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संत कबीर जी के दोहे — 1301 to 1350

अब कै जे सांई मिले, तौ सब दुख आपौं रोइ।
चरनूं ऊपर सीस धरि, कहूं ज कहणां होइ।।१३०१।।

अर्थ: यदि आप भगवान को प्राप्त कर लेते हैं, तो सभी दुख समाप्त हो जाएंगे। उनके चरणों पर सिर रख दें और केवल वही कहें जो कहने की आवश्यकता हो।

Meaning: If you have found the Lord, then all your sorrows will be alleviated. Place your head at His feet and speak only what needs to be said.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, भगवान की प्राप्ति से सभी दुख दूर हो जाते हैं। भगवान के चरणों में सिर झुका देने से हमें सच्चे शांति और सुख की प्राप्ति होती है, और हमें केवल आवश्यक बातें ही कहनी चाहिए।


कूकस कूटै कण बिना, बिन करनी का ज्ञान।
ज्‍यौं बन्‍दूक गोली बिना, भड़क न मारै आन।।१३०२।।

अर्थ: निंदा करने वाला व्यक्ति ऐसे है जैसे बिना डंडे के ढोल, जो शोर मचाता है लेकिन ज्ञान से रहित होता है। इसी तरह, गोली बिना बंदूक नहीं चलती।

Meaning: A critic is like a drum without a stick; it makes noise but lacks knowledge. Similarly, a gun without bullets does not fire.

व्याख्या: कबीर जी ने इस दोहे में बताया है कि निंदा करने वाला व्यक्ति ज्ञानहीन होता है, जैसे बिना डंडे के ढोल शोर मचाता है। यही स्थिति बंदूक की भी है जो बिना गोली के निष्फल होती है। इसका मतलब है कि बिना सही ज्ञान और उद्देश्य के केवल शोर करने से कुछ भी नहीं मिलता।


आप राखि परमोधिये, सुनै ज्ञान अकराथि।
तुस कूटै कन बाहिरी, कछू न आवै हाथि।।१३०३।।

अर्थ: अपने को ज्ञान से संजोएं, क्योंकि जो लोग ज्ञान की बातें करते हैं लेकिन क्रिया विपरीत होती है, उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होता।

Meaning: Preserve yourself with wisdom, for those who speak knowledge but act otherwise gain nothing.

व्याख्या: कबीर जी ने इस दोहे में कहा है कि हमें ज्ञान को सहेजना चाहिए और अपने आचरण को सही रखना चाहिए। जो लोग ज्ञान का प्रचार करते हैं लेकिन खुद उसके विपरीत काम करते हैं, वे वास्तव में कुछ भी प्राप्त नहीं करते।


पद जौरै साखी कहै, साधन पड़‍ि गयी रोस।
काढ़ा जल पीवै नहीं, का‍ढ़‍ि पीवन की होस।।१३०४।।

अर्थ: पद और कहानी कहती है कि अभ्यास कठिन हो गया है। कोई निकाले हुए पानी को नहीं पीता; तो जो निकाला जाता है उसे कैसे पियेंगे?

Meaning: The position and the story say that the practice has become difficult. One does not drink the water drawn out; how can one drink that which is drawn out?

व्याख्या: कबीर जी इस दोहे में यह बताते हैं कि पद और कहानियों के बावजूद, जब अभ्यास कठिन हो जाता है, तब केवल शब्दों से कुछ नहीं होता। हमें वास्तविक प्रयास और कर्म करने चाहिए, क्योंकि निकाले हुए पानी का कोई उपयोग नहीं होता।


कथनी थोथी जगत में, करनी उत्तम सार।
कहैं कबीर करनी भली, उतरै भोजन पार।।१३०५।।

अर्थ: इस दुनिया में शब्द खोखले होते हैं; क्रिया ही सार है। कबीर कहते हैं कि अच्छे कर्म पोषण करने वाले भोजन के समान होते हैं।

Meaning: Words are hollow in this world; action is the essence. Kabir says that good deeds are like nourishing food.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, इस संसार में शब्दों की कोई महत्वता नहीं है, बल्कि कर्मों का मूल्य है। अच्छे कर्म वही हैं जो हमें जीवन में वास्तविक पोषण और संतोष प्रदान करते हैं।


कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय।
कथनी से करनी करै, विष से अमृत होय।।१३०६।।

अर्थ: शब्द मीठे शक्कर जैसे होते हैं, लेकिन कर्म विष के समान होते हैं। जब कर्म शब्दों के आधार पर किए जाते हैं, तो विष अमृत में बदल जाता है।

Meaning: Words are as sweet as sugar, but actions are like poison. When actions are taken based on words, the poison turns into nectar.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, शब्द भले ही कितने भी मधुर क्यों न हों, लेकिन यदि उनके आधार पर कर्म नहीं किए जाते, तो वे बेकार होते हैं। सही कर्म करने से शब्दों का वास्तविक प्रभाव उत्पन्न होता है, और विष से अमृत प्राप्त होता है।


पढ़‍ि पढ़‍ि के समुझावई, मन नहिं धारै धीर।
रोटी का संसै पड़ा, यौं कह दास कबीर।।१३०७।।

अर्थ: पढ़ने और सलाह देने के बावजूद, मन स्थिर नहीं रहता। भोजन की चिंता बनी रहती है; ऐसा कहते हैं दास कबीर।

Meaning: Even after reading and advising, the mind does not hold steady. The worry about food remains; thus says servant Kabir.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, केवल पढ़ाई और सलाह देने से कुछ नहीं होता जब तक मन स्थिर न हो। मन की स्थिरता और आत्म-संतोष प्राप्त करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि भोजन की चिंता अंततः बनी रहती है।


कथनी काची होय गयी, करनी करी न सार।
श्रोता वक्‍ता मरि गया, मूरख अनंत अपार।।१३०८।।

अर्थ: शब्द खोखले हो गए हैं, और कर्मों में सार की कमी है। वक्ता और श्रोता दोनों खो गए हैं, अनंत अज्ञान में।

Meaning: Words have become hollow, and actions lack essence. The speaker and the listener are both lost, endlessly ignorant.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, जब शब्दों में सार नहीं होता और कर्म भी अर्थहीन होते हैं, तो वक्ता और श्रोता दोनों ही अंततः अज्ञानता का शिकार हो जाते हैं। वास्तविक ज्ञान और कर्म की आवश्यकता है।


कथनी बदनी छाड़‍ि दे, करनी सों चित लाय।
कर सो जल प्‍याये बिना, कबहुं प्‍यास न जाय।।१३०९।।

अर्थ: खोखले शब्दों को छोड़ दो, और कर्मों पर ध्यान दो। बिना पानी के प्यास नहीं बुझती।

Meaning: Give up hollow words, and focus on actions. Without drinking water, thirst cannot be quenched.

व्याख्या: कबीर जी इस दोहे में बताते हैं कि केवल शब्दों से काम नहीं चलता, बल्कि कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। जैसे बिना पानी के प्यास नहीं बुझती, वैसे ही कर्मों के बिना शब्द बेकार हैं।


कथनी कथै तो क्‍या हुआ, करनी ना ठहराय।
कालबूत का कोट ज्‍यौं, देखते ही ढहि जाय।।१३१०।।

अर्थ: केवल शब्दों से क्या होता है यदि कर्म स्थिर नहीं होते? जैसे बालू का किला, जैसे ही देखा जाता है गिर जाता है।

Meaning: What is the use of mere words if actions do not persist? Like a fort of sand, it collapses as soon as it is seen.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, शब्दों का कोई मूल्य नहीं है यदि उनके आधार पर किए गए कर्म स्थिर और सच्चे नहीं हैं। जैसे बालू का किला तुरंत गिर जाता है, वैसे ही बिना स्थिर कर्म के शब्द भी बेकार होते हैं।


साखी लाय बनाय के, इत उत अच्‍छर काटि।
कहैं कबीर कब लगि जिये, जूठी पत्तर चाटि।।१३११।।

अर्थ: यहाँ-वहाँ से काटकर जोड़कर साखी बनाई जाती है। कबीर कहते हैं, जब तक तुम झूठे पत्ते चाटते रहोगे, तब तक कैसे जीवन सही होगा?

Meaning: Bringing together scraps from here and there, Kabir says, when will you stop eating the false leaves?

व्याख्या: कबीर जी इस दोहे में उन लोगों की आलोचना कर रहे हैं जो केवल टुकड़ों-टुकड़ों में जानकारी को इकट्ठा करके उसे सच्चा मानते हैं। वे उन लोगों की स्थिति का वर्णन कर रहे हैं जो झूठे और गलत ज्ञान को स्वीकार करते हैं और जीवन में सच्चे मार्ग को नहीं अपनाते।


कथनी के सूरे घने, थोथै बांधै तीर।
बिरह बान जिनके लगा, तिनके बिकल सरीर।।१३१२।।

अर्थ: खोखले शब्दों के तीर शरीर को घन दर्द से बांध देते हैं। जो लोग विरह के तीरों से आहत होते हैं, वे अत्यंत दुखी होते हैं।

Meaning: The arrows of hollow words bind the body with dense pain. Those who are struck by the arrows of separation, suffer greatly.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, खोखले और बेकार शब्दों से व्यक्ति को भारी पीड़ा का सामना करना पड़ता है। जब किसी को प्रेम और संबंधों में विरह का सामना करना पड़ता है, तो उनका दुख और पीड़ा अत्यधिक होती है।


कथनी कथि फूला फिरै, मेरे होयै उचार।
भाव भक्ति समझै नहीं, अंधा मूढ़ गंवार।।१३१३।।

अर्थ: शब्द भले ही कितने भी आकर्षक हों, लेकिन यदि वास्तविक भक्ति और भावनाओं की समझ नहीं है, तो वे बेकार हैं। अंधे और मूढ़ लोग इसका सार नहीं समझते।

Meaning: Words may appear flowery, but without understanding true devotion and feeling, they are of no use. Such ignorant fools do not comprehend the essence.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, केवल शब्दों की सुंदरता से कोई लाभ नहीं होता। वास्तविक भावनाओं और भक्ति की समझ होनी चाहिए। जो लोग इस सच्चाई को नहीं समझते, वे अज्ञानी और मूढ़ होते हैं।


पानी मिलै न आप को, औरन बकसत छीर।
आपन मन निहचल नहीं, और बंधावत धीर।।१३१४।।

अर्थ: आपको पानी भी नहीं मिलता, जबकि दूसरों को दूध मिलता है। आपका अपना मन अशांत रहता है, जबकि आप दूसरों को पकड़कर रखते हैं।

Meaning: You do not get water, but others are given milk. Your own mind remains unsettled, while you remain steadfast in holding others.

व्याख्या: कबीर जी इस दोहे में उन लोगों की स्थिति को दर्शाते हैं जिनके पास स्वयं आवश्यक चीजें नहीं होतीं, लेकिन दूसरों के लिए सब कुछ होता है। उनका अपना मन अशांत रहता है और वे दूसरों को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं।


चतुराई चुल्‍है पड़े, ज्ञान कथै हुलसाय।
भाव भक्ति जानै बिना, ज्ञानपनो चलि जाय।।१३१५।।

अर्थ: चतुराई जले हुए चूल्हे की तरह होती है; ज्ञान खो सा जाता है। वास्तविक भक्ति और भावनाओं की समझ के बिना, ज्ञान बेकार हो जाता है।

Meaning: Cunning is like a burnt stove; knowledge seems to be lost. Without understanding true devotion and feeling, knowledge becomes meaningless.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, चतुराई और चालाकी किसी काम की नहीं होती; ज्ञान की वास्तविकता तब समझ में आती है जब उसमें भक्ति और भावनाओं की गहराई हो। बिना इनकी समझ के ज्ञान की कोई वास्तविकता नहीं होती।


करनी गर्व निवारनी, मुक्ति स्‍वारथी सोय।
कथनी तजि करनी करै, तब मुक्‍ताहल होय।।१३१६।।

अर्थ: कर्म गर्व को समाप्त करते हैं, और जो मुक्ति चाहते हैं उन्हें स्वार्थी तरीके से कार्य करना चाहिए। केवल शब्दों को छोड़कर कर्म पर ध्यान देने से मुक्ति प्राप्त होती है।

Meaning: Actions remove pride, and those seeking liberation should act selflessly. By abandoning mere words and focusing on actions, one achieves liberation.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, गर्व को समाप्त करने के लिए कर्म की आवश्यकता होती है। आत्म-स्वार्थ को छोड़कर यदि हम कर्म करते हैं, तो वास्तविक मुक्ति प्राप्त होती है। केवल शब्दों से मुक्ति नहीं मिलती।


कबीर करनी आपनी, कबहुं न निष्‍फल जाय।
सात समुद्र आड़ा पड़े, मिलै अगाऊ आय।।१३१७।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, किसी के अपने कर्म कभी बेकार नहीं जाते। यदि सात समुद्र भी बीच में आ जाएं, तो भी फल अंततः प्राप्त होता है।

Meaning: Kabir says, one's own actions never go in vain. Even if seven oceans come in the way, the reward will come eventually.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, अपने कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते। कठिनाइयों और बाधाओं के बावजूद, सच्चे कर्म का फल अंततः प्राप्त होता है।


श्रोता तो घरहीं नहीं, वक्‍ता बकै सो बाद।
श्रोता वक्‍ता एक घर, तब कथनी का स्‍वाद।।१३१८।।

अर्थ: श्रोता घर पर भी नहीं होता; वक्ता केवल बाद में बोलते हैं। जब श्रोता और वक्ता एक ही घर में होते हैं, तभी शब्दों का सही अर्थ समझा जाता है।

Meaning: The listener is not even present at home; the speaker speaks only later. When the listener and speaker are in the same house, then only the essence of words is understood.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, जब वक्ता और श्रोता दोनों एक ही जगह होते हैं, तो ही शब्दों का वास्तविक अर्थ समझ में आता है। यदि दोनों अलग-अलग हैं, तो शब्दों का प्रभाव और समझ अधूरी रहती है।


श्रम ही ते सब कुछ बने, बिन श्रम मिल न काहि।
सीधी अंगुली घी जम्‍मो, कबहूं निकसै नाहिं।।१३१९।।

अर्थ: हर चीज मेहनत से ही प्राप्त होती है; बिना मेहनत के कुछ भी नहीं मिलता। जैसे सीधे अंगुली से घी नहीं निकलता, सफलता के लिए मेहनत की आवश्यकता होती है।

Meaning: Everything is achieved through hard work; nothing is obtained without effort. Just as ghee cannot come out of a straight finger, success requires labor.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, किसी भी चीज को प्राप्त करने के लिए मेहनत और श्रम की आवश्यकता होती है। बिना प्रयास के सफलता प्राप्त नहीं होती, जैसे सीधे अंगुली से घी नहीं निकलता।


जैसी मुख ते नीकसे, तैसी चालै नाहिं।
मानुष नहीं वे श्‍वान गति, बांधे जमपुर जांहि।।१३२०।।

अर्थ: कर्म शब्दों से मेल खाना चाहिए; अन्यथा वे मानव नहीं बल्कि कुत्तों जैसे हैं, जिनकी किस्मत की बेड़ी बंधी होती है।

Meaning: One's actions should match their words; otherwise, they are not human but like dogs, bound by the noose of fate.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, यदि व्यक्ति के कर्म और शब्दों में कोई मेल नहीं है, तो वे मानवता से दूर होते हैं और किस्मत की बेड़ी में बंधे होते हैं। उनके कर्म उनकी बातों से मेल नहीं खाते।


रहनी के मैदान में, कथनी आवै जाय।
कथनी पीसै पीसना, रहनी अमल कमाय।।१३२१।।

अर्थ: जीवन के क्षेत्र में, शब्द आते और जाते रहते हैं। शब्द पीसने के समान होते हैं, जबकि जीवन में व्यावहारिक कर्म होते हैं।

Meaning: In the field of living, words come and go. Words are like grinding, while living involves practical action.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, शब्दों की महत्वता कम होती है क्योंकि वे केवल एक स्थान पर आते और जाते रहते हैं। असली जीवन में वे कर्म महत्वपूर्ण होते हैं जो व्यवहारिक रूप से किए जाते हैं।


करनी बीन कथनी कथै, अज्ञानी दिन रात।
कूकर सम भूकत फिरै, सुनी सुनाई बात।।१३२२।।

अर्थ: कर्म के बिना केवल शब्द बेकार होते हैं। अज्ञानी लोग दिन-रात बिना समझे बोलते रहते हैं, जैसे कुत्ता सुनाई हुई बात पर भौंकता रहता है।

Meaning: Without actions, mere words are meaningless. Ignorant people speak day and night without understanding, like a dog that keeps barking at hearsay.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, कर्मों की अनुपस्थिति में केवल शब्दों का कोई महत्व नहीं होता। अज्ञानी लोग केवल बोलते रहते हैं और समझदारी की कमी के कारण उनके शब्द भी जैसे कुत्ते की भौंकने की तरह होते हैं।


जैसी करनी जासु की, तैसी भुगते सोय।
बिन सतगुरु की भक्ति के, जनम जनम दुख होय।।१३२३।।

अर्थ: व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार फल प्राप्त करता है। सच्चे गुरु की भक्ति के बिना, जीवन भर दुख भोगना पड़ता है।

Meaning: One experiences the results according to their own actions. Without devotion to the true guru, one suffers throughout lifetimes.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, व्यक्ति के कर्म ही उसके जीवन के परिणाम तय करते हैं। यदि सच्चे गुरु की भक्ति नहीं है, तो व्यक्ति जन्म-जन्मभर दुख भोगता है।


करनी का रजमा नहीं, कथनी मेरु समान।
कथता बकता मर गया, मूरख मूढ़ अजान।।१३२४।।

अर्थ: कर्मों की स्थिरता शब्दों की तरह नहीं होती, जो मेरु पर्वत के समान होती हैं। केवल बोलने वाला और कुछ न करने वाला व्यक्ति मूढ़ और अज्ञानी होता है।

Meaning: Actions are not as transient as words, which are like Mount Meru. The speaker who only talks but does not act, is foolish and ignorant.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, कर्म स्थिर और महत्वपूर्ण होते हैं, जबकि शब्द केवल दिखावे के होते हैं। केवल बोलने वाले लोग जो कार्य नहीं करते, वे मूढ़ और अज्ञानी होते हैं।


कबीर करनी क्‍या करै, जो गुरु नहीं सहाय।
जिहि जिहि डारी पगु धरै, सों सों निंवनिंव जाय।।१३२५।।

अर्थ: अगर गुरु सहायता नहीं करते, तो कर्म क्या कर सकते हैं? जहाँ-जहाँ व्यक्ति अपने कदम रखते हैं, बिना मार्गदर्शन के वे और अधिक गहरे डूब जाते हैं।

Meaning: What can actions achieve if there is no guru to assist? Wherever one places their foot, they sink deeper without guidance.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, यदि गुरु का समर्थन नहीं है, तो कर्म का कोई मूल्य नहीं रहता। बिना गुरु के मार्गदर्शन के, व्यक्ति अपने प्रयासों में गहरे समस्याओं में फंस जाता है।


चोर चोराई टूंबरी, गाड़े पानी मांहि।
वह गाड़े तो ऊछलै, करनी छानी नाहिं।।१३२६।।

अर्थ: चोर पानी में छिपता है, और जब पानी भर जाता है तो वह उछल कर बाहर आ जाता है। कर्म सच्चाई को प्रकट करते हैं, केवल दिखावे से कुछ नहीं होता।

Meaning: A thief hides in a well, and when the water is filled, he jumps out. Actions reveal their truth, unlike superficial appearances.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, कर्म अपनी सच्चाई को प्रकट करते हैं, जबकि केवल दिखावे से कुछ भी स्पष्ट नहीं होता। चोर जैसे छिपकर बाहर आता है, वैसे ही कर्म अपनी सच्चाई को अंततः सामने ला देते हैं।


करनी बिन कथनी कथै, गुरु पद लहै न सोय।।
बातों के पकवान से, धीरा नाहीं कोय।।१३२७।।

अर्थ: कर्मों के बिना केवल शब्दों का कोई महत्व नहीं होता। गुरु के पद को केवल बातों से प्राप्त नहीं किया जा सकता। कोई भी व्यक्ति केवल बातों से ज्ञानी नहीं बन सकता।

Meaning: Without actions, mere words are meaningless. One cannot attain the guru's position with just words. No one becomes wise through mere talks.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, शब्द केवल दिखावे के होते हैं और वास्तविक मूल्य कर्मों में होता है। गुरु की स्थिति प्राप्त करने के लिए केवल बातों से कुछ नहीं होता, बल्कि कर्म करने होते हैं।


मारग चलते जो गिरै, ताको नाहिं दोस।
कहैं कबीर बैठा रहै, ता सिर करड़े कोस।।१३२८।।

अर्थ: जो मार्ग पर चलते हुए गिरता है, उसे दोष नहीं दिया जा सकता। कबीर कहते हैं, बैठे रहना और प्रयास न करना, ऐसा है जैसे सिर पर सौ घाव लगाना।

Meaning: One who falls while walking on the path is not to be blamed. Kabir says, sitting idly and not trying is like a head that takes a hundred blows.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, अगर कोई मार्ग पर चलते हुए गिर जाता है, तो उसकी गलती नहीं होती। बैठकर केवल देखते रहने और प्रयास न करने पर बहुत बड़ा नुकसान होता है, जैसे सिर पर घाव लगना।


कैसा भी सामर्थ्‍य हो, बिन उद्यम दुख पाय।
निकट असन बिन कर चले, कैसे मुख में जाय।।१३२९।।

अर्थ: चाहे कोई कितना भी सक्षम हो, प्रयास के बिना दुख भोगना पड़ता है। बिना मेहनत के, भोजन मुख तक कैसे पहुंच सकता है?

Meaning: No matter how capable one is, without effort, one suffers. Without labor, how can food reach one's mouth?

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, सक्षम होना कोई मायने नहीं रखता यदि मेहनत और प्रयास नहीं किया जाए। किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए श्रम और मेहनत की आवश्यकता होती है।


श्रम ही ते सब होत है, जो मन राखे धीर।
श्रम ते खोदत कूप ज्‍यों, थल में प्रगटै नीर।।१३३०।।

अर्थ: सब कुछ मेहनत से ही प्राप्त होता है, जब मन धैर्य बनाए रखे। जैसे कुएँ को खोदने से पानी निकलता है, वैसे ही लगातार मेहनत से परिणाम सामने आते हैं।

Meaning: Everything is achieved through effort when one remains patient. Just as digging a well brings out water, persistent labor reveals results.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, मेहनत और धैर्य से सभी लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं। जैसे कुएँ को खोदने से पानी मिलता है, वैसे ही सतत प्रयास से सफलता प्राप्त होती है।


जब तू आया जगत में, लोग हंसे तू रोय।
ऐसी करनी ना करो, पीछे हंसे सब कोय।।१३३१।।

अर्थ: जब तुम इस दुनिया में आए, लोग हंस रहे थे और तुम रो रहे थे। ऐसी स्थिति में मत रहो कि लोग तुम्हारे कार्यों पर बाद में हंसें।

Meaning: When you entered the world, people laughed while you cried. Do not act in a way that will make people laugh at you later.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, जब व्यक्ति दुनिया में आता है, तो लोग उसकी कमियों पर हंसते हैं। इसलिए ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे बाद में लोग हंसें और तिरस्कृत करें।


काया खेत किसान मन, पाप पुन्न दो बीव।
बोया लूनै आपना, काया कसकै जीव।।१३३२।।

अर्थ: शरीर एक खेत की तरह है और मन एक किसान की तरह है। पाप और पुण्य के कर्म बीज की तरह होते हैं; उनके परिणाम शरीर पर प्रभाव डालते हैं।

Meaning: The body is like a field and the mind like a farmer. The actions of sins and virtues are like seeds sown; the consequences affect the body.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, शरीर और मन की तरह पाप और पुण्य कर्म जैसे बीज होते हैं जो शरीर पर प्रभाव डालते हैं। अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार परिणाम मिलते हैं।


काला मुंह करुं करम का, आदर लावूं आग।
लोभ बड़ाई छांड़‍ि के, रांचू गुरु के राग।।१३३३।।

अर्थ: काले इरादों से किए गए कर्म सम्मान लाते हैं, लेकिन जब प्रशंसा की इच्छा छोड़ दी जाती है और गुरु की सलाह को अपनाया जाता है।

Meaning: Actions done with a dark intent bring respect, but only when the desire for praise is abandoned and one embraces the guru's guidance.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, कर्मों का वास्तविक महत्व तब प्रकट होता है जब हम प्रशंसा की इच्छा छोड़कर गुरु की शिक्षाओं को अपनाते हैं। केवल बुरे इरादों से किए गए कर्म भी अंततः सही मार्ग पर ले जाते हैं।


कबीर सजड़े की जड़ा, झूठा मोह अपार।
अनेक लुहारे पचि मुये, उझड़त नहीं लगार।।१३३४।।

अर्थ: धोखे की जड़ झूठा अहंकार है। कई लोहार मर चुके हैं, फिर भी झूठ कायम रहता है।

Meaning: The root of deceit is false pride. Many metalworkers have perished, yet the falsehood remains unshaken.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, झूठा अहंकार धोखे की जड़ होता है। कई लोग झूठ के कारण बर्बाद हो जाते हैं, लेकिन झूठ की जड़ें गहरी होती हैं और नहीं समाप्त होतीं।


बखत कहो या करम कहु, नसिब कहो निरधार।
सहस नाम हैं करम के, मन ही सिरजनहार।।१३३५।।

अर्थ: चाहे समय कहो, कर्म कहो, या किस्मत कहो, सब कुछ भाग्य पर निर्भर होता है। कर्मों के हजारों नाम होते हैं, लेकिन मन ही सृजनकर्ता होता है।

Meaning: Whether you call it time, actions, or fate, all are dependent on destiny. Thousands are the names of actions, but the mind is the creator.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, कर्म, समय, और किस्मत सभी भाग्य पर निर्भर करते हैं। कर्मों के अनेक नाम हो सकते हैं, लेकिन मन ही वास्तविक सृजनकर्ता होता है।


दुख लेने जावै नहीं, आवै आचा बूच।
सुख का पहरा होगया, दुख करेगा कूच।।१३३६।।

अर्थ: दुख को ढूंढने की आवश्यकता नहीं है; वह स्वाभाविक रूप से आता है। जब सुख प्रबल होता है, तो दुख चला जाता है।

Meaning: One does not need to seek sorrow; it comes naturally. When happiness prevails, sorrow will leave.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, दुख को खोजने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह स्वाभाविक रूप से आता है। जब सुख प्रबल होता है, तो दुख अपने आप दूर हो जाता है।


तेरा बैरी कोइ नहीं, तेरा बैरी फैल।
अपने फैल मिटाय ले, गली-गली कर सैल।।१३३७।।

अर्थ: तेरा कोई शत्रु नहीं है, सिर्फ तू ही अपना शत्रु है। अपनी गलतियों को मिटाओ और दुनिया में स्वतंत्र रूप से विचरें।

Meaning: There is no enemy except yourself. Eliminate your own faults, and move about freely in the world.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, हमारा सबसे बड़ा शत्रु हमारी खुद की गलतियाँ और दोष होते हैं। इन दोषों को समाप्त करके ही हम स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं।


कबीर कमाई आपनी, कबहु न निष्‍फल जाय।
सात समुद्र आड़ा पड़े, मिलै अगाड़ी आय।।१३३८।।

अर्थ: कबीर के अपने प्रयास कभी भी व्यर्थ नहीं होते। अगर सात समुद्र भी रास्ते में हों, तो भी वे पार कर लिए जाएंगे।

Meaning: Kabir's own efforts are never in vain. Even if seven seas stand in the way, they will be crossed.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, सही प्रयास कभी भी निष्फल नहीं होते। किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है, चाहे कितनी भी बड़ी बाधा क्यों न हो।


परारब्‍ध पहिले बना, पीछे बना सरीर।
कबीर अचम्‍भा है यही, मन नहिं बांधे धीर।।१३३९।।

अर्थ: किस्मत पहले बनती है, और फिर शरीर का निर्माण होता है। कबीर को आश्चर्य है कि मन स्थिर नहीं रहता।

Meaning: Destiny is formed first, and then the body is created. Kabir finds it astonishing that the mind does not remain steadfast.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, भाग्य पहले निर्धारित होता है और शरीर उसके बाद बनता है। यह आश्चर्यजनक है कि मन इन सभी घटनाओं के बावजूद स्थिर नहीं रहता।


रे मन भाग्‍यहि भूल मत, जो आया मन भाग।
सो तेरा टलता नहीं, निश्‍चय संसै त्‍याग।।१३४०।।

अर्थ: हे मन, भाग्य को मत भूलो; जो कुछ तुम्हारे पास आया है, वह नहीं बदलेगा। संदेह को छोड़ दो और जो है उसे स्वीकार करो।

Meaning: O mind, do not forget destiny; what has come to you will not change. Renounce doubts and accept what is.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, भाग्य को भूलना नहीं चाहिए। जो कुछ भी हमारे भाग्य में है, वह नहीं बदल सकता। इसलिए संदेह को छोड़कर स्वीकार करना चाहिए।


लिखा मिटै नहीं करम का, गुरु कर भज हरिनाम।
सीधे मारग नित चलै, दया धर्म बिसराम।।१३४१।।

अर्थ: कर्म को लिखने से मिटाया नहीं जा सकता; ईश्वर का नाम भक्ति से जपना चाहिए। हमेशा सीधे मार्ग पर चलो, और दया तथा धर्म तुम्हारा मार्गदर्शक हो।

Meaning: Actions are not erased by writing; worship the divine name with devotion. Always walk on the straight path, and let compassion and righteousness guide you.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, कर्मों को केवल लिखने से नहीं मिटाया जा सकता। ईश्वर की भक्ति और सच्चे मार्ग पर चलना ही सच्चे मार्ग को प्रशस्त करता है।


कबीर चंदन पर जला, तीतर बैठा मांहि।
हम तो दाझत पंख बिन, तुम दाजत हो काहि।।१३४२।।

अर्थ: कबीर चंदन पर जलता है, जबकि मोर उस पर बैठा होता है। हम पंख के बिना जलते हैं, तुम पंख के साथ सम्मानित होते हो, यह कैसे?

Meaning: Kabir burns on sandalwood, while the peacock sits on it. How is it that we are scorched without wings, while you, with wings, are honored?

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, वास्तविक सच्चाई और अनुभव में भिन्नता होती है। कुछ लोग सम्मानित होते हैं जबकि कुछ कठिनाइयों का सामना करते हैं, यह स्थिति समझने में कठिनाई होती है।


चहै अकास पताल जा, फोड़‍ि जाहु ब्रह्मण्‍ड।
कहैं कबीर मिटिहै नहीं, देह धरे का दण्‍ड।।१३४३।।

अर्थ: चाहे तुम आकाश और पृथ्वी को तोड़ दो, और ब्रह्मांड को चीर डालो, कबीर कहते हैं कि वे नष्ट नहीं होंगे और उनका शरीर भी प्रभावित नहीं होगा।

Meaning: Even if you break through the skies and the earth, and shatter the universe, Kabir says, he will not be destroyed, nor his body affected.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, किसी भी शक्ति के द्वारा शरीर को नष्ट नहीं किया जा सकता। सच्ची आत्मा और आत्म-ज्ञान स्थायी होते हैं, वे किसी भी बाहरी प्रभाव से प्रभावित नहीं होते।


जहं यह जियरा पगु धरे, बखत बराबर साथ।
जो है लिखा नसीब में, चलै न अविचल बात।।१३४४।।

अर्थ: जहां भी आत्मा कदम रखती है, समय हमेशा साथ होता है। जो कुछ भाग्य में लिखा है, वह बिना किसी विचलन के प्रकट होता है।

Meaning: Wherever the soul takes a step, time always accompanies it. What is written in destiny will unfold unerringly.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, आत्मा और समय एक साथ चलते हैं और भाग्य में जो लिखा है, वह बिना किसी परिवर्तन के घटित होता है।


बाहिर सुख दुख देन को, हुकुम करै मन मांय।
जब उठे मन बखत को, बाहिर रूप धरि आय।।१३४५।।

अर्थ: बाहर के सुख और दुख मन द्वारा निर्धारित होते हैं। जब मन तैयार होता है, तब ये बाहरी अनुभवों के रूप में प्रकट होते हैं।

Meaning: External happiness and sorrow are dictated by the mind. When the mind is ready, it manifests as external experiences.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, बाहरी सुख और दुख हमारे मन की स्थिति पर निर्भर करते हैं। जब मन तैयार और स्थिर होता है, तब ये बाहरी रूप में अनुभव होते हैं।


कीन्‍हे बिना उपाय कछु, देव कबहु नहिं देत।
खेत बीज बोवै नहीं, तो क्‍यौं जामैं खेत।।१३४६।।

अर्थ: कोई भी प्रयास किए बिना, देवता कुछ नहीं देते। यदि खेत में बीज नहीं बोएंगे, तो फसल की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

Meaning: Without making an effort, nothing is given by the divine. If you don't sow seeds in the field, why expect a harvest?

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, बिना प्रयास किए किसी भी चीज़ की प्राप्ति नहीं होती। हमें खुद प्रयास करना होता है, जैसे खेत में बीज बोने के बिना फसल की उम्मीद नहीं की जा सकती।


करे बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोय।
रोपै पेड़ बबूल का, आम कहां ते होय।।१३४७।।

अर्थ: यदि कोई बुराई करता है और सुख की चाह करता है, तो वह कैसे प्राप्त होगा? बबूल के पेड़ को रोपने से आम कैसे मिल सकते हैं?

Meaning: If one engages in wrongdoing and desires happiness, how can one attain it? Planting a babool tree, how can one expect mangoes?

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, जो व्यक्ति गलत काम करता है, वह सुख कैसे प्राप्त कर सकता है? जैसे बबूल के पेड़ से आम नहीं मिल सकते, वैसे ही बुराई से सुख नहीं मिल सकता।


पाहन लै देवल रचा, मोटी मूरत माहिं।
पिण्‍ड फूटि परबश रहै, सो लै तारे काहिं।।१३४८।।

अर्थ: पत्थर से मंदिर बनाया जाता है और बड़ी मूर्तियां बनाई जाती हैं। लेकिन टूटा हुआ पत्थर वहीं रहता है, उसकी पूजा क्यों की जाए?

Meaning: The stone makes a temple and forms a grand image. But the broken stone remains in its place, why worship it?

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, केवल पत्थर से बनी मूर्तियों की पूजा क्यों की जाए, जबकि वह पत्थर जो टूटा हुआ है, वही है जो हमेशा रहता है।


पाहन पूजि के, होन चहत भव पार।
भीजि पानि भेदै नदी, बूड जिन सिर भार।।१३४९।।

अर्थ: पत्थरों की पूजा करके लोग जीवन के चक्र को पार करना चाहते हैं। लेकिन जो लोग पानी में डूबते हैं और सिर पर भारी बोझ लेकर चलते हैं, वे पार नहीं कर सकते।

Meaning: Worshipping stones, one seeks to cross over the cycle of life. But those who drown in the water of a river cannot cross with a heavy load on their head.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, पत्थरों की पूजा करने से जीवन के चक्र को पार नहीं किया जा सकता। जिनका मन भारी होता है और जो बुरे कर्मों में फंसे होते हैं, वे नहीं पार कर सकते।


अकिल बिहूना आदमी, जानै नहीं गंवार।
जैसे कपि परबस पर्यो, नाचौ घर घर द्वार।।१३५०।।

अर्थ: एक मूर्ख और अज्ञानी व्यक्ति को कुछ भी समझ में नहीं आता। जैसे एक बंदर, जब नियंत्रित होता है, तो वह घर-घर जाकर नाचता है।

Meaning: A foolish and ignorant person does not understand. Just like a monkey, who, when controlled, dances around door to door.

व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, जो लोग मूर्ख और अज्ञानी होते हैं, वे कुछ नहीं समझते और अन्य लोगों की तरह अजीब व्यवहार करते हैं।