निगुरा ब्राह्मण नहिं भला, गुरुमुख भला चमार।
देवतन से कुत्ता भला, नित उठि भुंके द्वार।।५५१।।
अर्थ: बिना गुरु के ब्राह्मण अच्छा नहीं होता, जबकि गुरु के शिष्य को चमार होने पर भी श्रेष्ठ माना जाता है। देवताओं से भौंकने वाला कुत्ता भी, बिना भक्ति के देवता से बेहतर होता है।
Meaning: A Brahmin without Guru is not good, while a disciple of the Guru is better even if he is a chamar. A dog, who barks at the door of the gods, is better than a deity without devotion.
व्याख्या: कबीर जी ने इस दोहे में बताया है कि गुरु के बिना किसी भी जाति या वर्ग का व्यक्ति असंगत होता है, जबकि गुरु के शिष्य की कोई भी स्थिति हो, वह श्रेष्ठ होता है। इसी तरह, भक्ति के बिना देवता की स्थिति भी कुत्ते से बेहतर नहीं होती।
कंचन मेरु अरपहीं, अरपै कनक भण्डार।
कहैं कबीर गुरु बेमुखी, कबहुं न पावै पार।।५५२।।
अर्थ: यदि स्वर्ण मेरु पर्वत को अर्पित किया जाए और सोने का भंडार भी दिया जाए, फिर भी गुरु से विमुख व्यक्ति कभी पार नहीं लग सकता।
Meaning: Even if gold is offered to Mount Meru and a storehouse of gold is given, says Kabir, one who turns away from the Guru will never reach the other shore.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने कहा है कि भले ही कितनी भी भव्य वस्तुएं दी जाएं, गुरु के प्रति विमुखता से व्यक्ति को कभी भी मुक्ति या सही मार्ग पर नहीं पहुंचा जा सकता। गुरु के बिना जीवन का उद्देश्य अधूरा रहता है।
गगन मंडल के बीच में, तहवां झलकै नूर।
निगुरा महल न पावई, पहुंचेगा गुरु पूर।।५५३।।
अर्थ: आसमान के बीच में एक प्रकाश की झलक होती है। गुरु के बिना महल नहीं मिलते; केवल गुरु तक पहुँचने से पूर्णता प्राप्त होती है।
Meaning: In the midst of the sky, there is a glimpse of light. A palace without a Guru is not attained; only by reaching the Guru does one achieve completeness.
व्याख्या: यह दोहा कहता है कि आसमान के बीच में एक प्रकाश की झलक होती है, जैसे गुरु के बिना जीवन में पूर्णता प्राप्त नहीं होती। गुरु की उपस्थिति और आशीर्वाद से ही जीवन में सच्ची पूर्णता और सफलता मिलती है।
गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन सब निष्फल गया, पूछौ वेद पुरान।।५५४।।
अर्थ: गुरु के बिना केवल माला फेरते हैं और दान करते हैं। गुरु के बिना सब बेकार है, वेदों और पुराणों से पूछिए।
Meaning: Without a guru, one only spins the beads and makes offerings. Without a guru, everything is futile; ask the Vedas and Puranas.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने बताया है कि गुरु के बिना सभी धार्मिक क्रियाएँ जैसे माला फेरना और दान करना बेकार हैं। गुरु के बिना वेद और पुराण भी व्यक्ति को सही मार्ग नहीं दिखा सकते। इसलिए गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है।
सूता साधु जगाइये, करै ब्रह्म को जाप।
ये तीनों न जगाइये, साकट सिंह अरु सांप।।५५५।।
अर्थ: सोए हुए साधु को जगाइये और ब्रह्मा का जाप कराइये। लेकिन इन तीनों को मत जगाइये: कंजूस, शेर और साँप।
Meaning: Wake up the sleeping saint and make him chant the name of Brahma. But do not wake up these three: the miser, the lion, and the snake.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने कहा है कि सोए हुए साधु को जागृत करना और उसे ब्रह्मा का जाप कराना चाहिए। हालांकि, कंजूस, शेर और साँप को नहीं जगाना चाहिए क्योंकि ये सभी खतरनाक हैं।
हरिजन की लातां भलीं, बुरि साकट की बात।
लातों में सुख ऊपजे, बाते इज्जत जात।।५५६।।
अर्थ: हरिजन की लातें बेहतर हैं, बजाए कंजूस की बातों के। लातों में सुख मिलता है, और बातों में इज्जत।
Meaning: The kick of a Harijan is better, than the praise of a miser. Happiness arises from kicks, while respect comes from words.
व्याख्या: कबीर जी इस दोहे में कहते हैं कि हरिजन की लातें भी कंजूस की प्रशंसा से बेहतर हैं। वे यह भी कहते हैं कि असली सुख लातों में मिलता है, जबकि इज्जत केवल बातों से मिलती है।
शुकदेव सरिखा फेरिया, तो को पावै पारा।
गुरु बिन निगुरा जो रहै, पड़े चौरासी धार।।५५७।।
अर्थ: जो शुकदेव की तरह घूमता है, उसे पारा मिलता है। गुरु के बिना, व्यक्ति चौरासी लाख योनियों में भटकता रहता है।
Meaning: One who circulates like Shukdev finds the essence. Without a guru, one remains a wanderer and suffers through eighty-four lakhs of births.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने शुकदेव की तरह प्रवृत्तियों की बात की है। बिना गुरु के व्यक्ति चौरासी लाख योनियों में भटकता रहता है। इसलिए गुरु की आवश्यकता होती है।
कबीर दर्शन साधु का, बड़े भाग दरशाय।
जो होवै सूली सजा, कांटे ई टरि जाय।।५५८।।
अर्थ: साधु का दर्शन बड़ी किस्मत की बात है। जो सूली की सजायें सहता है, उसके कांटे हट जाते हैं।
Meaning: The vision of a saint is a great fortune. The one who suffers punishment like the cross, has their thorns removed.
व्याख्या: कबीर जी ने साधु के दर्शन को बहुत बड़ी किस्मत बताया है। ऐसे व्यक्ति जो सूली की सजाएं सहता है, उसके जीवन की कठिनाइयाँ और समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं।
कबीर सोई दिन भला, जा दिन साधु मिलाय।
अंक भरि भरि भेटिये, पाप शरीरा जाय।।५५९।।
अर्थ: वह दिन सचमुच अच्छा होता है, जब साधु से मिलते हैं। उसके साथ मिलकर और अपने दिल को भरकर, शरीर से पाप समाप्त हो जाते हैं।
Meaning: The day is truly good when one meets a saint. By meeting him and filling one's heart, sins are removed from the body.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने बताया है कि साधु से मिलना एक शुभ दिन है। साधु के साथ समय बिताकर और अपने दिल को भरकर, व्यक्ति के पाप समाप्त हो जाते हैं।
तीरथ न्हाये एक फल, साधु मिले फल चार।
सतगुरु मिले अनेक फल, कहैं कबीर विचार।।५६०।।
अर्थ: तीरथ में स्नान से एक फल मिलता है, साधु से मिलने से चार फल मिलते हैं। सच्चे गुरु से मिलने से अनेक फल मिलते हैं, ऐसा कबीर कहते हैं।
Meaning: A pilgrimage yields one fruit, meeting a saint yields four fruits. Meeting the true guru yields many fruits, says Kabir.
व्याख्या: कबीर जी के अनुसार, तीर्थ यात्रा से एक फल मिलता है, साधु से मिलने से चार फल मिलते हैं, और सच्चे गुरु से मिलने से कई फल प्राप्त होते हैं। यह गुरु की महिमा को दर्शाता है।
कबीर दर्शन साधु के, करत न कीजै कानि।
ज्यों उद्यम से लक्ष्मी, आलस मन से हानि।।५६१।।
अर्थ: साधु के दर्शन में आलस्य मत दिखाइए। जैसे मेहनत से लक्ष्मी प्राप्त होती है, आलस्य से हानि होती है।
Meaning: Do not be lazy in visiting saints. Just as effort brings wealth, laziness brings loss.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने साधु के दर्शन में आलस्य से बचने की सलाह दी है। मेहनत से धन मिलता है, जबकि आलस्य से हानि होती है।
दरशन कीजै साधु का, दिन में कई कई बार।
असोजा का मेह ज्यों, बहुत करे उपकार।।५६२।।
अर्थ: साधु के दर्शन को दिन में कई बार जाइए। जैसे असोजा का मेह बहुत उपकार करता है, वैसे साधु का बार-बार दर्शन भी लाभकारी है।
Meaning: Visit the saint's sight many times a day. Just as the monsoon rains do great good, so does frequent sight of the saint.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जी ने कहा है कि साधु के दर्शन को दिन में कई बार जाना चाहिए। जैसे असोजा का बारिश बहुत लाभकारी होती है, साधु का बार-बार दर्शन भी बहुत उपकारी होता है।
कई बार नहिं कर सके, दोय बख्त करि लेय।
कबीर साधु दरश ते, काल दगा नहिं देय।।५६३।।
अर्थ: जो कई बार स्नान नहीं कर सकता, वह दिन में दो बार स्नान कर ले। कबीर कहते हैं, साधु का दर्शन कभी धोखा नहीं देता।
Meaning: One who cannot bathe often, should bathe twice a day. Kabir says, the sight of a saint does not deceive.
व्याख्या: कबीर जी ने कहा है कि जो व्यक्ति अक्सर स्नान नहीं कर सकता, उसे दिन में दो बार स्नान करना चाहिए। साधु का दर्शन कभी धोखा नहीं देता; इससे व्यक्ति को सही मार्गदर्शन मिलता है और जीवन में सच्चाई और स्थिरता बनी रहती है।
दोख बखत नहिं करि सके, दिन में करु इक बार।
कबीर साधु दरश ते, उतरे भौजल पार।।५६४।।
अर्थ: अच्छे समय में भी कोई काम नहीं कर सकता, दिन में एक बार तो अवश्य कर लें। कबीर कहते हैं कि संत के दर्शन से समुद्र पार कर सकते हैं।
Meaning: One cannot accomplish anything in a short time; do it at least once a day. Kabir says, through the sight of a saint, one can cross the ocean of life.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर संत के महत्व को दर्शाते हैं और यह भी बताते हैं कि हमें किसी भी महत्वपूर्ण काम को तुरंत करने की कोशिश करनी चाहिए। अगर हम दिन में एक बार भी कोशिश करें, तो सफलता प्राप्त कर सकते हैं। संत के दर्शन से जीवन की कठिनाइयों से पार पाया जा सकता है।
एक दिना नहिं करि सके, दूजे दिन कर लेह।
कबीर साधु दरश ते, पावै उत्तम देह।।५६५।।
अर्थ: अगर आप आज नहीं कर सकते तो अगले दिन कर लें। कबीर कहते हैं कि संत के दर्शन से उत्तम शरीर प्राप्त होता है।
Meaning: If you cannot do it today, then do it the next day. Kabir says, through the sight of a saint, you will attain a superior body.
व्याख्या: यह दोहा हमें बताता है कि यदि हम आज कोई काम पूरा नहीं कर पाते, तो उसे अगले दिन करने का प्रयास करना चाहिए। संत के दर्शन से हमें उत्तम शरीर प्राप्त होता है, जो जीवन की कठिनाइयों को आसानी से सहन करने में मदद करता है।
दूजे दिन नहिं करि सके, तीजे दिन करु जाय।
कबीर साधु दरश ते, मोक्ष मुक्ति फल पाय।।५६६।।
अर्थ: अगर अगले दिन नहीं कर पाते तो तीसरे दिन कर लें। कबीर कहते हैं कि संत के दर्शन से मोक्ष और मुक्ति प्राप्त होती है।
Meaning: If you cannot do it the next day, then do it on the third day. Kabir says, through the sight of a saint, one can attain liberation and salvation.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह स्पष्ट करते हैं कि अगर किसी काम को अगले दिन पूरा नहीं कर पाते, तो तीसरे दिन पूरा करने का प्रयास करें। संत के दर्शन से मोक्ष और मुक्ति प्राप्त होती है, जो जीवन की अंतिम सफलता है।
तीजे चौथे नहिं करे, बार-बार करु जाय।
यामें विलंब न कीजिये, कहैं कबीर समुझाय।।५६७।।
अर्थ: अगर तीसरे या चौथे दिन नहीं कर पाते तो बार-बार प्रयास करें। इसमें विलंब न करें; कबीर इसे समझाने की सलाह देते हैं।
Meaning: If you do not do it on the third or fourth day, then do it repeatedly. Do not delay in this; Kabir advises to understand this.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में कहते हैं कि अगर किसी काम को तीसरे या चौथे दिन भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं, तो बार-बार प्रयास करें। इसे टालना नहीं चाहिए। संतों के अनुभव से हमें यह समझना चाहिए कि लगातार प्रयास ही सफलता की कुंजी है।
पाख पाख नहिं करि सकै, मास-मास करु जाय।
यामें देर न लाइये, कहैं कबीर समुझाय।।५६८।।
अर्थ: अगर मौसम के अनुसार नहीं कर सकते, तो महीने के अनुसार करें। इसमें देरी न करें; कबीर इसे समझाने की सलाह देते हैं।
Meaning: If you cannot do it seasonally, then do it monthly. Do not delay in this; Kabir advises to understand this.
व्याख्या: यह दोहा यह सिखाता है कि अगर किसी काम को मौसम के अनुसार नहीं किया जा सकता, तो इसे महीने के अनुसार करना चाहिए। कबीर यह सलाह देते हैं कि इसमें देरी नहीं करनी चाहिए, अन्यथा समय निकल जाएगा।
मास-मास नहिं करि सकै, छठै मास अलबत्त।
यामें ढील न कीजिए, कहैं कबीर अविगत।।५६९।।
अर्थ: अगर महीने के अनुसार नहीं कर सकते, तो छठे महीने में करें। इसमें ढील न दें; कबीर लगातार प्रयास करने की सलाह देते हैं।
Meaning: If you cannot do it monthly, then do it every six months. Do not slack in this; Kabir advises to be persistent.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में यह सलाह देते हैं कि अगर महीने के अनुसार कोई काम नहीं कर पा रहे हैं, तो इसे हर छठे महीने में करें। इसमें ढील नहीं देनी चाहिए, क्योंकि लगातार प्रयास ही सफलता की कुंजी है।
बरस-बरस नहिं करि सकै, ताको लागे दोष।
कहैं कबीर वा जीव सो, कबहु न पावै मोष।।५७०।।
अर्थ: अगर कोई साल-दर-साल नहीं कर सकता, तो उसे दोषी मानना चाहिए। कबीर कहते हैं कि ऐसा जीव कभी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकेगा।
Meaning: If one cannot do it year after year, they are at fault. Kabir says, such a soul will never attain liberation.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह स्पष्ट करते हैं कि यदि कोई व्यक्ति साल भर भी अपने काम को नियमित रूप से नहीं करता, तो उसे दोषी माना जाना चाहिए। ऐसा व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि मोक्ष प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास और नियमितता की आवश्यकता होती है।
मात पिता सुत स्त्री, आलस बन्धु कानि।
साधु दरश को जब चलै, ये अटकावै आनि।।५७१।।
अर्थ: माता-पिता, संतान, पत्नी, आलस्य, और मित्र इन सभी में बाधाएँ आ सकती हैं। जब एक साधु सत्य के मार्ग पर चलते हैं, तो ये अटकाव आ जाते हैं।
Meaning: Mother, father, son, wife, laziness, and friends can cause hindrance. When a saint walks towards the path of truth, these obstacles come in the way.
व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने बताया है कि जीवन में माता-पिता, संतान, पत्नी, आलस्य और मित्र भी जीवन की प्रगति में बाधाएँ उत्पन्न कर सकते हैं। जब एक साधु सत्य की ओर बढ़ते हैं, तो इन्हीं बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
साधु शब्द समुद्र है, जामें रतन भराय।
मन्द भाग मुट्ठी भरै, कंकर हाथ लगाय।।५७२।।
अर्थ: साधु के शब्द समुद्र की तरह होते हैं, जिनमें रत्न भरे हुए होते हैं। भाग्यशाली व्यक्ति को उन रत्नों में से एक मुट्ठी भर मिलती है, जबकि दुर्भाग्यशाली व्यक्ति केवल कंकड़ ही छू पाता है।
Meaning: The words of the saint are like an ocean filled with jewels. A fortunate person may receive a handful of those jewels, while the unfortunate may only touch pebbles.
व्याख्या: इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी ने बताया है कि साधु के शब्दों में अपार ज्ञान और मूल्य होते हैं। कुछ लोगों को इस ज्ञान का एक हिस्सा मिलता है, जबकि कुछ लोग केवल सतही बातों तक ही सीमित रहते हैं।
साधु मिले यह सब टलै, काल-हाल जम चोट।
शीश नवावत ढहि परै, अघ्ज्ञ पापन के पोट।।५७३।।
अर्थ: जब किसी साधु से मिलता है, तो सभी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं। काल, परिस्थिति और मृत्यु केवल मामूली बाधाएँ होती हैं। जब कोई साधु के सामने सिर झुकाता है, तो पापों का बोझ उतर जाता है।
Meaning: All troubles are alleviated when one meets a saint. Time, circumstances, and death are but minor inconveniences. When one bows to a saint, the burden of sins is lifted.
व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने साधु के महत्व को उजागर किया है। साधु के साथ संगति से सभी संकट समाप्त हो जाते हैं और पापों का बोझ हल्का हो जाता है। साधु के सामने श्रद्धा से सिर झुका देने से जीवन की सारी समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं।
साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं।
धन का भूखा जो फिरै, सो तो साधु नाहिं।।५७४।।
अर्थ: साधु केवल आध्यात्मिक भावनाओं के लिए भूखा होता है, भौतिक धन के लिए नहीं। जो धन की खोज में भटकता है, वह सच्चा साधु नहीं हो सकता।
Meaning: A saint is hungry only for spiritual feelings, not for material wealth. One who wanders in search of wealth is not a true saint.
व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने सच्चे साधु की विशेषताओं का वर्णन किया है। साधु की भूख आध्यात्मिक अनुभवों के लिए होती है, जबकि धन की चाह रखने वाला व्यक्ति सच्चा साधु नहीं हो सकता।
कंचन दीया करन ने, द्रौपदी दीया चीर।
जो दीया सो पाइया, ऐसे कहैं कबीर।।५७५।।
अर्थ: सोना दीपक बनाने के काम आता है, और दीपक का उपयोग द्रौपदी की चीर को फाड़ने में किया जा सकता है। जो इस सत्य को समझता है, वही सच्चा अनुयायी है, यह कबीरदास जी कहते हैं।
Meaning: Gold can be used to create a lamp, and the lamp can be used to tear Draupadi's cloth. The one who understands this truth is a true follower, says Kabir.
व्याख्या: इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी ने सोने और दीपक के माध्यम से एक गहरा संदेश दिया है। सच्चे अनुयायी वह हैं जो इन चीज़ों के उपयोग और उनके परिणामों को समझते हैं। यह शिक्षा हमें जीवन की सच्चाई को समझने में मदद करती है।
दुख सुख एक समान है, हरष शोक नहिं व्याप।
उपकारी निहकामता, उपजै छोह न ताप।।५७६।।
अर्थ: दुख और सुख समान होते हैं, खुशी या शोक की कोई भावना नहीं होती। जो वास्तव में दयालु होता है, वह इन भावनाओं से अप्रभावित रहता है और उसे गर्मी या सर्दी का अनुभव नहीं होता।
Meaning: Pain and pleasure are the same, there is no attachment to joy or sorrow. The one who is truly compassionate remains unaffected by these emotions and does not suffer from heat or cold.
व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी ने यह कहा है कि साधु और संत के लिए दुख और सुख, खुशी और शोक समान होते हैं। सच्चे दयालु व्यक्ति की भावनाएँ इन भौतिक और भावनात्मक स्थितियों से परे होती हैं, और वह इनसे प्रभावित नहीं होता।
साधु बड़े परमारथी, धन ज्यों बरसे आय।
तपन बुझावैं और की, अपनो पारस लाय।।५७७।।
अर्थ: सच्चा साधु दूसरों की भलाई के लिए समर्पित होता है, जैसे बारिश धरती को सींचती है। वह गर्मी को बुझा सकता है और परिवर्तन ला सकता है, जैसे कि पारस पत्थर।
Meaning: The true saint is dedicated to the welfare of others, like rain that falls to nourish the earth. He can extinguish the heat and bring transformation just like the philosopher's stone.
व्याख्या: साधु (संत) का मुख्य उद्देश्य लोगों की भलाई करना होता है। वह धन के समान होता है जो जीवन में महत्वपूर्ण रूप से आता है। जैसे बारिश खेतों को सींचती है, वैसे ही साधु भी समाज को उन्नति और शांति प्रदान करता है। साधु का कार्य तप और परिश्रम से लोगों के जीवन में सुधार लाना होता है।
साधु आवत देखि कर, हंसी हमारी देह।
माथा का ग्रह ऊतरा, नैनन बढ़ा स्नेह।।५७८।।
अर्थ: संत को देखकर हमारे शरीर में खुशी की लहर दौड़ जाती है। माथे का बोझ हल्का हो जाता है और आँखों में प्रेम की भावना भर जाती है।
Meaning: Upon seeing a saint, our body is filled with joy. The burden on the forehead is lifted, and the eyes are filled with affection.
व्याख्या: संतों की उपस्थिति में एक विशेष प्रकार की खुशी और राहत का अहसास होता है। जब साधु हमारे सामने होते हैं, तो हमें मानसिक शांति मिलती है और हमारी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं। यह भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से हमे संजीवनी प्रदान करता है।
साधु भौंरा जग कली, निश दिन फिरै उदास।
टुक टुक तहां बिलंबिया, जहं शीतल शब्द निवास।।५७९।।
अर्थ: संत दुनिया में भौंरे के समान होते हैं, जो लगातार उदास स्वरूप में घूमते रहते हैं। वे उन स्थानों पर निवास करते हैं जहाँ शीतल शब्द और शांति होती है।
Meaning: The saint is like a bee in the world, constantly moving about with a melancholic demeanor. He stays in places where cool words and peace reside.
व्याख्या: संत की यात्रा हमेशा शांति और संतोष की खोज में होती है। वे स्थिरता और सुख की प्राप्ति के लिए हर जगह जाते हैं। संतों की उपस्थिति में हमें शांति और सांत्वना मिलती है, जो उनके स्थिर और शीतल स्वभाव को दर्शाती है।
मानपमान न चित्त धरै, औरत को सनमान।
जो कोई आशा करै, उपदेशै तेहि ज्ञान।।५८०।।
अर्थ: मान-सम्मान के प्रति मनAttached न हो, बल्कि दूसरों का सम्मान और आदर करें। जो कोई ज्ञान की खोज करता है, उसे उपदेश से ज्ञान प्राप्त होगा।
Meaning: One should not be attached to social status or honor, but should instead respect and honor others. Those who seek knowledge will find it through teachings.
व्याख्या: सच्चा ज्ञान और आत्मा की उन्नति तब होती है जब हम सामाजिक मान-अपमान से परे होते हैं और दूसरों का सम्मान करते हैं। ज्ञान की प्राप्ति उपदेश और सही मार्गदर्शन से होती है, जो हमें संतों से मिलता है।
साधु जन सब में रमैं, दुख न काहू देहि।
अपने मत गाढ़ा रहै, साधुन का मय येहि।।५८१।।
अर्थ: संत हर किसी में निवास करता है और किसी को भी दुख नहीं पहुँचाता। वह अपनी मान्यताओं में स्थिर रहता है और संत की essence में निवास करता है।
Meaning: A saint resides in everyone and does not cause suffering to anyone. He remains steadfast in his beliefs and lives in the essence of the saint.
व्याख्या: संत का स्वभाव ऐसा होता है कि वह किसी को भी दुख नहीं पहुँचाता। उनका जीवन और उनके विचार दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत होते हैं। वे अपनी आस्थाओं में दृढ़ रहते हैं और दूसरों की भलाई में लगे रहते हैं।
जो सुख को मुनिवर रटैं, सुन नर करै विलाप।
सो सुख सहजै पाइया, सन्तों संगति आप।।५८२।।
अर्थ: जो लोग तपस्वियों की खुशी का जाप करते हैं, वे जीवन में विलाप करते हैं। सच्चा सुख बिना मेहनत के संतों की संगति से प्राप्त होता है।
Meaning: Those who recite the happiness of ascetics will lament in life. True happiness is obtained effortlessly through association with saints.
व्याख्या: संतों की संगति में सच्चा सुख प्राप्त होता है। लोग जो केवल तपस्वियों के बारे में बात करते हैं और उनकी खुशी की चर्चा करते हैं, वे खुद सुख की कमी महसूस करते हैं। असली सुख संतों के साथ समय बिताने से मिलता है।
कबीर शीतल जल नहीं, हिम ना शीतल होय।
कबीर शीतल सन्त जन, राम सनेही सोय।।५८३।।
अर्थ: कबीर ठंडा पानी नहीं हैं, और न ही वह बर्फ के समान ठंडे हैं। कबीर वह ठंडा संत हैं जो राम के प्रिय हैं।
Meaning: Kabir is not cold water, nor is he cold like snow. Kabir is the cool saint who is beloved of Lord Ram.
व्याख्या: कबीर की ठंडक उनकी आध्यात्मिक स्थिति को दर्शाती है, जो शीतल पानी या बर्फ से अधिक गहरी है। वह वास्तव में एक ऐसा संत हैं जो भगवान राम के सच्चे प्रेमी हैं और जिनकी उपस्थिति में एक विशेष प्रकार की शांति और ठंडक का अहसास होता है।
साधु आवत देखि के, मन में करै मरोर।
सो तो होसी चूहरा, बसै गांव की खोर।।५८४।।
अर्थ: जब कोई साधु आता है और किसी के मन में असुविधा होती है, तो वह व्यक्ति गांव के बाहरी हिस्से में रहने वाले चूहे जैसा होता है।
Meaning: When a saint arrives, if someone feels discomfort in their mind, that person is like a scavenger living in the village outskirts.
व्याख्या: जब साधु की उपस्थिति से किसी को असुविधा होती है, तो यह दर्शाता है कि उनके मन में पवित्रता और आत्मा की स्थिति का अहसास नहीं है। ऐसा व्यक्ति साधु की उपस्थिति से लाभ नहीं उठा पाता और बाहरी दुनिया में ही रह जाता है।
कबीर लौंग-इलायची, दातुन माटी पानि।
कहैं कबीर संतन को, देत न कीजै कानि।।५८५।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि लौंग, इलायची और दातुन का कोई महत्व नहीं है। कबीर संतों को सलाह देते हैं कि वे कोई भी रिश्वत न लें।
Meaning: Kabir says, cloves, cardamom, and brushing sticks are of no use. Kabir advises saints not to take any bribes.
व्याख्या: संतों को रिश्वत और भौतिक वस्तुओं से कोई फर्क नहीं पड़ता। कबीर का संदेश है कि सच्चे साधु और संत अपनी साधना में स्थिर रहते हैं और बाहरी भौतिक वस्तुओं से प्रभावित नहीं होते। उनका उद्देश्य केवल आत्मा की उन्नति और दूसरों की भलाई होता है।
हरि दरबारी साधु हैं, इन ते सब कुछ होय।
बेगि मिलावें राम को, इन्हें मिले जु कोय।।५८६।।
अर्थ: संत भगवान के सच्चे प्रतिनिधि हैं; उनके माध्यम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। शीघ्रता से भगवान को खोजें, और आप उन्हें पाएंगे।
Meaning: The saint is a true representative of God; everything can be achieved through him. Quickly seek out God, and you will find someone like him.
व्याख्या: संत भगवान के निकट होते हैं और उनकी कृपा से जीवन की सभी समस्याओं का समाधान संभव है। भगवान से मिलने के लिए संत की उपस्थिति में जल्दी से जल्दी पहुंचना चाहिए। संत के माध्यम से भगवान की प्राप्ति सरल होती है।
संत मिले जनि बीछरो, बिछरो यह मम प्रान।
शब्द सनेही ना मिले, प्राण देह में आन।।५८७।।
अर्थ: अगर संत से अलग होना पड़े, तो ऐसा लगता है जैसे मेरी जान बिछड़ रही है। अगर शब्दों के प्रेमी नहीं मिलते, तो यह मेरी आत्मा को शरीर में लाना जैसा है।
Meaning: If a saint is separated, it feels like my life is in separation. If I do not find a lover of words, it is like bringing my soul into the body.
व्याख्या: संतों की अनुपस्थिति से जीवन में एक गहरी कमी महसूस होती है। संतों का मिलना और उनके उपदेशों का सुनना आत्मा की पूर्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यदि इस प्रकार के प्रेमी शब्द नहीं मिलते, तो आत्मा को शरीर में संलग्न करना कठिन हो जाता है।
निर्बेरी निहकामता, स्वामी सेती नेह।
विषया सो न्यारा रहे, साधुन का मत येह।।५८८।।
अर्थ: सच्ची तितिक्षा और भक्ति भगवान के साथ होना चाहिए। सांसारिक विषय अलग रहते हैं; यही संतों का विश्वास है।
Meaning: True renunciation and devotion are to be with the Lord. The worldly matters remain separate; this is the belief of saints.
व्याख्या: संतों का जीवन परित्याग और भक्ति से भरा होता है। वे भगवान के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को प्राथमिकता देते हैं और सांसारिक विषयों से परे रहते हैं। संतों का मानना है कि सच्ची भक्ति और त्याग भगवान के साथ रहना है।
कोई आवै भाव लै, कोई अभाव ले आव।
साधु दाऊ को पोषते, भाव न गिनै अभाव।।५८९।।
अर्थ: कुछ लोग अपने भाव लेकर आते हैं, कुछ अपनी आवश्यकताएँ लेकर आते हैं। संत सभी को पोषित करते हैं, भावनाओं या कमी की गिनती किए बिना।
Meaning: Some come with their own emotions, some come with needs. The saint nourishes them all, not counting their emotions or deficiencies.
व्याख्या: संत सभी लोगों की जरूरतों को समान रूप से पूरा करते हैं। चाहे वे अपनी भावनाएँ लेकर आएं या किसी कमी के साथ, संत सबका आदर और देखभाल करते हैं। उनका उद्देश्य सभी को सहायता प्रदान करना होता है।
टूका माही टक दे, चीर माहि सो चीर।
साधु देत न सकुचिये, यों कथि कहहिं कबीर।।५९०।।
अर्थ: कपड़े में एक टांका लगाने से वह पूरी हो जाती है। देने में संकोच मत करो; यही कबीर कहते हैं।
Meaning: One stitch in the cloth makes it whole. Do not hesitate to give; this is what Kabir says.
व्याख्या: कबीर का संदेश है कि हमें देना चाहिए बिना किसी संकोच या बाधा के। जैसे कपड़े में एक टांका उसे पूरा करता है, वैसे ही हमारी देने की भावना समाज में पूर्णता लाती है।
साधु आया पाहना, मांगै चार रतन।
धुनी पानी साथरा, सरधा सेती अन्न।।५९१।।
अर्थ: जब कोई साधु अतिथि के रूप में आता है, तो वह चार रत्न मांगता है। चूल्हा, पानी, बर्तन की आवश्यकता होती है, और श्रद्धा से भोजन परोसा जाता है।
Meaning: When a saint comes as a guest, he asks for four jewels. The hearth, water, and utensils are needed, and with devotion, food is served.
व्याख्या: संतों के आगमन पर हमें चार बुनियादी चीजों की व्यवस्था करनी होती है: चूल्हा, पानी, बर्तन और श्रद्धा के साथ भोजन। संतों की सेवा और सम्मान का यह तरीका हमें उनके प्रति हमारी श्रद्धा और समर्पण को दर्शाता है।
साधु चलत रो दीजिए, कीजै अति सनमान।
कहैं कबीर कछु भेट धरु, अपने बित्त अनुमान।।५९२।।
अर्थ: जब साधु चले जाते हैं, तो उन्हें अत्यधिक सम्मान के साथ विदा करें। कबीर कहते हैं, अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ उपहार दें।
Meaning: When a saint leaves, let him go with utmost respect. Kabir says, give some gift, according to your means.
व्याख्या: संतों को सम्मान के साथ विदा करना हमारी जिम्मेदारी है। कबीर का कहना है कि हमें अपनी क्षमता के अनुसार कुछ भेंट देना चाहिए, जो उनके प्रति हमारी श्रद्धा और सम्मान को दर्शाता है।
खाली साधु न बिदा करु, सुन लीजै सब कोय।
कहैं कबीर कछु भेंट धरु, जो तेजे घर होय।।५९३।।
अर्थ: संत को खाली हाथ न भेजें; सभी सुन लें। कबीर कहते हैं, अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ भेंट दें, जो आपके घर को आशीर्वादित करेगा।
Meaning: Do not send a saint away empty-handed; listen everyone. Kabir says, offer some gift according to your means, which brings blessings to your home.
व्याख्या: संतों की विदाई पर हमें उन्हें खाली हाथ नहीं भेजना चाहिए। उपहार देने से हमारे घर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और संतों की कृपा प्राप्त होती है। यह हमारे सम्मान और श्रद्धा को दर्शाता है।
साधु दरशन महाफल, कोटि यज्ञ फल लेह।
इन मन्दिर को का पड़ी, नगर शुद्ध करि लेह।।५९४।।
अर्थ: संत का दर्शन अत्यधिक फलदायी होता है, जो लाखों यज्ञों के फल से भी बड़ा है। मंदिर की क्या आवश्यकता है? उनकी उपस्थिति से नगर को शुद्ध कर लें।
Meaning: The sight of a saint brings immense rewards, greater than the fruits of a million sacrifices. What need is there for temples? Purify the city by their presence.
व्याख्या: संतों की उपस्थिति और दर्शन से हमें असाधारण लाभ प्राप्त होता है, जो बड़े धार्मिक अनुष्ठानों से भी अधिक होता है। उनकी उपस्थिति से न केवल व्यक्ति बल्कि पूरे समाज की शुद्धि और उन्नति होती है।
आज काल दिन पांच में, बरस पांच जुग पंच।
जब तब साधु तारसी, और सकल परपंच।।५९५।।
अर्थ: इस पांच दिन, पांच साल और पांच युग के काल में, संत सभी धोखों को पार करेंगे और सबको उबारेंगे।
Meaning: In this era of five days, five years, and five ages, saints will continue to save and transcend all deceptions.
व्याख्या: संतों का कार्य समय की सीमा से परे होता है। वे सभी युगों और कालों में लोगों की मदद करते हैं और समाज की बुराइयों और धोखाधड़ी से मुक्ति दिलाते हैं।
बिरछा कबहुं न फल भखै, नदी न संचवै नीर।
परमारथ के कारने, साधु धरा शरीर।।५९६।।
अर्थ: पेड़ कभी अपने फल का सेवन नहीं करता, और नदी अपने पानी को नहीं पीती। इसी तरह, संत व्यक्तिगत लाभ नहीं चाहते; वे परमार्थ के लिए शरीर धारण करते हैं।
Meaning: A tree does not eat its own fruit, and a river does not drink its own water. Similarly, a saint does not seek personal gain; he holds his body for the sake of altruism.
व्याख्या: संत समाज की भलाई के लिए अपने शरीर और जीवन का उपयोग करते हैं, जबकि वे स्वयं किसी व्यक्तिगत लाभ की इच्छा नहीं करते। जैसे पेड़ और नदी अपनी संपत्ति का उपयोग दूसरों के लिए करते हैं, वैसे ही संत भी अपना जीवन दूसरों की सेवा में समर्पित करते हैं।
सुख देवै दुख को हरै, दूर करै अपराध।
कहैं कबीर वह कब मिलै, परम स्नेही साध।।५९७।।
अर्थ: जो खुशी देता है, दुख दूर करता है, और अपराधों को मिटाता है, हम ऐसे प्रेमी साधु को कब पाएंगे, जैसे कबीर ने वर्णित किया है?
Meaning: He who gives joy, removes sorrow, and eradicates sins, when will we find such a loving saint, as Kabir describes?
व्याख्या: संत की पहचान उसकी क्षमताओं से होती है जो लोगों को सुख प्रदान करती हैं और उनके दुख और अपराधों को दूर करती हैं। ऐसे संत का मिलना दुर्लभ होता है, और कबीर की बातों में उस संत की तलाश की जाती है।
साधु सोई जानिये, चलै साधु की चाल।
परमारथ करता रहै, बोलै बचन रसाल।।५९८।।
अर्थ: संत को उसके कार्यों से पहचानना चाहिए। संत हमेशा परमार्थ करते हैं और उनके शब्द अमृत से भरे होते हैं।
Meaning: One should recognize a saint by his actions. A saint continues to do good and speaks words that are full of nectar.
व्याख्या: संत की पहचान उसके कार्य और वाणी से होती है। वे हमेशा दूसरों की भलाई के लिए काम करते हैं और उनके शब्द मधुर और ज्ञानपूर्ण होते हैं। संत का आचरण और उनका संदेश समाज में सकारात्मक बदलाव लाता है।
साधु साधु सब बड़े हैं, जस पस्ते का खेत।
कोई विवेकी लाल हैं, और सेत का सेत।।५९९।।
अर्थ: सभी साधु महान होते हैं, जैसे खेत के फसल होते हैं। कुछ विवेकी और शुद्ध होते हैं, और कुछ गुणों से परिपूर्ण होते हैं।
Meaning: All saints are great, like fields of crops. Some are wise and pure, and some are full of virtues.
व्याख्या: साधु समाज में विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे खेत में विभिन्न फसलें होती हैं। कुछ साधु ज्ञान और विवेक से भरे होते हैं, जबकि अन्य अच्छे गुणों से संपन्न होते हैं। सभी का उद्देश्य समाज की भलाई करना होता है।
सन्त मता गजराज का, चाले बन्धन छोड़।
जग कुत्ता पीछै फिरै, सुनै न वाका सोर।।६००।।
अर्थ: संत एक बुद्धिमान हाथी के समान होता है, जो सांसारिक बंधनों को छोड़ देता है। दुनिया झूठी चीजों का पीछा करती है और सच्ची पुकार को नहीं सुनती।
Meaning: A saint is like a wise elephant, who leaves the bonds of worldly attachments. The world chases after false things and does not hear the true call.
व्याख्या: संत सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आत्मिक और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ते हैं। समाज अक्सर झूठी और क्षणिक चीजों के पीछे भागता है और सत्य की आवाज को नजरअंदाज करता है।