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संत कबीर जी के दोहे — 2251 to 2300

तिलभर मछली खाय के, कोटि गऊ दै दान।
काशी करात लै मरै, तो भी नरक निदान।।२२५१।।

अर्थ: यदि कोई तिलभर मछली खाता है और फिर करोड़ों गायों का दान करता है, या काशी में विधिपूर्वक मरता है, तो भी उसका नरक ही नसीब है।

Meaning: Even if one eats a tiny bit of fish and then donates millions of cows, Or dies in Kashi with sacred rituals, hell is still their destiny.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी बताते हैं कि अगर कोई व्यक्ति मछली का एक तिलभर हिस्सा भी खाता है और बाद में करोड़ों गायों का दान करता है, या काशी में पवित्र अनुष्ठानों के साथ मरता है, तो भी उसके पापों के कारण उसे नरक जाना पड़ेगा। यह दोहा इस बात को रेखांकित करता है कि पाप के कार्यों से कोई भी धार्मिक अनुष्ठान या दान उसे बचा नहीं सकता।


काटि कटि जबह करै, या पाप संग का भेस।
निश्‍च राम न जानही, कहै कबीर संदेस।।२२५२।।

अर्थ: जो लोग वध करते हैं और बलि चढ़ाते हैं, पाप के भेस में रहकर, वे निश्चित रूप से राम को नहीं जान पाएंगे, कबीर का संदेश यही है।

Meaning: Those who butcher and commit sacrifices, adopting the guise of sin, Will certainly not know Ram, says Kabir's message.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि जो लोग हिंसा और हत्या का मार्ग चुनते हैं और पाप में लिप्त रहते हैं, वे सच्चे परमात्मा (राम) को कभी नहीं जान पाते। कबीर जी का यह संदेश इस बात पर जोर देता है कि जो लोग पाप में लिप्त रहते हैं, वे सच्चाई और ईश्वर की भक्ति से वंचित रह जाते हैं।


बकरी पाती खात है, ताकी काढी खाल।
जो बकरी को खात है, तिनका कौन हवाल।।२२५३।।

अर्थ: बकरी पत्तियाँ खाती है, फिर भी उसकी खाल उतारी जाती है। जो लोग बकरी को खाते हैं, उनका क्या हाल होगा?

Meaning: The goat eats leaves, yet its skin is stripped off. What fate awaits those who eat the goat itself?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी बकरी का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि जो बकरी केवल पत्तियाँ खाती है, उसे भी लोग मारकर उसकी खाल उतार लेते हैं। तो जो लोग बकरी का मांस खाते हैं, उनके कर्मों का परिणाम कितना भयानक होगा? यह दोहा इस बात पर जोर देता है कि हिंसा और निर्दोष प्राणियों को मारने वालों को उनके पापों का भारी परिणाम भुगतना पड़ेगा।


आठ बाट बकरी गई, सांस मुलां गये खाय।
अजहूं खाल खटीकै, भीस्‍त कहांते जाय।।२२५४।।

अर्थ: बकरी के आठ हिस्से कर दिए गए, और मुल्ला ने उसे खा लिया। अब भी वे उसकी खाल को खरोंच रहे हैं; वे स्वर्ग कैसे जाएंगे?

Meaning: The goat, split in eight parts, has been eaten by the priest. Even now, they scrape its skin; how will they reach heaven?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि बकरी के आठ हिस्से कर दिए गए और मुल्ला ने उसे खा लिया, लेकिन अब भी वे उसकी खाल को खरोंच रहे हैं। ऐसे पाप करने वाले लोग स्वर्ग कैसे जा सकते हैं? यह दोहा उन लोगों पर व्यंग्य करता है जो धार्मिक होने का दिखावा करते हैं, लेकिन उनके कार्य पाप से भरे होते हैं। ऐसे लोग मोक्ष या स्वर्ग की प्राप्ति नहीं कर सकते।


अंडा किन बिसमिल किया, घुन किया किन हलाल।
मछली किन जबह करी, सब खाने का ख्‍याल।।२२५५।।

अर्थ: अंडे को किसने बिसमिल किया और उसे खाने के योग्य बनाया? मछली को किसने जबह किया? सब लोग केवल खाने के बारे में सोचते हैं।

Meaning: Who slaughtered the egg and made it permissible to eat? Who butchered the fish? Everyone is focused only on what they eat.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी प्रश्न करते हैं कि अंडे और मछली को किसने बिसमिल और हलाल किया? वह कहते हैं कि लोग केवल खाने के बारे में सोचते हैं, परंतु वे यह नहीं समझते कि उनके ये कृत्य पाप के श्रेणी में आते हैं। इस दोहे के माध्यम से कबीर जी भोजन के प्रति लोगों के दृष्टिकोण की आलोचना कर रहे हैं, विशेषकर जब वह हिंसा पर आधारित हो।


मुल्‍ला तझै करीम का, कब आया फरमान।
घट फोरा घर घर किया, साहब का नीसान।।२२५६।।

अर्थ: मुल्ला, तुम्हें करीम (ईश्वर) का आदेश कब मिला? तुम घर-घर जाकर बर्तन तोड़ते हो, इसे साहब (ईश्वर) का निशान बताकर।

Meaning: Mulla, when did you receive the command from Karim (God)? You go from house to house breaking vessels, claiming it as a sign from God.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी मुल्लाओं को संबोधित करते हुए पूछते हैं कि क्या उन्हें सच में ईश्वर का आदेश मिला है? वह यह भी कहते हैं कि मुल्ला घर-घर जाकर बर्तन तोड़ते हैं और इसे ईश्वर का संकेत बताते हैं। यह दोहा दिखावा और ढोंग के खिलाफ है, जहाँ लोग धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाते हैं।


काजी का बेटा मुआ, उरमैं सालै पीर।
वह साहब सबका पिता, भला न मानै बीर।।२२५७।।

अर्थ: काज़ी का बेटा मर गया, और पीर (संत) गहरे दुख में है। साहब (ईश्वर) सभी का पिता है, लेकिन योद्धा (काजी) इसे स्वीकार नहीं करता।

Meaning: The Qazi's son died, and the Pir (saint) is deeply troubled. God is the father of all, yet the warrior does not accept this.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि काज़ी का बेटा मर गया और पीर दुखी है। लेकिन वह समझाते हैं कि ईश्वर सभी का पिता है और जीवन-मृत्यु ईश्वर की इच्छा पर निर्भर है। योद्धा (काजी) इसे मानने को तैयार नहीं है, क्योंकि वह अपने अहंकार में लिप्त है। इस दोहे के माध्यम से कबीर जी अहंकार और ईश्वर की सर्वव्यापकता के विषय में सिखा रहे हैं।


पीर सबन को एकसी, मूरख जानैं नाहिं।
अपना गला कटायक, भिश्‍त बसै क्‍यों नाहिं।।२२५८।।

अर्थ: पीर सभी के लिए एक समान है, लेकिन मूर्ख इसे नहीं समझते। वे अपना गला काटते हैं, फिर भी वे स्वर्ग क्यों नहीं जाते?

Meaning: The saint is the same for all, but the ignorant do not understand. They cut their own throats, yet why don't they go to heaven?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि सच्चे संत सभी के लिए एक समान होते हैं, लेकिन मूर्ख लोग इसे नहीं समझते। वे अपने कर्मों से खुद को ही नुकसान पहुंचाते हैं, परंतु फिर भी उन्हें स्वर्ग नहीं मिलता। यह दोहा लोगों को धर्म के वास्तविक मर्म को समझने की प्रेरणा देता है, बजाय इसके कि वे अंधविश्वास और गलतफहमियों में पड़कर अपने जीवन को कष्ट में डालें।


मुरगी मुल्‍ला सों कहै, जबह करत है मोहिं।
साहब लेखा मांगसी, संकट परिहै तोहिं।।२२५९।।

अर्थ: मुर्गी मुल्ला से कहती है, 'तुम मुझे जबह करते हो, लेकिन जब साहब (ईश्वर) तुमसे हिसाब मांगेगा, तब तुम संकट में पड़ोगे।'

Meaning: The hen says to the Mulla, 'You slaughter me, But when God asks for your account, you will be in trouble.'

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने मुर्गी और मुल्ला का उदाहरण देकर बताया है कि मुर्गी कहती है कि मुल्ला उसे मारता है, लेकिन जब ईश्वर उससे उसके कर्मों का हिसाब मांगेगा, तब उसे गंभीर संकट का सामना करना पड़ेगा। यह दोहा इस बात की ओर इशारा करता है कि कोई भी व्यक्ति अपने बुरे कर्मों से नहीं बच सकता, चाहे वह कितना भी धार्मिक होने का दिखावा करे।


कबिरा काजी स्‍वाद बस, जीव हते तब दोय।
चढ़‍ि मसीत एको कहै, क्‍यों दरगह सांचा होय।।२२६०।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, 'स्वाद के बस में होकर काज़ी दो जीवों की हत्या करता है। वह मस्जिद में चढ़कर पूछता है, कि आखिर सच्चाई दरगाह (परलोक) में कैसे मिलेगी?'

Meaning: Kabir says, 'Driven by taste, the Qazi kills two lives. He climbs the mosque and asks, how can the truth be found in the afterlife?'

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी बताते हैं कि काजी स्वाद की लालसा में आकर जीवों की हत्या करता है और फिर धर्म के नाम पर मस्जिद में चढ़कर सवाल उठाता है कि परलोक में सच्चाई कैसे मिलेगी। यह दोहा इस बात पर प्रकाश डालता है कि धर्म का पालन केवल दिखावे के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि सच्चाई और करुणा के साथ होना चाहिए।


काजी मुल्‍लां भरमिया, चले दुनी के साथ।
दिल सो दीन निवारिया, करद लई तद हाथ।।२२६१।।

अर्थ: काज़ी और मुल्ला भ्रमित हो गए हैं, वे दुनियादारी के पीछे चल रहे हैं। उन्होंने अपने दिल से धर्म को निकाल दिया है और हाथ में चाकू ले लिया है।

Meaning: The Qazi and Mulla are deluded, following worldly desires. They have removed religion from their hearts, taking the knife in hand.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि काज़ी और मुल्ला दुनियादारी में फंसकर भ्रमित हो गए हैं। उन्होंने अपने दिल से सच्चे धर्म को निकालकर हिंसा का रास्ता अपना लिया है। यह दोहा धार्मिक नेताओं के ढोंग और पाखंड की आलोचना करता है, जो धर्म के नाम पर हिंसा करते हैं।


काला मुंह करि करद का, दिल सूं दई निवार।
सब सूरति सुबहान की, अहमक मुला न मार।।२२६२।।

अर्थ: उन्होंने चाकू के साथ अपना चेहरा काला कर लिया है और दिल से धर्म को हटा दिया है। सभी रूप परमात्मा के हैं, लेकिन मूर्ख मुल्ला इसे नहीं समझता।

Meaning: They have blackened their faces with the knife, removing religion from their hearts. All forms belong to God, but the foolish Mulla does not understand.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि जिन लोगों ने हिंसा का मार्ग अपनाया है, उन्होंने अपने चेहरे को काला कर लिया है, अर्थात् अपने कर्मों को दूषित कर लिया है। वे अपने दिल से सच्चे धर्म को हटा चुके हैं। कबीर जी यहाँ समझाते हैं कि सभी जीवों के रूप ईश्वर के हैं, लेकिन मूर्ख मुल्ला इसे समझ नहीं पाता। यह दोहा धर्म के सही मर्म को समझने की प्रेरणा देता है।


जोरी करि जबह करै, मुखसों कहै हलाल।
साहब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।२२६३।।

अर्थ: वे बलपूर्वक हत्या करते हैं और इसे हलाल बताते हैं। जब साहब (ईश्वर) उनसे हिसाब मांगेगा, तब उनकी क्या दशा होगी?

Meaning: They commit slaughter by force, claiming it is permissible. When God asks for an account, what will be their state?

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी बताते हैं कि लोग जबरदस्ती हत्या करते हैं और इसे धार्मिक रूप से जायज़ ठहराते हैं। लेकिन जब ईश्वर उनसे उनके कर्मों का हिसाब मांगेगा, तब उनकी क्या हालत होगी? यह दोहा इस बात पर जोर देता है कि कोई भी व्यक्ति अपने बुरे कर्मों से नहीं बच सकता, चाहे वह उन्हें धार्मिकता का आवरण देकर ही क्यों न करे।


जोर कीयां जुलूम है, मागै ज्‍वाब खदाय।
खलिक दर खूनी खड़ा, मार मुही मुंह खाय।।२२६४।।

अर्थ: बलपूर्वक किया गया अत्याचार क्रूरता है, जिसके लिए ईश्वर जवाब मांगेगा। सृष्टिकर्ता हत्यारे के सामने खड़ा है, और उनके कर्म उन्हें निगल जाएंगे।

Meaning: Oppression by force is cruelty, for which God will demand an answer. The creator stands before the murderer, and their actions will devour them.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि बलपूर्वक किया गया अत्याचार एक बड़ा पाप है और इसके लिए ईश्वर उनसे जवाब तलब करेंगे। हत्यारे के सामने सृष्टिकर्ता खड़ा होगा और उसके बुरे कर्म अंततः उसे ही नष्ट कर देंगे। यह दोहा हिंसा और अत्याचार की निंदा करता है और ईश्वर के न्याय की चेतावनी देता है।


कबिरा साई पीर हैं, जो जानै पर पीर।
जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बपीर।।२२६५।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, 'सच्चा संत वही है जो दूसरों का दर्द समझता है। जो दूसरों का दर्द नहीं समझता, वह काफिर और बेमानुष है।'

Meaning: Kabir says, 'A true saint is one who feels the pain of others. Those who don't feel the pain of others are infidels and without faith.'

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी सच्चे संत की पहचान बताते हैं। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति दूसरों का दुख समझता है और उसकी सहायता करता है, वही सच्चा संत है। जो दूसरों की पीड़ा से अनजान है, वह काफिर (अविश्वासी) और बिना दया के है। कबीर जी इस दोहे में सहानुभूति और करुणा की महत्ता पर जोर देते हैं।


कमोदनीं जलहरि बसै, चंदा बसे अकासि।
जो जाही का भावता, सो ताही कै पास।।२२६६।।

अर्थ: कमल जल में बसता है, और चंद्रमा आकाश में निवास करता है। जो जिसे प्रिय है, वही उसके पास जाता है।

Meaning: The lotus lives in the water, and the moon resides in the sky. Everyone goes where their heart desires.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी प्रकृति के माध्यम से जीवन के एक गहरे सत्य को समझाते हैं। जैसे कमल जल में और चंद्रमा आकाश में रहता है, वैसे ही हर व्यक्ति अपनी रुचि और पसंद के अनुसार अपने जीवन का मार्ग चुनता है। यह दोहा इस बात को रेखांकित करता है कि व्यक्ति का स्वभाव और उसकी पसंद उसके जीवन की दिशा तय करती है।


कबीर गुर बसै बनारसी, सिष समंदां तीर।
बिसारया नहीं बीसरै, जै गुंण होई सरीर।।२२६७।।

अर्थ: कबीर कहते हैं, 'गुरु बनारस में रहते हैं, और शिष्य समुद्र के किनारे। गुरु के गुण शिष्य के शरीर से कभी नहीं मिटते।'

Meaning: Kabir says, 'The guru resides in Varanasi, and the disciple by the ocean's shore. The virtues of the guru never fade from the disciple's body.'

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी गुरु-शिष्य के संबंधों की महत्ता बताते हैं। भले ही गुरु और शिष्य भौतिक रूप से दूर हों, लेकिन गुरु के गुण और सिखावन शिष्य के मन-मस्तिष्क में स्थायी रूप से बने रहते हैं। यह दोहा गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा और उनके दिए गए ज्ञान की महिमा को दर्शाता है।


जो है जाका भावता, जदि तदि म‍िलसी आइ।
जाकौं तन मन सौंपिया, सो कबहूं छाड़ी न जाइ।।२२६८।।

अर्थ: जो भी किसी को प्रिय होता है, वह उसे मिल जाता है। जिसे आपने अपने तन-मन से समर्पित किया है, वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा।

Meaning: Whatever one desires, it will come to them. Whoever you dedicate your body and mind to, they will never leave you.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी इस सत्य को बताते हैं कि जिस व्यक्ति को आप अपने दिल से चाहते हैं, वह किसी न किसी तरह आपके जीवन में आता है। जब आप किसी को पूरे दिल से समर्पित हो जाते हैं, तो वह व्यक्ति या वह भावना आपको कभी नहीं छोड़ती। यह दोहा सच्ची भक्ति और समर्पण की महत्ता को दर्शाता है।


स्‍वामी सेवक एक मत, मन ही मैं म‍िलि जाइ।
चतुराई रीझै नहीं, रीझै मन कै भाइ।।२२६९।।

अर्थ: स्वामी और सेवक एक ही मन रखते हैं, वे आत्मा में एक हो जाते हैं। चतुराई से नहीं, बल्कि केवल दिल से की गई भक्ति से स्वामी प्रसन्न होते हैं।

Meaning: Master and servant share the same mind, they merge in spirit. Cunning does not please, only the love of the heart does.

व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी स्वामी और सेवक के संबंध को स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं कि जब स्वामी और सेवक एक ही विचारधारा और भावना में डूब जाते हैं, तो वे आत्मा के स्तर पर एक हो जाते हैं। केवल चतुराई से नहीं, बल्कि सच्ची भावना और प्रेम से ही स्वामी (ईश्वर) प्रसन्न होते हैं। यह दोहा सच्चे समर्पण और प्रेम की शक्ति को दर्शाता है।