की कठोरता और इसके सुधार की कठिनाई पर प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा है कि भले ही मन को कितनी भी सजा दी जाए, वह जिद्दी और कठिन होता है। विष के बोने का पछतावा इसलिए होता है क्योंकि मन ही कष्ट और पीड़ा का कारण होता है। यह मन के स्वभाव और आत्म-नियंत्रण की कठिनाई को दर्शाता है।


अपने उरझै उरझिया, दीखै सब संसार।
अपने सुरझै सुरझिया, यह गुरु ज्ञान विचार।।११२६।।

अर्थ: जो अपनी खुद की उलझनों में फंसा होता है, वह पूरे संसार को उलझा हुआ देखता है। जो अंदर से स्पष्ट होता है, वह गुरु के ज्ञान से सच्चे अर्थ को देखता है।

Meaning: The one who is entangled in their own confusion sees the entire world in confusion. The one who is clear within sees the true essence through the wisdom of the guru.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने आत्म-संयम और अंतर्दृष्टि के महत्व को बताया है। जो व्यक्ति अपनी खुद की उलझनों में फंसा रहता है, वह पूरी दुनिया को उलझन में देखता है। लेकिन जो व्यक्ति अंदर से स्पष्ट और स्पष्ट होता है, वह गुरु के ज्ञान के माध्यम से सच्चाई को देखता है। यह ध्यान और गुरु के ज्ञान की महत्वपूर्णता को दर्शाता है।


मन के बहुतक रंग हैं, छिन छिन बदले सोय।
एक रंग में जो रहे, ऐसा बिरला कोय।।११२७।।

अर्थ: मन के बहुत सारे रंग होते हैं, जो हर पल बदलते रहते हैं। ऐसा व्यक्ति जो एक ही रंग में स्थिर रहे, वह बहुत ही दुर्लभ है।

Meaning: The mind has many colors, changing every moment. Rare is the one who remains in a single color.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की अस्थिरता और लगातार बदलते स्वभाव को बताया है। उन्होंने कहा है कि मन के रंग हमेशा बदलते रहते हैं, और जो व्यक्ति इस बदलाव को स्थिरता में बदल देता है, वह बहुत ही विशेष होता है। यह स्थिरता और आत्म-नियंत्रण की कठिनाई को दर्शाता है।


मन के मते न चालिये, मन के मते अनेक।
जो मन पर असवार है, सो साधु कोय एक।।११२८।।

अर्थ: मन की इच्छाओं को न मानो, क्योंकि इसमें कई इच्छाएं होती हैं। जो व्यक्ति मन पर नियंत्रण रखता है, वही सच्चा साधु है।

Meaning: Do not follow the whims of the mind, which has many desires. The one who is disciplined over the mind is truly a sage.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की इच्छाओं और उनकी अनुशासनहीनता पर प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा है कि मन के अनुसार चलना सही नहीं है क्योंकि इसमें कई इच्छाएं होती हैं। जो व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण रखता है, वही सच्चा साधु या ज्ञानी होता है।


मन मोटा मन पातरा, मन पानी मन लाय।
मन के जैसी ऊपजै, तैसी ही ह्वै जाय।।११२९।।

अर्थ: मन मोटा है, मन पात्र है, मन पानी है और मन पात्र है। मन जैसी चीजें उत्पन्न करता है, वैसी ही बन जाती है।

Meaning: The mind is thick, the mind is a vessel, the mind is water and the mind is a vessel. Whatever the mind produces, that is how it becomes.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन के विभिन्न गुणों और इसकी उत्पत्ति पर चर्चा की है। उन्होंने कहा है कि मन के अनुसार जो कुछ भी उत्पन्न होता है, वही उसके स्वभाव को निर्धारित करता है। यह मन की अनंत संभावनाओं और उसकी विविधता को दर्शाता है।


कबीर मन मरकट भया, नेक न कहुं ठहराय।
राम नाम बांधै बिना, जित भावै तित जाय।।११३०।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि मन एक बंदर की तरह होता है, और यह अच्छाई में स्थिर नहीं होता। राम के नाम को पकड़ने के बिना, यह जहां चाहें जाती है।

Meaning: Kabir says the mind is like a monkey, and it does not settle down in goodness. Without holding onto the name of Ram, it goes wherever it desires.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की चंचलता और उसकी अस्थिरता को व्यक्त किया है। उन्होंने बताया है कि बिना राम के नाम की शरण में आए, मन अनियंत्रित रहता है और अपनी इच्छाओं के अनुसार भटकता रहता है। यह आत्म-नियंत्रण और आध्यात्मिक अभ्यास के महत्व को दर्शाता है।


कहत सुनत सब दिन गये, उरझि न सुरझा मन्‍न।
कहैं कबीर चेता नहीं, अजहूं पहला दिन्‍न।।११३१।।

अर्थ: सभी दिन कहने और सुनने में ही बीत जाते हैं, फिर भी मन उलझा रहता है और स्पष्ट नहीं होता। कबीर कहते हैं कि एक व्यक्ति अज्ञान में रहता है जैसे कि यह पहला दिन हो।

Meaning: All days pass in speaking and listening, yet the mind remains entangled and not clear. Kabir says one remains unaware as if it were the first day.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की अज्ञानता और उलझन को दर्शाया है। उन्होंने कहा है कि भले ही समय कैसे बीत जाए, अगर मन स्पष्टता प्राप्त नहीं करता तो व्यक्ति हमेशा अज्ञानी रहता है। यह आत्म-जागरूकता और मानसिक स्पष्टता की कमी को दर्शाता है।


मन की घाली हूं गई, मन की घाली जाउं।
संग जो परी कसंग के, हाटै हाट बिकाउं।।११३२।।

अर्थ: मन जैसे पुराना बर्तन है, और ऐसा ही रहेगा। जो लोग झूठी संगति में लगे रहते हैं, वे बाजार में बिक जाते हैं।

Meaning: The mind is like a worn-out vessel, and it will remain so. Those who are attached to false company, are sold off in the market.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की स्थिति और उसके नकारात्मक प्रभाव को बताया है। उन्होंने कहा है कि जो लोग झूठी और अस्थिर संगति में रहते हैं, वे खुद को बेचते हैं और अपनी स्थिति को और भी खराब कर लेते हैं।


मन के मते न चालिये, छांडि जीव की बानि।
कतवारी के सूत ज्‍यौं, उलटि अपूठा आनि।।११३३।।

अर्थ: मन की इच्छाओं का पालन न करें; जीव के वाक्यों को छोड़ दें। जैसे उलटे हुए धागे की तरह, यह सब बेकार है।

Meaning: Do not follow the whims of the mind; leave behind the sayings of the living. Like a twisted thread, it is all meaningless.

व्याख्या: कबीर ने इस दोहे में मन की इच्छाओं और उन पर ध्यान न देने की बात की है। उन्होंने कहा है कि जीव के वाक्यों को छोड़कर, जो मन की इच्छाओं की बात करते हैं, वे बेकार हैं। यह संदेश आत्म-नियंत्रण और सच्ची समझदारी की ओर इशारा करता है।


मन गोरख मन गोविंद, मन ही औघड़ सोय।
जो मन राखै जतन करि, आपै करता होय।।११३४।।

अर्थ: मन गोरख की तरह है, मन गोविंद की तरह है; यह वास्तव में एक आवारा तपस्वी है। जो व्यक्ति मन को अच्छे से संभालता है, वही स्वयं कार्य करता है।

Meaning: The mind is like Gorakh, the mind is like Govind; it is indeed a wandering ascetic. The one who diligently maintains the mind, becomes the doer himself.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की प्रकृति और उसकी देखभाल की आवश्यकता को व्यक्त किया है। उन्होंने बताया है कि जो व्यक्ति अपने मन को सही ढंग से नियंत्रित करता है, वही आत्मा को सही मार्ग पर ले जाता है और खुद को सच्चा कार्यकर्ता बनाता है।


यह मन हरि चरणे चला, माया-मोह से छूट।
बेहद माहीं घर किया, काल रहा शिर कूट।।११३५।।

अर्थ: यह मन हरि के चरणों की ओर मुड़ा है, माया और मोह से मुक्त हो गया है। यह अनंत में स्थिर हो गया है, जबकि काल अभी भी सिर पर बंधा है।

Meaning: This mind has turned towards the Lord's feet, freed from illusion and attachment. It has settled in the infinite, while time remains bound to the head.

व्याख्या: कबीर इस दोहे में मन की स्थिति और उसकी मुक्ति की बात कर रहे हैं। जब मन भगवान के चरणों की ओर मुड़ जाता है और माया से मुक्त हो जाता है, तब वह अनंत में स्थिर हो जाता है। हालांकि, भौतिक समय और जीवन के बंधनों का प्रभाव अभी भी बना रहता है।


जेती लहर समुद्र की, तेती मन की दौर।
सहजै हीरा नीपजे, जो मन आवै ठौर।।११३६।।

अर्थ: जितनी लहरें समुद्र में होती हैं, उतनी ही मन की हलचल होती है। सच्चा रत्न स्वाभाविक रूप से पाया जाता है, जहां मन को ठौर मिलती है।

Meaning: As many waves there are in the ocean, so are the movements of the mind. The true jewel is found naturally, where the mind finds a place.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की चंचलता और सच्ची खोज की बात की है। उन्होंने बताया है कि जैसे समुद्र में लहरें होती हैं, वैसे ही मन में हलचल होती है। सच्चा ज्ञान या रत्न स्वाभाविक रूप से प्राप्त होता है, जब मन उसे सही ठौर पर पाता है।


मन पंखी बिन पंख का, जहां तहा उड़‍ि जाय।
मन भावे ताको मिले, घट में आन समाय।।११३७।।

अर्थ: मन एक पंखहीन पंछी की तरह है, जो जहां चाहें उड़ जाता है। मन जिसे पसंद करता है, वही पाता है, और वही स्थान पर रहता है।

Meaning: The mind is like a bird without wings, flying wherever it wishes. The mind finds what it desires, and remains in the same place.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की प्रकृति और उसकी स्वतंत्रता का वर्णन किया है। उन्होंने कहा है कि मन जैसे पंखहीन पंछी की तरह है, जो अपनी इच्छा के अनुसार कहीं भी उड़ सकता है। मन जिस चीज को चाहتا है, वही उसे प्राप्त करता है और उसी में स्थिर रहता है।


कबीर बैरी सबल है, एक जीव रिपु पांच।
अपने-अपने स्‍वाद को, बहुत नचावै नाच।।११३८।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि शत्रु शक्तिशाली है, और एक जीव के पांच शत्रु होते हैं। हर एक अपने-अपने स्वाद के अनुसार नाचता है।

Meaning: Kabir says that the enemy is strong, and there are five enemies in one being. Each one dances to its own tune.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मनुष्य के भीतर के पांच शत्रुओं का वर्णन किया है, जैसे कि इच्छाएं, क्रोध, मोह, अहंकार, और लालच। ये शत्रु बहुत शक्तिशाली होते हैं और अपने-अपने तरीके से व्यक्ति को नियंत्रित करते हैं।


कबीर लहरि समुद्र की, केतो आवै जांहि।
बलिहारी वा दास की, उलटि समावै मांहि।।११३९।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहरें आती-जाती रहती हैं। मैं उस सेवक के प्रति समर्पित हूं जो इन्हें वापस समुद्र में मिलाता है।

Meaning: Kabir says that the waves of the ocean come and go. I am devoted to the servant who turns them back into the ocean.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने समुद्र की लहरों का उदाहरण देकर भ्रम और सत्य के बीच के अंतर को बताया है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति लहरों को समुद्र में वापस मिला देता है, वह वास्तव में समर्पित और ज्ञान प्राप्त होता है।


बात बनाई जग ठग्‍यो, मन परमोधा नांहि।
कहैं कबीर मन लै गया, लख चौरासां मांहि।।११४०।।

अर्थ: दुनिया द्वारा बनाई गई बातों से लोग ठग जाते हैं, लेकिन मन असंतुष्ट रहता है। कबीर कहते हैं कि मन कई झूठों के बीच भटक गया है।

Meaning: The world is deceived by crafted stories, but the mind remains unsatisfied. Kabir says that the mind has gone astray, amidst countless deceptions.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने बताया है कि दुनियावी बातों और कहानियों से लोग धोखा खा जाते हैं, और मन हमेशा असंतुष्ट रहता है। कबीर ने यह संकेत किया है कि मन अनेक झूठों और भ्रांतियों के बीच फंसा हुआ है।


कबीर यह गत अटपटी, चटपट लखी न जाय।
जो मन की खटपट मिटै, अधर भये ठहराय।।११४१।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि यह स्थिति अजीब है, और इसे तुरंत नहीं समझा जा सकता। जब मन की अशांति समाप्त हो जाती है, तब अर्थ स्पष्ट हो जाता है।

Meaning: Kabir says that this state is peculiar, and cannot be quickly understood. When the disturbance of the mind ceases, the meaning becomes clear.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की अशांति और उसके प्रभाव को व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि यह अवस्था समझने में समय लेती है, लेकिन जब मन की अशांति समाप्त हो जाती है, तब सच्चाई स्पष्ट हो जाती है।


मनुवा तू क्‍यों बावरा, तेरी सुध क्‍यों खोय।
मौत आय सिर पर खड़ी, ढलते बेर न होय।।११४२।।

अर्थ: हे मन, तू क्यों बावरा है? तेरी सुध क्यों खोई हुई है? मौत तेरे सिर पर खड़ी है, और तू तैयार नहीं है।

Meaning: O mind, why are you so foolish? Why have you lost your awareness? Death stands above your head, and you are not prepared.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मनुष्य के मन की मूर्खता और मृत्यु के प्रति असावधानी को उजागर किया है। उन्होंने कहा कि मनुष्य मृत्यु के समीप होने के बावजूद भी अपनी अव्यवस्थितता और चेतना की कमी से ग्रस्त रहता है।


मनुवां तो पंछी भया, उड़‍िके चला अकास।
ऊपर ही ते गिर पड़ा, मन माया के पास।।११४३।।

अर्थ: मन एक पंछी की तरह हो गया, जो आकाश में उड़ने चला। लेकिन वह ऊपर से गिर पड़ा और अब माया में फंस गया है।

Meaning: The mind became like a bird, flying up to the sky. But it fell down from above, and now it is caught in illusion.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन के आकाश में उड़ने की स्थिति और माया में गिरने की अवस्था का वर्णन किया है। यह दर्शाता है कि मन स्वतंत्रता की ओर बढ़ते हुए भी माया के जाल में फंस जाता है।


मनुवा तो फूला फिरै, कहे जो करुं धरम।।
कोटि करम सिर पर चढ़े, चेति न देखै मरम।।११४४।।

अर्थ: मन भ्रांति में घूमता रहता है और कहता है कि धर्म का पालन करेगा। सिर पर अनगिनत कर्म चढ़े हैं, लेकिन वह सार को नहीं पहचानता।

Meaning: The mind wanders in delusion, saying it will follow righteousness. Countless deeds are piled on the head, but it does not recognize the essence.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की भ्रांति और धर्म के पालन की बात की है। उन्होंने बताया है कि मन अनगिनत कर्मों के भार के बावजूद भी धर्म का सार नहीं समझ पाता और भ्रमित रहता है।


मन दाता मन लालची, मन राजा मन रंक।
जो यह मन गुरु सो मिलै, तो गुरु मिले निसंक।।११४५।।

अर्थ: मन दाता और लालची दोनों है, राजा और भिखारी भी है। यदि यह मन सच्चे गुरु से मिलता है, तो गुरु बिना संदेह के मिल जाएगा।

Meaning: The mind is both the giver and the greedy one, the king and the beggar. If this mind meets the true guru, it will find the guru without doubt.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन के विभिन्न पहलुओं और सच्चे गुरु की खोज को समझाया है। उन्होंने कहा कि मन में अनेक गुण और दोष होते हैं, और यदि यह सच्चे गुरु से मिल जाता है, तो गुरु की प्राप्ति सुनिश्चित होती है।


मन फाटै बायक बुरै, मिटै सगाई साक।
जैसे दूध तिवास को, उलटि हुआ जो आक।।११४६।।

अर्थ: मन की खामियां अच्छी संगत से दूर होती हैं और एकता स्थापित होती है। जैसे दूध दही में बदल जाता है, वैसे ही एकता मन से आती है।

Meaning: The mind's flaws are removed through good company, and unity is established. Just as milk turns into curd, so does unity come from the mind.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने बताया है कि मन की खामियों को अच्छी संगत से दूर किया जा सकता है और एकता प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने इसे दूध के दही में बदलने के उदाहरण से समझाया है, जो दर्शाता है कि मन की स्थिति भी इसी तरह बदल सकती है।


मन पांचौं के बस पड़ा, मन के बस नहिं पांच।
जित देखूं तित दौं लगी, जित भाग् तित आंच।।११४७।।

अर्थ: मन पांचों इंद्रियों के अधीन है, लेकिन पांचों इंद्रियां मन के अधीन नहीं हैं। जहां-जहां मैं देखता हूं, वहां विघ्न हैं; जहां भी जाता हूं, वहां जलन होती है।

Meaning: The mind is under the control of the five senses, but the five senses are not under the control of the mind. Wherever I look, there are distractions; wherever I go, there is burning.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन और इंद्रियों के बीच के संघर्ष को बताया है। मन इंद्रियों के प्रभाव में होता है, लेकिन इंद्रियां मन की पकड़ में नहीं होती हैं। इससे जीवन में हमेशा अड़चनें और परेशानियां आती रहती हैं।


मन के मारे बन गये, बन तजि बस्‍ती मांहि।
कहैं कबीर क्‍या कीजिये, यह मन ठहरै नाहिं।।११४८।।

अर्थ: मन हारकर वन की तरह हो जाता है; यह वन को छोड़कर गांव में बस जाता है। कबीर कहते हैं, क्या करें? यह मन स्थिर नहीं रहता।

Meaning: The mind, having been defeated, becomes like a forest; it leaves the forest and settles in the village. Kabir says, what to do? This mind does not stay still.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की अस्थिरता और उसकी चंचलता का वर्णन किया है। मन जब एक जगह से दूसरी जगह चला जाता है, तो स्थिरता बनाए रखना कठिन हो जाता है।


निहचिन्‍त होय के गुरु भजै, मन में राखै सांच।
इन पांचौं को बसि करै, ताहि न आवै आंच।।११४९।।

अर्थ: जब कोई गुरु की भक्ति बिना चिंता के करता है और मन में सत्य को रखता है, तब पांचों इंद्रियों को नियंत्रित करना संभव हो जाता है और कोई जलन नहीं होती।

Meaning: When one worships the guru with a carefree heart and keeps the truth in the mind, controlling the five senses becomes possible, and there is no burning.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने गुरु की भक्ति और सत्य के महत्व को बताया है। जब व्यक्ति गुरु की भक्ति पूरी निष्ठा से करता है और सत्य को अपने मन में बनाए रखता है, तब इंद्रियों पर नियंत्रण रखना आसान हो जाता है।


मन मुरीद संसार है, गुरु मुरीद कोय साध।
जो माने गुरु बचन को, ताका मता अगाध।।११५०।।

अर्थ: मन संसार का मुरीद है और गुरु सच्चे मुरीद हैं। जो गुरु के शब्दों का अनुसरण करता है, उसकी बुद्धि गहन होती है।

Meaning: The mind is a disciple of the world, and the guru is a true disciple. He who follows the words of the guru, his intellect is profound.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने मन की स्थिति और गुरु के प्रति श्रद्धा की बात की है। उन्होंने कहा कि संसार में मन भटकता रहता है, जबकि सच्चा गुरु सच्चे भक्त होते हैं। जो गुरु की बातों को मानता है, उसकी समझ और ज्ञान गहरा होता है।