घर रखवाला बाहिरा, चिड़ियां खाइ खेत।
आधा परा ऊबरे, चेति सके तो चेत।।९०१।।
अर्थ: रखवाला बाहर है, जबकि चिड़ियां खेत की फसल खा रही हैं। आधी फसल बर्बाद हो चुकी है; यदि तुम जाग सकते हो, तो सावधान हो जाओ।
Meaning: The caretaker is outside, while birds eat the crops in the field. Half the crops are ruined; if you can, awaken and be alert.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जिम्मेदारियों की उपेक्षा और उसके परिणामों को व्यक्त करते हैं। वे बताते हैं कि जब जिम्मेदार व्यक्ति अपने कर्तव्यों से भाग जाता है, तो इससे न केवल फसल बर्बाद होती है, बल्कि महत्वपूर्ण चीजें भी छूट जाती हैं। यह दोहा यह दर्शाता है कि यदि आप अपनी जिम्मेदारियों को समय पर पूरा नहीं करेंगे, तो उसके नकारात्मक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
खलक मिला खाली हुआ, बहुत किया बकवाद।
बांझ हिलावै पालना, तामें कौन स्वाद।।९०२।।
अर्थ: बहुत अधिक बात-चीत और विवाद से संसार खाली हो जाता है। एक सूखा पालना हिलता है; उसमें कोई आनंद नहीं है।
Meaning: The world becomes empty with much talk and argument. A barren cradle shakes; what pleasure does it hold?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में बकवाद और अकारण बहस की व्यर्थता को उजागर करते हैं। वे कहते हैं कि बहुत अधिक बात करने और विवाद करने से केवल भ्रम और खालीपन पैदा होता है। सूखे पालने का उदाहरण देकर, वे यह दिखाते हैं कि ऐसे बेतुके विवाद का कोई वास्तविक मूल्य या आनंद नहीं होता। इस दोहे के माध्यम से, कबीर हमें शांति और संतुलित संवाद की ओर इशारा करते हैं।
मौत बिसारी बावरे, अचरज कीया कौन।
तन माटी में मिल गया, ज्यौं आटा में लौन।।९०३।।
अर्थ: मूर्ख लोग मौत को भूल जाते हैं, आश्चर्य किस बात पर? शरीर मिट्टी में मिल जाता है, जैसे आटा फिर से गूंथा जाता है।
Meaning: The foolish forget about death, amazed at what? The body returns to dust, just as flour returns to dough.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मृत्यु की वास्तविकता को सरल भाषा में प्रस्तुत करते हैं। वे बताते हैं कि लोग अक्सर मौत को भूल जाते हैं और इसमें आश्चर्यचकित होते हैं। शरीर का मिट्टी में मिल जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जैसा आटा गूंथा जाता है। कबीर इस दोहे के माध्यम से जीवन की अस्थिरता और मृत्यु की सच्चाई को स्वीकार करने का संदेश देते हैं।
जनमैं मन बिचारि के, कूरे काम निवारि।
जिन पंथा तोहि चालना, सोई पंथ संवारि।।९०४।।
अर्थ: मन के मार्ग पर विचार करो और बेकार के कार्यों को त्याग दो। वही मार्ग अपनाओ जो तुम्हें सच्चे उद्देश्य की ओर ले जाता है।
Meaning: Consider the path of the mind and discard futile actions. The path that guides you is the one that leads to fulfillment.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह बताते हैं कि सही मार्ग की पहचान करने और अनावश्यक कार्यों से बचने की आवश्यकता है। वे सलाह देते हैं कि अपने मन की स्थिति और उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ही अपने कार्यों को संचालित करें। सही मार्ग पर चलना ही सच्ची सफलता और संतोष की ओर ले जाता है।
माटी कहै कुम्हार सो, क्यों तू रौंदे मोहि।
एक दिन ऐसा होयगा, मैं रौदूंगी तोहि।।९०५।।
अर्थ: मिट्टी कुम्हार से कहती है, 'तू मुझको क्यों कुचलता है?' एक दिन आएगा जब मैं तुझको कुचल दूंगी।
Meaning: The clay says to the potter, 'Why do you trample on me?' One day will come when I will trample on you.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन की अस्थिरता और भाग्य के उलटफेर की बात करते हैं। वे उदाहरण देते हैं कि कैसे एक समय मिट्टी, जो कुम्हार के हाथों से दबती है, एक दिन ऐसी स्थिति पैदा कर सकती है जब वह कुम्हार को उलट देगी। यह दोहा हमें सिखाता है कि जीवन में कभी भी स्थिति बदल सकती है और हमें हर स्थिति में विनम्र रहना चाहिए।
राम नाम जाना नहीं, चके अबकी घात।
माटी मिलन कुम्हार की, घनी सहेगी लात।।९०६।।
अर्थ: राम के नाम का ज्ञान न होने के कारण, अब फिर एक आघात सहो। मिट्टी और कुम्हार की मिलन के समय, मिट्टी अधिक प्रहार सहती है।
Meaning: Not knowing the name of Ram, you face another blow. The potter’s clay will suffer more blows when it meets the dust.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में राम के नाम की उपेक्षा और उसके परिणामों की बात करते हैं। वे बताते हैं कि जो व्यक्ति राम के नाम को नहीं जानता, वह जीवन में बार-बार परेशानियों का सामना करेगा। कुम्हार की मिट्टी की तरह, जब उसे सही समय पर ध्यान नहीं दिया जाता, तो अधिक प्रहार सहने पड़ते हैं। यह दोहा आध्यात्मिक अभ्यास और ध्यान की महत्वता को दर्शाता है।
बैल गढन्ता नर गढ़ा, चूका सींग रु पूंछ।
एकहि गुरु के नाम बिनु, धिक दाढ़ी धिक मूंछ।।९०७।।
अर्थ: बैल धरती खोदता है, उसकी सींग और पूंछ गलत जगह हैं। एक ही गुरु के नाम के बिना, दाढ़ी और मूंछ पर शर्म है।
Meaning: The bull may dig the ground, its horn and tail are misplaced. Without the name of the single guru, shame upon the beard and mustache.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर गुरु के नाम के महत्व को स्पष्ट करते हैं। वे उदाहरण देते हैं कि कैसे एक बैल अपने काम को सही तरीके से नहीं कर पाता अगर उसकी सींग और पूंछ ठीक जगह पर नहीं हैं। इसी तरह, गुरु के नाम के बिना जीवन की दिशा और उद्देश्य सही नहीं होते। दाढ़ी और मूंछ की उपमा देकर, कबीर बताते हैं कि गुरु के बिना धार्मिक और आध्यात्मिक पहचान भी व्यर्थ है।
काल करै साे आज कर, सबहि साज तुव साथ।
काल काल तू क्या करै, काल काल के हाथ।।९०८।।
अर्थ: जो काम आज कर सकते हो, वही अभी करो; सब व्यवस्था समय के साथ होगी। समय समय के साथ क्या कर सकता है, जब वह खुद समय के हाथ में है?
Meaning: What you can do today, do it now; all arrangements will follow with time. What can time do to time, when it is in the hands of time?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में समय की महत्वता और काम को समय पर करने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं कि जो कार्य आप आज कर सकते हैं, उसे तुरंत पूरा करें, क्योंकि समय के साथ सभी चीजें ठीक हो जाएंगी। समय की अनिश्चितता और उसके हाथ में होने का सुझाव देते हुए, कबीर हमें समय की नासमझी और विलंब से बचने के लिए प्रेरित करते हैं।
कबीर सुपने रैन के, उधरी आये नैन।
जीव परा बहु लूट में, ना कछु लेन न देन।।९०९।।
अर्थ: रात के सपनों में, आंखें व्यस्त नहीं होतीं। जीव कई लूटपाट में फंसा रहता है; कुछ लेने-देने की स्थिति नहीं होती।
Meaning: In the dream of the night, the eyes are not engaged. The soul is caught in numerous plundering; there is neither giving nor taking.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन की भ्रांतियों और स्वप्न जैसी अस्थिरता की बात करते हैं। वे बताते हैं कि रात के सपने में आंखें बेकार हो जाती हैं, और जीव अपने जीवन में लगातार लूटपाट और संघर्ष में फंसा रहता है। यह दोहा जीवन की अस्थिरता और वास्तविकता को समझने की आवश्यकता को व्यक्त करता है।
पाव पलक की सुधि नहीं, करै काल का साज।
काल अचानक मारसी, ज्यौं तीतर को बाज।।९१०।।
अर्थ: पांव और पलक की सुधि नहीं ली जाती; समय अपने तरीके से कार्य करता है। समय अचानक हमला करता है, जैसे बाज तीतर पर हमला करता है।
Meaning: No attention is paid to the feet or eyelids; time makes its arrangement. Time will strike suddenly, like a hawk on a partridge.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मृत्यु की अचानकता और उसके परिणामों की बात करते हैं। वे बताते हैं कि हम अपने शरीर के महत्वपूर्ण हिस्सों की अनदेखी कर सकते हैं, लेकिन समय (मृत्यु) अपनी व्यवस्था स्वयं करता है। समय अचानक और अप्रत्याशित तरीके से आ सकता है, जैसे बाज तीतर पर हमला करता है। इस दोहे के माध्यम से कबीर हमें मृत्यु की अनिश्चितता और उसकी तैयारी के महत्व को समझाते हैं।
ऊंचा दीसै धौहरा, मांडो चीटां पोल।
एक गुरु के नाम बिना, जम मारेंगे रोल।।९११।।
अर्थ: ऊंचाई एक दोहरी धार के रूप में देखी जाती है, और चींटी जाल में फंस जाती है। गुरु के नाम के बिना, यम तुम्हें पलटेगा।
Meaning: The high is seen as a double ridge, and the ant is caught in the net. Without the name of a guru, Yama will roll you over.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर गुरु के नाम की महत्वता को उजागर करते हैं। वे बताते हैं कि बिना गुरु के नाम के, हम यमराज के हाथों से बच नहीं सकते। ऊंचाई और चींटी के जाल के उदाहरण से, कबीर यह दिखाते हैं कि बिना उचित मार्गदर्शन के, जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। गुरु का नाम जीवन की सुरक्षा और सही मार्गदर्शन का प्रतीक है।
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलय होयगी, बहुहि करेगा कब।।९१२।।
अर्थ: जो काम कल करना है, उसे आज करो; जो आज करना है, उसे अभी करो। एक पल में तबाही आ सकती है; तब तुम कब करोगे?
Meaning: What should be done tomorrow, do today; what should be done today, do now. In a moment, destruction may come; when will you do it then?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में समय की महत्ता और काम को विलम्बित न करने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं कि जो कार्य भविष्य में करना है, उसे आज ही पूरा करें और जो आज करना है, उसे तुरंत करें। मृत्यु और विनाश की अनिश्चितता को देखते हुए, कबीर यह सुझाव देते हैं कि हमें किसी भी कार्य को टालना नहीं चाहिए क्योंकि समय की कोई गारंटी नहीं है।
बारी पारी आपने, चले पियारे मीत।
तेरी बारी जीवरा, नियरै आवै नीत।।९१३।।
अर्थ: तुम्हारी बारी एक समय बाद आएगी, जैसे प्यारे दोस्त चलते हैं। तुम्हारी जीवन की बारी आ रही है, लेकिन यह अपेक्षित समय पर नहीं आती।
Meaning: Your turn will come after a while, as dear friends move on. Your turn for life is approaching, but it does not come near as expected.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर समय और जिम्मेदारी की बात करते हैं। वे बताते हैं कि जैसे किसी के आने की बारी एक समय बाद आती है, वैसे ही जीवन की जिम्मेदारियों की बारी भी आती है। इस दोहे से कबीर यह सिखाते हैं कि हमें अपने समय और जिम्मेदारियों को समझना चाहिए और समय पर अपनी बारी की प्रतीक्षा करनी चाहिए।
कबीर केवल नाम की, जब लगि दीपक बाति।
तेल घटै बाती बुझै, तब सोवे दिन-राति।।९१४।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि नाम दीपक की बाती के समान है। जब तेल खत्म हो जाता है और बाती बुझ जाती है, तब दिन और रात समाप्त हो जाते हैं।
Meaning: Kabir speaks of the name as the wick of a lamp. When the oil depletes and the wick burns out, then day and night cease.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर आध्यात्मिक ज्ञान और नाम की महत्वपूर्ण भूमिका को स्पष्ट करते हैं। वे तुलना करते हैं कि जैसे दीपक की बाती नाम की तरह होती है और तेल खत्म हो जाने पर दीपक बुझ जाता है, वैसे ही जब तक जीवन में नाम की चमक बनी रहती है, तब तक जीवन की दिशा रहती है। यह दोहा यह समझाता है कि आध्यात्मिक नाम और साधना का महत्व जीवन की स्थिरता और उजाले के लिए है।
कुल करनी के कारनै, हंसा गया बिगाय।
तब कुल काको लाजि है, चारि पांव का होय।।९१५।।
अर्थ: परिवार की करनी के कारण, हंस भी बिगड़ गया। फिर चार-पांव वाले के लिए कुल की शर्म क्या होगी?
Meaning: Due to the actions of the family, the swan has become flawed. Then what is the shame for the family, if it affects the four-legged?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में परिवार की जिम्मेदारी और समाज में उसकी प्रतिष्ठा की बात करते हैं। वे कहते हैं कि अगर परिवार की वजह से सम्मान और आचरण में गिरावट आती है, तो परिवार की शर्म और प्रतिष्ठा का कोई महत्व नहीं रह जाता। हंस की उपमा देकर, कबीर यह समझाते हैं कि अगर परिवार का आचरण खराब हो जाता है, तो उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा प्रभावित होती है।
कहत सुनत जग जात हैं, विषय न सुझै काल।
कहैं कबीर सुन प्रानिया, साहिब नाम सम्हाल।।९१६।।
अर्थ: दुनिया बात करती है और सुनती है, लेकिन विषय समय द्वारा समझा नहीं जाता। कबीर कहते हैं, सुनो, प्राणियों, भगवान के नाम की देखभाल करो।
Meaning: The world talks and listens, but the subject is not understood by time. Kabir says, listen, O soul, take care of the Lord's name.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर समय और वास्तविकता की समझ के महत्व को बताते हैं। वे कहते हैं कि दुनिया में बहुत सारी बातें होती हैं, लेकिन समय के साथ उन विषयों की वास्तविकता का पता नहीं चलता। कबीर इस दोहे के माध्यम से हमें यह समझाने की कोशिश करते हैं कि भगवान के नाम का महत्व और उसकी भक्ति ही जीवन की सच्चाई और स्थिरता प्रदान करती है।
ऊजल पहिनै कापड़ा, पान सुपारि खाय।
कबीर गुरु की भक्ति बिन, बांध जमपुर जाय।।९१७।।
अर्थ: साफ कपड़े पहनना और सुपारी खाना, गुरु की भक्ति के बिना, मृत्यु के लोक में बंधा रहता है।
Meaning: Wearing clean clothes and eating betel leaves, Without devotion to the Guru, one is bound to the realm of death.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर गुरु की भक्ति के महत्व को स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं कि भले ही व्यक्ति अच्छे वस्त्र पहनें और अच्छे भोजन करें, अगर गुरु की भक्ति नहीं है, तो वह मृत्यु के बंधनों में बंधा रहेगा। कबीर यह संदेश देते हैं कि सच्चे जीवन की दिशा और मुक्ति केवल गुरु की भक्ति और मार्गदर्शन से ही प्राप्त की जा सकती है।
परदै रहती पदमिनी, करती कुल की कान।
घड़ी जु पहुंची काल की, छोड़ भई मैदान।।९१८।।
अर्थ: सुंदर स्त्री छुपी रहती है, परिवार की इज्जत संभालती है। जब मृत्यु का पल आता है, तो वह सब कुछ छोड़ देती है।
Meaning: The beautiful woman stays hidden, managing her family's honor. When the moment of death arrives, she leaves the field behind.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन की अनिश्चितता और मृत्यु की अवश्यम्भाविता को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि भले ही व्यक्ति अपने जीवन में सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाता रहे, मृत्यु का समय आने पर सब कुछ छोड़ना पड़ता है। कबीर इस दोहे के माध्यम से यह समझाते हैं कि सांसारिक महत्वाकांक्षाओं की तुलना में जीवन की वास्तविकता और मृत्यु की अनिवार्यता को समझना आवश्यक है।
हे मतिहीनी माछीरी, राखि न सकी शरीर।
सो सरवर सेवा नहीं, जाल काल नहिं कीर।।९१९।।
अर्थ: हे मूर्ख मछली, जो शरीर को नहीं बचा सकी, तालाब की सेवा निरर्थक है, समय का जाल कोई इलाज नहीं है।
Meaning: O foolish fish, unable to save the body, The pond's service is futile, the net of time is not a cure.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह समझाते हैं कि जो लोग अपने जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को नजरअंदाज करते हैं, वे मृत्यु के समय लाचार रह जाते हैं। वे एक मछली की उपमा देकर बताते हैं कि जैसे मछली पानी में भी अपनी जान नहीं बचा सकती, वैसे ही लोग भी बिना सच्चे ज्ञान और समझ के अपने समय की व्यर्थता को नहीं देख पाते। कबीर का यह संदेश है कि जीवन के सच्चे उद्देश्य और मोक्ष की खोज में सतर्क रहना चाहिए।
रात गंवाई सोय कर, दिवस गंवायो खाय।
हीरा जनम अमोल था, कोड़ी बदले जाय।।९२०।।
अर्थ: रात को सोने में बर्बाद किया, दिन को खाने में बर्बाद किया। जीवन का अमूल्य हीरा एक साधारण सिक्के में बदल गया।
Meaning: Wasted the night in sleep, wasted the day in eating. The precious diamond of life is exchanged for a mere penny.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में समय के मूल्य को उजागर करते हैं। वे कहते हैं कि अगर हम अपने समय को सोने और खाने में बर्बाद करते हैं, तो हम अपने जीवन की अमूल्य संभावनाओं को खो देते हैं। जीवन एक हीरा है, जिसका सही उपयोग न करने पर वह एक साधारण वस्तु में बदल जाता है। कबीर का यह संदेश है कि हमें अपने समय का सही उपयोग करके जीवन की सच्ची मूल्यता को समझना चाहिए।
कबीर थोड़ा जीवना, माढै बहुत मढ़ान।
सबही ऊभा पंथ सिर, राव रंक सुलतान।।९२१।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि जीवन छोटा है, और दुनिया बहुत छलपूर्ण है। सभी रास्ते खुले हैं, चाहे राजा हों या साधारण लोग।
Meaning: Kabir says life is short, and the world is very deceptive. All paths are open, whether for kings or commoners.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन की संक्षिप्तता और दुनिया की छलपूर्णता को व्यक्त करते हैं। वे बताते हैं कि चाहे हम राजा हों या साधारण व्यक्ति, सभी के लिए जीवन की राहें खुली होती हैं और वास्तविकता का सामना करना पड़ता है। कबीर का यह संदेश है कि जीवन की सच्चाई को समझते हुए हमें किसी भी भौतिक स्थिति पर गर्व नहीं करना चाहिए, क्योंकि सबका अंत एक सा है।
पाकी खेती देखि के, गरबहिं किया किसान।
अजहूं झोला बहुत है, घर आवै तब जान।।९२२।।
अर्थ: स्वच्छ खेती को देखकर किसान गर्वित होता है। फिर भी, उसका झोला भरा हुआ है, घर पहुँचने पर ही वह समझेगा।
Meaning: Seeing clean farming, the farmer is proud. Even now, the bag is full, only when he returns home will he realize.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर किसान की स्थिति और उसके आत्ममुग्धता को दर्शाते हैं। वे बताते हैं कि किसान खेती में गर्व महसूस करता है, लेकिन जब वह घर लौटेगा, तो उसे समझ में आएगा कि उसके प्रयास और संसाधनों का मूल्य क्या है। कबीर यह सिखाते हैं कि असली समझ और संतोष तब आता है जब हम अपनी वास्तविक स्थिति को समझते हैं और किसी बाहरी सफलता को आत्मसंतोष से जोड़ते हैं।
यह औसर चेत्या नहीं, पशु ज्यौं पाली देह।
राम नाम जान्यो नहीं, अन्त पड़े मुख खेह।।९२३।।
अर्थ: यह अवसर पहचाना नहीं जाता, जैसे जानवर शरीर की देखभाल करते हैं। राम नाम का ज्ञान न होने पर, अंत में कष्ट सहना पड़ता है।
Meaning: This opportunity is not recognized, like animals maintaining the body. Not knowing the name of Ram, in the end, one faces suffering.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह दिखाते हैं कि लोग अक्सर अपनी आध्यात्मिक जिम्मेदारियों को नजरअंदाज करते हैं और केवल भौतिक रूप से जीवित रहते हैं। वे इसे जानवरों की तरह प्रस्तुत करते हैं जो सिर्फ शरीर की देखभाल करते हैं लेकिन आत्मा की वास्तविकता को समझते नहीं। कबीर का यह संदेश है कि केवल भौतिक जीवन की चिंता करने के बजाय, हमें राम नाम और आध्यात्मिक ज्ञान को समझना चाहिए, ताकि अंत में कष्ट न सहना पड़े।
कुल खाये कुल उबरै, कुल राखै कुल जाय।
राम निकुल कुल भोटिया, सब कुल गया बिलाय।।९२४।।
अर्थ: व्यक्ति की वंशावली भोजन करती है और समर्थन देती है, फिर वह वंश समाप्त हो जाता है। राम का नाम ही सच्ची वंशावली है, अन्य सभी वंश धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं।
Meaning: One's lineage eats and supports, and then lineage perishes. The name of Ram is the true lineage, all other lineages eventually fade away.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन और वंश की क्षणिकता को दर्शाते हैं। वे बताते हैं कि भौतिक वंश और परिवार केवल अस्थायी होते हैं, और वे अंततः समाप्त हो जाते हैं। लेकिन राम का नाम और उसकी भक्ति ही वास्तविक वंशावली है जो अनंतकाल तक बनी रहती है। कबीर यह सिखाते हैं कि हमें भौतिक वंशावली पर गर्व करने के बजाय, आध्यात्मिक नाम और सत्य को समझना और अपनाना चाहिए।
हाड़ जले लकड़ी जले, जले जलावन हार।
कातिक हारा भी जले, कासों करुं पुकार।।९२५।।
अर्थ: हड्डियाँ जलती हैं, लकड़ी जलती है, और ईंधन जलाने वाला भी जलता है। कातिक की हार भी जलती है, अब कौन मदद करेगा?
Meaning: Bones burn, wood burns, and the fuel-burner burns. Even the defeat of Kartik burns, who will help now?
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन की कठिनाइयों और संघर्ष को प्रस्तुत करते हैं। वे बताते हैं कि सभी भौतिक चीजें और जीवन के प्रयास अंततः समाप्त हो जाते हैं और जलते हैं। जब हम हर चीज में विफल हो जाते हैं और सभी चीजें जलने लगती हैं, तो अंत में कौन हमारी मदद करेगा? कबीर का यह संदेश है कि केवल आध्यात्मिक मार्ग और सच्ची समझ ही हमें वास्तविक शांति और मदद प्रदान कर सकती है।
झूठा सब संसार है, कोउ न अपना मीत।
राम नाम को जानि ले, चलै सो भौजल जीत।।९२६।।
अर्थ: सारा संसार झूठा है, कोई भी सच्चा मित्र नहीं है। राम नाम को जानकर, व्यक्ति संसार के सागर को पार कर सकता है।
Meaning: The whole world is false, no one is a true friend. Knowing the name of Ram, one can cross the ocean of worldly existence.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन की अस्थिरता और दुनिया की भ्रामकता को दिखाते हैं। वे कहते हैं कि दुनिया में कोई भी सच्चा मित्र नहीं है और सब कुछ झूठा है। केवल राम का नाम जानकर ही व्यक्ति इस भौतिक संसार के सागर को पार कर सकता है। कबीर का यह संदेश है कि आध्यात्मिक ज्ञान और सच्ची भक्ति ही जीवन के सच्चे मार्ग को दिखाती है।
दुनिया के धोखै मआ, चला कुटुंब की कानि।
तब कुल की क्या लाज है, जब ले धरा मसानि।।९२७।।
अर्थ: दुनिया के धोखे में आकर, परिवार की प्रतिष्ठा पर सवाल उठता है। जब धरती श्मशान बन जाती है, तो वंश का गर्व क्या रह जाता है?
Meaning: Deceived by the world, the family’s reputation is questioned. What is the pride of lineage when the earth becomes a cremation ground?
व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने संसार के धोखों और भ्रामकता पर प्रकाश डाला है। वे बताते हैं कि जब किसी की मृत्यु होती है और धरती श्मशान में बदल जाती है, तो परिवार और वंश की प्रतिष्ठा का कोई महत्व नहीं रह जाता। कबीर का यह संदेश है कि भौतिक चीजें और सामाजिक मान्यता क्षणिक होती हैं, और सच्ची महत्वपूर्णता आध्यात्मिक समझ और आत्मज्ञान में होती है।
यह बिरियां तो फिरि नहिं, मन में देख विचार।
आया लाभहि कारनै, जनम जुआ मति हार।।९२८।।
अर्थ: ये सांसारिक सुख स्थायी नहीं होते, इसे अपने मन में सोचकर समझें। लाभ किसी कारणवश होता है; जीवन एक जुआ है जिसमें मन हार जाता है।
Meaning: These worldly pleasures do not last, think and consider in your mind. Gains have come for a reason; life is like a gamble where the mind loses.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन के अस्थायी सुखों और उनकी क्षणिकता को दर्शाते हैं। वे बताते हैं कि सांसारिक सुख और लाभ अस्थायी होते हैं और वास्तविकता को समझने के लिए हमें अपने मन में विचार करना चाहिए। जीवन को एक जुए के समान मानते हुए, कबीर कहते हैं कि हम केवल भौतिक लाभ के पीछे न भागें, क्योंकि अंततः यह सब अस्थायी है।
कै खाना कै सोवना, और न कोई चीत।
सतगुरु शब्द बिसारिया, आदि अन्त का मीत।।९२९।।
अर्थ: खाना और सोना कोई महत्वपूर्ण बातें नहीं हैं, कोई और चिंता नहीं है। सतगुरु के शब्दों को भूल जाना, जैसे सच्चे मित्र को खोना है।
Meaning: Eating and sleeping are of no importance, there is no other concern. Forgetting the words of the true guru, is like losing the eternal friend.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर सतगुरु की उपस्थिति और उनके ज्ञान को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं। वे कहते हैं कि भौतिक जीवन के पहलू जैसे खाना और सोना महत्वपूर्ण नहीं हैं; महत्वपूर्ण बात यह है कि हम सतगुरु के ज्ञान को न भूलें। कबीर का यह संदेश है कि आध्यात्मिक ज्ञान और सच्चे गुरु की भक्ति ही जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पहलू हैं।
आज कहै मैं काल भजुं, काल कहै फिर काल।
आज काल के करत ही, औसर जासी चाल।।९३०।।
अर्थ: आज मैं कहता हूँ, समय की पूजा करो; समय कहता है इसे बाद में पूजा करो। आज के समय के काम, अवसर को लगातार टालते जाते हैं।
Meaning: Today I say, worship Time; Time says to worship it later. Today’s actions of Time, keep delaying the opportunity.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में समय की पूजा और समय की स्थगितता को दर्शाते हैं। वे बताते हैं कि लोग अक्सर समय की पूजा करने की बात करते हैं, लेकिन समय हमेशा इसे टालते रहने के लिए कहता है। यह स्थगन और देरी अंततः अवसर को खोने का कारण बनती है। कबीर का संदेश है कि हमें समय का महत्व समझना चाहिए और अवसरों को हाथ से जाने से बचाने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
आज काल के बीच में, जंगल होगा बास।
ऊपर ऊपर हल फिरै, ढोर चरेंगे घास।।९३१।।
अर्थ: समय के बीच में, जंगल बस जाएगा। ऊपर, हल चलता रहेगा और मवेशी घास चरेंगे।
Meaning: In the midst of Time, there will be a forest dwelling. Above, the plow moves, and cattle graze on the grass.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह दर्शाते हैं कि भौतिक प्रयास और गतिविधियाँ अंततः व्यर्थ हो जाती हैं। वे जंगल और कृषि कार्य की प्रक्रिया को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो समय के साथ स्थिर रहते हैं। कबीर का यह संदेश है कि भौतिक प्रयासों के बावजूद, सच्ची आध्यात्मिक समझ और वास्तविक ज्ञान ही महत्वपूर्ण हैं।
हाड़ जरै ज्यौं लाकड़ी, केस जरै ज्यों घास।
सब जग जरता देखि करि, भये कबीर उदास।।९३२।।
अर्थ: मांस लकड़ी की तरह जलता है, बाल घास की तरह जलते हैं। पूरी दुनिया को जलते हुए देखकर, कबीर उदास हो गए।
Meaning: Flesh burns like wood, hair burns like grass. Seeing the whole world burning, Kabir became despondent.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर जीवन की अस्थिरता और उसकी नश्वरता को दर्शाते हैं। वे बताते हैं कि जैसे लकड़ी और घास जलते हैं, वैसे ही जीवन की वस्तुएं भी नष्ट होती हैं। जब कबीर ने देखा कि पूरी दुनिया भी इसी तरह जल रही है, तो वे गहरे विचार और उदासी में डूब गए। यह दोहा जीवन की अनियतता और मौत के अनिवार्य सत्य को स्वीकार करने का संदेश देता है।
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुष की जात।
देखत ही छिप जाएगा, ज्यौं तारा प्रभात।।९३३।।
अर्थ: पानी के बुलबुले मानव जाति के समान हैं। वे जैसे ही देखे जाते हैं, गायब हो जाते हैं, जैसे सुबह के तारे।
Meaning: The bubbles of water are like the human race. They will disappear as soon as they are seen, like stars at dawn.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में जीवन की क्षणिकता को दर्शाते हैं। वे पानी के बुलबुले की तुलना मानव जाति से करते हैं, जो बहुत जल्दी गायब हो जाती है। जैसे तारे सुबह के समय छिप जाते हैं, वैसे ही मानव जीवन भी अस्थिर और क्षणिक होता है। यह दोहा इस तथ्य को उजागर करता है कि हमें अपने जीवन की वास्तविकता को समझना चाहिए और उसकी क्षणिकता को स्वीकार करना चाहिए।
ऊजड़ खेड़े टेकरी, घड़ि घड़ि गये कुम्हार।
रावन जैसा चलि गया, लंका को सरदार।।९३४।।
अर्थ: उजड़े हुए स्थान और कुम्हार बार-बार चले गए हैं। रावण की तरह, जो लंका में नेता के रूप में गया।
Meaning: The deserted place and the potter have gone repeatedly. Like Ravana, who went to Lanka as a leader.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सत्ता और प्रभाव की अस्थिरता को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि जैसे कुम्हार बार-बार अपने काम पर जाता है और रावण जैसे बड़े नेता भी अंततः चले जाते हैं, वैसे ही शक्ति और प्रभाव भी अस्थिर होते हैं। यह दोहा इस बात को दर्शाता है कि सत्ता और प्रभाव स्थायी नहीं होते और वे अंततः समाप्त हो जाते हैं।
भय से भक्ति करै सबै, भय से पूजा होय।
भय पारस है जीव को, निरभय हाय न कोय।।९३५।।
अर्थ: सभी लोग भय के कारण भक्ति करते हैं, और पूजा भय से होती है। भय जीवन के लिए एक पारस है, कोई भी निर्भय नहीं है।
Meaning: Everyone worships out of fear, and worship happens through fear. Fear is the touchstone for life, there is no one who is fearless.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर बताते हैं कि भय भक्ति और पूजा का एक प्रमुख कारण बन जाता है। भय को एक पारस या परखने का पत्थर माना गया है जो जीवन की सच्चाई को उजागर करता है। कबीर के अनुसार, सभी लोग किसी न किसी रूप में भय के प्रभाव में होते हैं, और कोई भी पूरी तरह निर्भय नहीं होता। इस प्रकार, भय की भूमिका को समझना और स्वीकारना आवश्यक है।
भय बिन भाव न ऊपजै, भय बिनु होय न प्रीति।
जब हिरदे से भय गया, मिटी सकल रस रीति।।९३६।।
अर्थ: भय के बिना भाव उत्पन्न नहीं होते, भय के बिना प्रेम भी नहीं होता। जब हृदय से भय चला जाता है, तब सभी रस और विधियां समाप्त हो जाती हैं।
Meaning: Without fear, emotions do not arise, without fear there is no love. When fear departs from the heart, all the essence and rituals vanish.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में बताते हैं कि भय की अनुपस्थिति में भावनाएं और प्रेम उत्पन्न नहीं होते। भय एक महत्वपूर्ण तत्व है जो जीवन के भावनात्मक पहलुओं को प्रभावित करता है। जब भय हृदय से चला जाता है, तो सभी रस और परंपराएं भी समाप्त हो जाती हैं। यह दोहा हमें भय के महत्व को समझाने के साथ-साथ इसके प्रभावों को स्वीकार करने का संदेश देता है।
आछे दिन पाछे गये, गुरु सों किया न हेत।
अब पछितावा क्या करै, चिड़ियां चुग गई खेत।।९३७।।
अर्थ: अच्छे दिन बीत गए, गुरु के साथ प्रयास नहीं किया। अब पछताने का कोई लाभ नहीं, क्योंकि चिड़ियां खेत को चूग चुकी हैं।
Meaning: Good days have passed, and no effort was made with the Guru. Now, what is the use of regret, as the birds have already eaten the fields?
व्याख्या: इस दोहे में कबीर समय के महत्व और पछतावे की बेकारी पर प्रकाश डालते हैं। उन्होंने कहा है कि अच्छे दिन बीत चुके हैं और जो प्रयास गुरु के साथ किया जाना चाहिए था, वह नहीं हुआ। अब पछतावा करने का कोई मतलब नहीं है, जैसे खेत चिड़ियों द्वारा चूग लिया गया है। यह दोहा यह सिखाता है कि समय और अवसर का सही उपयोग करना चाहिए और पछताने के बजाय सही समय पर सही कार्य करना चाहिए।
एक दिन ऐसा होयगा, सब सों परै बिछोह।
राजा राना राव रंक, सावधान क्यों नहिं होय।।९३८।।
अर्थ: एक दिन ऐसा आएगा जब सभी से बिछोह हो जाएगा। राजा, राणा, राव और रंक सभी को सावधान क्यों नहीं रहना चाहिए?
Meaning: One day, there will be separation from everyone. Why are not the kings, nobles, and common people alert?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में बिछोह और मृत्यु की अपरिहार्यता को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि एक दिन ऐसा आएगा जब सभी को एक दूसरे से बिछोह का सामना करना पड़ेगा, चाहे वे राजा हों या रंक। यह दोहा लोगों को चेतावनी देता है कि हमें अपनी जीवन की सच्चाई को समझना चाहिए और मृत्यु और बिछोह की वास्तविकता को स्वीकार कर सावधान रहना चाहिए।
मन राजा नायक भया, टांडा लादा जाय।
है है है है ह्वै रही, पूंजी गयी बिलाय।।९३९।।
अर्थ: मन राजा और नायक बन गया है, लेकिन जीवन का बोझ भारी है। हे हे हे हे कर रहे हैं, पूंजी चली गई और दुख बना रहता है।
Meaning: The mind has become the king and the hero, but the baggage of life is heavy. Alas, the wealth is gone and the misery remains.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर मन की स्थिति और भौतिक धन की अस्थिरता को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि भले ही मन खुद को राजा और नायक मानता हो, जीवन का बोझ और समस्याएं बनी रहती हैं। अंततः भौतिक धन चला जाता है और केवल दुःख ही बचता है। यह दोहा हमें चेतावनी देता है कि मन की स्थिति और भौतिक संपत्ति के भ्रम से बाहर आकर वास्तविकता को समझना चाहिए।
जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़ै दाम।
दोनों हाथ उलीचिये, यही सयानों का काम।।९४०।।
अर्थ: यदि पानी नाव में बाढ़ जाए और घर में धन बाढ़ जाए, तो दोनों हाथों से पानी को निकालें; यही समझदारी है।
Meaning: If water floods the boat, and money floods the home, Use both hands to bail out the water; this is the wise course of action.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में व्यावहारिक बुद्धिमत्ता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि जब नाव में पानी भर जाता है या घर में धन का overflow होता है, तो दोनों हाथों का उपयोग करके पानी को बाहर निकालना चाहिए। यह दोहा हमें जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की सलाह देता है।
खाय पकाय लुटाय ले, यह मनुवा मिजमान।
लेना हो सो लेइ ले, यही गोय मैदान।।९४१।।
अर्थ: खाओ, पकाओ और लूटो, यही मेज़बान की प्रकृति है। जो लेना हो, ले लो; यही कार्यक्षेत्र है।
Meaning: Eat, cook, and plunder, this is the nature of the host. Take what you want; this is the field of action.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मानव स्वभाव की प्रकृति को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वे खाने, पकाने और लूटने में लगे रहते हैं। यह दोहा हमें बताता है कि लोगों का व्यवहार इस प्रकार का होता है और हमें इसे समझना चाहिए।
जहां न जाको गुन लहै, तहां न ताको ठांव।
धोबी बसके क्या करै, दिगम्बर के गांव।।९४२।।
अर्थ: जहाँ कोई गुण नहीं मिलते, वहाँ कोई ठिकाना नहीं होता। धोबी क्या कर सकता है, दिगंबर के गांव में?
Meaning: Where one does not find any virtues, there is no place for them. What can the washerman do in the village of the naked ascetic?
व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह स्पष्ट करते हैं कि जहाँ गुण और सत्य की खोज नहीं होती, वहाँ किसी का ठिकाना नहीं होता। दिगंबर (नग्न साधू) के गाँव में धोबी (धोने वाला) की क्या स्थिति हो सकती है, यह बताकर कबीर यह सिखाते हैं कि हमारे कर्म और गुण ही हमें उचित स्थान और मान्यता दिलाते हैं। बिना गुण और अच्छे कर्म के, जीवन में कोई स्थायित्व नहीं होता।
हरिजन तो हारा भला, जीतन दे संसार।
हारा तो हरि सों मिला, जीता जम के द्वार।।९४३।।
अर्थ: भक्त का हार अच्छा होता है, क्योंकि वह भगवान से मिल जाता है। हार भगवान के साथ मिलन है, जबकि जीत केवल संसार की विजय है।
Meaning: The loss of a devotee is good, for they gain the divine. A loss is a gain with Hari, while a win is just a victory in the worldly domain.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने यह विचार व्यक्त किया है कि भक्त का हार भी उसके लिए लाभकारी होता है, क्योंकि वह भगवान से मिल जाता है। इसके विपरीत, संसार में जीत केवल सांसारिक विजय होती है। कबीर का यह दोहा यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक और आत्मिक लाभ सांसारिक लाभ से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है।
हस्ती चढ़िये ज्ञान का, सहज दुलीचा डार।
स्वान रूप संसार है, भूंकन दे झकमार।।९४४।।
अर्थ: ज्ञान से आत्मा उन्नत होती है, जैसे एक साधारण कपड़ा। दुनिया कुत्ते की तरह है; भौंकने से वह हिल जाती है।
Meaning: The self rises with knowledge, like a simple piece of cloth. The world is like a dog; barking causes it to stir.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर ने संसार की भौतिकता और उसके छल को स्पष्ट किया है। उन्होंने ज्ञान को आत्मा के उत्थान का साधन बताया है, जो साधारण चीजों की तरह सहज है। इसके विपरीत, दुनिया की गतिविधियाँ और भ्रम कुत्ते की भौंक की तरह होते हैं, जो केवल शोर मचाते हैं और वास्तविकता से दूर होते हैं। यह दोहा हमें ज्ञान की महत्वता और संसार की अस्थिरता को समझने में मदद करता है।
मांगन को भल बोलना, चोरन को भल चूप।
माली को भल बरसनो, धोबी को भल धूप।।९४५।।
अर्थ: भिखारी से अच्छे से बोलना अच्छा होता है, चोर से चुप रहना अच्छा होता है। माली के लिए बारिश अच्छी होती है, और धोबी के लिए धूप अच्छी होती है।
Meaning: It is good to speak kindly to the beggar, silence is good for the thief. Rain is good for the gardener, and sunlight is good for the washerman.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सामाजिक व्यवहार की विविधता को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा है कि भिखारी से अच्छे शब्दों से बात करना अच्छा होता है, जबकि चोर के साथ चुप रहना सही होता है। इसी तरह, माली के लिए बारिश और धोबी के लिए धूप लाभकारी होती है। यह दोहा हमें यह समझाता है कि परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार को समायोजित करना चाहिए और उचित उपाय अपनाने चाहिए।
बालों जैसी किरकिरी, ऊजल जैसी धूप।
ऐसी मीठी कछु नहीं, जसी मीठी चूप।।९४६।।
अर्थ: जैसे बालों में कीड़े की कि़रकिरी होती है, जैसे चमकदार धूप होती है। सांसारिक जीवन में चुप्पी की मिठास जैसी कुछ भी नहीं होती।
Meaning: Like the irritation of lice, like the bright sunlight. There is nothing as sweet as silence, like the sweetness of quietude.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सांसारिक सुखों की क्षणिकता और चुप्पी की स्थायिता की बात करते हैं। बालों में कीड़े की तरह छोटी-छोटी परेशानियाँ और चमकदार धूप की तरह जीवन के बाहरी सुख केवल अस्थायी होते हैं। चुप्पी और शांतता की मिठास, स्थायी सुख की प्रतीक होती है। यह दोहा हमें समझाता है कि बाहरी सुख की बजाय आंतरिक शांति और चुप्पी अधिक मूल्यवान होती है।
रितु बसंत याचक भया, हरखि दिया द्रुम पात।
ताते नव पल्लव भया, दिया दर नहिं जात।।९४७।।
अर्थ: बसंत ऋतु भिखारी जैसी हो गई है, पेड़ों को हरियाली प्रदान करती है। इसके कारण नए पत्ते उगते हैं, और कोई दरवाजे पर नहीं जाता।
Meaning: The season of spring has become a beggar, delighting the trees with its leaves. From this, new shoots have emerged, and no one has gone to the door.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में बसंत ऋतु की प्रशंसा करते हैं, जो पेड़ों को हरियाली और नये पत्ते देती है। यह संकेत करता है कि ऋतु का योगदान कितना महत्वपूर्ण है, और इसकी अच्छाइयों को पहचानने की बजाय लोग और भी बहुत सी बातें खोजते हैं। दोहा यह दर्शाता है कि बसंत का सौंदर्य और उसकी अनुपम क्षमता जीवन को नवीनता और खुशी प्रदान करती है।
अति हठ मत कर बावरे, हठ से बात न होय।
ज्यूं ज्यूं भीजे कामरी, त्यूं त्यूं भारी होय।।९४८।।
अर्थ: अधिक जिद मत करो, जिद से बात नहीं बनती। जैसे कपड़ा गीला होता जाता है, वैसे ही उसका वजन बढ़ता है।
Meaning: Do not be excessively stubborn, for stubbornness does not help. As the cloth gets wet, it becomes heavier.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर यह बताते हैं कि अत्यधिक जिद और हठ करने से कोई फायदा नहीं होता। यह केवल स्थिति को और कठिन बनाता है, जैसे गीला कपड़ा भारी हो जाता है। कबीर की यह सलाह है कि हमें जिद करने की बजाय लचीलापन और समझदारी से काम लेना चाहिए, ताकि समस्याओं को हल किया जा सके।
खाय पकाय लुटाय के, करि ले अपना काम।
चलती बिरिया रे नरा, संग न चलै छदाम।।९४९।।
अर्थ: खाओ, पकाओ और लूट लो, फिर अपना काम पूरा करो। जुलूस चलता रहता है, लेकिन धोखेबाज़ साथ नहीं चलते।
Meaning: Eat, cook, and plunder, and then complete your work. The procession continues, but the deceitful are not carried along.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सांसारिक गतिविधियों और झूठ का उल्लेख करते हैं। वे कहते हैं कि लोग भौतिक लाभ के लिए अपनी कर्मठता और चालाकी का उपयोग करते हैं, लेकिन झूठे और धोखेबाज़ व्यक्ति स्थायी नहीं होते। जुलूस की तरह जीवन चलता रहता है, लेकिन जिनके पास सच्चाई नहीं है, वे अंततः पीछे रह जाते हैं।
लेना होय सो जल्द ले, कही सुनी मत मान।
कही सुनी जुग जुग चली, आवागमन बंधान।।९५०।।
अर्थ: यदि आपको कुछ चाहिए, तो तुरंत ले लें, अफवाहों पर ध्यान न दें। जो कहा और सुना जाता है, वह युगों से चल रहा है, जन्म और मृत्यु के चक्र को बांधता है।
Meaning: If you need something, take it quickly, do not heed rumors. What is said and heard has been going on for ages, binding cycles of birth and death.
व्याख्या: इस दोहे में कबीर का संदेश है कि हमें अपनी जरूरतों को तुरंत पूरा करना चाहिए और बेकार की अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। पुरानी बातें और अफवाहें जन्म और मृत्यु के चक्र को बढ़ाती हैं, और यह महत्वपूर्ण है कि हम इस चक्र को समझें और उससे बाहर निकलने का प्रयास करें।