पाहन पानी पूजि के, पचि मूआ संसार।
भेद अलहदा रहि गया, भेदवन्त सो पार।।१३५१।।
अर्थ: पत्थर और पानी की पूजा करके संसार समाप्त हो जाता है। भेद बने रहते हैं, और जो लोग उन्हें समझते हैं, वे पार हो जाते हैं।
Meaning: Worshipping stones and water, the world dies away. The distinctions remain, and those who understand them cross over.
व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, केवल बाहरी पूजा से संसार की समस्याओं का समाधान नहीं होता। सच्चा ज्ञान और समझ ही हमें पार कराता है।
पंख होत परबस पर्यो, सूवा के बुधि नाहिं।
अकिल बिहूना आदमी, यों बन्धा जग माहिं।।१३५२।।
अर्थ: चाहे पंख हो, लेकिन पक्षी नियंत्रित रहता है और उसमें बुद्धि नहीं होती। एक मूर्ख और अज्ञानी व्यक्ति भी इसी तरह दुनिया में फंसा रहता है।
Meaning: Even with wings, the bird is controlled and lacks intelligence. A foolish and ignorant person is similarly trapped in the world.
व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, पंख होने के बावजूद यदि किसी में बुद्धि नहीं है, तो वह नियंत्रित रहता है। यही स्थिति मूर्ख और अज्ञानी व्यक्तियों की भी होती है।
अकिल बिहूना सिंह ज्यों, गयों ससा के संग।
अपनी प्रतिमा देखिके, कियो तन को भंग।।१३५३।।
अर्थ: एक मूर्ख शेर, जब खरगोशों के साथ जाता है, तो अपनी शान खो देता है। अपनी छवि देखकर, वह अपने शरीर को नष्ट कर देता है।
Meaning: Even a foolish lion, when it associates with rabbits, loses its pride. Seeing its own reflection, it destroys its body.
व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, यदि एक बुद्धिहीन व्यक्ति उच्च स्थान पर होने के बावजूद असामान्य स्थिति में फंस जाता है, तो वह अपनी स्थिति खो सकता है।
कुबुधी को सूझै नहीं, उठि उठि देवल जाय।
दिल देहरा को खबरि नहीं, पाथर ते कह पाय।।१३५४।।
अर्थ: अज्ञानी व्यक्ति कुछ भी नहीं समझता; वह बार-बार मंदिर जाता रहता है। उसे दिल की स्थिति का पता नहीं है, वह पत्थरों को कैसे जान सकता है?
Meaning: An ignorant person does not understand; they keep going to temples. They don't know the heart's residence, how can they know the stones?
व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, जो लोग अज्ञानी होते हैं, वे केवल बाहरी धार्मिक कर्मों में व्यस्त रहते हैं और आत्मिक ज्ञान को नहीं समझते।
सिदक सबरी बाहिरा, कहा हज्ज को जाय।
जिनका दिल साबित नहीं, तिनको कहा खुदाय।।१३५५।।
अर्थ: सबरी के बाहरी कर्म महत्वहीन हैं; तीर्थयात्रा का क्या लाभ? जिनका दिल सच्चा नहीं है, वे कैसे दिव्य हो सकते हैं?
Meaning: The outward rituals of Sabari are irrelevant; what use is going on pilgrimage? For those whose hearts are not true, how can they be divine?
व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, बाहरी धार्मिक कर्म और तीर्थयात्रा केवल दिखावा होते हैं। सच्चा धार्मिकता और ईश्वरता दिल की सच्चाई में होती है।
कबीर सालिगराम का, मोहिं भरोसा नाहिं।
काल कहर की चोट में, बिनसि जाय छिन माहिं।।१३५६।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि उन्हें सालिग्राम (भगवान विष्णु का प्रतीक) की मूर्ति पर भरोसा नहीं है, क्योंकि समय के कहर में यह पल भर में नष्ट हो सकती है।
Meaning: Kabir says he doesn't trust the idol of Shaligram, as it can be destroyed in an instant by the stroke of time.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी मूर्ति पूजा के प्रति अपने अविश्वास को प्रकट कर रहे हैं। वे बताते हैं कि जिन मूर्तियों को हम पूजते हैं, वे भी समय की मार से सुरक्षित नहीं हैं। अगर किसी चीज़ का अस्तित्व केवल समय के आगे नहीं टिक सकता, तो उस पर कैसे भरोसा किया जा सकता है? कबीर यहां भगवान की उस भक्ति की ओर संकेत कर रहे हैं जो मूर्तियों से परे है और जिसे समय भी नहीं मिटा सकता।
पूजा सेवा नेम व्रत, गुड़ियन का सा खेल।
जब लग पिव परसै नहीं, तब लग संसै मेल।।१३५७।।
अर्थ: पूजा, सेवा, नियम और व्रत गुड़ियों के खेल के समान हैं, जब तक कि आपको प्रियतम (ईश्वर) का स्पर्श नहीं होता, तब तक संदेह बना रहता है।
Meaning: Worship, rituals, and fasts are like the play of dolls, until you experience the touch of the Beloved, doubt remains.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि पूजा-पाठ, व्रत और सेवा तब तक केवल बाहरी क्रियाएँ हैं जब तक कि व्यक्ति को ईश्वर की सच्ची अनुभूति नहीं होती। जब तक भक्त को अपने आराध्य का साक्षात्कार या अनुभव नहीं होता, तब तक इन सबका कोई वास्तविक महत्व नहीं है और केवल संदेह और भ्रम ही बना रहता है। ये क्रियाएँ तभी सार्थक होती हैं जब उनके पीछे सच्चा भाव और अनुभव हो।
पाहन पूजै हरि मिलै, तो मैं पूजूं पहार।
ताते तो चक्की भली, पीसि खाय संसार।।१३५८।।
अर्थ: अगर पत्थर की पूजा से भगवान मिल सकते हैं, तो मैं पहाड़ की पूजा करूंगा। इससे बेहतर है कि चक्की का उपयोग करके दुनिया को खिलाया जाए।
Meaning: If God could be found by worshipping a stone, then I'd worship a mountain. Better to use a millstone and feed the world.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी मूर्ति पूजा पर कटाक्ष करते हैं। वे कहते हैं कि अगर भगवान पत्थर की मूर्ति की पूजा से मिल सकते हैं, तो पहाड़ की पूजा करना बेहतर होगा, क्योंकि वह और भी बड़ा है। परंतु कबीर का संदेश यह है कि मूर्ति पूजा से बेहतर है, चक्की जैसी वस्तुओं का सही उपयोग करना जो समाज के लिए लाभदायक हो। यह दोहा हमें व्यर्थ की आडंबर और मूर्ति पूजा से दूर रहने और सार्थक कार्य करने की प्रेरणा देता है।
पाहन ही का देहरा, पाहन ही का देव।
पूजन हारा आंधरा, क्यों करि मानै सेव।।१३५९।।
अर्थ: मंदिर पत्थर का है, और देवता भी पत्थर का है। अंधा (मूर्ख) उपासक, वह कैसे सच्ची भक्ति कर सकता है?
Meaning: The temple is made of stone, and the deity is also stone. The blind worshiper, how can he be truly devoted?
व्याख्या: कबीर जी इस दोहे में उन लोगों की आलोचना करते हैं जो बिना समझे-बूझे केवल बाहरी आडंबर में फंसकर मूर्ति पूजा करते हैं। वे बताते हैं कि मंदिर और मूर्ति दोनों ही पत्थर के होते हैं, इसलिए केवल बाहरी पूजा से कुछ नहीं मिलेगा। ऐसे अंधभक्त जो केवल दिखावे की पूजा करते हैं, वे सच्चे अर्थों में भक्ति नहीं कर सकते। कबीर जी का संदेश है कि सच्ची भक्ति केवल हृदय से ही की जा सकती है, न कि बाहरी साधनों से।
आतम दृष्टि जानै नहीं, न्हावै प्रात:काल।
लोकलाज लिया रहे, लागा भरम कपाल।।१३६०।।
अर्थ: वह आत्मदृष्टि को नहीं जानता, लेकिन समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए सुबह-सुबह स्नान करता है, और भ्रम को अपने माथे पर धारण करता है।
Meaning: He doesn't understand the vision of the self, but bathes early in the morning to maintain his social reputation, carrying the illusion on his forehead.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी उन लोगों की आलोचना करते हैं जो आत्मज्ञान या आत्मदृष्टि को नहीं समझते और केवल समाज में अपनी छवि बनाए रखने के लिए धार्मिक क्रियाएँ करते हैं। वे सुबह-सुबह स्नान जैसे कर्मकांड करते हैं ताकि लोग उन्हें धार्मिक मानें, लेकिन वे अपने मन में भ्रम और अज्ञानता को धारण किए रहते हैं। कबीर जी का संदेश है कि बाहरी क्रियाओं से कुछ नहीं होता जब तक कि मनुष्य आत्मज्ञान और सच्चाई को नहीं समझता।
कबीर जेता आतमा, तेता सालिगराम।
बोलनहारा पूजिये, नहिं पाहन सो काम।।१३६१।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि जितनी भी आत्माएँ हैं, वे सभी शालिग्राम के समान हैं। हमें बुद्धिमान लोगों की पूजा करनी चाहिए, न कि पत्थरों की।
Meaning: Kabir says that every soul is a Shaligram. Worship those who speak wisdom, not the stones.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी आत्मा की महत्ता को शालिग्राम (भगवान विष्णु का प्रतीक) के समान बताते हैं। उनका कहना है कि हर जीव की आत्मा पूजनीय है। वे यह भी कहते हैं कि हमें उन लोगों का सम्मान और पूजा करनी चाहिए जो ज्ञान और विवेक से बोलते हैं, न कि निर्जीव पत्थरों की। यहां कबीर जी हमें सजीव, साक्षात और ज्ञानी व्यक्तियों को महत्व देने की प्रेरणा दे रहे हैं।
अकिल बिहूना आंधरा, गज फन्दे पड़ो आय।
ऐसे सब लग बंधिया, काहि कहूं समझाय।।१३६२।।
अर्थ: अक्ल के बिना अंधा व्यक्ति उस हाथी के समान है जो फंदे में फंस गया हो। सभी इसी प्रकार से बंधे हुए हैं, मैं उन्हें कैसे समझाऊं?
Meaning: The blind man without wisdom is like an elephant caught in a trap. Everyone is bound like this, how can I explain it to them?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में कहते हैं कि बुद्धिहीन और अज्ञानी व्यक्ति उसी प्रकार जाल में फंसे होते हैं जैसे हाथी को जाल में फंसाया जाता है। अज्ञानता के कारण व्यक्ति भ्रमित रहता है और सांसारिक जाल में उलझा रहता है। कबीर का संदेश है कि बिना विवेक और ज्ञान के व्यक्ति इस संसार में बंधन में जकड़ा हुआ रहता है और उसे समझाना भी कठिन होता है।
लिखा पढ़ी में सब पड़े, यह गुन तजै न कोय।
सबै पड़े भ्रम जाल में, डारा यह जिय खोय।।१३६३।।
अर्थ: हर कोई पढ़ाई-लिखाई में उलझा हुआ है, लेकिन कोई भी इस आदत को नहीं छोड़ता। वे सभी भ्रम के जाल में फंसे हुए हैं और अपना मन खो देते हैं।
Meaning: Everyone is lost in reading and writing, but no one leaves this habit. They are all trapped in a web of illusions, losing their minds.
व्याख्या: कबीर जी इस दोहे में कहते हैं कि अधिकांश लोग पढ़ाई-लिखाई में उलझे रहते हैं और ज्ञान प्राप्त करने के प्रयास में रहते हैं, लेकिन वे सच्चे ज्ञान से दूर हो जाते हैं। यह पढ़ाई-लिखाई एक भ्रम की स्थिति उत्पन्न करती है, जिससे व्यक्ति अपने असली स्वरूप को भूल जाता है। कबीर का यह संदेश है कि सच्चा ज्ञान केवल पुस्तकों से नहीं, बल्कि आत्मा की समझ और अनुभव से प्राप्त होता है।
तुरक मसीत देहर हिन्दू, आप आप को धाय।
अलख पुरुष घट भीतरे, ताका पार न पाय।।१३६४।।
अर्थ: मुसलमान मस्जिद की ओर दौड़ता है, हिंदू मंदिर की ओर। अलख पुरुष (ईश्वर) दिल के भीतर है, लेकिन वे उसे पा नहीं सकते।
Meaning: The Turk (Muslim) rushes to the mosque, the Hindu to the temple. The unseen Divine is within the heart, yet they cannot find it.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में धार्मिक विभाजन पर व्यंग्य करते हैं। वे कहते हैं कि मुसलमान मस्जिद और हिंदू मंदिर की ओर भागते हैं, लेकिन वे उस अलख पुरुष (ईश्वर) को नहीं देख पाते जो हर दिल में मौजूद है। कबीर जी का संदेश है कि बाहरी धार्मिक स्थलों की बजाय, व्यक्ति को अपने अंदर के ईश्वर को खोजने की कोशिश करनी चाहिए।
जप तप दीखै थोथरा, तीरथ ब्रत विश्वास।
सूवा सेमल सेइया, यों जग चला निरास।।१३६५।।
अर्थ: जप और तपना खोखला लगता है, तीर्थ यात्रा और व्रत का विश्वास झूठा है। जैसे सूत का पक्षी सेमल के पेड़ पर बैठता है, वैसे ही यह संसार निराशा में चला जाता है।
Meaning: Chanting and penance appear hollow, pilgrimages and vows are empty faith. Like a parrot sitting on a silk-cotton tree, the world moves on in disappointment.
व्याख्या: कबीर जी कहते हैं कि अगर किसी धार्मिक क्रिया में सच्ची भावना और आत्मा का जुड़ाव नहीं है, तो वह केवल खोखला आडंबर है। तीर्थ यात्रा और व्रत जैसी चीज़ें अगर केवल दिखावे के लिए की जाएं तो वे किसी काम की नहीं हैं। कबीर जी का यह दोहा हमें बताता है कि सच्ची आस्था और भक्ति के बिना कोई भी धार्मिक कर्म निरर्थक है, और इससे व्यक्ति को केवल निराशा ही हाथ लगती है।
बिना वसीले चाकरी, बिना बुद्धि की देह।
बिना ज्ञान का जोगना, फिरै लगाये खेह।।१३६६।।
अर्थ: बिना मार्गदर्शक की सेवा, बिना बुद्धि का शरीर, और बिना ज्ञान का योगी धूल में लिपटा भटकता रहता है।
Meaning: Service without a guide, a body without wisdom, and a monk without knowledge wander aimlessly, covered in dust.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में बताते हैं कि किसी भी कार्य को सही तरीके से करने के लिए मार्गदर्शन, बुद्धि, और ज्ञान की आवश्यकता होती है। अगर व्यक्ति के पास यह तीनों नहीं हैं, तो उसका जीवन दिशाहीन हो जाता है और वह संसार में व्यर्थ ही भटकता रहता है। यह दोहा हमें सिखाता है कि सही मार्गदर्शन, बुद्धि और ज्ञान के बिना जीवन अधूरा और निरर्थक है।
मुल्ला चढ़ि किलकारिया, अल्लाह न बहिरा होय।
जेहि कारन तूं बांग दे, दिल ही अन्दर सोय।।१३६७।।
अर्थ: मुल्ला मीनार पर चढ़कर जोर से आवाज़ लगाता है, लेकिन अल्लाह बहरा नहीं है। जिसे तुम पुकारते हो, वह तुम्हारे दिल के भीतर ही सोया हुआ है।
Meaning: The mullah shouts from the minaret, but Allah is not deaf. The one you call out to is within your own heart.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में धार्मिक आडंबरों पर प्रहार करते हैं। वे कहते हैं कि अल्लाह को पुकारने के लिए ऊंची आवाज़ की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह बहरा नहीं है। असल में, ईश्वर हर व्यक्ति के दिल में बसता है, और उसे खोजने के लिए बाहर की दुनिया में आवाज़ लगाने की बजाय अपने अंदर झांकना चाहिए। यह दोहा हमें आत्मचिंतन और ईश्वर को अपने भीतर खोजने की प्रेरणा देता है।
चिउंटी चावल ले चली, बिच में मिल गयी दाल।
कहैं कबीर दो न मिलै, इक ले दूजी डाल।।१३६८।।
अर्थ: चिउंटी चावल का दाना लेकर चली, लेकिन उसे बीच में दाल का एक टुकड़ा भी मिल गया। कबीर कहते हैं, अगर दोनों नहीं मिल सकते तो एक को लेकर दूसरी को छोड़ दो।
Meaning: An ant carried away a grain of rice, but got a bit of lentil too. Kabir says, if you can't have both, take one and leave the other.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन के संतुलन की बात करते हैं। वे कहते हैं कि जीवन में कई बार हमें दोनों चीजें नहीं मिल पातीं, जो हमें चाहिए होती हैं। ऐसे में, हमें एक को चुनकर दूसरे को छोड़ने की समझ विकसित करनी चाहिए। यह दोहा हमें सिखाता है कि कभी-कभी त्याग करना भी ज़रूरी होता है और हमें अपने निर्णय में समझदारी दिखानी चाहिए।
आगा पीछा दिल करै, सहजै मिलै न आय।
सो बासी जमलोक का, बांधा जमपुर जाय।।१३६९।।
अर्थ: जो व्यक्ति आगे-पीछे की चिंता करता रहता है, उसे सहजता से कुछ भी प्राप्त नहीं होता। ऐसा व्यक्ति मृत्यु लोक का बासी होता है, और उसे यमपुर बांधकर ले जाता है।
Meaning: The one who keeps worrying about the past and future doesn't find peace. Such a person is destined for the world of the dead.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में उन लोगों के बारे में बताते हैं जो हमेशा अतीत और भविष्य की चिंता में डूबे रहते हैं। ऐसे लोग वर्तमान में शांति और संतोष नहीं पा सकते। कबीर जी कहते हैं कि जो व्यक्ति वर्तमान में नहीं जीता, वह मृत समान होता है और मृत्यु के बाद यमलोक में बांधकर ले जाया जाता है। यह दोहा हमें वर्तमान में जीने और चिंता से मुक्त रहने का संदेश देता है।
कांकर पाथर जोरि के, मसजिद लई चुनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, बहिरा हुआ खुदाय।।१३७०।।
अर्थ: ईंट-पत्थर जोड़कर मस्जिद बनाई, और मुल्ला उसमें से ऐसे पुकारता है जैसे खुदा बहरा हो गया हो।
Meaning: They built a mosque by piling up bricks and stones, and the mullah calls out from it as if God has become deaf.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में धार्मिक स्थलों और उनके उपयोग पर कटाक्ष करते हैं। वे कहते हैं कि मस्जिद जैसे ढांचे बनाने के बाद, मुल्ला उसमें से ऊंची आवाज़ में पुकारता है, मानो खुदा बहरा हो गया हो। कबीर का यह संदेश है कि ईश्वर हर जगह है और उसे पाने के लिए ऊंची आवाज़ या विशेष जगह की ज़रूरत नहीं है। ईश्वर को अपने दिल में ढूंढने की ज़रूरत है, न कि किसी इमारत में।
पाहन केरी पूतरी, करि पूजै संसार।
याहि भरोस मत रहो, बूड़ो काली धार।।१३७१।।
अर्थ: संसार पत्थर की मूर्ति की पूजा करता है, लेकिन इस पर भरोसा मत करो, क्योंकि यह तुम्हें काली धार में डूबा देगी।
Meaning: The world worships a doll made of stone, but don't rely on it, for it will drown you in the dark stream.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूर्तिपूजा पर कटाक्ष करते हैं। वे कहते हैं कि संसार पत्थर की मूर्तियों की पूजा करता है, लेकिन यह गलतफहमी है। कबीर जी चेतावनी देते हैं कि इस तरह की पूजा व्यक्ति को अज्ञानता की गहरी धारा में डुबो सकती है। उनका संदेश है कि सच्ची भक्ति और ईश्वर की खोज भीतर की यात्रा है, न कि बाहरी मूर्तियों की पूजा।
पांच तत्व का पूतरा, रज बीरज की बूंद।
एकै घाटी नीसरा, ब्राह्मन क्षत्री सूद।।१३७२।।
अर्थ: यह शरीर पांच तत्वों और वीर्य-रज की बूंद से बना है। इसी स्रोत से ब्राह्मण, क्षत्रिय और शूद्र उत्पन्न होते हैं।
Meaning: This body is made of five elements and a drop of semen and ovum. From the same source emerge Brahmin, Kshatriya, and Shudra.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सामाजिक भेदभाव को खारिज करते हैं। वे कहते हैं कि हर इंसान का शरीर पांच तत्वों और वीर्य-रज की बूंद से बना होता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, और शूद्र सभी एक ही स्रोत से उत्पन्न होते हैं। उनका संदेश है कि जाति, वर्ग, या जन्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करना अनुचित है, क्योंकि हम सभी एक समान हैं।
मनही में फूला फिरै, करता हूं मैं धर्म।
कोटि कर्म सिर पर चढ़े, चेति न देखे मर्म।।१३७३।।
अर्थ: मन गर्व से फूल जाता है, सोचता है 'मैं धर्म कर रहा हूं।' लेकिन असंख्य कर्मों के बावजूद, वह मर्म को नहीं देख पाता।
Meaning: The mind swells with pride, thinking 'I am righteous.' But despite countless deeds, one fails to see the essence.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में धार्मिक आडंबरों और अहंकार पर प्रहार करते हैं। वे कहते हैं कि जब व्यक्ति धार्मिक कार्यों का पालन करता है, तो उसका मन गर्व से भर जाता है, लेकिन वह असली मर्म को नहीं समझ पाता। यह दोहा हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और धर्म का पालन तब होता है जब हम अपने भीतर की सच्चाई को समझते हैं, न कि केवल बाहरी आडंबरों का पालन करते हैं।
पढ़ा सुना सीखा सभी, मिटी न संसै भूल।
कहैं कबीर कासों कहूं, यह सब दुख का मूल।।१३७४।।
अर्थ: मैंने सब पढ़ा, सुना, और सीखा है, फिर भी मेरे संदेह और भ्रम दूर नहीं हुए। कबीर कहते हैं, किससे कहूं, यह सब दुख का मूल है।
Meaning: Though I have read, heard, and learned everything, my doubts and delusions haven't vanished. Kabir says, whom should I tell, this is the root of all suffering.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में ज्ञान की सीमाओं की ओर इशारा करते हैं। वे कहते हैं कि भले ही हमने बहुत कुछ पढ़ा, सुना, और सीखा हो, लेकिन अगर हमारे संदेह और भ्रम दूर नहीं होते, तो वह ज्ञान व्यर्थ है। कबीर के अनुसार, यह भ्रम और अज्ञान ही सभी दुखों का कारण है। सच्चा ज्ञान वह है जो हमारे भीतर की शांति और सच्चाई को उजागर करे।
मरती बिरियां दान दे, जीवन बड़ा कठोर।
कहैं कबीर क्यों पाइये, खांड़ा का व चोर।।१३७५।।
अर्थ: मरते समय लोग दान देते हैं, लेकिन जीवन बड़ा कठोर रहा है। कबीर कहते हैं, हम तलवार वाले चोर की प्रशंसा क्यों करें?
Meaning: At the time of death, people give charity, but life has been harsh. Kabir says, why should we praise a thief with a sword?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिखावे और पाखंड पर प्रहार करते हैं। वे कहते हैं कि लोग जीवन भर कठोर और स्वार्थी रहते हैं, लेकिन मरते समय दान देकर पुण्य कमाने की कोशिश करते हैं। कबीर इसे दिखावा मानते हैं और कहते हैं कि ऐसे लोगों की प्रशंसा करना वैसा ही है जैसे किसी तलवार धारी चोर की तारीफ करना। यह दोहा हमें सिखाता है कि सच्चा पुण्य और दान वही है जो जीवन भर किया जाए, न कि केवल मृत्यु के समय।
पाहन को क्या पूजिये, जो नहिं देय जवाब।
अंधा नर आशा मुखी, यों ही खोवै आब।।१३७६।।
अर्थ: उस पत्थर की पूजा क्यों करें जो जवाब नहीं दे सकता? आशा के मुख पर अंधा व्यक्ति व्यर्थ ही अपना जीवन खोता है।
Meaning: Why worship a stone that cannot answer? The blind man, driven by hope, loses his essence in vain.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूर्तिपूजा पर प्रश्न उठाते हैं। वे कहते हैं कि जो पत्थर आपको जवाब नहीं दे सकता, उसकी पूजा करना निरर्थक है। जो व्यक्ति अपनी आशाओं में अंधा बनकर पत्थरों की पूजा करता है, वह अपनी वास्तविकता को खो देता है। यह दोहा हमें आत्मचिंतन और सच्ची भक्ति की ओर प्रेरित करता है।
तेरे हिय में राम हैं, ताहि न देखा जाय।
ताको तो तब देखिये, दिल की दुविधा जाय।।१३७७।।
अर्थ: तेरे हृदय में राम हैं, पर तुझे वह दिखाई नहीं देते। जब दिल की दुविधा समाप्त हो जाएगी, तभी तू राम को देख सकेगा।
Meaning: Ram resides in your heart, but you cannot see him. You will see him only when the doubts in your heart disappear.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में आत्मज्ञान की बात करते हैं। वे कहते हैं कि ईश्वर आपके हृदय में ही वास करता है, लेकिन उसे देखने के लिए अपने मन की दुविधाओं और संदेहों को दूर करना आवश्यक है। जब मन से सभी संदेह दूर हो जाते हैं, तब ही सच्चे ज्ञान और ईश्वर की प्राप्ति होती है।
नहाये धोये क्या भया, जो मन मैल न जाय।
मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाय।।१३७८।।
अर्थ: नहाने-धोने से क्या लाभ, अगर मन की मैल नहीं जाती? जैसे मछली सदा जल में रहती है, फिर भी उसकी गंध नहीं जाती।
Meaning: What is the use of bathing and cleaning if the mind's impurity remains? Even though the fish lives in water, it still smells.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में बाहरी शुद्धि और आंतरिक शुद्धि के बीच अंतर को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि केवल शरीर को धोने से कुछ नहीं होता अगर मन अशुद्ध बना रहता है। जैसे मछली पानी में रहती है, लेकिन उसकी गंध नहीं जाती, वैसे ही बाहरी स्वच्छता का कोई मतलब नहीं अगर अंदर से व्यक्ति पवित्र नहीं है। यह दोहा हमें सच्चे आत्मशुद्धि की आवश्यकता पर बल देता है।
दुविधा जाके मन बसै, दयावन्त जिय नाहिं।
कबीर त्यागो ताहि को, भूलि देहि जनि बाहिं।।१३७९।।
अर्थ: जिसके मन में दुविधा बसती है, उसका हृदय दयालु नहीं हो सकता। कबीर कहते हैं, ऐसे व्यक्ति को त्याग दो, उसे गले मत लगाओ।
Meaning: The one whose mind is filled with doubts cannot have a compassionate heart. Kabir says, leave such a person, do not embrace him.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मन की दुविधा और उसकी दुष्प्रभावों पर ध्यान दिलाते हैं। वे कहते हैं कि जिस व्यक्ति के मन में हमेशा संदेह और दुविधा होती है, वह सच्ची दया और करुणा को अपने हृदय में नहीं रख सकता। ऐसे व्यक्ति से दूर रहने की सलाह देते हुए कबीर जी कहते हैं कि उसे गले मत लगाओ क्योंकि उसकी संगति आपके जीवन में नकारात्मकता ला सकती है।
सब बन तो तुलसी भई, परबत सालिगराम।
सब नदियां गंगा भई, जाना आतम राम।।१३८०।।
अर्थ: जब व्यक्ति आत्मा में राम को पहचान लेता है, तो सभी वन तुलसी के समान, सभी पर्वत सालिगराम के समान, और सभी नदियां गंगा के समान पवित्र हो जाती हैं।
Meaning: All the forests have become holy like Tulsi, all mountains like Shaligram, and all rivers like the Ganga, when one realizes the divine in the soul.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में बताते हैं कि जब व्यक्ति अपने आत्मा में ईश्वर को पहचान लेता है, तो उसके लिए हर जगह पवित्र हो जाती है। फिर वह हर वन में तुलसी, हर पर्वत में सालिगराम, और हर नदी में गंगा की पवित्रता देखता है। यह दोहा हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और आत्मज्ञान से ही जीवन के हर पहलू में पवित्रता और दिव्यता का अनुभव किया जा सकता है।
निर्मल गुरु के ज्ञान सो, निरमल साधु भाय।
कोइला होय न ऊजला, सौ मन साबुन लाय।।१३८१।।
अर्थ: निर्मल गुरु के ज्ञान से साधु निर्मल बनता है। लेकिन कोयला सौ मन साबुन लाने पर भी उजला नहीं हो सकता।
Meaning: The pure knowledge of the guru makes the saint pure. But coal cannot become white, even with a hundred loads of soap.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में ज्ञान की शक्ति और आंतरिक शुद्धता पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि गुरु के ज्ञान से ही साधु निर्मल बनता है, लेकिन कुछ चीजें, जैसे कोयला, कभी भी अपने मूल स्वभाव को नहीं बदल सकतीं, चाहे जितना भी प्रयास कर लिया जाए। यह दोहा हमें सिखाता है कि सच्ची शुद्धता और ज्ञान आंतरिक गुणों से आती है, न कि बाहरी प्रयासों से।
पूजै सालिगराम को, मन की भ्रान्ति न जाय।
शीतलता सपने नहीं, दिन दिन अधिक लाय।।१३८२।।
अर्थ: शालिग्राम की पूजा करने से मन की भ्रांति दूर नहीं होती। इसके बजाय, शांति के स्थान पर, यह दिन-प्रतिदिन और अधिक भ्रम बढ़ाता है।
Meaning: Worshiping the Shaligram does not remove the delusions of the mind. Instead of peace, it only increases more day by day.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूर्तिपूजा की आलोचना करते हुए कहते हैं कि शालिग्राम की पूजा करने से मन की भ्रांतियाँ दूर नहीं होतीं। वे बताते हैं कि इससे वास्तविक शांति की प्राप्ति नहीं होती, बल्कि व्यक्ति और अधिक भ्रमित होता जाता है। यह दोहा हमें चेताता है कि सच्ची शांति और मुक्ति का मार्ग आत्मज्ञान और आंतरिक शुद्धता से होकर गुजरता है, न कि बाहरी पूजा से।
सेवै सालिगराम को, माया सेती हेत।
पहिरै काली कामली, नाम धरावै सेत।।१३८३।।
अर्थ: कोई शालिग्राम की पूजा करता है, लेकिन माया से प्रेम करता है। वह काली चादर पहनता है, लेकिन अपने आप को पवित्र सफेद नाम से पुकारता है।
Meaning: One worships the Shaligram out of attachment to material wealth. He wears a black blanket but pretends to have a pure white name.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में धार्मिक पाखंड की ओर इशारा करते हैं। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति शालिग्राम की पूजा करता है लेकिन माया (सांसारिक धन) से प्रेम करता है, वह बाहरी रूप से पवित्र दिखने का प्रयास करता है, जबकि अंदर से वह अपवित्र है। यह दोहा हमें सिखाता है कि असली भक्ति वही है जो आंतरिक और बाहरी दोनों रूपों से सच्ची हो।
काजर केरी कोठरी, भसि के किये कपाट।
पाहन भूलि पिरथवी, पंडित पाड़ी वाट।।१३८४।।
अर्थ: काजल से भरी हुई कोठरी, जिसकी दरवाजे बंद हैं, पृथ्वी को भूल जाती है, जबकि पंडित अपनी राहें खुद बनाते हैं।
Meaning: The room full of soot, with doors shut tight, forgets the earth while the learned ones pave their own paths.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में अज्ञानता और आत्ममुग्धता की स्थिति को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि जैसे काजल से भरी हुई कोठरी, जिसके दरवाजे बंद हों, अपनी पृथ्वी (आधार) को भूल जाती है, वैसे ही कुछ विद्वान अपने ज्ञान के घमंड में वास्तविकता से दूर हो जाते हैं। यह दोहा हमें सतर्क करता है कि हम अपनी जड़ें और सच्चाई को न भूलें।
मूरति धरि धंधा रचा, पाहन को जगदीस।
मोल लिया बोलै नहीं, खोटा बिसवा बीस।।१३८५।।
अर्थ: मूर्ति स्थापित करके लोगों ने एक धंधा रचा, पत्थर को भगवान बना दिया। उन्होंने इसे खरीदा, लेकिन यह बोलता नहीं, और इसकी कीमत एक खोटे बीस पैसे के सिक्के से भी कम है।
Meaning: By setting up an idol, people have created a business, turning stone into God. Though they bought it, it doesn't speak, and it's worth less than a counterfeit coin.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूर्तिपूजा की आलोचना करते हुए कहते हैं कि लोगों ने पत्थर की मूर्तियों को भगवान बना दिया है और इससे एक व्यापार की शुरुआत कर दी है। लेकिन ये मूर्तियाँ न तो बोल सकती हैं और न ही इनमें कोई वास्तविक मूल्य है। यह दोहा हमें वास्तविक ईश्वर और भक्ति की ओर प्रेरित करता है, जो आंतरिक और सच्ची होती है।
मन मक्का दिल द्वारिका, काया काशी जान।
दश द्वारे का देहरा, तामें ज्योति पिछान।।१३८६।।
अर्थ: मन को मक्का, दिल को द्वारका और काया (शरीर) को काशी समझो। दस दरवाजों वाले इस मंदिर (शरीर) में मौजूद ज्योति को पहचानो।
Meaning: Consider the mind as Mecca, the heart as Dwarka, and the body as Kashi. Recognize the light within the temple of ten doors (the body).
व्याख्या: कबीर इस दोहे में आत्मा और शरीर के आध्यात्मिक महत्व को उजागर करते हैं। वे कहते हैं कि मन, दिल, और शरीर को पवित्र स्थलों के रूप में समझना चाहिए और अपने शरीर रूपी मंदिर में छिपी हुई ज्योति (आत्मा) को पहचानना चाहिए। यह दोहा हमें अपने भीतर की पवित्रता और ईश्वर की उपस्थिति का बोध कराता है।
दाता दाता चलि गये, रहि गये मक्खी चूस।
दान मान समुझे नहीं, लड़ने को मजबूत।।१३८७।।
अर्थ: उदार दाता चले गए, अब केवल मक्खी चूसने वाले रह गए हैं। वे न दान का मतलब समझते हैं और न ही सम्मान का, लेकिन लड़ने में वे मजबूत हैं।
Meaning: The generous givers have left, leaving behind the miserly who suck even the last drop. They understand neither charity nor honor, but are strong in conflict.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में समाज के पतन की ओर इशारा करते हैं, जहां सच्चे दानी लोग चले गए हैं और उनके स्थान पर केवल स्वार्थी और संकीर्ण मानसिकता वाले लोग रह गए हैं। वे दान और सम्मान की सच्ची भावना को नहीं समझते, लेकिन लड़ाई-झगड़े में वे माहिर होते हैं। यह दोहा हमें समाज में बढ़ती हुई लालच और संघर्ष की प्रवृत्ति पर सोचने के लिए मजबूर करता है।
कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर।।१३८८।।
अर्थ: कबीर कहते हैं, सच्चा संत वही है जो दूसरों का दर्द समझता है। जो दूसरों का दुख नहीं जानता, वह बेपीर और नास्तिक है।
Meaning: Kabir says, the true saint is one who feels the pain of others. The one who doesn't know others' pain is a non-believer, without compassion.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सच्ची पीर (संत) की परिभाषा देते हैं। वे कहते हैं कि सच्चा संत वही है जो दूसरों के दुखों को महसूस करता है। जो व्यक्ति दूसरों की पीड़ा नहीं समझता, वह वास्तविक संत नहीं हो सकता। यह दोहा हमें सहानुभूति और करुणा के महत्व को समझाने की कोशिश करता है।
दया दया सब कोई कहै, मर्म न जानै कोय।
जाति जीव जानै नहीं, दया कहां से होय।।१३८९।।
अर्थ: हर कोई दया की बात करता है, लेकिन कोई इसका मर्म नहीं जानता। जब जीवों की जाति (स्वभाव) को ही नहीं समझते, तो सच्ची दया कैसे हो सकती है?
Meaning: Everyone speaks of compassion, but no one understands its essence. Without understanding the nature of beings, how can one truly be compassionate?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सच्ची दया की कमी पर सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं कि लोग दया की बातें तो बहुत करते हैं, लेकिन इसके मूल भाव को नहीं समझते। जब तक हम जीवों की वास्तविकता और स्वभाव को नहीं समझेंगे, तब तक हमारी दया सच्ची नहीं हो सकती। यह दोहा हमें सच्ची दया और करुणा का अर्थ समझने के लिए प्रेरित करता है।
जहां दया वहां धर्म है, जहां लोभ तहं पाप।
जहां क्रोध वहां काल है, जहां क्षमा वहां आप।।१३९०।।
अर्थ: जहां दया है, वहां धर्म है; जहां लोभ है, वहां पाप है। जहां क्रोध है, वहां मृत्यु है; जहां क्षमा है, वहां ईश्वर है।
Meaning: Where there is compassion, there is righteousness; where there is greed, there is sin. Where there is anger, there is death; where there is forgiveness, there is God.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में चार महत्वपूर्ण मानवीय भावनाओं के प्रभाव को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि दया से धर्म की उत्पत्ति होती है, जबकि लोभ से पाप का। क्रोध मृत्यु की ओर ले जाता है, जबकि क्षमा से ईश्वर की प्राप्ति होती है। यह दोहा हमें सही और गलत के बीच के अंतर को समझने में मदद करता है और हमारे जीवन में दया और क्षमा के महत्व को दर्शाता है।
दया भाव हिरदै नहीं, ज्ञान कथै बेहद।
ते नर नरकहि जाहिंगे, सुनि सुनि साखी शबद।।१३९१।।
अर्थ: जिनके हृदय में दया नहीं है, लेकिन वे ज्ञान की बातें बहुत करते हैं, वे नरक में जाएंगे, भले ही वे कितनी भी साखियां और शब्द सुन लें।
Meaning: Those who have no compassion in their hearts but talk endlessly about knowledge will end up in hell, despite hearing countless teachings.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में उन लोगों की आलोचना करते हैं जो केवल दिखावे के लिए ज्ञान की बातें करते हैं, लेकिन उनके दिल में दया नहीं होती। कबीर कहते हैं कि ऐसे लोग, चाहे वे कितनी भी शिक्षाएँ सुन लें, अंततः नरक में जाएंगे। यह दोहा हमें सिखाता है कि सच्चा ज्ञान वही है जो दया और करुणा के साथ हो।
आचारी सब जग मिला, बीचारी नहिं कोय।
जाके हिरदै गुरु नहीं, जिया अकारथ सोय।।१३९२।।
अर्थ: दुनिया में आचार (रीति-रिवाज) का पालन करने वाले तो बहुत मिलते हैं, लेकिन सच्चे चिंतन करने वाले कोई नहीं हैं। जिनके हृदय में गुरु नहीं हैं, उनका जीवन व्यर्थ है।
Meaning: The world is full of those who follow rituals, but there is no one who truly contemplates. Those without a guru in their hearts live a wasted life.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में आचार और विचार के बीच का अंतर स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं कि केवल आचरण करने से जीवन सफल नहीं होता, सच्चे विचार और चिंतन की आवश्यकता है। जिनके दिल में गुरु की शिक्षा नहीं है, उनका जीवन निरर्थक है। यह दोहा हमें सच्चे गुरु की आवश्यकता और उसके मार्गदर्शन के महत्व को समझाता है।
कुंजर मुख से मन गिरा, खुटै न वाको आहार।
कीड़ी कन लेकर चली, पोषन दे परिवार।।१३९३।।
अर्थ: हाथी अपने मुख से भोजन गिरा देता है, फिर भी उसकी खुराक कम नहीं होती। जबकि चींटी एक दाना लेकर चली, जिससे वह अपने परिवार का पोषण करती है।
Meaning: An elephant drops food from its mouth, yet its nourishment is not diminished. An ant carries a grain to feed its family.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में विनम्रता और कर्तव्य का महत्व बताते हैं। हाथी जैसे बड़े प्राणी के लिए भोजन की कमी नहीं होती, जबकि चींटी जैसे छोटे प्राणी को अपने परिवार का पोषण करने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। यह दोहा हमें सिखाता है कि हमें अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए और अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
भावै जाओ बादरी, भावै जावहु गया।
कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब ते बड़ी दया।।१३९४।।
अर्थ: चाहे तुम बद्रीनाथ जाओ या गया, कबीर कहते हैं, सुनो साधुओं, दया सबसे बड़ी है।
Meaning: Whether you go to Badrinath or Gaya, Kabir says, listen, O seekers, compassion is greater than all.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में धार्मिक यात्राओं की तुलना दया से करते हैं। वे कहते हैं कि चाहे हम कितनी भी तीर्थ यात्राएँ कर लें, अगर हमारे दिल में दया नहीं है, तो वे सब व्यर्थ हैं। यह दोहा हमें सिखाता है कि सभी धार्मिक कृत्यों में दया सबसे महत्वपूर्ण है।
दया धर्म का मूल है, पाप मूल संताप।
जहां क्षमा तहां धर्म है, जहां दया तहां आप।।१३९५।।
अर्थ: दया धर्म का मूल है, पाप का मूल संताप है। जहां क्षमा है, वहां धर्म है; जहां दया है, वहां ईश्वर है।
Meaning: Compassion is the root of righteousness, while sin leads to suffering. Where there is forgiveness, there is virtue; where there is compassion, there is God.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में धर्म और पाप के मूल कारणों की चर्चा करते हैं। वे कहते हैं कि दया से धर्म का जन्म होता है, जबकि पाप से दुख का। जहां क्षमा होती है, वहां धर्म होता है, और जहां दया होती है, वहां ईश्वर का वास होता है। यह दोहा हमें दया और क्षमा के महत्व को समझने के लिए प्रेरित करता है।
दया का लच्छन भक्ति है, भक्ति से होवै ध्यान।
ध्यान से मिलता ज्ञान है, यह सिद्धान्त उरान।।१३९६।।
अर्थ: दया का लक्षण भक्ति है, भक्ति से ध्यान होता है। ध्यान से ज्ञान मिलता है, यही सर्वोच्च सिद्धांत है।
Meaning: Compassion leads to devotion, devotion leads to meditation. Meditation brings knowledge, this is the ultimate principle.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में आध्यात्मिक साधना के मार्ग को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि दया से भक्ति उत्पन्न होती है, भक्ति से ध्यान की प्राप्ति होती है, और ध्यान से ज्ञान का प्रकाश मिलता है। यह दोहा आत्मज्ञान की ओर बढ़ने की प्रक्रिया को सरल और स्पष्ट रूप से समझाता है।
दीन गरीबी दीन को, दंदुर को अभिमान।
दुंदुर तो विष से भरा, दीन गरीबी जान।।१३९७।।
अर्थ: दीनता (विनम्रता) विनम्र व्यक्ति की पहचान है, जबकि अभिमान घमंडी की। अभिमान विष से भरा होता है, दीनता का महत्व समझो।
Meaning: Humility belongs to the humble, pride belongs to the arrogant. Arrogance is filled with poison, understand the value of humility.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में विनम्रता और घमंड के बीच के अंतर को स्पष्ट करते हैं। वे बताते हैं कि विनम्रता सच्चे साधु का गुण है, जबकि अभिमान विषाक्त होता है। यह दोहा हमें सिखाता है कि सच्ची विनम्रता ही हमें सही मार्ग पर ले जा सकती है, जबकि अभिमान हमें पथभ्रष्ट कर सकता है।
दीन गरीबी बंदगी, साधुन सो आधीन।
ताके संग मैं यौं रहूं, ज्यौं पानी संग मीन।।१३९८।।
अर्थ: दीनता और सेवा ही सच्ची भक्ति है, और साधु ही विनम्र व्यक्ति का सहारा हैं। मैं उनके साथ उसी तरह रहना चाहता हूं जैसे मछली पानी के साथ रहती है।
Meaning: Humility and service are the true devotion, and the humble are dependent on the saints. I wish to stay with them just as a fish stays in water.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सच्चे साधु की संगति और सेवा की महत्ता पर बल देते हैं। वे कहते हैं कि विनम्रता और सेवा ही सच्ची भक्ति का मार्ग हैं, और साधु ही इस मार्ग पर चलने वाले के सहायक हैं। यह दोहा हमें सिखाता है कि साधुओं की संगति और उनकी सेवा में रहकर ही हम सच्चे आध्यात्मिक मार्ग पर चल सकते हैं।
दर्शन को तो साधु हैं, सुमिरन को गुरु नाम।
तरने को आधीनता, डूबन को अभिमान।।१३९९।।
अर्थ: साधु दर्शन के लिए हैं, गुरु का नाम स्मरण के लिए। आधीनता (विनम्रता) से जीवन का समुद्र पार होता है, जबकि अभिमान से डूब जाते हैं।
Meaning: The saints are for spiritual vision, the guru's name is for remembrance. Humility is the means to cross the ocean of life, while pride leads to drowning.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में साधु और गुरु के महत्व को दर्शाते हैं। साधु का संग आत्मदर्शन के लिए और गुरु का नाम स्मरण के लिए होता है। विनम्रता से ही जीवन के कठिन मार्ग को पार किया जा सकता है, जबकि अभिमान से हम अपने जीवन को संकट में डाल देते हैं। यह दोहा हमें साधु और गुरु की महत्ता के साथ-साथ विनम्रता का महत्व भी समझाता है।
कबीर सबते हम बुरे, हमते भल सब कोय।
जिन ऐसा करि बूझिया, मीत हमारा सोय।।१४००।।
अर्थ: कबीर कहते हैं, 'मैं सबमें सबसे बुरा हूं, बाकी सब मुझसे बेहतर हैं।' जिसने ऐसा समझ लिया, वह मेरा सच्चा मित्र है।
Meaning: Kabir says, 'I am the worst of all, everyone else is better than me.' The one who understands this is my true friend.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में गहरी विनम्रता का भाव व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि खुद को सबसे नीचा समझना ही सच्ची विनम्रता है, और जो इस भाव को समझता है, वही सच्चा मित्र हो सकता है। यह दोहा हमें अहंकार छोड़कर विनम्रता अपनाने की प्रेरणा देता है।